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(९) श्री शत्रुजय मंडन श्री शत्रुजय मंडन ऋषभ जिणंद दयाल, मरुदेवा नंदन वंदन करुं त्रण काल, ए तीरथ जाणी पूर्व नवाणुं वार, आदीश्वर आव्या जाणी लाभ अपार, त्रेवीश तीर्थंकर चढीया ईण गिरिराय, ए तीरथना गुण सुर सुरादिक गाय; ए पावन तीरथ त्रिभुवन नहि तस तोले, ए तीरथना गुण सीमंधर मुख बोले. पुंडरीकगिरि महिमा आगममा प्रसिद्ध, विमलाचल भेटी लहीए अविचल रिद्ध; पंचमी गति पहोंचता मुनिवर क्रोडक्रोड, ईण तीरथे आवी कर्म विपाक विछोड, श्री शत्रुजय केरी अहोनिश रक्षाकारी, श्री आदिजिनेश्वर आण हृदयमां धारी; श्री संघ विघ्नहर कवडजक्ष गणभूर, श्री रविबुधसागर संघना संकट चूर.
(१०) श्री शत्रुजय तीरथ सार श्री शत्रुजय तीरथ सार, गिरिवरमा जेम मेरु उदार,
ठाकोर राम अपार; मंत्रमाहि नवकार ज जाणुं, तारामा जेम चंद्र वखाj,
जलधर जलमां जाणुं;
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