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भिक्षा विना दिन चारसो वीत्या छतां धरता प्रशम, स्थाप्युं जगतमा जेमणे श्रीधर्मकल्पतरु परम; ने जेमणे आप्यु जनेताने परम पद सौ प्रथम, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभाव हुं नमुं. ज्यांना कणेकणमां वहे शुभ भावनां आंदोलनो, ना पार को' पामी शके जे क्षेत्रनां माहात्म्यनो, महातीर्थ ते सिद्धाचल छ वास पावन जेमनो, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुं नमुं. जेणे असंख्या भरत महाराजादि तार्या आतमा, जे एकसो ने आठ मुनि साथे वर्या मुक्तिरमा, जेनुं महाशासन रह्यु सौथी वधारे समयमां, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुं नमुं. सौथी ऊंची काया अने सौथी वधु तप आकरो, सौथी अधिक आयुष्यमां सौथी वधु तार्या नरो; ने जेमनी साथे हता सौथी वधारे व्रतधरो, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. जेना प्रभावे जीवनमा हुं परम शान्ति अनुभवू, जेना प्रभाव वर समाधि मरणमा पामीश हुँ; जेना प्रभावे पवनवेगे 'मोक्ष' मां पहोंचीश हुँ, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं.
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