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नौ खमासमणों के दोहे
सिद्धाचल समरुं सदा, सोरठ देश मोझार मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार... सोरठ देशमां संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार
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शेत्रुंजी नदी नाह्यो नहि, एनो एले गयो अवतार... शेत्रुंजी नदीए नाहीने, मुख बांधी मुखकोश देव युगादि पूजीए, आणी मन संतोष.... एकेकुं डगलुं भरे, शत्रुंजय सामु जेह ऋषभ कहे भव क्रोडना, कर्म खपावे तेह... शत्रुंजय समो तीरथ नहि, ऋषभ समो नहि देव गौतम सरिखा गुरु नहि, वली वली वंदु तेह... जगमां तीरथ दो वडा, शत्रुंजय गिरनार एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार ... सिद्धाचल सिद्धिवर्या, मुनिवर कोडि अनंत आगे अनंता सिद्धशे, पूजो भवि भगवंत... शत्रुंजय गिरिमंडणो, मरूदेवानो नंद युगलाधर्म निवारणो, नमो युगादि जिणंद .... तन-मन-धन- -सुत-वल्लभा, स्वर्गादिक सुख भोग वली वली ए गिरि वंदता शिवरमणी संयोग...
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