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(३) श्री शत्रुजय महात्म्यनी श्री शत्रुजय महात्म्यनी, रचना कीधी सार; पुंडरीकगिरिनी स्थापना, प्रथम जिन गणधार. एक दिन वाणी जिननी, सुणी थयो आनंद; आव्या शत्रुजयगिरि, पंचक्रोड सह रंग. चैत्री पूनमने दिने ए, शिवशुं कीधो योग; नमिये गिरि ने गणधरूं, अधिक नहि त्रिहुलोग.
(४) प्रेमे प्रणमो प्रथम देव प्रेमे प्रणमो प्रथम देव, शत्रुजयगिरि मंडन. भवियण मन आनंदकरण, दुःख दोहगखंडन. सुरनर किन्नर नमे तुज, भगतिशुं पाया, पापकंटक फेडे समत्थ, प्रभु त्रिभुवन राया. ज्ञानविमल प्रभु तुम तणे, चरणे शरणे राखौ; कर जोडीने विनवू, मुक्ति मार्ग मुज दाखो.
(५) शत्रुजय शिखरे चढिया शत्रुजय शिखरे चढिया स्वामी, कहीए हुं अर्चिश. रायण तरुवर तले पाय पूजी आणंदे अरचिश. न्हवण विलेपन पूजना, करी आरती उतारीश; मंगल दीपक ज्योति थुति, करी दुरित निवारीश. धन्य धन्य ते दिन माहरोए, गणीश सफल अवतार; नय कहे आदीश्वर नमो, जिम पामो जयकार.
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