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सिद्धगिरिमा मारग साचो देखाय छे... जीवनगृहमां अंधारा व्यापी रह्यां, शत्रुजयमां आशाओ बंधाय छे... जीवन मारूं जानवर जेवू बन्युं. कदंबगिरिमां मानवता सर्जाय छे... जीवननी सरिता जाणे क्या वही रही, सागर सरीखा प्रभुमा ए समाय छे...
१२. सेवा हो, मुक्ति मेवा
(राग - सेवा हो, मुक्ति मेवा) सेवा हो, मुक्ति मेवा(२) हो...मारी हैयानी सेवा स्वीकारो प्रभु! मने मुक्तिना मेवा चखाडो प्रभु(२)सेवा... आपु जनमो जनमथी परीक्षा, हवे परिणामनी छे प्रतीक्षा, मारा जन्मोनो अंत, क्यारे आवशे भगवंत, मोटी मनडानी चिंता मटाडो प्रभु(२) सेवा... में तो राखी नथी कोइ खामी, तो ये रीझ्या नहीं केम स्वामी, मारो शुं छे अपराध, हुं तो गोतु दिनरात, मारी भक्तिनी खामी सुधारो प्रभु(२) सेवा... बोजो भवनो घणो में उपाड्यो,
लांबो मारग प्रभु में खुटाड्यो, हवे लागे छे थाक, थोडो लंबावो हाथ, मारे माथेथी बोजो उतारो प्रभु(२) सेवा...
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