________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५७. ऋषभजिनेश्वर! वंदना ऋषभजिनेश्वर! वंदना, होशो वारंवार; पुरुषोत्तम भगवान निराकार संत छो, गुणपर्यायआधार. उत्पत्ति-व्यय ध्रुवता, एक समयमांही जोय; पर्यायार्थिकनयथी व्यय-उत्पत्ति छे,
द्रव्यथकी ध्रुव होय. ऋ० १ सत् करतां सामर्थ्यना, होय पर्याय अनन्त; अगुरूलघुनी शक्ति ते तेहमां जाणीए,
अनन्त शक्ति स्वतंत्र.ऋ० २ परमभाव ग्राहक प्रभु, तेम सामान्य विशेष; ज्ञेय अनन्तनुं तोल करे प्रभु! ताहरो,
क्षायिक एक प्रदेश. ऋ० ३ स्थिरता क्षायिकभावथी, मुखथी कही नहि जाय; अनन्तगुण निज कार्य करे लही शक्तिने,
उत्पत्ति-व्यय पाय. ऋ०४ गुण अनन्तनी ध्रुवता, द्रव्यपणे छे अनादि; गुणनी शुद्धि अपेक्षी पर्याये करी,
भंगनी स्थिति छ सादी. ऋ० ५ सादि अनंति मुक्तिमां, सुख विलसो छो अनंत; सुख ज्ञेयादिक ज्ञानमां ज्ञाता जगगुरु,
ज्ञान अनंत वहंत. ऋ०६ रागद्वेष-युगल हणी, थईया जग महादेव
९२
For Private and Personal Use Only