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दूसरे शांतिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय
स्तुति षट्खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरने सोलमां जिन राजता, चोमास रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांतिजिनने वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. प्रथम इरियावहीयं करके, इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि. (इस प्रकार तीन खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं? इच्छं (कहकर बाँया गोड़ा उपर करके) (सकल कुशलवल्ली)
चैत्यवंदन शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिस सुत वंदो; विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुख कंदो. मृग लंछन जिन आउखुं, लाख वरस प्रमाण; हत्थिणाउपर नयरी धणी, प्रभुजी गुण मणि खाण. २ चालीश धनुषनी देहडी, समचोरस संठाण; वदन पद्म ज्युं चंदलो, दीठे परम कल्याण. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्)
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