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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलिमल तस अडके नहि रे, ज्युं सोवनधन रोक ऋ० ज्ञानविमल प्रभु जस शिरे रे, तस खसे भव परवाह; करतलगत शिवसुंदरी रे, मले सहज उच्छाह. ऋ० २६. विमलाचल विमला पाणी... विमलाचल विमला पाणी, शीतल तरु छाया ठराणी; रस वेधक कंचन खाणी, कहे ईन्द्र सुणो ईन्द्राणी. सनेही संत ए गिरि सेवो, चौद क्षेत्रमा तीरथ न एवो, सनेही०१ छहरी पाली उल्लसी, छट्ठ अट्ठम काया कसीए; मोहमल्लनी सामा धसीए, विमलाचल वेगे वसीए, सनेही०२ अन्य स्थाने कर्म जे करीए, ते हिमगिरि हेठा हरीए: पाछल प्रदक्षिणा फरीए, भवजलनिधि हेला तरीए, सनेही०३ शिव मंदिर चढवा काजे, सोपाननी पंक्ति बिराजे चढतां समकिती छाजे, दुरभव्य अभव्य ते लाजे, सनेही०४ पांडव पमुहा केई संता, आदीश्वर ध्यान धरंता; परमातम भाव भजंता, सिद्धाचल सिध्या अनंता, सनेही०५ षट्मासी ध्यान धरावे, शुक राजा ते राज्यने पावे; बहिरंतर शत्रु हरावे, ६७ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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