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प्रभु बेठा सोहे, समवसरण भगवंत; त्रण छत्र बिराजे, चामर ढाले ईन्द्र, जिनना गुण गावे, सुर नरनारीना वृंद. बार पर्षदा बेसे, ईन्द्र इन्द्राणी राय, नव कमल रचे सुर, तीहां ठवता प्रभु पाय; देव दुंदुभी वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत, एहवा जिन चोवीसे, पूजो एकण चित्त. जिन जोजनभूमि, वाणीनो विस्तार, प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार; सहु आगम सुणतां, छेदीजे गति चार, जिन वचन वखाणी, लीजे भवनो पार. जक्ष गोमुख गिरूवो, जिननी भक्ति करेव, तिहां देवी चक्केश्वरी, विघन कोडी हरेव, श्री तपगच्छनायक, विजयसेन सूरिराय, तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुण गाय.
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(१९) जीहां ओगण्योतेर कोडा कोडी
जीहां ओगण्योतेर कोडा कोडी, तेम पंचासी लखवली जोडी चुम्मालीश सहस कोडी;
समवसर्या तिहां एती वार, पूर्व नव्वाणुं एम प्रकार,
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नाभि नरिंद मल्हार. १
सहस्त्रकुट अष्टापद सार, जिन चोवीस तणा गणधार,