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प्रस्ताविकम्
# इणगिरि साधु अनंता सिध्या, कहेतां पार न आवे"
प. पू. महान शासन प्रभावक आचार्य भगवंतश्री धनेश्वरसूरीश्वरजी महाराज साहबने शत्रुंजय महात्म्य ग्रंथ में लिखा है कि प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ प्रभुने श्री पुंडरीक गणधर को कहा था- शत्रुंजयगिरि यानी मोक्ष का निवास हैं। इस गिरि पर आरोहण करनेवाले प्राणी अति दुर्लभ लोकाग्र-मोक्ष को शीघ्र प्राप्त करते हैं। इसलिए यह गिरिराज शाश्वत तिर्थेश्वर है। इस अनादि तीर्थ पर अनंत तीर्थंकर अनंत साधु अपने कर्मों को खपाकर सिद्ध बने हैं।
इस तीर्थ की महिमा बताते हुए लिखा है कि अन्य तीर्थों में उग्र तपश्चर्या एवं ब्रह्मचर्य पालन से जो फल प्राप्त होता है वह फल श्री शत्रुंजयगिरि पर बसने मात्र से प्राप्त होता हैं।
अन्य स्थान में एक क्रोड मनुष्यों को इच्छित आहार का भोजन कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उतना पुण्य श्री शत्रुंजयतीर्थ में एक उपवास करने से प्राप्त होता हैं।
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शुद्ध भाव से इस तीर्थ का गुण गाने से भी कितना फल मिलता है, तो कहते हैं जब तीर्थंकर मोक्ष में चले जायेंगे और विशिष्ट ज्ञान भी चला जायेगा। उस समय में भी भव्य जीव गिरिराज के गुणों की मात्र स्तवना करके तथा शत्रुंजय महात्म्य का श्रवण करके संसार समुद्र को तैर जायेंगे ।
भक्ति भगवान तक पहुंचने की सीडी हैं। भक्ति में व्यक्ति खुद
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