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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुजयगिरि नाम सहु, आतमनां प्रमाणो; द्रव्य ते भावनो हेतु छे, एवो निश्चय आणो. सिद्धाचल० ३ आत्मा असंख्यप्रदेश छे, तेम गिरि प्रदेशो; समकित प्रगटे आदिमां, आदिनाथ महेशो. सिद्धाचल० ४ द्रव्य ने भाव सापेक्षथी, जेवा भावे भक्ति; तेवा फलने पामशो, तेवी थाशे व्यक्ति. सिद्धाचल० ५ औदयिकभावथी सेवता, कोई उपशम भावे; क्षयोपशम क्षायिकथी, भाव समफल पावे. सिद्धाचल०६ द्रव्य तीर्थ जेथी थयां, भाव तीर्थाधार; विमलाचल वेगे वसो, ज्ञानी थै नरनार. सिद्धाचल०७ आत्मिक शुद्धोपयोगथी, पोते तीर्थ छे देहे; बुद्धिसागर तीर्थ छे, शुद्ध आतमस्नेहे. सिद्धाचल०८ ६३. श्री सिद्धाचल श@जय. श्री सिद्धाचल शत्रुजय, सिद्धक्षेत्र अभिराम; दर्शन करतां दुरगति त्रूटे, छुटे बंध निदान; श्री रिसहेसर पट्ट धुरंधर, असंख्यात नरराय; श्री आदित्ययशाथी यावत्-अजित जिनेश्वर ताय. चउदश इग इग चउ दश इण विध, थई श्रेणि असंख्यात; सिद्धदंडिका मांहे सघलो, एह अछे अवकात; सर्वार्थसिद्ध ने शिवगति विण, त्रीजी. गति मवि पामी; तिणे पण ए तीरथ फरस्यो, वंदो भवि शिर नामी. २ नमि विनमि विद्याधर नायक, दो कोडी मुनि संघाते; ९७ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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