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ईत्यादिक बहु भातिशू, ए नाम ज्यो निरधार; धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार.
(१०) सोना-रूपानां फूलडे सोना-रूपानां फूलडे, सिद्धाचल वधावू; ध्यान धरी दादातj, आनंद मनमा लावू. पूजा करी पावन थया, मम मन निर्मल देह; रचना रचुं शुभ भावथी, करुं कर्मनो छेह. अभवीने दादा वेगला, भवीने हैडा हजुर; तन-मन-ध्यान लगन थकी, कीधा कर्म चकचूर. कांकरे कांकरे सिद्ध थया, सिद्ध अनंतनुं ठाम; शाश्वत जिनवर पूजता, जीव पामे विश्राम. दादा दादा हुं करूं, दादा वसीया दूर; द्रव्यथी दादा वेगला, भावथी हैडा हजुर, दुषम काले पूजता, इन्द्र धरी बहु प्यार; ते प्रतिमाने वंदता, श्वासमांहे सो वार. सुवर्ण गुफाए पूजता ए, रत्न प्रतिमा इन्द्र; ज्योतिमा ज्योति मीले पूजे, मीले सवि सुख कंद. ऋद्धि सिद्धि घेर संपजे ए, पहोंचे मननी आश; त्रिकरण शुद्धे पूजतां, ज्ञानविमल सुप्रकाश.
(११) नमो आदिदेवं नमो आदिदेवं नमो आदिदेवं. करे सुर असुर भक्तिथी जास सेवं;
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