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श्री सिद्धगिरिराज की स्तुतियाँ ख्यातोष्टापद-पर्वतो गजपदः सम्मेत-शैलाभिधः; श्रीमान् रैवतकः प्रसिद्ध-महिमा शत्रुञ्जयो मण्डपः. वैभारः कनका-चलोर्बुद-गिरि श्रीचित्रकूटादयस्तत्र श्रीऋषभादयो जिनवराः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्. .१ पूर्णानंदमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्रुपमयं, रूपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी श्रीमयं, ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वाद विद्यालयं, श्री सिद्धाचल-तीर्थराज-मनीशं-वंदेऽहमादीश्वरम् . तीर्थो जगतमा कैंक छे तीर्थोतणो तोटो नथी, शाश्वतगिरि श्री सिद्धगिरि छे क्यांय तस जोटो नथी; क्रोडो मुनि मोक्षे गया लई शरण आ गिरिराजर्नु, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदादार आदि जिणंद है. १ श्री सिद्धगिरि शाश्वतगिरि वली, पुंडरिक गिरि नाम छे, पुष्पदंतगिरिने विमलगिरिवर, सुरगिरि जस नाम छे; गिरिराज श@जय सहित जस एक शत अड नाम छे, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. २ सौराष्ट्रमां गिरिराज छे, गिरिराज पर जिनराज छे, पापी अधम छु तो य मुजने तरी जवानी आश छे; में सांभल्युं छे तीर्थ आ भवजलधिमांहि जहाज छे, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ३ त्रण भुवनना शणगार एवा, विमलगिरिवर उपरे,
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