Book Title: Shrutsagar Ank 2013 03 026
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर वर्ष - ३, अंक - २, कुल अंक - २६, मार्च - २०१३ NANTOSANONM चोवीशी पट आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारंगा तीर्थे उत्सवना मंडाण पधरामणी गुरुवरनी, प्रतिष्ठा घंटाकर्णवीरनी. प.पू. राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरि म. सा. नो वैयावच्च-वात्सल्यधाममा प्रवेश. श्री घंटाकर्ण महावीर देवर्नु नूतन मंदिर धर्मसभा संभवनाथ जैन आराधना केन्द्र तारंगा तीर्थ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञातगंदिर का मुखपत्र श्रुतसागर २६ * आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक मंडल * मुकेशभाई एन. शाह कनुभाई एल. शाह हिरेन दोशी डॉ. हेमन्त कुमार केतन डी. शाह एवं ज्ञानमंदिर परिवार १७ मार्च, २०१३, वि. सं. २०६९, फागण सुद-४ प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४. २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९ website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७. राणकपुर तीर्थ परिचय ८. ज्ञानमंदिर कार्य अहेवाल ९. समाचार सार १. पार्श्वनाथ भगवानना बे स्तोत्र २. विजयशेखर गणिना बे रास ३. ऐतिहासिक लघु कृतिओनो सार ४. प्राचीन विद्यापीठ एवं चीनी यात्री ५. बे चोवीशी पटनो परिचय ६. संग्रहालयना प्रतिमा लेखो प्राप्तिस्थान www.kobatirth.org अनुक्रम प्रकाशन सौजन्य - हिरेन दोशी हिरेन दोशी हिरेन दोशी डॉ. उत्तमसिंह हिरेन दोशी आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग होल की गली में पालडी, अहमदाबाद ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ कनुभाई एल. शाह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डॉ. हेमंत कुमार श्री रश्मिकांतभाई कामदार परिवार Rushab Ship Consultant, Inc., 43, Jonanthan Drive, Edison, NJ 08820, USA. For Private and Personal Use Only ५४ ५८ ६९ ७१ ७४ ७९ ८० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय पिछले अंक में हमने आपको बताया था कि श्रुतसागर नया प्रौढ़ आकार ग्रहण कर रहा है। इसके स्वरूप, उद्देश्य और विषय को विस्तृत बनाया जा रहा है। अपने भव्य भूतकाल एवं शास्त्रों में छिपे देदीप्यमान इतिहास का विस्तृत परिचय प्रस्तुत करने हेतु तमाम ऐतिहासिक सामग्रियों एवं प्रामाणिक साक्ष्यों को पूरक सामग्रियों के साथ प्रकाशित करके शोधकर्ताओं तक पहुँचाने की शृंखला में हमने इस अंक में ऐतिहासिक लेख, विशिष्ट तीर्थस्थलों का परिचय, ज्ञानमन्दिर में संगृहीत विशिष्ट कृतियों की सूचनाओं जैसे अनेक शोधप्रद एवं बोधप्रद विषयों को संकलित किया है। इस अंक में हमने सर्वप्रथम प्रभु पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति करके अपना कार्य आगे बढ़ाने का प्रयास किया है, क्योंकि इस अवसर्पिणी काल में जिनशरण और उसमें भी प्रभु पार्श्वनाथ का सहारा मिल जाए तो कठिन से कठिन कार्य भी सहजतापूर्वक सम्पन्न हो जाते हैं। प्रभु पार्श्वनाथ की स्तुति पूर्वक मंगलाचरण के पश्चात् चतुर्विध श्रीसंघ के लिये उपयोगी गुणों-तत्त्वों को निरूपित करने में पूर्णतः सक्षम दो अप्रकाशित रासों का चयन किया गया है, जिनके कथानक आज के भौतिक चकाचौंध में फंसे जीवों को मानवमूल्यों को अपनाने हेतु मार्गदर्शक का कार्य करेंगे। पूर्वाचार्यों के जीवन-दर्शन को प्रदर्शित करती हुई पद्यात्मक लघु कृतियों का सारांश प्रस्तुत करके हमने यह बताने का प्रयास किया है कि हमारे पूर्वाचार्यों का जीवन-दर्शन कैसा था, उनके जीवन-आदर्श हमारे लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हो रहे प्राचीन विद्यापीठों के सम्बन्ध में चीनी यात्रियों के विचारों को प्रस्तुत कर तत्कालीन भारतीय शैक्षणिक स्थिति को दर्शाने का प्रयास किया गया है। त्रैलोक्यदीपक महातीर्थ राणकपुर के वैशिष्ट्य को उद्घाटित करने हेतु राणकपुर तीर्थ का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। सम्राट संप्रति संग्रहालय, कोबा में संकलित धातुप्रतिमाओं के लेखों को भी इस अंक में प्रकाशित किया जा रहा है जो हमारे छिपे हुए ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने में सहायक सिद्ध होगा। चौबीसी पट्ट के परिचयात्मक लेख में चौबीसी के निर्माण एवं उसकी परम्परा का संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत करने का For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ प्रयास किया गया है । हम एक बार पुनः यह दोहराना चाहेंगे कि हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में परम पूज्य गुरुभगवन्तों का आशीर्वाद और आप सभी का सहयोग अपेक्षित ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है। आपके पास ऐसी कोई ऐतिहासिक कृति, संशोधित विशिष्ट सूचना, महत्त्वपूर्ण लेख आदि हों तो हमारे प्रकाशक के पते पर भेजें, उसे हम आपके नाम के साथ योग्य स्थान में प्रकाशित करेंगे। मार्च २०१३ - हमारा प्रयास अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कितना सफल हो सका है, इसका निर्णय आपके हाथों में है । आपका अभिप्राय, योग्य मार्गदर्शन एवं सहयोग हमें प्राप्त होता रहे, ऐसी आशा है। મુલાકાત અને અભિપ્રાય ૧. પ. પૂ. દિગંબરાચાર્ય શ્રી જ્ઞાનસાગરજી મ. સા. સાહેબે શ્રાવક-શ્રાવિકાઓની સાથે સંસ્થાની મુલાકાત લીધી. તેઓ દ્વારા અહીંના કાર્યો જોઇ પ. પૂ. ગુરુભગવંતશ્રીની માટે અનુમોદના કરી. ૨. શ્રુતભવનના ટ્રસ્ટી શ્રી ભરતભાઈ તથા શ્રી ઉમંગભાઈએ આચાર્યશ્રી કૈલાસસાગરસૂરિ જ્ઞાનમંદિરની મુલાકાત લીધી. તેઓને આ મુલાકાત દરમ્યાન જ્ઞાનમંદિરના બધા જ વિભાગોમાં રૂબરૂ લઇ જવામાં આવેલ તથા સંપૂર્ણ માહિતીઓ આપવામાં આવી. For Private and Personal Use Only 3. "I'm well impressed by how well the whole place, including the library, is maintained and managed. The collection in your library is wonderful and contains lots of extremely valuable manuscripts and material. I'm also impressed by your work to maintain, preserve and digitize the manuscripts. It is extremely important to digitize all manuscripts and make them easily available for research. I hope to organize a workshop on manuscripts here in the future that will be an excellent place for such a workshop. My thanks for your hospitality and wormed welcome. I wish you success. Piotr Balcerowicz, Prof., Oriental Studies & International Relations, University Of Warsaw, Poland Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वनाथ भगवानना बे स्तोत्र संपा. हिरेन दोशी महेंद्रसूरिकृत पार्थजिन स्तोत्र प्रत-विशेष :- वि. सं. २०५५मा आगमप्रज्ञ मुनिराजश्री जंबूविजयजी म. सा. द्वारा करावेल आचार्य हेमचंद्रसूरि ज्ञानमंदिर-पाटणनी झेरोक्ष प्रतमाथी आ स्तोत्र मळ्युं छे. जेनो अमे साभार उपयोग कर्यो छे. कृतिसार : कमळनी कोमळता जेना देहमां सौंदर्यनो संचार करे छे. वादळनी कांति जेवा मणिमय नागराजोनी फणानो विस्तार जेना मस्तके शोभे छे. एवा पार्श्वनाथ प्रभु जय पामे छे. प्रभुनी आवी प्रभाव गर्भित स्तवनाथी स्तोत्र प्रारंभाय छे. जमीननो कादव आकाशमां रहेला सूर्यना तापथी जेम नाश पामे छे. तेम हे भगवान ! तारुं मुखबिंब जोवाथी मारो पापनो कादव नाश पामी जाय छे, सूकाई जाय छे. उपमितिमा पण कर्दा छ के भगवाननी दृष्टि पडे एटले संसार-सागर तरवो नथी पडतो, पण सूकाई जाय छे. हे पार्श्वनाथ प्रभु तारा चरण-कमळनी सेवाथी मारा बधां ज धारेलां कार्यों पार पडे छे. प्रभु तुं खरेखर कल्पवृक्ष छो. शुं क्यारेय कल्पवृक्षनी सेवा निष्फळ जाय? न ज जाय. अवश्य फळदायी बने छे. वधु एक उदाहरण आपी भगवद्दर्शननी महत्ता बतावे छे- गरुडना दर्शन थतां सापना समूहमां नाश-भाग मची जाय छे. गरुडनी नजरमा साप टकी शकतो नथी. तेम गरुड समान हे प्रभु तारा दर्शन करवाथी मारा सापोलिया जेवा दुःखोना मुकाममां नाश-भाग मची जाय छे. तमाम पीडा अने परेशानी पलायन पामे छे. तारा मंत्रना स्मरण मात्रथी विद्या-राज्य-लक्ष्मी विगेरे चिंतामणि रत्ननी जेम क्षणमां ज प्राप्त थाय छे. आंगणामां उडती धूळ उपर पाणी छांटवाथी जेम धूळ बेसी जाय छे उपशमन थाय छे. एम हे प्रभु शीतल जल समान तारा नामनु स्मरण करचाथी ग्रह, रोग, शोक अने पीडानी धूळ घडीकमां उपशमी जाय छे. बेसी जाय छे. __मे (महेंद्रसूरिए)श्रीअश्वसेन-पुत्र(पार्श्वनाथ भगवान)नी निर्वाण-पदनी प्राप्ति अर्थे, विविध प्रकारना विशेषणोथी युक्त पार्श्वनाथ भगवाननी स्तवना करी. आ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ स्तोत्रना कर्ता महेंद्रसूरि महाराज छे. कृतिमा कर्ता संबंधी बीजो कोई उल्लेख प्राप्त थतो नथी. महो. जयसागरकृत चिन्तामणि पार्शजिम स्तोत्र प्रत परिचय : अंदाजे विक्रमनी अढारमी सदीमां लखायेली हस्तप्रतमां महोपाध्याय जयसागरकृत पार्श्वनाथ स्तोत्र मळे छे. ज्ञानमंदिरमा ३५८४६ नंबर पर नोंधायेली आ प्रतमां कुल १ पत्र छे. आ स्तोत्र सिवाय आ प्रतमां पार्श्वनाथ भगवान संबंधी ३ स्तोत्रो प्राप्त थाय छे. अन्य विशेष परिचय प्राप्त थतो नथी, पण प्रतादिना अक्षरो जोता वि. सं. १९मी सदीनुं अनुमान थई शके... कृति-सार : प्रस्तुत स्तोत्र खरतरगच्छीय आचार्य जिनराजसरि महाराजना शिष्य कवि जयसागरजी महाराजनी रचना छे. आ कृतिमां कवि-महाराजे पार्श्वनाथ भगवानना स्मरणनो विशेषे महिमा गायो छे. आ स्तोत्रनी रचना बारडोली नजीक आवेल घणदेवी (गणदेवी) गाममां थई, गणदेवीमा मूळनायक तरीके बिराजमान श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ भगवाननी स्तवना ए आ कृतिनुं कथित तत्त्व छे. धरणेंद्र-पद्मावती सेवित श्री पार्श्वनाथ भगवाननुं त्रण संध्याए स्मरण करवा पूर्वक नमन करवाथी आपत्ति अने विघ्नोनो नाश थवाथी ऋद्धि-समृद्धि पण आवी मळे छे. जे कोई भविक जीव पार्श्वनाथ भगवानना मंत्रनुं स्मरण करे छे एनी आधि-व्याधि अने उपाधिओ दूर थाय छे. प्रस्तुत कृतिमां संसारना ऐहिक सुखो आपी शके ए तमाम वस्तुओनी उपमाथी प्रभुने बिरदाव्या छे. कारण के प्रभु ऐहिक अने पारलौकिक बन्ने भयोमा उपकारी बने छे. पार्श्वनाथ भगवाननुं निरंतर स्मरण करवाथी जन्म-जन्मांतरनु दासत्व दूर थयाना दाखलाओए इतिहासना पानाओ भरी आप्या छे. मंत्रना प्रभावे भूत-प्रेत-पिशाचादि पण दूर थाय छे. पोताना गुरुमहाराज राजसागरनी कृपाथी आ स्तोत्रनी रचना गणदेवीमां करी छे. For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महेंद्रसूरिकृत पार्धजिन स्तोत्र नीलुप्पलइहदेहो, फणिंदफणमणिमऊविच्छरिओ । अहिणवमेहुव्व फुरंत(त?), विज्जुओ जयइ पासजिणो ।।१।। अवलोइयंमि तुह पहु!, मुहकमले गलइ पावपंकोहो । किं रवि बिंबे दिठे, ठिइ बंधं कुणइ तिमिरभरो ।।२।। तुह पहु! पयसेवाए, पुज्जंति मणोरहा असेसावि। कप्पनरुणो हि सेवा, कयाइ किं निफ्फला होइ ||३|| सामि! तुह दसणेण वि, दूरदूरेण जंति दुरियाई। भवियाणं गरुडस्स वि, पलोयणे पन्नगकुलाई विज्जा-रज्ज-लच्छी, सोहगमरुग्गयाइं-कमलच्छी। लब्भइ तुम्ह पसाया, चिंतारयणस्स व खणेणं |1५।। परमेमंतुव्व जए, वम्मानंदण मणमि निवस्संते। वेयाल-वाल-भूया, पस(भ)वंति न साइणी एउ तुह नामगहणेण वि, गह-विगह-रोग-सोग-माईय । उवसमि(मं)ति खणेणं, जलसित्तारेणुनीरुव्य सिरिआससेणतणओ, पासजिणो संथुओ मए एवं। महइंदसूरिपणओ, निव्वाणपयं पयच्छेउ ।४।। ६।। । ७।। ||८ ।। For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महो. जयसागरकृत चिन्तामणि पार्थजिन स्तोत्र ||१|| ||२|| ।।३।। ।४।। चिंतामणिपासजिणं, तं नमह भत्तिभरेण य तिसंझं । सिरिधरणिव्व नमंसिय, पउमावइ सेविय सुपायं जो समरइ पासपहुं, वंदिय सुरवरनरिंदपयकमलं । रिद्धिं पि फलइ निच्चं, उवद्दवा नासइ य तस्स दारिदं-दोहग्गं, कुजाइ-कुमइ-कुसरीर-कुगईओ। जो स[म]रइ पासमंतं, न य हुंति कयावि किं तस्स चोरारिरणजलजलण-मइंदगयविसहराइंयभयाई। जस्स पभावेण सया, पसमंति य दुरियसव्याइं कप्पतरु-कामधेणु-चिंतामणि-लच्छिकुंभ-माईआ। जस्स मणे पासनाह, गिहंगणिमि फलइ य तस्स पई जायंताण मणे, गच्छंति सुरासुरीउ दासत्तं । पासजिणनाममंतं, पयडं नत्थि त्थ संदेहो गह-भूय-पिसाय-जक्खा-खुद्दभय-रक्खस-साइणिभयाइं। सिरिपासजिणिंदनाम-मंतपभावेण पसमंति पढइ जनानंदपरं, जो सुणइ य पाससंथवमुयारं | सासयसुक्खनिहाणं, निबिग्घं सो भमइ लोए इय सिरि घणदीवीए, संथुओ जयसायरेण जिणचंदो। मह वंछियसिद्धिं कुरु, राजसायर गुरु पसाएण ।।६।। 1७11 ।।८।। ।९।। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयशेखर गणिना बे रास संपा. हिरेन दोशी मध्यकालीन साहित्य पद्य कथाओथी भर्यु-भर्यु छे. पद्य कथानको बोधनी दृष्टिए सरळ बने, सामान्य जन तेने पोतानी भाषामां उतारी अने पचावी शके छे. कथा साहित्यना माध्यमे धर्मोपदेश अने जीवनंना विशाळ तत्त्वने उजागर करती अंचलगच्छीय गणि विजयशेखरनी बे रासा कृतिओ सागरचंदमुनि रास, अरणिकमुनि रास अहीं प्रकाशित करीए छीए. जैन धर्मोपदेशना तत्त्वोने कथाना माध्यमे पोतानी साहित्य रचनामां वणी लेवानुं जैन साहित्यकारो क्यांय चूक्या नथी कथा साहित्य धर्मोपदेशना तत्त्वनी साथे-साथे व्यवहार जीवन प्रत्येनी एक अनोखी दृष्टिनुं प्रदान करतुं होय छे. कथाना माध्यमे तत्त्वने वाचक सुधी पहोंचाडवानी परंपरा मूळ आगमोमां मळती आवे छे, ज्ञाताधर्मकथांग विगेरे तेना उदाहरणो छे. मध्यकालीन साहित्यकारोमां विजयशेखरनुं स्थान बहु महत्त्वपूर्ण रह्युं हशे . चंदराजनी चोपाईमां कवि पोताना विशे वात करतां जणावे छे. 'तस सानिधथी हुं लहुं, कविजनमांहि मान : ' आ उल्लेख द्वारा एमनी साहित्यकार अने कवि तरीकेनी प्रतिभा जणाई आवे छे. विजयशेखर महाराजनी कृतिओ काव्यात्मक, तत्त्वविचारात्मक, बोधात्मक, अने स्तुत्यात्मक एम बधा प्रकारनी छे. एमनी कृतिओमां कवित्वनी अभिनव समृद्धि जणाय छे. साडा त्रणसो वरसना समयनो तडको पड्यो, छताय एमना कवित्वनो रंग आजेय ताजो अने चळकतो लागे छे कवि क्यारेय विलय नथी पामतां, काव्यना अक्षरोमां सदाय जीवता ज होय छे. कवि विजयशेखरे मध्यकालीन साहित्यने घणी कृतिओ आपी, साहित्यने समृद्ध अने सद्ध कर्यु. विजयशेखरनी परंपरा : विजयशेखर महाराजना जन्म समय, स्थान, माता-पितादि संबंधे विशेष माहिती मळी शकी नथी. अंचलगच्छीय कवि विजयशेखर महाराजनी गुरु परंपरा आ प्रमाणे छे. आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराजनी परंपरामां For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० मार्च - २०१३ लाभशेखर → कमलशेखर → सत्यशेखर → विनयशेखर , विवेकशेखर महाराजना शिष्य गणि विजयशेखर थया, विजयशेखरनो सत्ता-काळ : विक्रमनी सत्तरमीना उत्तरार्धमां अने अढारमीना पूर्वार्धमां गणि विजयशेखर महाराजनी रचनाओ सारा एवा प्रमाणमां मळी आवे छे. विक्रमनी सत्तरमीना उत्तरार्धमा विजयशेखरनी दीक्षा अने प्राथमिक अध्ययन थयु होवानी संभावना छे. सुदर्शन रास अने चंदराजाना रासनी रचनामा जणाच्या अनुसार गणि भावशेखर एमना वडिल गुरुबंधु, के प्रायः विद्यागुरुना स्थाने होवानी शक्यता छे. श्री देशाई साहेब जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहासमा विजयशेखर गणिनो अंदाजित काव्यकाळ वि. सं. १६४३-१६९४ नोंधे छे, ज्यारे जै.गू.क. (भा. ३ पे, २३५) मां ऋषिदत्ता रासनी रचना संवत् १७०७ दर्शावाई छे. विजयशेखरने गणि पद क्यारे मळ्युं, कयां नगरमां मळ्युं इत्यादि कोई उल्लेख मळ्यो नथी. परंतु ज्ञानमंदिरमां संगृहीत वि. सं. १६९६मां कविनां हस्ताक्षरमां लखायेल सम्यक्त्व-स्तवननी प्रतपुष्पिकामां कविए पोताना नामनी पाछळ गणि शब्द प्रयोज्यो होवाथी वि. सं. १६९६ पहेलां गणि-पदथी विभूषित हता, ए, निश्चयथी फलित थाय छे. १७मीना उत्तरार्धथी १८ मीना उत्तरार्धमा विजयशेखर महाराजनी सत्ता संभवे छे. विजयशेखरनो रचना-काळ : वि. सं. १६७९ वर्षे महा शुदि-२ना जेसलमेरमां पार्श्वनाथ भगवाननी कृपाथी आवश्यकसूत्रना आधारे ८ ढाल अने ११८ गाथामा सागरचंद-मुनि रासनी रचना करी, वि. सं. १७०३ पहेला ७७ कडीमां अरणिक रासनी रचना करी, आ रासनी रचना प्रशस्तिमा आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराज माटे जंगम-युगप्रधान बिरुदनो उल्लेख करे छे. आ रासनी रचना संवतादि प्राप्त नथी. वि. सं. १७०३मां लखायेली प्रत ज्ञानमंदिरमां संग्रहित छे, जे प्रायः कृतिना नजीकना समयनी हस्तप्रत होवानी संभावना छे. जो के रासनी रचना प्रशस्तिमा आपेल शब्द-संवत मुनि सागर ससिधर ना सांख्यिक उल्लेख परत्वे विद्वानोनु मंतव्य स्पष्ट थयुं नथी, अंचलगच्छ- दिग्दर्शनमां संपादक श्रीपार्श्वए ऋषिदत्तारासनी रचना-संवत वि. सं. १७१७ जणावी छे. तो, श्री देशाई साहेबे ए ज रासनी रचना संवत वि. सं. १६७७ नोंधी छे. तेमज जै.गू.क.ओनी श्रीजयंतभाई संपादित आवृत्तिमा ऋषिदत्ता रासनी नोंधना अंते श्रीजयंतभाईए ससिधरनो अर्थ चंद्रकला कर्यो, अने एनी संख्या १६ मूकी, आ रासनी रचना संवत १६७७ पण होई शके एवो प्रश्नार्थ कर्यो छे. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ११ _ वि. सं. १६८१ना जेठ मासना रविवारे वैराटपुरमा ३६२ कडी अने १६ ढालमां, खंभातना ओशवालवंशीय श्रेष्ठी साह नागजीना बोध माटे कयवन्नारासनी रचना करी, ए ज वर्षना आसो सुदमां सुदर्शन-रासनी रचना करी, आ कृतिनी रचना प्रशस्तिमा कविए पोताना वडिल गुरुबंधु भावशेखरनो नामोल्लेख करी एमना प्रत्ये पोतानो आदर-भाव व्यक्त कर्यो छे. _ वि. सं. १६८९ना पोष सुदि १३ने शुक्रवारे नवानगर (जामनगर)मां चंद्रलेखा चोपाईनी रचना करी, आ समयगाळा दरम्यान एमणे शांतिजिन बाल्यावस्था गीतनी रचना करी. वि. सं. १६९२मां भादरवा वदि ७ ना रविवारे राजनगरमा आत्मप्रतिबोध उपर त्रण मित्र कथा-चोपाईनी रचना करी, आ रचनानी प्रशस्तिमां कविए आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराज माटे जंगम-युगप्रधाननु बिरुद दर्शाव्युं छे, तेमज राजनगर-अमदावादना निवासी पारेख पासवीरनो गुरु-जनो प्रत्येनो आदर भाव जोई एना नामनो उल्लेख कर्यानुं जणाव्युं छे. वि. सं. १६९४ना कारतक वद- ११ने गुरुवारे भीनमालथी उत्तर दिशा तरफ सोळ कोश दूर मोर नामना गाममा अजितनाथ भगवानना सांनिध्यमां गुरुमहाराज विवेकशेखर अने वडिल गुरुबंधु भावशेखरनी निश्रामा रही चंदराजा रासनी रचना करी, तेमज गौतमस्वामी लघु रास अने ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पर बालावबोधनी रचना करी, आ सिवाय पण विजयशेखर महाराजे ७५५ कडीना यशोधर रासनी रचना करी हती. _ वि. सं. १६९६ पोस सुदि ६ने शुक्रवारे वाक्पताका (प्रायः आजनुं वक्तापुर ईडर पासे) नामना नगरमां गणि विजयशेखर महाराजे समकित स्तवननो बालावबोध लख्यो, तेमज वि. सं. १६७१ मां प्रहसन-नाटकनी प्रत लखी. वि. सं. १७०७मां महा वद-९ना दिवसे भीनमालमां ३ खंडमां ७७५ कडीमां ऋषिदत्ता रासनी रचना करी. विजयशेखरनो शिष्य-परिवार : विजयशेखर महाराजना शिष्य संबंधी विशेष कोई माहिती प्राप्त थती नथी. ज्ञानमंदिरमां संगृहीत प्रतना आधारे एमना बे शिष्योना नामो जाणी शकाय छे. १. विद्याशेखर, २. मुनि गणेश. १. वि. सं. १६९७ चैत्र शुदि-२ ना बुधवारे आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराजनी निश्रामां शिष्य विद्याशेखरे साधारण जिनस्तवनी अवचूरिनी प्रत लखी. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ मार्च - २०१३ २. विक्रमनी अंदाजे १७मी सदीमां आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराजनी निश्रामा विजयशेखरना शिष्य मुनि गणेशे ठाणांगसूत्र वृत्ति सहित धवलकनगर (धोळका)ना ग्रंथागारमा पठन-पाठन हेतु मुकाव्यानो उल्लेख प्राप्त थाय छे. प्रत विशेष : मध्यकालीन साहित्यनी घरेणा जेवी कृतिओ आ ज्ञानमंदिरनी शोभाने तरोताज्जा राखे छे. आ बे कृतिओनी हस्तप्रत ज्ञानमंदिरमा १७५२४ नंबर पर नोंधायेल छे. प्रतनुं माप २७X१२' छे. कुल पत्रो १० छे. दरेकपत्रमा १३ लीटी, दरेक लीटीमां ३८ थी ४३ अक्षरो लखाया छे. वच्चेना चोखंडामां चार अक्षरो लखेला छे. प्रतमां दंडनो उपयोग लगभग नथी. पडिमात्रानो उपयोग घणा स्थाने थयेलो छे. खास करीने अनुनासिकने संयोगे वधारानो अनुस्वार घणे ठेकाणे मळे छे. जेम के आंणी, छांनू, नामि, ख ने स्थाने 'ष' देषि-देखि, सुष-सुख, रेष-रेख क्यांक स्वतंत्रपणे ख अने ष पण लखायेलो जोवा मळे छे. अक्षरो चोक्खा अने सुघड छे. पहेला पत्रनी पाछळनी बाजुएथी सागरचंदमुनि रास शरू थाय छे, अने पेज नं. ७ना आगळना पेज उपर सागरचंदमुनि रास पूरो थाय छे. पेज नं. ७ ना पाछळना भागथी अरणिकमुनि रास शरू थाय छे, अने पेज नं. १० ना पाछळना भागे अरणिकमुनि रास पूरो थाय छे. सागरचंदमुनि रासमां ९० नंबर पछीनी कडीओ १ नंबरथी शरू थाय छे. प्रथम कृतिनी आदिमां (भले चिह्न) श्रीवीतरागाय नमः लखीने प्रतिलेखके कृतिनुं आलेखन कर्यु छे. कृतिनी ढाळ, देशी, अने राग माटे लाल रंग वापर्यो छे, तूटी गयेलो पाठ हांसियामां उमेर्यो छे. प्रतना अंते प्रतिलेखन पुष्पिका आ प्रमाणे पुष्पिका :- संवत १७०३ वर्षे कार्तिकमास शुक्लपक्षे ७ शनौ वणथली ग्रामे ऋ. श्रीश्रीश्रीश्रीश्री मेघाजी तस शिष्येण आंबा आत्मार्थं श्रीरस्तू ।।श्री।। प्रस्तुत बन्ने रासोना संपादनमां जिनाज्ञा विरुद्ध कांई पण लखाई गयुं होय एनुं त्रिविधे-त्रिविधे मिच्छामि-दुक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयशेखर गणि विरचित सागरचंद रास (रचना संवत. १६८९) आ कृति प्रायः सौ प्रथम वखत प्रकाशित थाय छे. कविए आवश्यकनियुक्तिनी टीकाओमां मळता कथानकना आधारे आ रासनी रचना करी छे. रासमां सागरचंद मुनिनी समताना गुण-गान ए कवितुं कथयितव्य छे. रासकार महाराज कृतिना प्रारंभे माता सरस्वती अने पोताना गुरुभगवंतनुं स्मरण करी, जेसलमेरमा बिराजमान श्रीपार्श्वनाथ भगवानने मानस-शुद्धि हेतु प्रार्थना करे छे. आ रासनी रचना पाछळनो उद्देश जणावतां कवि कहे छे. सज्जनोना गुण-गान ए चित्त-प्रसन्नतानो हेतु छे. आथी हुं सागरचंद मुनिना क्षमा गुणनी स्तवना करीश. रचनानो आधार : कविए जणाव्या अनुसार आ रासनु मूळ आवश्यकनियुक्तिमां मळे छे. भद्रबाहु स्वामी आवश्यकनियुक्तिमां अनुयोग नामना प्रथम द्वार स्वरुपने जणावे छे. नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काळ, वचन, भाव, ए प्रमाणे सात-प्रकारना निक्षेपाओथी अनुयोगना स्वरूपने जणावे छे. ए सात प्रकारना निक्षेपान्तर्गत भाव-निक्षेपना विवरणमा नियुक्तिकार सात उदाहरण आपी भावानुयोग-अननुयोगर्नु चित्र स्पष्ट करे छे. प्रायः आ रासनी रचना हारिभद्रीय टीका अंतर्गत कथानकना आधारे थई होय एवी संभावना छे. कृतिमां कुल सात स्थाने संस्कृत-प्राकृत श्लोको मूकवानी तक कविए लीधी छे. एमां ५ गाथाओ प्राकृत, अने २ श्लोक संस्कृत छे. ढाल पेहली, कडी - १० (कडी १-२०) चंदायणनी देशी. सौराष्ट्रनी द्वारका नगरीमां बलभद्रनो पुत्र निषध रहेतो होय छे. एने प्रभावती राणीथी सागरचंद्र नामनो पुत्र थाय छे. सागरचंद्र कुमार चतुर, कला-गुण युक्त, तेजस्वी अने रूपवान हतो. शांबकुमार साथे जीव एकने जुदो देह जेवी आत्मीयता हती. ए ज नगरमां धनसेन नामना राजाने कमलामेला नामे कन्या हती, रूपनो सूरज कमलामेलाना देहाकाशे मध्याह्न हतो, नगरनी नारीओ एनी कला अने कोमळता सामे पाणी भरती. यौवनवय पामता ज पिताना मनमां दिकरीनी चिंताए प्रवेश कर्यो, योग्य अवसर जोई पिता धनसेने राजा उग्रसेनना दिकरा नभसेन साथै एनी सगाई करी, आ अरसामां नारद हाथमां वीणा अने कमंडल धारण करी नभसेनना घरे पधारे छे. कन्या लाभे नभसेन खुश-खुश होवाथी. पोते उभा थई नारदने आसन विगेरे आपवानुं औचित्य-विनय चूकी जाय छे. पोतार्नु अपमान थयु For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मार्च - २०१३ १४ होय एवं लागता, क्रोधे भरायेल नारद नक्की करे छे के गमे तेम करीने आने शिक्षा तो करवी जोईए, जेथी आ अंहकारी सीघो थाय.... आम विचारी नारद सागरचंद्रना घरे आवे छे. नारदनी पधरामणी थतां ज सागरचंद्र प्रसन्न थाय छे, साथे नारदने पण कुमार प्रत्ये अनुराग जागे छे. सागरचंद्र आसनादि आपी, नारदनो विनय साचवे छे, नारद खुश थाय छे. नारद साथेनी वात-चीत दरम्यान सागरचंद्र नारदने पूछे छे. के स्वेच्छाए विचरतां तमे आ नगरमा आश्चर्य जनक कांई जोयुं ?, नारद जवाबमां कहे छे - आ नगरमां एक आश्चर्य जोयुं छे, राजा धनसेननी पुत्री रूपे रंभा समान कमलामेला, नारद एना गुणनी अने रूपनी वात सागरचंद्रने करे छे. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारदना वचनथी सागरचंद्रनुं मन कमलामेलाना विचारोथी भराई जाय छे. एना श्वास उतावळा, अने नयनो अधीरा बने छे. कमलामेलानी प्रीतमां रंगायेलो सागरचंद्र कुमार नारदने येन केन प्रकारेण कमलामेलानी प्राप्तिनी विनंती करे छे. ढाळमां १ संस्कृत अने १ प्राकृत श्लोक आप्यो छे. ढाळ बीजी, कडी १८ (कडी क्रमांक १-४३), अलबेलानी देशी आ ढाळमां कडी क्रमांक १ थी प्रारंभ थाय छे. २जी कडी पछी, प्राकृत श्लोक आवे छे. एनो क्रमांक २७ आपेल छे. त्यारबाद कडीने २८ थी आ क्रम अपायेल छे. सळंग ४३मी कडीए ढाळ पूरी थाय छे. एटले आ ढाळ कुल १८ कडीनी थाय छे. वात आगळ चाले छे, कुमारना हृदयमां कमलामेलाना धबकारा धबके छे. आ बाजु नारद सिवाय कोई कमलामेला विशे जाणतुं न होवाथी सागरचंद्र कुमार नारदने पूछे छे. के एनो हाथ कोईना हाथमां अपाई गयो छे ? शुं ए कोईने वरी चूकी छे ? नारद जणावे छे. के उग्रसेनना पुत्र साथै एनी सगाई थई छे, पण • उग्रसेन राजाना पुत्रमां रूपना कोई ठेकाणा नथी. (पोतानी साथे थयेलुं वर्तन जो खराब होय तो माणसने ए व्यक्तिनी कोई वात सारी के साची लागती नथी. अहीं नारद पण नभसेनने कुरूप अने निर्गुण जणावी रह्यां छे.) आ सांभळी कुमार कहे छे के मारो कमलामेला साथे संगम केवी रीते थशे. ? नारद पण सागरचंद्र कुमारना मनने समजी, आ संबंध जोडाय एवो प्रयत्न करवानुं आश्वासन आपी. नारद त्यांथी नीकळी कमलामेलाना आवासमां पहोंचे छे. कमलामेला पण नारदने सागरचंद्रनी जेम नगरना आश्चर्य विशे पूछे छे. नारद कहे छे. सागरचंद्र जेवो रूपवान कोई जोयो नथी, अने नभसेन जेवो क्रोधी, कुरूप, अने वक्राकार कोई बीजो जोयो नथी. अहीं नारद सागरचंद्र अने नभसेनना माध्यमे कमलामेलाने For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ १५ पुरुषना रूप अने गुणना बन्ने छोरनुं दर्शन करावे छे. कहो के तुलना...नभसेननी सागरचंद्र साथे अने सागरचंद्रनी नभसेन साथे.... नारदना वचनथी कमलामेलानुं हृदय पण सागरचंद्रना धबकार धबके छे. नारदनी वाक्छटाना बळे बंन्ने बाजु बराबरनी आग लागी गई. अधीर सागरचंद्र अने आतुर कमलामेला बंने एक-बीजाना विचारोमा वणायेला अने परोवायेला होय छे. बन्नेना मनमां चालता विचारोना निरूपणमां कविए अहीं सारी तक लीधी छे. काच अने मोती, खर अने घोडा, कोढी अने तेजस्वी पुरुषनो देह जेवा प्रचलित अलंकारोथी आ काव्यने मढी दीधुं छे. ढाळ त्रीजी, कडी - ११ (कडी क्रमांक ४३-६७) राग धन्यासी सागरचंद्र अने कमलामेला बन्ने एक-बीजाना विचारोमा खोवायेला छे. बन्नेने एक-बीजानी प्राप्तिनी प्रबळ झंखना छे. सहज छे, ज्यारे प्राप्तिनो उपाय न देखातो होय त्यारे प्राप्तिनी झंखना प्रबळ बनी जाय छे. एवं ज अहीं सागरचंद्र अने कमलामेलाना प्रसंगमां बने छे. नारदना वचनथी कमलामेलाना मनमा नभसेननु स्थान सागरचंद्रए लीधुं, विचारो बदलाया, नभसेन प्रत्येनो प्रेम वैराग्यमां परिणम्यो.....कमलामेलानी आ स्थितिमा राहत आपवा नारद कहे छे. के हुं तारो सागरचंद्र साथे मेळाप करावीश.... आम कही नारद त्यांथी नीकळी सागरचंद्रनी पासे आवी जणावे छे के कमलामेला पण तने चाहे छे. आ सांभळी सागरचंद्रने वियोगर्नु दुःख घेरूं बने छ, वधु दुःखी थाय छे. वधु दुःखी अने उद्वेगी सागरचंद्रने जोई तेनी माता अने अन्य यादव कुमारो पण दुःखी थाय छे. आ अवसरे शांबकुमार पाछळथी आवी सागरचंद्रनी बे आंखो उपर हाथ राखे छे. त्यां ज वियोगनी आगमां दाझेलो सागरचंद्र कमलामेला कमलामेला! बोली ऊठे छे. त्यारे शांब कहे छे. हुं कमलामेला नथी. कमलामेल छु, कमला-मेलापक, कमलामेलाने मेळवी आपनार तारो आत्मीय मित्र छु, आ सांभळी सागरचंद्रए शांबने कह्यु के गमे ते रीते मने कमलामेलानो मेलाप करावी आपो. शाब कुमारने वचन आप्यु के हुं तने कमलामेलानो मेळाप करावी आपीश. शांब विचारे छे. के पोते आपेलुं वचन कई रीते पूर्ण करयु, आखी वात पोताना भाई प्रद्युम्नने जणावे छे. आ बाजु शांब अने प्रद्युम्न कमलामेलाना लग्नना दिवसे प्रज्ञप्ति विद्याना प्रयोगथी, कमलामेलानुं अपहरण करी, रैवत उद्यानमां लावी सागरचंद्र साथे लग्न करावी आपे छे. (भागी के भगावीने लग्न थयाना उल्लेखो यादव काळमां मळे छे.) For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ मार्च - २०१३ ढाळ चोथी, कडी - १४ (कडी क्रमांक ६६-७९) चंद्राउलानी देशी. आ ढाळ कडी क्रमांक १ थी प्रारंभाय छे. कडी क्रमांक १ अने २ एना पछीनी कडीओमां पुनरावृत्ति पामे छे. त्यारबादनी कडीने ३ नंबर आपेल छे. पछीनी दरेक कडीओमां सळंग क्रमांक लखायो छे. आ ढाळ चंद्राउला (चंद्रायणो के चंद्रायणी)नी देशीमां रचायेली छे. चंद्रायण कुंडळीया प्रकारना छंदनुं नाम छे. एनो एकम बे छंदोनी (दुहा के आर्या अने कामीनीमोहन) कडीओनो बनेलो होय छे. अने पहेली कडीना अंतिम शब्दो बीजी कडीना आरंभे पुनरावृत्त थाय छे. आ बाजु धनसेनना गृहांगणे लग्नना मंगल गीतो गवाय छ, धूपनी सुगंधी धुम्रसेरोमां आय वातावरण मद-मस्त बन्युं छे. शरणाईना सूरो वातावरणने वधु मादक बनावे छे. रथ, हाथी, अने पायकोनी विशाळ संख्या साथे नभसेन कमलामेलाने परणवा आवे छे. त्यारे अंतःपुरमां कमलामेला जणाती नथी, हाहाकार मची जाय छे. जान लईने आवेल नभसेन सहित समग्र परिवारजनने ख्याल आवी जाय छे. के कमलामेलानु अपहरण थयुं छे. साथे आवेलो जन-समुदाय अंदर-अंदर धीमाधीमा सादे कमलामेला संबंधे प्रलाप करे छे. आq वातावरण जोई नभसेन नीसासा नांखतो, साव धरातल वगरनो थई जाय छे. ए समये बधा यादवो कमलामेलाने शोधता-शोधता रैवत उद्यानमां आवे छे. अने त्यां प्रद्युम्न अने शांब साथे सागरचंद्र अने कमलामेलाने जुए छे. राजा उग्रसेन अने पिता धनसेन कमलामेलाने बहु कटु-वचनो संभळावे छे. आ सांभळी शांब क्रोधे भराय छे, कमलामेलानी शोधमां आवेला यादवो साथे शांब, युद्ध थाय छे. शांबना बळनी सामे यादवो परास्त थाय छे. शांबरों बळ जोई राजा उग्रसेन विगेरे उद्यानमांथी पाछा वळे छे. ढाळ पांचमी कडी - ११ (कडी क्रमांक ७९-९०), राग भूपाली, चौपाईनी देशी. __ वात हवे विकट बनी रही, बळ खूटी गयुं, कळ वापरवा राजा उग्रसेन एकपक्षे आखी वात कृष्णने जणावे छे. राजा उग्रसेन अने धनसेन कृष्णने लईने आ वातनो न्याय करवा रैवत उद्यानमां आवे छे. आखी घटनामां पोताना पुत्र शांबना पराक्रम जोई कृष्ण शांबने खखडावे छे. पुत्रए करेलुं पराक्रम पिताना मनमा पस्तावानुं कारण बनी गयुं छे. तने कोई कहेनार नथी, शरम न आवी...इत्यादि शब्दो द्वारा पुत्र-पितानो गरमा-गरम संवाद चाले छे. तो शांबना पक्षे परणेली कन्या केम अपाय..... अने परणेली कन्या कोईए आपी होय एवू कोई शास्त्रमा क्यांय संभळातुं नथी, बे आंख जेवा सागरचंद्र अने नभसेन वच्चे अंतर शाने विचारो छो..आवा तर्को-वितर्कोना बळे कृष्ण, उग्रसेन, For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर - २६ धनसेन प्रमुख उपस्थित तमामने शांब समजावीने पाछा वाळे छे. सागरचंद्र कमलामेला साथे नगर-प्रवेश करे छे. अनुक्रमे साथे रहीने सुखमय दिवसो व्यतीत करे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ढाळ छट्टी कड़ी १२ (कडी क्रमांक १-१२) राग केदारो जानी चलणा न देखिउं. १७ अहीं सुधी कथा अधगामिनी हती, अथवा संसार तरफनो प्रवाह एमां गतिमान हतो. हवे, वहेण बदलाय छे. संसारथी वैराग्य तरफनुं चित्र आ ढाळमां कविए उघाड्युं छे. आखं नगर एक सरखा प्रवाहमां जीवन व्यतीत करे छे. ऋतुनी जेम एमां नोंध - - पात्र फेरफार अनुभवाय छे, एकदा नेमि जिनेश्वर द्वारका नगरीमां पधारे छे. आखा नगरने एक-सम आनंदम् नी अनुभूति थाय छे देव समोवसरणनी रचना करे छे. बारे 'य पर्षदा प्रभुना अमाप तेज अने चोगम उछळती देशनामृतनी धारामां परिप्लावित थाय छे. वनपालनी वधामणीए नरेसर कृष्ण समग्र परिवार सहित प्रभुने वांदवा आवे छे. सागरचंद्र गोखमां बेसी एक मार्गे जतां लोकोने जोई पोताना सेवकने पूछे छे. सेवकनी वात सांभळी प्रभुने वंदन करवा उद्यानमां आवे छे. प्रदक्षिणा आपी, यथा-स्थाने बेसे छे. ढाळ सातमी कडी - १३ (कडी क्रमांक ६-१९) झुबकडानी देशी. आ ढाळनो कडी क्रमांक ६ थी शरू थयो छे. ढालना पूर्वार्धमा नेमि जिन देशना, अने ढाळना उत्तरार्धमा सागरचंद्रनुं बारव्रत स्वीकार जेवा परिणामलक्षी विषयो मळे छे. आ ढाळनी ४-५ गाथाओमां कविए नेमिजिन देशनाना माध्यमे कृतिनुं धर्मोपदेश्य आवरी लेवायुं छे. व्यवहार जीवनना प्रत्येक दिवसोमां अनुभवाती स्थितिनी वात कविए बहु सुंदर शब्दोमां रजू करी छे. राग-द्वेषनी सांकलई रे, बंधाणा सवि जीव देशना वर्णनना माध्यमे मनुष्यभवने हीरा साथे सरखावी एनी उपर कर्मनी धूळना थरो जामी गया छे एवं पुरुषार्थ सूचक निवेदन करवानुं कवि चूक्या नथी. देशना सांभळी सागरचंद्र समकित पामी, श्रावकधर्म अंगीकार करे छे. अहीं संसार त्याग थई शके एटलो प्रबळ निर्वेद नथी. पण हवे बहु वार न लागे एवं परंपर कार्यनुं असाधारण कारण प्राप्त थई गयुं छे. For Private and Personal Use Only पर्व दिवसे एकवार सागरचंद्रए पौषधशाळामां पौषध कर्यो होय छे. पुरुषार्थ ज्यारे प्रबळ बने त्यारे कार्य सिद्धि हाथ-वेंत ज होय छे, कमलामेला साथे लग्न Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ मार्च - २०१३ थया पछी नभसेनना मनमा प्रगटी चूकेलो प्रबळ वैरभाव अंगारानी जेम तपीने लाल-घूम थई गयो होय छे, अवसरनी राह जोता नभसेनना मनमा सागरचंद्र प्रत्येनो वैरभाव प्रबळ बने छे. एकदा सागरचंद्र स्मशानमां काउसग्ग ध्याने उभा होय छे. नभसेनने आज अवसर मळी जाय छे. कोई जोतुं नथी ने एवी चोकसाईथी चारे-बाजु जोई, बाजुमां सळगती चितामांथी धगधगता अंगारा घडाना ठीकरामां लई सागरचंद्रना माथा पर मूके छे. सागरचंद्र क्षमा धरी चलित नथी थतां, वेदना समभावे सहन करे छे, अतिशय गरमीना कारणे माथु फाटी जाय छे. काळ करी सौधर्मदेवलोकमां पधारे छे. त्यांथी च्यवी महाविदेहमां जन्म लई, कर्म खपावी, मुक्ति प्राप्त करशे. ढाळ आठमी, कड़ी - ८, (कडी क्रमांक २०-२८) लाखा फूलांणीना गीतनी देशी । आगळनी गाथाओमा रासनो सारांश आप्यो छे. बहु प्रेम भरीने सागरचंद्रनी समता अने उपसम रसना परिभावन विशे श्रोताओने आंगळी चींधणुं कर्षं छे. सागरचंद्रना गुण गातां पोतानी रसना पावन थई छे. प्रारंभनी गाथामां अंगि वाधि अतिवान' कह्यु हतुं, अहीं 'रसना थाई पवित्त' आ पद मूकी, ए वातने फलितार्थ करी छे. पाछळनी गाथाओमां विजयशेखर महाराज पोतानी गुरु-परंपरा अने संवत स्थळादिनो उल्लेख करे छे. साथे-साथे आ रास आवश्यकसूत्रना आधारे लखायो छे. एवं सूचित करी, पुलकित भाव साथे आ रास पूरो करे छे. सागरचंद रास अने आवश्यकसूत्र # सागरचंद रासनी रचना कविना जणाव्या अनुसार आवश्यकसूत्रमा आपेल कथानकना आधारे थई छे. आवश्यकमां आ कथानक बहु संक्षिप्तमा मळे छे. कविए रासमां काव्यना अभिनव रंगोनी पूरणी करी छे. क्यांक-क्यांक रासना प्रवाहने कविए कथानुसार वहेतो कर्यो छे, तो क्यांक पात्रनी मानसिकताने देखाडवा कथानुं वहेण बदलावी, कथाने मानव-स्वभावनी वास्तविकता नजीक लई जवानो स्तुत्य प्रयास कर्यो छे. दा.त. नारदर्नु कमलामेलाने मळीने सागरचंद्रने त्यां फरीथी आवद्यु, कमलामेलानी प्राप्ति माटे सागरचंद्रने आश्वासन आपg, नभसेनना विनयभंगे नारदर्नु कोपायमान थबु, विगेरे घणा स्थानोमां कविए कथानकने वणवामां थोडी छूट लीधी छे. प्रस्तुत रास अने आवश्यक संबंधी साहित्यमा मळती कथा-अंशोना फेरफारोनी नोंध नीचे मुजब छे. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ १९ आवश्यकनी चूर्णि अने टीकाओना आधारे रासमां मळता कथा अंशोनी तुलना * आवश्यकनी मलयगिरि महाराजनी टीका, आवश्यकनी जिनदासीया चूर्णि अनुसार उग्रसेनना पौत्र धनदत्त साथे कमलामेलानी सगाई थई हती. ज्यारे आवश्यकनी हारिभद्रीय टीकामां, अने रासमां उग्रसेनना पुत्र नभसेन साथै कमलामेलानी सगाई थयानो उल्लेख मळे छे. * आवश्यकनी चूर्णि, अने हारिभद्रीय / मलयगिरि टीकामां नभसेनने त्यां नारदनो प्रवेश, नभसेन वडे अनायासे नारदनो अनादर थवो, नभसेनने शिक्षा आपवानो नारदनो निर्धार, नभसेनने दंडना आशयथी, कमलामेलाने नभसेनथी दूर करवानो विचार ईत्यादि वातनो उल्लेख नथी. * आवश्यकनी हारिभद्रीयमां सागरचंद्र नारदने पोतानो मेळाप कमलामेला साथे क्यारे थशे, ए प्रश्नना उत्तरमां नारद हुं जाणतो नथी एवो जवाब आपे छे. ज्यारे रासमां नारद सागरचंद्रने योग्य समये कोई युक्ति लगाडी तारो मेळाप कराववा प्रयत्न करीश एम आश्वासन सभर वातनो निर्देश मळे छे. * कविए रासमां नारद सागरचंद्रने त्यांथी नीकळ्या पछीनी सागरचंद्रनी भावावस्थानो उल्लेख कर्यो नथी. ज्यारे आवश्यकनी हारिभद्रीय टीकामां नारद पासेथी कमलामेला संबंधी वात सांभळी, सागरचंद्र पाटीया उपर कमलामेलानुं नाम लखे छे, कमलामेलाना नामनी माळा गणे छे. ईत्यादि नोंध मळे छे. * आवश्यकनी चूर्णिमां नारद पहेला कमलामेलाने मळे छे. ज्यारे हारिभद्रीय / मलयगिरि टीका अने रासमां नारद पहेला सागरचंद्रने मळे छे. * आवश्यक हारिभद्रीय / मलयगिरि टीकामां कुमारो शांबने मदिरा पीवडावी कमलामेला साथे भेटो करावी आपवानी प्रतिज्ञा करावे छे. ज्यारे रासमां शांब पोते ज हुं कमलामेला नहीं कमलामेल छु, अर्थात् कमलामेलानी साथे मेळाप करावी आपनार तारो आत्मीय छु, एम कही शांब वचनमां बंधाय छे. * आवश्यक हारिभद्रीय / मलयगिरि टीकामां कमलामेलाना अपहरण माटे शांब प्रद्युम्न पासे प्रज्ञप्ति विद्या मांगे छे तेमज कमलामेलाना अपहरण प्रसंगमां शांबनी साथे प्रद्युम्न अने नारदनो उल्लेख मळे छे. ज्यारे रासमां शांब अने प्रद्युम्न द्वारा कमलामेलानुं अपहरण थाय छे, रासमां प्रद्युम्न पासे प्रज्ञप्तिविद्यानी मांगणी, अने नारदनो उल्लेख जणातो नथी. * आवश्यकनी हारिभद्रीय / मलयगिरि टीकामां नारद मोहित थयेली कमलामेलाने त्यांथी नीकळी सागरचंद्रने त्या आवी, कमलामेला तने ईच्छे छे, एवं सागरचंद्रने For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० मार्च २०१३ जणावे छे. ज्यारे रासमां नारद कमलामेलाने त्यां आवी सागरचंद्र तने चाहे छे. एवं कमलामेलने जणावे छे. * आवश्यकनी टीकाओमां मळता केटलांक कथा अंशो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिविद्याना प्रयोगे कमलामेलानी प्रतिकृति बनावी, कमलामेलानुं अपहरण, लग्नना मंडपमा प्रतिकृतिनुं अट्टहास करी हवामां उडी जवुं, कमलामेला संबंधे नारदने पृच्छा, नारदनुं कमलामेला रैवत उद्यानमां होवानुं जणाववुं रैवत उद्यानमां कृष्णनुं ससैन्य आववुं. कृष्णना सैन्य साथे शांबनुं विद्याधरनुं रूप करी युद्ध कर, कृष्ण क्रोधे भरायेला होवाथी शांबनुं माफी मांगी, पोतानुं मूळ स्वरूपे आववुं, कमलामेला झरूखेथी आत्महत्या करती होई, एनुं अपहरण करी, सागरचंद साथे परणाववुं, विगेरे शांबनुं कृष्णने जणाववुं ईत्यादि आवा केटलांक कथा तत्त्वो आवश्यकनी टीकाओमां मळे छे. - * आवश्यकनिर्युक्ति जिनदासीया चूर्णि पूर्वार्ध, पेज नं - ११२ थी ११४, प्रका. ऋषभदेव केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था -रतलाम * आवश्यकनिर्युक्ति मलयगिरि टीका प्रथम भाग, पेज नं -१३६ थी १३७ प्रका. जिनशासन आराधना ट्रस्ट - मुंबई * आवश्यकनिर्युक्ति हारिभद्रीय टीका प्रथम भाग, पेज नं-१७७ थी २८८ प्रका. प्रेमसूरीश्वरजी संस्कृत पाठशाळा-: - अमीयापुर तपोवन પ્રભુના એક વિશેષણનો પરિચય For Private and Personal Use Only નંદિસૂત્રના પ્રથમ શ્લોકમાં પ્રભુ માટે એક વિશેષણ વપરાયું છે. 'जगपियामहो भयवं' २जा विशेषानो अर्थ उरतां यूझिर गरि विनास મહત્તર જણાવે છે કે અહિંસાદિ રૂપ ધર્મ સર્વજીવોનું રક્ષણ કરતો હોવાથી પિતા સમાન છે, અને આ અહિંસાદિ રૂપ ધર્મ (પિતા) એ પ્રભુ વડે પ્રરૂપાયેલો હોવાથી પ્રભુ ધર્મના પિતા છે, માટે પ્રભુ જગતના પિતાના પિતા = પિતામહ છે. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतसागर - २६ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra HALARAN पाथमालाSUHIमदास "स्कान .. CIAL For Private and Personal Use Only काटनास्वादनअन उमजामिकंवतसम्मकाववारशमनमोसमजावितका शालिकरमवारन अन्य! २२ jala मामाटातमिद्यामंसियभर गाणिसावदनसम्पविदेशमा दाणा प्रारीपरिमालरोडपलामकसम्मका विनिमणवाणा मादिदेश्योगिरणा नाममायाकनी । णायाम नलकमलकानविगलियावाणा मादिदे अपमनामनामवेदकानश्कायोपशामिकममकवारिक अपसामागोरियामानिगाश्चममानवसामवादिषगारवववसमकिमाछतिश्चिालित विएपलिंगापौवमर्षणापाचपणामोचनप्रणाआवमानावकालागार यामिनहाजयाणाबजावन बायक बधानकादमविनयलणाराग सियालकासासएसावंगागागासदहा स्टापसावणाचाणविण्टासुगुणाईयामिहावितहाना । विस्तारासदासमरतोडमाजवाजीवनस्यामाताहरायसादलगादोजसम्पत्यानावाशि - २५ शतिशभकिन विचारावनटा दिसमसामयासरतामधलीवाणासामियवहाएसायानववसामानसंपत्रापदिसामकिसी का भी याचनाचार्यश्री कमलशेवगामिशिख्यवादका श्रीमत्पशेवगाणिशिव्यवाचकशीविवेकशेखरगणिशिरोलिविता नामावली संदनियतपासामुदिागुनधासामाग्रीवावरताकारोबाचकापादितटावशारदरगापिनिवलिया । www.kobatirth.org गणि विजयशेखर द्वारा लिखित समकित स्तवनना टबार्थनी हस्तप्रतनुं अंतिम पत्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 राजा उग्रसेनना पुत्र नभसेन साथे कमलामेलानी सगाई. 8 नारदनुं उग्रसेनना घरे आववुं. * नभसेन द्वारा नारदनो विनयभंग. सागरचंद रासना कथा अंश ॐ बलभद्रना पुत्र निषधने प्रभावती राणीथी पुत्र सागरचंद्रनो जन्म. * शांबकुमार साथे सागरचंद्रनी घनिष्ठ आत्मीयता, * धनसेन नामना राजानी कमलामेला नामनी कन्या. मार्च २०१३ ॐ नारद द्वारा नभसेनने दंड आपका विचार. * सागरचंद्रने त्यां नारदनी पधरामणी. * नारदनो सागरचंद्र साथै कमलामेला संबंधी वार्तालाप. * सागरचंद्रने कमलामेलानी प्राप्तिनी इच्छा. * कमलामेलने त्यां नारदनुं आगमन. ॐ नभसेननी कुरूपता अने सागरचंद्रनी सुंदरतानुं वर्णन. * कमलामेलानी प्राप्ति माटे शांबकुमारने सागरचंद्रनी प्रार्थना. * कमलामेलानी प्राप्ति अर्थे शांब अने प्रद्युम्ननी मंत्रणा. राजा धनसेनना महलमां कमलामेलाना लग्ननी तैयारी. * काउसग्ग ध्याने स्मशानमां सागरचंद्र. * नभसेन द्वारा सागरचंद्रने उपसर्ग. * समताथी सागरचंद्रनुं स्वर्ग-गमन. - * नभसेन अने स्वजन - परिजनोनुं जान साथे कमलामेलाने त्यां आगमन. * शांब द्वारा प्रज्ञप्तिविद्याना प्रयोगे कमलामेलानुं अपहरण. * रैवत उद्यानमां सागरचंद्र साथै कमलामेलाना लग्न. For Private and Personal Use Only * कमलामेलानी शोधमां यादवोनुं रैवत उद्यानमा आवj. * राजा उग्रसेन अने धनसेननी कृष्णने आ अंगे न्याय करवा विनंती. * शांब - प्रद्युम्न अने कृष्णनो संवाद * सागरचंद्रनो नगर प्रवेश. # नेमिनाथ भगवाननी द्वारिका नगरीमा पधरामणी. * भगवाननी देशनाथी सागरचंद्रए श्रावकधर्म अंगीकार कर्यो. * पर्व दिवसे पौषधशाळामां पौषधनी आराधनामां लीन सागरचंद्र. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सागरचंदमुनि रास प्रथम दुहा सारद सार सदा दीयइं, मुझ मुखि वचनविलास, भगवति प्रणमूं भावसिउं, पु(पूरइ मननी आस. १ जेसलमेरि जगत्रगुरु, जीवन श्रीजिनपास, बेबे कर-जोडी वीनQ, आपउ बुद्धिप्रकास. २ साहिज' दीजइ सगुरुजी, मन सुधि मागु मान, साध तणा गुण गावतां, अंगि वाधि अति वान. ३ खिमा गुणे जगि प्रगडउ, सहिजइ सागरचंद, तस अवदात' कहुं भलउ, आंणी परिमाणंद. ४ |ढाल-पहिली।। ||चंदायणनी देसी(शी)|| एह ज जंबुद्वीपि सुठांम, दक्षिणभरतइ क्षेत्र अभिराम, देस भलउ सोरठ सुखवास, द्वारिकानयरी लीलविलास. १ वासुदेव नवमउ तिहां जाणु, कृष्णराय यादवकुलि भाj, वड बांधव बलभद्र विराजइ, तस सुत निषध अनोपम छाजइ. २ निषधकुमर बेटउ अति बलीयउ, सागरचंद कलाइ कलीयउ, चतुर सुवेधक'नइ ज वाणुं, सोभागी देवकुमर समागु. ३ शांबकुम[रसिउं अति सुसनेह, जीव एकनइ जूदी देह, चकोरनी वाहली रजनी जेम, कमल विकासन सूरिज तेम. ४ यादवकुंयर अतिदुरदंत, रुपइं जीतिउ जिणि रतिकंत, निज इच्छाइं मिली सब खेलइ, सुखइं समाधिइं रहि मन मेलइं. ५ हिवि तिणि पुरि कहिउ महामंडलेस, नामइ धनसेन पुण्य वसेस, कमलामेला कन्या तास, रूप-गुणइं रंभा अभास. ६ यौवनवइं कुंयरि संपन्न, सकलकला भरी नारि रतन्न देखी जुवजन पांमई मोद, सुंदर सहिजइं जिसी कमोद. ७ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ मार्च - २०१३ कमलामेला कुंयरि बइठी, देखी पिता मनि चिंता पइठी, उग्रसेनसुत नभसेन चंगइं, तास प्रति दीधी मनरंगि. ८ करि कमंडल वेणा सोहि, अक्षमाला नारद मन-मोहि, रिषि आविउ नभसेन कि मंदिरि, ऊभउ रहिउ देखि निज भरि. ९ कन्या लाभइ कुंयर गहिगहितउ', नवि पेखिउ रिषि जातउ, विहतउ ऊठी नवि तस आसन दीण, विनय न आवि घुण्यविहीण. १० भणीयं च : विणउ आवई सिरि लहइ, विणीउ जसं च कित्तिं च, न कयावि दुब्विणीउ, सकज्जसिद्धि समाणेई. ११ । [उपदेशमाला, गाथा नं. - ३४२] को चित्ते इम पूरं गयं, च कुणइं राजहंसाण, को कुवलयाण गंधं, विणयं च कुलप्पसूयाणं*. १२ चालि।। नभसेन उपरि नारद कोपिउ, देखउ विनय पणि अधमि लोपिउ तउ हिवि सीख देसिउं सुविचारी, देखि द्रष्टि किसिउ अहंकारी. १३ ॥श्लोक।। ऐश्वर्यतिमिरं चक्षुः पश्यंतोऽपि न पश्यं(य?)ति। पुनर्निर्मलतां याति दारिद्रांजन भेषजात् ।।१४।। [ ] संपदि यस्य न हर्षो विपदि विषादे रणे च धीरत्वं । तं भूवनत्रयतिलकं जनयति जननी सूतं विरलं ।।१५।। [ ] ॥चालि।। सागरचंद घरि रिषि आविउ, दरिसन देखतउ कुमरनइ भाविउ, ऊभउ थइ तस आसन दीध, भलइं पधार्या ! कारिज सीध. १६ निषधपुत्र करयोडी भाखि, नारदसिउं छांनू नवि राखि, निज ईछ्याइं भमत भुपीठि, कहउ कोई वात दीठी रस-मीठि. १७ उत्तरार्धना बे पाद उपदेशपद गाथा नं.-१००५ मां मळे छे. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ २५ नारद जंपइ सूणि सुत वात, तुंज गुण विनय अधिक मनि भात, तुज चिति दीसइ भली सजनाई, चोज नी वात कहुं चिति लाई. १८ इणि पुरि श्रीधनसेन महाराय, महाधनवंत सेनासमुदाय, कमलामेला बेटी तास, जूवजन पेखि पडइ मृगपासि. १९ इसी नारि मइं दीठी आज, साज सघसि तठउ माहाराज, तस रूपइं मोरूं मन रीझइं, जाणुं तुझ कारिज कोई सीझइं. २० ढाल-बीनी। अलबेलानी देसी।। वात सूणी कुमरी तणी रे लाल, सागरचंदकुमारि मनमोहिउ रे, मगन थयउ चिति चीतवइ रे लाल, ऐ ऐ नारि संसारि मनमोहिउ रे. १ कुंयर बोलि कूतिकी रे लाल, भेदिउ कामनि बांणि मनमोहिउ रे, चिट-पटि लागी चित्तमइ रे लाल, विषयारस सहि नांण मनमोहिउ रे. २ कुंयर बोलि कूतिकी रे लाल(आंकणी) यत:तप-जप-संजिम ताम नर साधई निरुता थिया। अंगि न वाजइ जांम नयण बांण नारिह तणा ।।२७।। [ ] चालि।। नारद रिषि प्रति पूछतो रे लाल, सागरचंदकुमार मनमोहिउ रे, कहउ केहनि दीधी अछइ रे लाल अथवा कुंयरि विचारि मनमोहिउ रे. २८ कुंयर बोलि कूतिकी... For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ कहि नारद कुंयर सूणउ रे लाल उग्रसेनसुत देखि मनमोहिउ रे, तेहनि दीधी छि कन्याका रे लाल नवि तस रूप न रेख मनमोहिउ रे. २९ कुंयर बोलि कूतिकी... कुंयर बोलि[इ जाणिनि रे लाल, किम जूडसइ प्रभू वात मनमोहिउ रे, तस संगम किम होयसि रे लाल, दीसइ छि व्याघात मनमोहिउ रे.३० कुंयर बोलि कूतिकी... कुंयरनि रिखि भाखतउ रे लाल, हउं मनि जाणं सोय मनमोहिउ रे, जूगतिं जोडउ जोडसि रे लाल, तुझ वखत बल जोइ मनमोहिउ रे. ३१ कुंयर बोलि कूतिकी... इम कही नारद ततखिणइ रे लाल आविउ कमला आवासि मनमोहिउ रे, आगति-स्वागति बहु करी रे लाल, रिषि बइठउ सुविलासि मनमोहिउ रे. ३२ कुंयर बोलि कूतिकी... मुनि प्रति जंपि कुंयरी रे लाल, मही-मंडलि जोतां स्वामि मनमोहिउ रे, वात कहु सोहामणी रे लाल, बलिहारी जाउं नामि मनमोहिउ रे. ३३ कुंयर बोलि कूतिकी... जंपि नारद सुंदरू रे लाल, कमला सूणि एक साच मनमोहिउ रे, For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - २६ www.kobatirth.org पुरुष योडिपुर मिलही रे लाल, सुंदरी मांनि तु साच मनमोहिउ रे. ३४ अवतरिउ रूप- गुणे करी रे लाल, कामदेव अनरूप मनमोहिउ रे, सागरचंद सोहामणउ रे लाल, वडभागी वडभूप मनमोहिउ रे. ३५ नभसेन बीजउ निहालीयो रे लाल, क्रोधी कुरूप आकार मनमोहिउ रे, निरगुण नीसत' जांणीइ रे लाल मनि मोटिम अहंकार मनमोहिउ रे, ३६ वात सूणी रिषिनी इसी रे लाल, कुंयरी चिंतवई एम मननोहिउ रे, सागरचंद पति जउ हुवि रे लाल, तो वाधि सूख प्रेम मनमोहिउ रे. ३७ रिषि प्रति राग धरी करी रे लाल, बाला बोलि वांणि मनमोहिउ रे, भायग" तिसिउं दीसि नही रे लाल, पापणी पडी दुखखाणि मनमोहिउ रे. ३८ वैरी पिता मझ जांणीयइ रे लाल, बात विमासी न किद्ध मनमोहिउ रे, नभसेन वर नहीं तेहवो रे लाल फोकटि एहनि दिद्ध मनमोहिउ रे. ३९ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ कुंयर बोलि कृतिकी.... कुंयर बोलि कृति की..... कुंयर बोलि कूतिकी.... कुंयर बोलि कूतिकी..... कुंयर बोलि कूतिकी... कुंयर बोलि कूतिकी.... Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ मार्च - २०१३ यत्तः मूर्खा-निर्द्धन-दुरस्थो, यो हि मोक्षाभिलाषिण। त्रिगुणाधिक वर्षश्च, न देया कन्यका बुधैः ।। ४०।। [विवेकविलास तरंग ५/श्लोक १३] चालि।। वरसिउं तउ हिवि जाणिनइ रे लाल, रूडउ सागरचंद मनमोहिउ रे, किं वा अंग दझावसिउ रे लाल, पणि न वरूं वर मंद मनमोहिउ रे. ४१ कुंयर बोलि कूतिकी... किहां खरनि घोडउ किहा रे लाल, किहां काच मोतिणहार मनमोहिउ रे, कोढीसि काट्ठखावउ कसउ रे लाल, तिम नभसेनकुमार मनमोहिउ रे. ४२ कुंयर बोलि कूतिकी... सागरचंदनि मइ वरिउ रे लाल, पणि कूडउ हठ्ठ एह मनमोहिउ रे, मनोरथ पुण्यविहीणनउ रे लाल, दोहिलउ सीजइ तेह मनमोहिउ रे. ४३ कुंयर बोलि कूतिकी... दुहा।। इम कुमरी चिंता भरी, शोचा करती देखि, नारदि बोलावी तिसई, रूडि-वचनविशेषि. ४४ खेद म धरि पुत्री हवि, द्रढ करि चित्त सुजांण, फलसि मनोरथ ताहरउ, होसि कोडिकल्याण. ४५ अनुरागी सो पति अछइ, तुझ मुख देखण चाहि, कुमरी कहि नारद किसिउं, मीठे बोलि म वाहि. ४६ For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ तेह सारसो३ संबंध मझ, होसइ केणि संचि, रिषि कहि सर्व भलउ होसि, ताहरि पुण्यप्रपंचि. ४७ ढाल-त्रीनी।। राग धन्यासी।। ।।उसरपणी अवसरपणी।। इम कमलामेला समजावी, नारदई वचन विनाणिजी, आविउ सागरचंदनि पासि, प्रीति-कथा कही जांणिजी. ४८ इम कमलामेला.... (आंकणी) सही करि माने तुं मझ वातडी, प्रीति सांधि भली जोडिजी, सागरचंद सुणि मनि हरखिउ, रोमंचिउ नेह कोडिजी. ४९ इम कमलामेला.... नारदरिषि निज थांनकि जातां, दीधउ चित्रतपट्टजी, नीली राग चतुरपणि जाणिउ, राजकुंयर गहिगट्टजी. ५० इम कमलामेला.... निरखइं चित्रितरूप पट्ट तव, रमणीरागतरंगिजी, आगलि-पाछलि मंदिरि अंगणि, देखइं भामिनि नी]भंगिजी. ५१ इम कमलामेला.... तिणि वधि खिण एक बिठउ, कुंयर करतो मनि संकल्पजी, एहवि आविउ शांबकुमर तव, पूंठइं गति करी अल्पजी. ५२ इम कमलामेला.... रां[रा]मति वसि५ बेहु पाणि करीनि, ढांकि लोचन दोइजी, सागरचंद बोलिउ तिणि वेलां, वात हीयइ मुखि सोयजी. ५३ इम कमलामेला.... मूंकि-मूंकि आंखडीया मोरी, तुहि ज कमलानारिजी, तुज मुखचंद-चकोर चाहिवा, हरख अछि मनुहारिजी. ५४ इम कमलामेला.... शांबकुमर हसि पभणि सुणि सुत, हउं नहीं तुज चिति कोईजी, कमलामेला मेलक हूं छउं, ईष्टमित्र तुज जोइजी. ५५ इम कमलामेला.... For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org यतः कमलामेला मेलउ मुझनि, जंपिउ" तेणि बोलिजी, वचन कहिउं सो पडिवनुं पालउ, नट मत जाउ निटोलजी. ५६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलसायंतेण सज्जणेण जे अक्खरा समुल्लवीया । ते पत्थर टंकु की यव्व न हु अन्नहा हुंति. ।। ५७ ।। [ / /चालि ।। " इम कमलामेला..... मार्च - २०१३ शांबकुमर कहइ वचनबलई हुं, बांधिउ बोलतां आजजी, कहउ कुठामि गड दुखि वहून सुसरा वैद्यसिउं काजजी. ५८ 1 इम कमलामेला.... आगइ उग्रसेनसूतनि ए दीधी सूता सुविचारिजी, हिवि कहउ सि कीजइ ईहा कणि, वाघ कूप परि सारजी. ५९ तउ हिवि कोईक दाय" रचीनि करसिउं वचनप्रमाणजी, ऊत्तम तणा बोल नवि खोटा, ऊतर मेघ मंडाणजी * . ६० For Private and Personal Use Only इम कमलामेला..... इम कही जंबुवतीनउ नंदन, गयउ प्रद्युमन पासइजी, वात कही कमलामेलानी, राग तणी सुविलासइजी, ६१ इम कमलामेला..... इम कमलामेला..... यतः जत्तिय मित्तो नेहो, तत्तिय मित्तो अनवरि संतावो । ऊज्झिय तेहं न हु कुंकुम, पिता विजइ जणेण ।। ६२ ।। [ I ।। चालि ।। रूकमणीनंदन वचन न लोपि, शांबकुमर केरी साथिजी, दिन निजीक जांणी वीवाहनउ, लेई हथीयार सूहाथिजी. ६३ इम कमलामेला.... जे काळा- घेरायेला वादळो अवश्यमेव जळ वरसावे छे तेम महापुरुषो पोताना वचनो पण अवश्यमेव पाळे छे. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ श्रुतसागर - २६ प्रज्ञप्ती-विद्याबलि आंणी, कमलामेला तांमजी, द्वारिका परिसरि वनमई बिठा, शांबकुमर अभिरामजी. ६४ इम कमलामेला.... धूनउं लगन साधीयु धस-मसि, आरिमकारिम कीधजी, सागरचंद परिणाविउ प्रेमि, पुण्यइं कारिज सीधजी. ६५ इम कमलामेला.... ढाल-चुथी।। चंद्राउलानी देसी।। ऊग्रसेन घरि एहवि रे, करइ वीवाहनउ जंगो१९, धवल-मंगल गायइं गोरडी० रे, वाजइ तूर१ सुचंगो. १ टक।। वाजई तूर सुचंगइ छंदइ, यादव-यान चडी नरवृंदइ, रथ पायक हाथी सुखकंदइ, घोडि चडिउ वर आवि आणंदि. १ जी राजेसर जी रे कमलामेला हेति, नभसेन आवीयउ रे, धनसेनमंदिर तेति, तोरणि भावीयउ रे. २ जी राजेसर .... (आंकणी) तेहवि अंतःपुरि ऊछली रे, हाहा-रवनी वातो, धाउ रे धाउ ऊतावला रे, वेगई सूभट संघातो. २ जी राजेसर.... [टक।। सूभट संघात हथीयारे सनूरा, धाया धसमसता सवि सूरा, जीत साल अंगई संपूरा, आव्या सामि पासि हजूरा. ३ जी राजेसर.... कमलामेला कन्या भली रे, ए गयो कोई चोरो, अमंगल वात सुणी करी रे, परिजन करि सवि सोरो. ७१ जी राजेसर.... For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 मार्च - २०१३ टक। सोर ऊठिउ विण अवसर पाखड़, कुमरी लेई जातउ कोई राखइ, नभसेन नीसासा बहु नाखि, वज्जिाइ] हणिउ वेदन परिभाखि'. ७२ जी राजेसर.... उग्रसेन सवि राजीया रे, विलखवदन थया तामो, सोधवा लागा चिहूं दिसइं रे, यादव सवि अभिरांमो. ७३ जी राजेसर.... [टक।। यादव सवि अभिराम तिहां कणि जोता, आव्या नारि जेणि वनि, प्रद्युमन-शांबकुमर तिहां पणि, सागरचंद पासि दीठी धणि. ७४ कमलामेला परणी लही रे, धनसेन उग्रसेन रायो, कोपाकुल थया ततखिणइ रे, कुवचन कहि चिति लायो, ७४ टक। कुवचन कहि चित्ति लाई रे पापी, अपकीरति जगि तुमची व्यापी, कूडी बुधि इसी कूणि आपी, न्याय रीति तुमे. दूरि कापी. ७५ जी राजेसर.... करी अन्याय जासिउ किहां रे, पुण्यहीण गमारो, सीख देवा नही को तिसउ रे, रेति-रेति जात कुमारो. ७६ टक।। रेति-रेति जात कुमर तिवारि, अमसर सीख देसइ विवहारइं, भाटकि आंधलउ भीति संभारी, अमो पड्या तुमारी लारि. ७६ जी राजेसर.... कुवचन बोल सुण्या तिसारे, खंत उपरि जिम खारो, शांबकुमरनि रोकीया रे, करता ऊग्र प्रहारो. ७७ * पीडाथी दुःखी थयेला अवाज करता व्यक्तिनी जेम बोले छे. [?] For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ श्रुतसागर - २६ टक।। करता ऊन प्रहार सडा-सडि, संबकुमर पणि आव्या अडो-अडि, सुभट तिहां भिडि भीम भडो-भडि, भालानि तरवारि कडो-कडि. ७७ जी राजेसर.... कुमरि कटक करिउ वेगलउ रे, भूज बलि तेणि तुरंतो, उग्रसेन सवि चिंतवइ रे, साथनो आणिउ अंतो. ७८ [टक।। साथनो आंणिउ अंत रे भाई, बल नवि चालि एहसिउं लाई, पाछा वल्या सघला सखाई, कृष्णनइं ओलंभउ५ दीयई धाई. ७८ जी राजेसर.... ।।दाल- 11 चौपईनी।। राग-भूपालि उग्रसेन धनसेन वचन्नि, गोपीनाथ आविउ तिणि वन्नि, शांबकुमरनि हाकी कहि, उत्तम अन्याय सांसी किम रहि. ७९ रे कुपुत्र ए कीधू किसिउ, निरमल-कुलनि खंपण जिसिउं, हिवि नभसेननि कन्या देहि, मानि वचन मत ढील करेहि. ८० राजकन्या वली अवर सुचंगि, परणावउ सागरनि रंगि, तातवचन सूणी संबकुमार, वीनती एक करि मर्नुहारइं. ८१ कहउ तात किहां वात सांभली, शास्त्रमांहि दीठीसिउं भली, परणी कन्या किम देवाय, न्याय इसिउं अवलउ किम थाय. ८२ तुम वचनई क्ली देसिउं वही, हठनी वात तिजी अम्हे सही, वचन तुम्हारु सिरि चाडीयई, गूढ-प्रपंच ए देखाडीयई. ८३ वृद्धकानि घाती जइ वात, किमही काज न विणसि तात, इम करता घरमा नही खेम, अंतरद्रष्टि देखउ एम. ८४ प्रद्युमननइं सांबकुमारि, प्रीछवीयउ८ श्रीकृष्ण मुरारि, पद्मनाभ मनि चिंतइ आज, मुष्टि भली बोली वछराज. ८५ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ मार्च - २०१३ आंखि बिहुं मांहि अंतर किसउ, उग्रसेन नैषध पणि तिसिउ, समझाव्या वाल्या तव सहू, सागरचंद आविउ लेई वहू. ८६ कमलामेला नारि सुजांण, सागरचंद पणि चतुर जूवाण, चडीती वय चडता संयोग, बेहू जण रंगि भोगवई भोग. ८७ मनोहरमुहलि बड़े मंदिरे, सूखविलसि षटरति बहु परे, कमलामेलाना संसारि, लाड-कोड पूगा निरधार. ८८ नमसेन सागरचंद निहालि, कोपइं त्रिसुल उचडावि भालि, वखत-वंत"सिउं केहुं जोर, धन किम अपहरि सघलूं चोर. ८९ निस-दिन छिद्र निहालि सोय, सागरचंदनि विरूउं२ होइं, घांच टलइ सोय पुण्यप्रमाण, पुण्यि दिनि-दिनि कोडि कल्याण. ९० ढाल छठी।। राग केदारो।। सुदागर जानी चलणा न देसिउं इणि समई द्वारिकांनगरी ऊद्यानई, स्वामि समोसर्या पुण्यप्रधानइ. १ नेम पधार्या जिननेम पधार्या, जिणि निजदेसणि भविजन तार्या. २ (आंकणी) देव रचइ त्रिगढ तिहां सूंदर, बिठा त्रिभूवनसामी बंधुर. ३ नेम पधार्या जिन नेम...... पुरूषदबार जूडी तिणि वेला, नाग-मोर जिहां दीसइ भेला. ४ नेम पधार्या जिन नेम..... वनमाली वधामणी देवइं, हरख पसाय आपिउ सोई लेवई. ५ नेम पधार्या जिन नेम..... कृष्णराय वंदणि तव आविउ, चतुरंगदल परिवार सोहाविउ. ६ नेम पधार्या जिन नेम. सागरचंद रमई आवासई, निरखइं गुखइ पुर सुविलासइं. ७ नेम पधार्या जिन नेम... एक-मारग जाई नर-नारी, ऊछरंग आज दीसइं निरधारी. ८ नेम पधार्या जिन नेम..... For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ३५ निज-सेवक कथनइ जांणी वात, दरिसन देखवा हरख न मात. ९ नेम पधार्या जिन नेम..... रथि बइसी आविउ तिणि कालि, पंचाभिगम साचवि तिणि तालि. १० नेम पधार्या जिन नेम..... देई प्रदक्षिणा सागरचंद, भेट्या यदूपतिपयअरविंद. ११ नेम पधार्या जिन नेम..... यथा-योगि बिठउ सुभरीति, धर्म सुणइं आदरि मन प्रीति. १२ नेम पधार्या जिन नेम..... |ढाल-सातमी।। ।।झूबकडानी देसी।। भाखि भगवंत जांणिनई रे, मधुर-वचनइ हितसीख सोभागी सांभलउ धर्म करउ तुमो धुरि लगइ रे, सरस जास रस-ईख सोभागी (आंकणी) भव गोत हिरउ दोहिलउ रे, जिहां कणि विसमी व्याधि सोभागी, कर्म करू रज ऊपहरू रे, किम वीयई जीव समाधि सोभागी. ६ सांभलउ धर्म करउ... राग-द्वेषनी सांकलई रे, बंधाणा सवि जीव सोभागी, सूख थोडां संसारमि रे, दुरगति दुख अतीव सोभागी. ७ सांभलउ धर्म करउ... मिथ्यामति सवि परिहरउ रे, आदरउ श्रीजिनधर्म सोभागी मुगतिरमणि तुम वालही रे, छांडु विरूयां५ कर्म सोभागी. ८ सांभलउ धर्म करउ... देसन वाणि सूधारस्यइं रे, प्रीणिउ सागरचंद सोभागी, समकित आदरइं सुंदरू रे, सवि तिजिउ मिथ्याकंद सोभागी. ९ सांभलउ धर्म करउ.. श्रावक धर्म अंगीकरी रे, आविउ वंदी गेहि सोभागी, विहार करिउ नेमीसरि रे, अवर गामि-पुरि रेहि सोभागी. १० सांभलउ धर्म करउ... For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ सूधउ धर्म समाचरि रे सागरचंद कुमार सोभागी, विलसई सूख संसारना रे, विचि-विचि६ अरथ-प्रकार सोभागी ११ सांभलउ धर्म करउ.. पर्वदिवसि एकणि दिनइ रे, पोसह उचरिउ जांणि सोभागी, कर्ममूल ऊच्छेदवा रे, काऊसग करिउ मसाणि३७ सोभागी. १२ सांभलउ धर्म करउ... नभसेन तेणइं अवसरि रे, एकलउ दीठो सोय सोभागी, नयणे जोतउ चिहूं दिसई रे, आगलि पाछलि कोय सोभागी. १३ सांभलउ धर्म करउ... क्रोधि मनमि धम-धमई रे, जांणइं आणुं अंत सोभागी, क्रोध कहउ सिउं नवि करि रे, परिहरउ अमरस संत सोभागी. १४ ___ सांभलउ धर्म करउ... चहि“ बलती देखी तिसइ रे, धगधगता अंगार सोभागी, जीरण घट-खप्पर भरी रे, मूंकई मांथि गमार सोभागी. १५ सांभलउ धर्म करउ... आपण पूं धन्य मानतउ रे, कालमूहउ गयो नासि सोभागी, सागरचंद तेणि समि रे, समरस चरमऊसासि सोभागी. १६ सांभलउ धर्म करउ... धरम-ध्यांन चिति भावतउ रे, मूंकिउ रागनई द्वेष सोभागी, सहितउ वेदन-दोहिली रे, खिमा-धरी सुविसेष सोभागी. १७ सांभलउ धर्म करउ... खिणिमइ काल करी गयउ रे, स्वर्गलोकि सोधरमि सोभागी. अपच्छरि मोती वधावीयउ रे, देखी अवतरिउ मरमि सोभागी. १८ ___ सांभलउ धर्म करउ.. विदेह खेत्रि लहिसि वली रे, उतमकुलि अवतार सोभागी, कर्म खपावी पांमस्यइं रे, मूगतिपुरीसुखसार सोभागी. १९ सांभलउ धर्म करउ... For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ श्रुतसागर - २६ ढाल-आठमी 11 लारवा फूलांणीना गीतनी-देसी।। इणी परि सागरचंद खिमा, गुणि करी जगमई परगडउ९, तिणि परि भविका जाणि ऊपसम-रस, आणउ मनि ए वडउ. २० जांणी जिनधर्म सार क्रोध, कषाय करउ सवि वेगलउ, परिहरउ मोहनिद्रोह जिम जंग, जीपो सधलउ अतिभलउ. २१ चंद्रकला सम एह साध तणा, गुण अतिहिं मनोहरू, रसना थाइ पवित्त लाभ, अनंतो हुइ वली सुखकरू. २२ श्रीअंचलगछि आनंदचंद्रकुलई, विधिपक्ष साखा जाणीयइं, भट्टारक गुणवंत श्रीकल्याणसागरसूरि साध वखाणीयइं. २३ तस पखि पुण्यपडूरि वाचक, श्रीसत्यशेखर सुभमती, तस शिष्य ताजइ नूरि, विवेकशेखरगणि वाचक सुविहिती. २४ पांमी तास प्रसाद सागरचंदमई, गायउ हितकरी, चतुर रसिक वेधाल सूणसई, चउपई एह हरख धरी. २५ संवत सोलसई साच उगण्यासीयइं, वरसि वली मई रची. महाशुदि बीज प्रधान, बुधवारइं बुधई करी मची. २६ जेसलमेर मझारि पास, जिणेसर महिमा दीपतउ, श्रीसंघनि सुखकार संपति, घि[घरि घरि अरीयण जीपतउ. २७ सागरचंदचरित्र आवश्यकसूत्रइं, जोय्यो वली वली, विजयशेखर कहि प्रेमइ, मूनि मोटाना गुण गातां रली. २८ इति श्रीसामायकविषये सागरचंदमूनि रास संपूर्ण ढाल ज करी नव।लिरिवतं ऋ. आंबा।। For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयशेखर विरचित अरणिक रास आकृति प्रायः अप्रकाशित छे. सागरचंद्र रासनी जेम आ कृतिना रचनाकार गणि विजयशेखर महाराज छे. कविए रचनाना आधारनो उल्लेख करेल नथी, पण ए समयमा प्रचलित कोई गद्य चारित्रना आधारे, आ रासनी रचना थई होवानी संभावना छे. कृतिनी आदिमां निर्मल-बुद्धि प्रदात्री सरस्वती मातानी स्तुति करी, अरणिक मुनिना चारित्रनो प्रारंभ करे छे. रासनी रचना पाछळ कविना उद्देशमां गुणानुवाद, मननी शुद्धि, अने कांईक नवुं आपवानी वृत्ति विशेषे रही छे. वाचकने अरणिक ऋषिना जीवन आसपास गंथायेली घटनाओमांथी एक अनेरो कथा-प्रवाह मळी आवे छे. आखी कृति देशी - त्रोटक छंदोबंधमां रचायेली छे. कृति - लेखनमां प्रायः ह्रस्व घणां शब्दो दीर्घ थया छे. दा. त. सूख-सुख, मुनी - मुनि, विगेरे...ए तमाम सुधारा मूळ पाठमां करी लेवामां आव्या छे. पहेली, बीजी, ढाळमां ढाळ क्रमांकनो निर्देश नथी. ३जी अने ७मी ढाळनो क्रमांक आपवानो रही गयेल छे. • अरणिक मुनिनुं कथानक जैन समाज अने जैन-कथाओमा बहु प्रचलित छे. मध्यकालीन साहित्यए पेट भरीने अरणिकमुनिना गुण-गान गाया छे. आठ ढाळमां आखं कथानक विराम ले छे चढाव उतार ए कांई आपणी जिंदगीमां ज बनती घटना छे, एवं नथी. भरती ओटना प्रसंगो तो ए महापुरुषना जीवन- किनारे य मळी आवे छे. पतन अने उत्थान ए मानव समाजमां बनती एक विशिष्ट घटना छे. प्रकृतिमां अन्य कोई स्थळे आवी प्रक्रियानो समन्वय नथी. जन्म अने मृत्युना बे छेडा वच्चे रहेला जीवनमां, कोई पशु क्यारेय पोतानुं रूपांतरण करी शकतुं नथी, पशु इच्छे तो पण जन्म अने मृत्यु बच्चे रहेलां जीवनमां फेरफार थई नथी शकतो, ज्यारे मनुष्यनी ऊंचाई अने ऊंडाई तद्दन जुदी छे, एनी भात अनोखी छे. एनी पासे चडवाना अने पडवाना रस्ताओ छे. कथाओमां मळता पतन अने पुनरुत्थान ए मानवजीवनने नवी दिशा अने नवी दशा आपवामां धणे अंशे फळदायी बने छे. नबळा समये जे व्यक्ति पतननी खाईमां पहोंची जाय छे. ए ज व्यक्ति समय आवता आध्यात्मिकताना अव्वल अने ऊंचा शिखरो सर करी दे छे. आ आखुं कथानक आवाज अर्थनुं सूचक अने ज्ञापक छे. कडी १५ (कडी क्रमांक १-१५) छंद त्रोटक सुख समृद्धिथी भरपूर तगरा नामे नगरीमा दत्त नामना एक श्रेष्ठी त्यां निवास करे छे, तेनी पत्नी भद्राना कुखे अरणिकनो जन्म थाय छे. काळक्रमे For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ३९ विचरता कोई गुरुभगवंत तगरा नगरीमां पधारे छे, गुरुभगवंतनी देशनाथी दत्त अने तेनी पत्नीनु हृदय परिवर्तन पामे छे, पोतानी पत्नी अने पुत्र साथे गुरुदेव पासे दीक्षा ले छे. पुत्र अरणिक मुनिवर उपर अनन्य स्नेह भाव होवाथी पठन-पाठन सिवाय अन्य कांई ज कार्यनो भार न हतो, गुरुदेव साथे विहार करी निरतिचार चारित्रनुं पालन करता अनेक वर्षांना व्हाणा वीते छे. समय बदलाय छे, पिता मुनिनो काळधर्म थाय छे. ढाल पहेली कडी-७ (कडी क्रमांक १६-२३) राग मारणी अत्यार सुधीनी अरणिक मुनिनी जीवन चर्यानुं समग्रपणे रूपांतर थई जवानुं हतुं. अरणिकनो कमळनी पांदडी जेवो देह, अने पिता-मुनिना वात्सल्य भावे, अरणिकने कोई कष्ट मळे के अधिक परिश्रम पहोंचे एवं कोई कार्य करवानो अवसर ज नहोतो आव्यो. हवे गोचरी-पाणी विगेरे लाववानुं अरणिक मुनिना फाळे आव्युं. अरणिकना स्मरण हिंडोळे पितानी साथै वितावेला दिवसो झूल्या करे छे. क्यारेक मीठावचनो याद आवे छे, तो क्यारेक पिताए कोळीयामां काळजानो प्रेम पूरीने वपरावेलो आहार याद आवे छे. क्यारेक पिता मुनिए करेली आराधनानी स्मृत्ति मनने आई करे छे. तो पिताए काळजीथी करेलुं जतन याद आवे छे. रमकडां रमवानी उमरमां पिताना पडछाये नीकळेला युवान अरणिक मुनिने पितानो खालीपो हृदयमा चीरा पाडे छे, वियोग केमे करी सहेवातो नथी. आग अने वियोग बन्ने दहन-मूलक छे. आग तो पाणीथी ओलवाई जाय, पण वियोग क्यारेय ..... साध्वी माता भद्रा आवी, समजावे छे, एना वचनोथी अरणिक स्थिर बनी, गुरुदेवना चरणोमां निरतिचारपणे चारित्र जीवनने व्यतीत करे छे. जे क्यारेय भूलाता नहोतां, ए क्यारेक याद आवी जाय छे. दिवसो पसार थाय छे... ढाल बीजी, कडी-९ (कडी क्रमांक २४-३३) राग गोडी - रामचंदकी वागि चंपउ मुनि रहिउरी ए ढाल वैशाख मासनो धोम-धखतो तडको पड़ी रह्यो छे, धरती अने आकाशमाथी एक सरखो ताप पड़ी रह्यो छे, रस्ते पथरायेली रेतीना कणीया अंगारा लागे एवा तडकामां मुनि अरणिक स्थविर साधु साथे गोचरी नीकळ्या छे, वायरामां वरसती लू सूरजनी गरमीमां वधारो करे छे. जीभ अने ताळ, सूकाई जाय एवो सूर्य तपे छे. माछली अने जलनुं उदाहरण आपी कविए ऋषिने लागती गरमीना वर्णनने वधु तादृश कर्यु छे. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० मार्च - २०१३ ___साथे आवेल स्थविर साधु आगळ नीकळी गया, आगळ स्थविर साधुने भेगुं थर्बु मुश्केल होय, गरमीना कारणे अरणिकेना पग एक डगलुं मांडवाने समर्थ नथी. त्यारे आवा मार्गे कई रीते जवाशे? मारा पिताने धन्य छे! जेणे आटला दिवस आq कठिन चारित्र पाळ्युं, मने जतन पूर्वक पाळी पोषीने मोटो कर्यो, कोई दिवस मने दुःखनो अनुभव न थवा दीधो....विगेरे चितवता अरणिक वसतिमां पाछा फर्या, वसतिमा रहेला साधुओए कोमळ-देह सुख-शीलतानुं कारण छ, अरणिकथी संयम-पालन नहीं थई शके... ईत्यादि विचारीने साधुओए वसतिमाथी बहार काढ्या, उपाश्रयेथी नीकळी, धीमे पगले चालतां ऋषि हवेली पासे स्हेज छोयो लेवा माटे आव्या, शरीरना आराम माटे छांया अने विसामा मळी रहेशे, पण विचारोना आ चालता वमळने विसामो आपवानुं स्थान क्या... एक नोखी एंधाणी के भय वर्ताता शून्य-मनस्क थई, आंखो मीची, विसामो लई रह्यां. ढाळ चोथी, कडी-99 (कडी क्रमांक ३४-४९) रबारी के छोहरा फाग ए ज हवेलीना नवयौवना शेठाणी झरूखे बेसी चारे-कोर दृष्टिपात करता होय छे, एटलामां अचानक नझर विसामो लेता मुनि पर पड़े छे. पोतानी हवेलीना छांये विसामो लेतो रूप अने तेजना अंबार जोई एनुं मन आकर्षित थयु, दासीने बोलावी, मुनिने आमंत्रण आपी, ऊपर बोलावी लाव. दासीना आमंत्रणे मुनि ऊपर पधार्या, शेठाणीए वहोराववा मोदक मंगाव्या, क्षुधा पीडित मुनि पण हरखित थयां, शाने आ तप आदर्यु छे, आ यौवनवयमां आवं कष्ट शा माटे वेठो छो. आप अहीं प्रेमथी निवास करो, हुँ आखी हवेलीमा एकली ज छं. शेठाणीना आवा रागसभर वचनोथी मुनिनुं मन मीणनी जेम पीगळी जाय छे. कवि अरणिकनी मानससंवेदनाने बहु ऋजु शब्दोमां व्यक्त करे छे. वनिताना वचनोथी अरणिकनुं परिवर्तन थयु. व्रत छोडी, अरणिक घणो समय ए शेठाणीने त्यां रह्यां, ढाळ पांचमी, कडी-१० (कडी क्रमांक ७०-७९) राग टोडी - धन्यासिरि अरणिकनो आत्मा जागे छे, पोतानी भूलनुं प्रायश्चित्त करवा पोताना गुरुदेव विगेरेनी तपास करे छे. साधुओ तो त्यांथी अन्यत्र विहार करी गया होय छे, अरणिके विचारे छे - बहु खोटुं कर्यु. आ में शुं कर्यु. प्रभुना वेशनो त्याग करी, मारा कुळनी लाज डूबाडी. ईत्यादि विचारे छे. आ बाजु भद्रा माताने खबर पडे छे. के अरणिक व्रत छोडी, कोईक शेठाणीनी हवेलीमां निवास कर्यो छे. नगरनी शेरीओमा अरणिक-अरणिक करती माता भद्रा दिवस-रात फरे छे. जे नानुं बाळक मळे एने तुंज मारो अरणिक छो, एम कही एने बोलावे छे. नगरना लोको गांडी For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ श्रुतसागर - २६ समजी, एनी मजाक करे छे, अरणिक अने एना परिधमां रचाती घटनाओनी हारमाळा एटले नियतिए जेने निःसासा आप्या होय एनी हालतनो प्रत्यक्ष चितार... __विधीनी विचित्रता केवी छे. ए क्षणमात्रमा आ चरित्र समजावी दे छे. अरणिक गोखमां बेसी चो-तरफ दृष्टिपात करी रह्यां छे. जोवानुं कांई नथी, पण समये पोतानी उपर करेला प्रहारो केमे'य करीने भूलाता नथी, अंदरनो ताप केमेय ओछो थतो नथी. बहार जोवू तो निमित्त-मात्र छे, नजरमां भीनाश नथी. छे मात्र कोरी खाय एवी शून्यता. अचानक एनी नजर आजथी केटलाक वर्षो पहेला ज्यां अरणिके विसामो लीधो हतो, ए ज स्थाने एनी नजर पड़े छे. एक वृद्ध स्त्री त्यां विसामो लेवा बेठी छे, अरणिकनी स्मृतिमां बाजेला समयना पोपडां खरवा मांडे छे, पोतानी माता मळी आवता अरणिक आनंदित छे. तो आवी दुर्दशा बदल पस्तावानो य पार नथी. अरणिक तरत ज नीचे आवे छे. पोतानी मातानी आवी हालत जोई, पोते करेली भूल बदल एना पस्तावानी आगमां पेट्रोल उमेराय छे. अरणिक समजी जाय छे, के मारा कारणे ज मारी मातानी आ हालत थई छे. मारो वियोग ज मातानी आ परिस्थिति प्रत्ये जवाबदार छे. ढाळ छठी, कडी - ६ (कडी क्रमांक ६०-६७) ऊच्छरपणीनी देशी मातानी दशा जोईने अरणिक ध्रुसके-ध्रुसके रडे छे. गद्-गद् वाणीमां पोते अरणिक छे, ए, माताने जणावे छे. माता पण एने वात्सल्यथी नवडावे छे, तुं आटला दिवस क्या हतो? क्यां रहेतो हतो? एवा तो जात-जातनां प्रश्नो अरणिकने पूछे छे. माताने मळवाथी अरणिके हळवाशनो अनुभव कों, पिताना विरह बाद आटला वर्षो सुधी भरायेलो ड्रमो आजे धुम्मसनी जेम अंदरथी ओगळी रह्यो हतो. माता सामे होवाथी अरणिक निरांतनो श्वास लई रह्या हतां, अरणिक अत्यार सधीमां वीतेला समयनी घटनाना एक-एक पडलने खोले छे. क्यांय सुधी माता अने अरणिकनो संवाद चाले छे, ढाळ सातमी, कडी - ७, (कडी क्रमांक ६६-७२) वीर वखाणी राणी चेलणाजी देशी चारित्र वगर आ भवनी जेम तुं परभवमां पण दुःख पामीश. तुं आटला दिवस अविरतिमां रह्यो, हवे ए बधा दोषोनुं प्रायश्चित्त कर, जीवना भोगे पण व्रतनो भोग For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मार्च २०१३ ४२ न कराय, जीव छोडी देवाय, पण व्रत केम छोडाय इत्यादि.... अहीं माता गुरु स्वरूप बनी अरणिकने सांत्वना आपी, सात्विकतानुं वावेतर करे छे. माता तुं कहीश, एम करीश. पण माराथी व्रत पालन नहीं थाय. तुं कहे तो हुं अणसण स्वीकारी लऊं, पण व्रतनो भार माराथी वहन नहि थाय, इत्यादि अरणिक पोतानी वात माताने जगावे छे. वर्षो पहेला मोहनी घेरी निद्रामा पोढेला अरणिकने माता मीठां वचनोथी जगाडे छे. माता फरीथी व्रतनुं आचरण करवानी वात करे छे, माता समजावी गुरुभगवंत पासे लई जाय छे, अरणिक फरीथी महाव्रत लई, अणसणनी आराधना करवा, गीष्म- काळमां सिद्धगिरिराज पर जई, जया शिला पूंजी संथारो करे छे. माखणनी जेम शिला उपर अरणिकनो देह ओगळी जाय छे, अरणिक ध्यान बळे काळ करी स्वर्गे पधार्या. ढाळ आठमी, कडी - ६ (कडी क्रमांक ७३-७८) राग धन्यासी आ प्रमाणे अरणिके दुष्कर एवा उष्ण परिषहने सहन कर्यो, कर्म खपाव्या. आ ते संयमना एक गुणनी पण विशिष्टपणे आराधना करवाथी आत्मानो विकास थाय छे, पाछळनी ऋण गाथाओमां कविए पोतानी गुरु-परंपरा जणावी छे. कृतिनाम अरणीक मुनिनी ढाळो अर्हनकमुनिनी कथा अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि कथा अरणिकमुनि सज्झाय अरणिक मुनि आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमां संगृहीत अरणिकमुनि संबंधी कृतिओनी नोंध अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि दृष्टांत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्तानाम अज्ञात अज्ञात अज्ञात जैन अज्ञात जैन श्रमण अज्ञात जैनश्रमण अज्ञात जैनश्रमण अज्ञात जैनश्रमण अज्ञात जैनश्रमण अज्ञात जैन श्रमण अज्ञात जैनश्रमण For Private and Personal Use Only भाषा मा.गु. गु. गु. मा.गु. गु. मा.गु. गु. मा.गु. मा.गु. मा.गु. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ४३ कर्तानाम भाषा मा.गु. मा.गु. मा.गु. " في ي کي هن ته فن कृतिनाम अरणिकमुनि रास अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि चौपाई अरणिकमुनि रास अरणक सिज्झाय अरणीक मुनि अरणिकमुनि सज्झाय अरणिक अरणिकमुनि चौपाई अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि रास अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि गीत अरणिकमुनि सज्झाय अरणिकमुनि सज्झाय आणंद कवियण कीर्तिसोम खीमा ज्ञानकीर्ति दयातिलक नयप्रमोद बुधमल मेघा ऋषि यशोभद्रसूरि रतनचंद राजमल लोढा राजहर्ष रूपविजय लब्धिविजय लब्धिविजय लब्धिविजय लब्धिविजय लब्धिसूरि विजयशेखर विद्यारत्न समयसुंदर गणि समयसुंदर गणि समयसुंदर गणि हरख ی یه که من و دي وي دي في دي وي دي For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org अरणिकमुनि रासना कथा अंश * दत्त अने सुभद्रानुं पुत्र अरणिक साथै संयम ग्रहण. * दत्त मुनिनो अरणिक मुनि उपर विशिष्ट अनुराग. * अरणिकनुं कष्ट-रहित संयम पालन. * पिता मुनिनो काळधर्म. * पुत्र अरणिकने पितानो सालतो वियोग, * पितानी आराधनानी अनुमोदना . * अरणिकनुं स्थविर साधु साथे गोचरी भ्रमण. * तापथी अरणिकनुं खिन्न थइ, वसतिमां पाछा फरवुं. * वसतिमांथी अरणिकनुं नीकळवं. * अरणिक उपर शेठाणीनी नजर. * दासीनी विनंतीथी अरणिकनुं शेठाणीना घरे जवुं * शेठाणीना राग- वचने अरणिकनुं पतन. 8 अरणिकनो पस्तावो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * साधुओनी शोधमां नगरनुं भ्रमण. * पुत्र अरणिक काजे माता भद्रानुं नगरमा फर. * झरुखेथी अरणिकनुं माताने जोवु. * माता अने पुत्रनो संवाद. * मातानी हित- शिक्षा. * अरणिकनुं फरी महाव्रत लेवु. * सिद्धगिरिराज पर जई अणसण. * अरणिकनुं स्वर्ग-गमन. ॐ कवि द्वारा संयम गुणनी अनुमोदना. For Private and Personal Use Only मार्च - २०१३ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरणिकमुनि रास विमल विमलमति दायका, समरूं सारदमाईजी, गाउं अरणक मू(मु)निवरु, रसिक सू(सु)णउ चिति लाईजी. १ टक।। चिति लाय जेणि सहिउ परीसह, ऊहन अग्नि खमि आकरउ, पहिलू ते सिथिल थयउ प्रमादई, चारित्रआवरणिं धरिउ. २ तस चरित आखउं बुधिमा जनि, प्रेम धरी सुखदाइका, अहो साधुनइ गुणइं रमउ रंगई, विमल विमल मतिदायका, ३ तगरानगरी सोहामणी, रिद्धि-समृद्धि-विसालोजी, वासि वसि विवहारीया, सूखीया अतिचउसालोजी. ४ चउसाल तिहां कणि रहि सुंदर-दत्त सेठ मनोहरूं, तस सार रूपि भार्या भद्रा, ते नामि सुखकरूं. ५ संसारनां सुख विलसतां लहि, पुत्र मनुहर कांमिणी, कुमर अरणक चतुर सहिजई, तगरांनगरी सोहामिणी. ६ तिणि पुरि श्रीगुरू आवए, साधतणइं परिवारिंजी, दरिसन देखवा अलिजया', लोक सवे सुविचारिंजी. ७ सुविचार सेती दत्त गृहपति, जाइ मुनिनि वांदवा, सुभ भाव आंणी सुणी यांणी, थयउ कर्म निकंदिवा. ८ संवेगरंगई नारि सुतसिउं, लीयइं चारित भाव ए, गुरूराज साथि विहार करतो, तिणि पुरि श्रीगुरू आव ए. ९ दत्त-मुनि करि गोचरी, लई सुधउआहारोजी. दोष बइतालीस टालतउ, पालई पंच आचारोजी. १० For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 6 " मार्च - २०१३ त्रु.॥ आचार पालई सूत संभालई, पुत्र ऊपरि प्रेम ए, मीठई रे मेवई आणि पोषइं, तीन वारसू खेम ए. ११ बहु सरस रस वि स्वादि व्यंजन, विहरी दीयइं खप करी, फासू रे पाणी जाणि देवई, दत्त मुनि करि गोचरी. १२ इम पिता तस पोषए, दिन प्रति ऊत्तम रीतइंजी, भिक्षा काजि भली परि, साथि न तेडि प्रीतिइंजी. १३ प्रीतिसिउं ते वधिउ सुभ परि, योवनवइं आविउं जिसइं, तव अणष(स) करि केई साधु तससिउं, किसिउं पोषइं नव रसइं. १४ ए तरुण तनि सब काजि समरथ, वृद्ध तात विपोष ए, दाखिण' लगई नवि कोई जंपि, इम पिता तस पोष ए. १५ दूहा।। दत्तरिषीसर रोग वसि, समाधिपणि करि काल, पुण्य लगइं सुभ गति लहि, जिहां कणि सुख-चिरकाल. १६ राग-मारूणी इम को न जावि रे ए देसी।। पिता मरण पामइं अरणकरिषि, अणुरति' करतो चित्तइंजी, हा! हा! पिता परलोकि सिधायउ, इम करवू दुख पत्तइंजी. १७ तातजी आखउ रे कोई मतिपरपंच, सुभ गति भाखउ रे, इणि नवलइ जोवनवेसि, किम संजम पलसइं तुम पाखइं. १८ मुझसिउं कीधी वंच (आंकणी) सरस कवलि करी मुजनइं पोषिउं, बालपणा लगई आजोजी, भिक्षा काजि न भमवा दीधउ, सारंता सवि काजजी. १९ तातजी आखउ रे कोई... For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - २६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीतलवचनि सीखामण देता, बपुर * वचनि ऊल्हासिजी, ते गुण खण एक मझ नवि वीसरि, सुखि रहितउ तुम्ह पासिजी. २० तातजी आखउ रे कोई... ४७ नेह लगाई गया विदेसि, ते दुख रिदय न मायोजी, खिणि- खिणि रोव नेह धरीनइं, मुखि बोलितउ तायोजी. २१ ताजी आखउ रे कोई... भद्रा कोमल वचन पालई, किसिउ धरि वच्छ ! दुखोजी, ए संसार असार जिणिदं कहिउ, संयमथी हुय सुखोजी २२ ताजी आखउ रे कोई... 7 तेणि वचनइं गाढउं ऊवसमीयउ रहि सदा गुरूचरणइंजी, भई गुणि आगम मनि भावई, संयमधुर ऊद्धरणइंजी. २३ तातजी आखउ रे कोई... ।।राम-गोडी || || रामचंदकि वागि चंपउ मुरि रहिउरी-ए ढाल ।। एक दिनि भिक्षा काजि, साथि लीयु मुनि तांणी, कसिउं करि तव सोय, जउ क्षुधा पीडइं प्रांणी. २४ कोमलकाय प्रधान तव, अरणकमुनि निकसिउ, ग्रीषम-दिन तपि सूर, तावड करि ते विकसिउं. २५ वाइ लूय अपार तिणि, तरसिउ थयउ ताथइं, सूकई रसना तालूं, अधरपल्लव तिणि साथइं. २७ वेणु जलई जिउं अग्नि, पाऊ न मूंकिउ जाइ, खिणि- खिणि थाइ सयर, मीन पडिउ थलदाई. २८ साधु थविर हुंता जेह, आगिइं वही गया खिणमि, नव जोयुं फरि कांई, पाछलि मुनिनि तिणिमि. २९ मुनि अरणक तिणइ, धुपि संतापिउ इम चेतइ, इणि मारग किम जाये, चरण जलि सही रेति. ३० उत्साहपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ मार्च - २०१३ धन ! धन ! मोरो तात, जिणि एतादिन पालिउ, नवि जाणिउ कोई दुख, बहु जतनइं संभालिउ. ३१ करता अणखि केई साध, ते वयरमुनि अब बालिउ, वसतिथी काढिउ आज, इणि वेला परजालिउ. ३२ शनि शनि भरतउ पाय, आइ वीसामो लीधउ, रद्धिमंत घरि उच्छांह, पामी कारिज सीधउ. ३३ ढाल-४।। रबारी के छोहरा फाग।। तिणि समई रमणी सेठ की, आई गउखि निहालि रे, सुंदर मुनि देखि खडउ, कांमि करी चित चालइ रे. ३४ मनमोहिउ मुनि देखिनइं, रूपि रतिपति जाणुं रे, . रंग लागउ तिणिसिउं भलउ, ए ए काम विन्नाणुं रे. ३५ मनमोहिउ मुनि... निज दासी तेडी करी, चतुरपणइं सीखाई रे, जाइ मुनि तेडु ईहां, होवि प्रीति सवाई रे, ३६ मनमोहिउ मुनि.. गई दासी ऊतावली, आणिउ मुनि घरमांहि रे, पडिलाभई ललनां तदा, मोदक अधिक ऊछांहि रे. ३७ मनमोहिउ मुनि... देई दानसु मनपूरई, लोचन मांडी निरखि रे, भाव जणावि आपणउ, मुनि देखी दिल हरखि रे. ३८ ___ मनमोहिउ मुनि... वनिता करि भली वीनती, आगइ रही करजो रे, काहु करउ तप दोहिलउ, जोविनवई एह खोडि रे. ३९ मनमोहिउ मुनि... रहउ इणि मंदिरि मुनिवरू, भोगवो उत्तम-भोगा रे, जोवि(व)न लाहउ लीजीयइ. हम-तुम भला संजोगा रे. ४० मनमोहिउ मुनि... For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ हम पति रहिउ बिदेस ति, छोरी नेह का पासा रे, रहुं एकेली भुवनमई, पूरि(रो) हमारी आसा रे. ४१ मनमोहिउ मुनि... एहु कथन ऊवेखउ मा, देखु हु चिति विचारी रे, तन-धन ए सब ताहरउ, जाऊंगी बलिहारी रे. ४२ मनमोहिउ मुनि... सूणी सराग ब(व)चनि तिस्यां, काचउ कुंभ जिउं भीनो रे, अगनि द्रढ रहि मीण किसिउं, बोल भलउ मुनि दीनो रे. ४३ ___ मनमोहिउ मुनि... थयु ऊसन्नउ व्रत छोरी, लाजकाणि सवि भागी रे, मोहनगरीवासी मुनई, पुण्यदिसी इसी जागी रे. ४४ मनमोहिउ मुनि... गीत-विनोद-कथारसि, भोगवि भोग सुरंगा रे, विगति लहि नवि दिवस की, खेलई बसंत सुचंगा रे. ४५ मनमोहिउ मुनि... कस्तूरी कुरु-कूमकूमां, केसर-चंदन-केलि रे, नाखइं पिचरकि' भरि-भरी, ऊडइं गुलालसु मेलि रे. ४६ मनमोहिउ मुनि... ग्रीषमरति गुण गुरवइं२. प्रीणइं प्रीति प्रधान रे, खेलि खडोखली जल भरी, कुसुम सेजि सुविधान रे. ४७ मनमोहिउ मुनि... वरिषा वनिता परिसेवइं, राजई केकीनादो'२ रे, विरह गयउ घन गाजतई, नेहिं किसिउ हठवादो रे. ४८ मनमोहिउ मुनि... तुरत हेमालउ हरखसिउं, सेवइं कुमर जूवानो रे, नाही रहि थिर चिति करी, उस कहि सुनिदांनो रे. ४९ मनमोहिउ मुनि... For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० मार्च - २०१३ ||ढाल-पांचमी।। ।राग-टोडी।। धन्यासिरी-एहनी देसी।। पाछलि खबरि करी घणी रे, साधई न दीठउ सोय, पइंठउ एकांति घरि जई रे, कहू तस सुधि किम होयो रे. ५० अरणक चींतवइं हा! हा!, कूण की— काजो रे, संयम छोडीयुं लागी, कूलमई लाजो रे. ५१ ___ अरणक चींतवई... (आंकणी) सु(शु)द्धि विना भद्रा तदा रे, दुख धरती दिन राति, अरणक-अरणक मूखि जपइ रे, जोती फिरइं तिणि धाति रे. ५२ अरणक चीतवइं... सुतवियोगि गहिली थई रे, दीसि अंग विपरीत, कर्म तणी पाडूई१६ रे, जीव न चेति विदीतो रे. ५३ अरणक चीतवई... बालक जे जे नाहनडा रे, देखी रूप-सरूप, जाई कहि मुगधपणई रे, ए मुझ सूत अनूपो रे. ५४ अरणक चींतवइं... विधि वसि विपरीत देखिनइ रे, हासी करि सविलोक, नवि जांणि भोला इसिउ रे, करमबंधन फल रोको रे. ५५ अरणक चींतवई... बहु कालि आवी तिस्यइं रे, तिणि आवासनिं हेठि, गोखि बिठां अरणकि इसी रे, दीठी जननी द्रेठी रे. ५६ अरणक चीतवइं... मुझ विजोगि गहिलीई रे, मात किसो करइ एम, एह अकारिज मि करिउ रे, कष्टि८ पड़ी लहं प्रेमई रे. ५७ अरणक चीतवइं... रयणचिंतामणि व्रत भलू रे, हारिउ काचनि काजि, काया पोष करि इसिउ रे, मलिन करिउ जीव साजि रे. ५८ अरणक चीतवई... For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१ श्रुतसागर · २६ हा! गुरू सीख न मइं वही रे, नवि पालिउ आचार, दिन गया अकीयारथा रे, करि पछतायु कुमारो रे. ५९ अरणक चीतवइं... ढाल-छट्ठी।। ।।ऊच्छरपणीनी।। तुरत ऊतरिउ गुखथी९ अरणक, मातनि चरणे लागोजी, दया लगई लोचनि जल-भरतउ, मोहनो बंधन भागोजी. ६० गद-गद वांणी पि एणी परि, ते हुं अरणक मायाजी, तुज ऊदवेग करिउ एतादिनि, हवि मुज करहु पसायाजी. ६१ नेह सलूणे" नयणे निरखिउ, भद्राई निज-पुत्तोजी, आलिंगिउ हीयडइ अति-भीडी, जगि उपाहनो तुरतोजी. ६२ ठामि आविउं चित खिणमि हरखि, बोलि माता प्रेमिंजी, भलि मिलिउ तुं पुत्र अनोपम, एता दिनि रहिउ केमइंजी. ६३ कही अरणकि तव वात आपणी, भोग-सरूप विचारजी, फिरि कही माता निसुणउ जाया, आदरउं संयमभारजी. ६४ व्रतथी चूकउ दिन एतालगि, विषय कलणि अविचारइंजी, विण चारित्रि वच्छ! परिभवि पांमिसि, दुक्ख अधिक संसारइंजी. ६५ ढाल|| वीर वखाणी रांणी चलणाजी ए देसी।। मात सुणउ अरणक कहिजी, नवि पलि मई व्रत एह, तुं कहितउ अणसण ग्रहिउंजी, व्रतभंगि जीविउं सिउं देहि. ६६ मात सुणउ अरणक...(आंकणी) अगनिपरवेस भलउ जीवनिजी, व्रत नवि खंडयई जांणि, विष थकी विषय विरूआ२१ कह्याजी, ए अरिहंतनी वांणि. ६७ मात सुणउ अरणक... माती जे कहउ ते तिसिउंजी, सीलभंगि हीला साच, लाज आवि पणि मझ हविजी, मुनि रहितां सुण उवाच. ६८ . मात सुणउ अरणक... For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जणु (ण) णी कहि वधिए भलीजी, आवउ हवि मुझ साथि, सीख लही रमणी तणीजी, जई लीयइ दीख गुरुहाथि. ६९ मार्च २०१३ सिद्धगिरि चडि अणसण लीयुं रे, ऊच्चरी महाव्रतभार, पाप आलोयां लागां जिस्यांजी, खामीय जीव सवि-सार ७० मात सुणउ अरणक... सिला तल पुंजी ओघि करी, सयन करिउ ग्रीषमकालि मांखण परि वीथरिउ तिस्यइंजी, भमरभोगी सूकमाल. ७१ मात सुणउ अरणक... ध्यानबलि काल करी अवतरिउजी, सोहमसूर खिणमांहि, भोगवि पुण्यफल प्रगडांजी, अरणक साध उच्छांहि. ७२ - For Private and Personal Use Only मात सुणउ अरणक... ||ढाल-८|| || राग-धन्यासी ।। धन-धन अरणक मुनिवर जाणीयइं, साचउ साहसधीरोजी, ऊन्ह परीसह दुक्कर ऊद्धिरिउ, कर्मखपावा वीरोजी. ७३ मात सुणउ अरणक... धन-धन अरणक... भद्रा साहुणि अणसण आराधी, पुहती स्वर्गविमानिजी, तारिउ निज - सूतनि प्रतिबोध दे, सुखी कीधउ सुनिंदानइंजी. ७४ धन-धन अरणक... एणि परि संयम गुणि चित लाईयां, पालीजि (जी) सुभ सीलोजी, परीसह सहीइं थिर मनि सर्वदा, जिम पामी जई लीलोजी. ७५ धन-धन अरणक.. श्रीअंचलगच्छि कमलदे (दि) वाकरूं, जंगम जूगपरधांनोजी, श्रीकल्याणसागरसूरीश्वर चिर जयु, दिनि-दिनि अधिकि वानोजी. ७६ धन-धन अरणक. "... Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर - २६ तस पखि वाचक चतुरशिरोमणी, विवेकशेखरगणिचंदोजी, तस शिष्य विजयसे (शे) खर एणी परि, कहि अरणकचरित आणंदोजी. ७७ धन-धन अरणक... भणउ सुणउ चतुरनर भावसिउ, साध तणा गुण रंगइजी, सफल जंवारउ" थाय तेहनउ, पांमइ सुख सही अंगइंजी. ७८ ।। इति श्रीअरणकमुनि रास संपूर्ण । 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दार्थ 1 सागरचंद रास १. सहाय, २. प्रगट, ३. रसिक, ४. कमळ, ५. आनंद पामवु, ६. आश्चर्य, ७. कौतुक, ८. जल्दी, ९. सत्वहीन, १० चितामां प्रवेशी बळी मरवुं, ११. भाग्य, १२. विभासण, १३. साथे १४ स्थान, १५. क्रीडा, रमत, १६. कहेयुं, १७. दाव, १८. दानादि सुकृत कार्य, १९. समारंभ, आनंदोत्सव २० सुंदर स्त्री, २१. शरणाइ, २२. उत्तम, २३. मोढुं उतरी जनुं २४. सैन्य, २५ ठपको, २६. सहन करे, २७. कलंक, २८. समजावयुं २९. चूप, खामोश ३०. बाण, ३१. भाग्यवान, ३२. खराब, ३३. [घात ? ], ३४ झरूखो, ३५ नठारा, ३६. बच्चे-बच्चे, ३७. स्मशान, ३८. चिता, ३९ प्रसिद्ध ४० प्रचुर [ पुण्यप्रचुर ], ४१. शत्रु ५३ For Private and Personal Use Only धन-धन अरणक... अरणिकमुनि रास १. उत्साहपूर्वक, २. दाक्षिण्य, ३. आसक्ति, ४. शरीर, ५ माछली, ६. रोष, ७. उत्साह, ८. खोड ९. भ्रष्ट [ ओसन्न ], १० ख्याल न रहेनुं, ११. पिचकारी, १२. गौरव, १३. केकारव, १४. शियाळो, १५. घेली, १६. अशुभ, १७. नजर, दृष्टि, १८. दुःखमां, १९ झरुखो, २०. सुंदर, २१ विरूप, २२. विस्तार, २३ जन्म, अवतार. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કેટલીક ઐતિહાસિક લઘુ-કૃતિઓનો સાર હિરેન દોશી ઐતિહાસિક કૃતિઓની શોધમાં કેટલીક લધુ કૃતિઓ મળી આવી, સંપૂર્ણ કૃતિને પ્રકાશિત કરવા માટે સમય ઘણો માંગી લે, પ્રાયઃ આવી લઘુ કૃતિઓમાં નાયકશ્રીઓના ગુણાલેખન, એમની ચારિત્ર-પાલનની સજ્જતા, સ્વાધ્યાય-રૂચિ, તેમજ તત્કાલીન શાસક અને સંધ ઉપર પડેલા પ્રભાવનું વર્ણન મળી આવતું હોય છે. એ વર્ણનની સાથે-સાથે એમનાં માતા-પિતાનું નામ, જન્મ-સ્થાન, દીક્ષા, પદારોહણ, જેવી કેટલીક ઐતિહાસિક નોંધ મળી આવતી હોય છે. કૃતિમાં આવી ઐતિહાસિક-નોંધ કૃતિના સાર રૂપે અહીં રજુ કરી છે. અક્ષયચંદ્રસૂરિ ભાસ', ગાથા - ૯, કર્તા- અજ્ઞાત. આ કૃતિ અનુસાર એમના પિતાનું નામ સાહ સહસમલ હતું. આગળની પાંચ ગાથાઓમાં આચાર્ય મહારાજના ગુણોનું વર્ણન મળે છે. વર્ણનમાં મુખ દીઠે સુખ ઉપજે, અને ગુણના દરિયા, જ્ઞાને ભરીયા જેવી પ્રાયઃ પ્રચલિત ઉક્તિઓનો કવિએ ઉપયોગ કર્યો છે. રતલામનો સંધ અક્ષયચંદ્રસૂરિ મ. સા. ને ચાતુર્માસ માટે વિનંતી કરે છે. એ વિનંતિને સ્વીકારી આચાર્ય મહારાજ વિ. સં. ૧૭૬૧ નું ચોમાસું રતલામમાં કરે છે. શક્યતા છે, કે આ ભાસની રચના રતલામમાં થઈ હોય ... અક્ષયચંદ્રસૂરિ ભાસ', ગાથા ૭, અજ્ઞાત. કૃતિ અનુસાર એમના પિતાનું નામ સાહ સહસમલ્લ અને માતાનું નામ સંપૂરદે હતું. ખંભાતના સોની તિલકસીએ વિ. સં. ૧૭૫૦ના જેઠ સુદ ૧૦ના ખંભાતમાં આચાર્ય અક્ષયચંદ્રસૂરિ મ. સા.ના પદ મહોત્સવનો લાભ લીધો હતો. આ કૃતિમાં પ્રધાનરૂપે ગુણવર્ણન મળે છે. પાસચંદ્રસૂરિ ભાસ', ગાથા - ૭ કર્તા – મુનિ ખુશાલ - ભાસમાં જણાવ્યા અનુસાર મરુધરના હમીરપુરમાં રહેતા પોરવાડ જ્ઞાતીય સા. વેલાના પત્ની વિમલાદેની કુખે એમનો જન્મ થયો, સં. ૧૫૪૭માં એમણે સાધુરત્ન પાસે દીક્ષા લીધી, અને સં. ૧૫૬૫ માં એમણે ક્રિયોદ્ધાર કર્યો, દેવની સહાયથી વરસાદ વરસાવી જિનશાસનની પ્રભાવના કરી. (આચાર્ય પાર્શ્વચંદ્રસૂરિ For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મૃતસાર - ર૬ મ. સા નો જન્મ વિ. સં. ૧૫૩૭ માં થયો હતો. અને સં. ૧૫૯૫ માં એમણે નાગોરમાં ઉપાધ્યાય પદ, અને વિ. સં. ૧પ૯૯માં ભટ્ટારક પદ પ્રાપ્ત કર્યું હતું. એમણે તંદુવૈચારિક પન્ના, પ્રશ્નવ્યાકરણ, સૂત્રકૃતાંગ, તેમજ જંબૂચરિત્ર પર બાલાવબોધની રચના કરી હતી. એમનો સ્વર્ગવાસ વિ. સં. ૧૬૧રના માગશર મહિનામાં જોધપુરમાં થયો હતો. એમનાથી વિ. સં. ૧૫૭૨માં પાયચંદ મત નીકળ્યો.) શુભવર્ધનગણિ નિર્વાણ ગીત, ગાથા - ૧૫, કર્તા – અજ્ઞાત. ગીતમાં જણાવ્યા અનુસાર શુભવર્ધન ગણિને છ વિગઈનો સંપૂર્ણ ત્યાગ હતો, એમના જીવનકાળ દરમ્યાન એમણે બત્રીશ હજાર નવા ગ્રંથોની રચના કરી. એમનો કાળધર્મ વિ. સં. ૧૫૩૭ના ચૈત્ર શુદિ-૨ ના સોમવારે કુણગિરિ (કુણઘેર)માં થયું હતું. નિર્વાણ-ગીતમાં કવિ શુભવર્ધનગણિના કાળ-પ્રસંગે વાતાવરણની ગમ-ગીનીને ૧રમી ગાથામાં આ રીતે જણાવે છે. પંથીડા પૂછઈ નગર નિવાસીને, ઇહા હાટડે કાઈ હટતાલ, શ્રીગુભવર્ધન ગરુઆ-ગુરુ તણ, તેહનું પહુત હો કાલ. રાજસાગરસૂરિ નિર્વાણમહોત્સવ સઝાયર, ગાથા-૧૫, કર્તા-રત્નસાગર. ગુજરાતના સીહપુર(પ્રાયઃ આજનું સિદ્ધપુર) માં રહેતા ઓશવંશીય સાદેવીદાસના પત્ની કોડાઈની કુખે વિ. સં. ૧૯૩૮ના ફાગણ સુદિ બીજના દિવસે એમનો જન્મ થયો, વિ. સં. ૧૬પ૧માં એમણે દીક્ષા લીધી, વિ. સં. ૧૯૮૬ના જેઠ સુદિ-૧૪ શનિવારે અમદાવાદના મહાવીર સ્વામીના દેરાસરમાં ગચ્છનાયક પદે બિરાજિત થયા, આચાર્ય રાજસાગરસૂરિ મ. સા. ના ઉપદેશથી શેઠ શાંતિદાસે સાતેય ક્ષેત્રમાં ધન વાપરી જિનશાસનની અનેરી પ્રભાવના કરી. વિ. સં. ૧૭૨૦ના ભાદરવા સુદિ-૭ ના દિવસે અમદાવાદમાં એમનો સ્વર્ગવાસ થયો. શેઠ શાંતિદાસના પરિવારજનો સહિત અમદાવાદના શ્રીસંઘે આચાર્ય ભગવંતના નિર્વાણ નિમિત્તે આઠ દિવસનો મહોત્સવ કર્યો, આ કૃતિમાં વિ. સં. ૧૬૯૬ના જેઠ મહિનામાં આચાર્ય રાજસાગરસૂરિ મ. સા. ને ગચ્છનાયક પદની સ્થાપનાનો ઉલ્લેખ મળે છે. જ્યારે તિલકસાગરકૃત રાજસાગરસૂરિ રાસમાં આજ સમયે આચાર્ય પદ પ્રાપ્ત થયાની નોંધ મળે છે. * જૈન ઐતિહાસિક ગૂર્જર કાવ્ય સંચય પેજ નં. ૫૦, તિલકસાગરફત રાજસાગરસૂરિ નિર્વાણરાસ, ઢાળ-૫, કડી-૩થી For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ વિશાલ સોમસૂરિ ગુરુ-ગુણ ભાસ”, ગાથા - ૯, કર્તા - હર્ષવિમલ. ભાસમાં જણાવ્યા અનુસાર વિશાલ સોમસૂરિ સાત સંતોષીની પત્ની નારંગદેની કુક્ષિએ જમ્યાં, વિરાટનગર એમનું જન્મ-સ્થાન, અને સંસારી અવસ્થાનું નામ વિસરામ હતું. વિશાલ સોમસૂરિએ બાલ્યવયમાં વિમલસોમસૂરિ પાસે દીક્ષા ગ્રહણ કરી, વિશુદ્ધ કોટિનું ચારિત્ર પાળ્યું. ઈડરમાં પંડિત વિશાલ સોમને આચાર્ય પદ આપવામાં આવ્યું, ઈડરના સાહ સહિમલે પદ સ્થાપનાનો મહોત્સવ કર્યો. (વિક્રમ સંવત ૧૭૦૮માં આસો સુદ-૧ના શુક્રવારે જગાણા ગામે આચાર્ય વિશાલસોમસૂરિ મ. સા. ની નિશ્રામાં સંઘમાણિક્યવિજયે પોતાના શિષ્ય સુમદ્રમાણિક્ય અને રાજમાણિક્યના પઠન માટે ભગવતીસૂત્રની પ્રત લખી, તેમજ વટપદ્રનગરમાં વિ. સં. ૧૭૪૯માં કાર્તિક વદ-૧૦ને બુધવારે વિશાલ સોમસૂરિ મ. સા.ના શિષ્ય ૫. સિદ્ધસોમ ગણિના અધ્યયન માટે મુનિ રામવિજયે જ્ઞાતાધર્મકથાંગસૂત્રની પ્રત લખી.) વિજયધર્મસૂરિ ભાસે, ગાથા - ૧૧, કર્તા - મોહન. ભાસ અનુસાર તેઓશ્રીનો જન્મ મેવાડના રૂપનગરમાં રહેતા ઓશવાલ વંશીય પ્રેમચંદ સુરાણાની પત્ની પાટમદેની કુખે થયો, વિજયધર્મસૂરિ તપાગચ્છમાં વિજયપ્રભસૂરિ મ. સા. ની પરંપરામાં વિજયદયા સૂરિ મ. સા. ની પાટે પધાર્યા, એમણે ભુજના રાજાને પ્રતિબોધ પમાડી, મધ-માંસાદિ ત્યાગ કરાવી, જિનધર્માનુરાગી બનાવ્યો હતો. (ભટ્ટારક વિજયદયાસૂરિએ વિ.સં. ૧૮૦૩ના માગશર સુદ પાંચમના દિવસે ઉદયપુરમાં આચાર્ય પદવી આપી, વિ. સં. ૧૮૦૯માં મારવાડના કાછોલી ગામમાં તેમને ગચ્છનાયક પદે સ્થાપ્યા.) વિજયાણંદસૂરિ ભાસ, ગાથા – ૯, કર્તા - ઋદ્ધિવિજય. ભાસ અનુસાર મારવાડમાં આવેલા રોહ ગામમાં વિ. સં. ૧૬૪૨માં પોરવાડ જ્ઞાતીય સા. શ્રીવંતની પત્ની સિણગારદે કે સાંણગારદેની કુક્ષિએ એમનો જન્મ થયો, તેમનું મૂળ નામ કલો હતું, તેમણે વિ. સં. ૧૯૫૧માં માતા-પિતા, ચાર ભાઈ તેમજ ફોઈબા સેંજબાઈ સાથે જગદ્ગુરુ આચાર્યશ્રી વિજયહિરસૂરીશ્વરજી મ. સા. દીક્ષા આપી, દીક્ષા બાદ એમનું નામ મુનિ કમલવિજયજી રાખ્યું, અને એમને શ્રી સોમવિજયજી મ. સા.ના શિષ્ય બનાવ્યા. મુનિ કમલવિજયજીને વિ. સં. ૧૯૭૦માં આચાર્ય વિજયસેનસૂરિએ પંડિત પદ આપ્યું, અને વિ. સં. ૧૭૭૬ના પોષ સુદિ ૧૩ના દિવસે વિજયતિલકસૂરિએ For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ સિરોહીમાં આચાર્ય પદ આપી, તેમનું વિજયાણંદ(વિજયાનંદ)સૂરિ નામ પાડવામાં આવ્યું, આચાર્ય મહારાજના પદ મહોત્સવનો લાભ સંઘવી મેધાજલે લીધો, મહોત્સવમાં સંઘવી મેધાજલે દરેક ઘરે પીરોજીની પ્રભાવના કરી, ભટ્ટારક વિજયાણંદસૂરિ મહારાજ વિ. સં. ૧૯૧૧ના આષાઢ વદિ ૧ના મંગળવારે પ્રાતઃ કાળે ખંભાતમાં સ્વર્ગવાસી થયાં. શીલવિજય ગણિ નિર્વાણ ભાસ, ગાથા - ૧૭, કર્તા - કલ્યાણચંદ. ઓશવાલ વંશીય નાહર ગોત્રીય સાહ ઉદાના પત્ની ઉછરંગદેની કુખે એમનો જન્મ થયો હતો, ગણિ મેઘવિજયની પ્રેરણાથી વિ. સં. ૧૯૩૬માં શ્રી વિજયહીરસૂરિ મહારાજ પાસે બાળ વયે ચારિત્ર ગ્રહણ કર્યું, અને એમને ઉદ્યોતવિજયજીના શિષ્ય બનાવ્યા, દીક્ષા લીધા બાદ આચાર્ય વિજયસેનૂરિ મહારાજ પાસે વિશિષ્ટ તપ સાથે યોગ ક્રિયાદિનું આરાધન કર્યું, આચાર્ય વિજયસેનસૂરિ મહારાજે એમને પંડિત પદ આપ્યું, અનુક્રમે વિહાર કરતા એ મહાપુરુષને આયુષ્યની અવધિનો અણસાર આવી જતાં સકળ જીવ-રાશી સાથે મિથ્યા-દુષ્કૃત કરી, ગુરુભગવંતના શ્રીમુખે અણસણ આદર્યું, અંતે, વીરમપુર નગરમાં વિ. સં. ૧૬૪૬ના ચૈત્ર વદિ - ૯ ના દિવસે એમનું નિર્વાણ થયું, પ્રત-વિગત ૧. પ્રત નંબર :- ૪૩૭૦૭ પત્રના અંતે શ્રાવિકા રાજી પઠનાર્થે આવો ઉલ્લેખ મળે છે. ૨. પ્રત નંબર :- ૪૪૧૮૫ ૩. પ્રત નંબર :- ૫૧૩૪૧ ૪, પ્રત નંબર :- ૫૧૦૬૫ ૫. પ્રત નંબર :- ૨૯૮૪૦ ૬. પ્રત નંબર :- ૨૮૩૯૬ ૭. પ્રત નંબર :-- ૩૦૬૫૯ For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय प्राचीन विद्यापीठों की संस्कृति और चीनी यात्री डॉ. उत्तमसिंह प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा भारत आने वाले चीनी यात्रियों का रहा है । जबसे चीनवालों को बौद्ध धर्म का उपदेश मिला तबसे चीन के यात्री भारतवर्ष की ओर तीर्थयात्रा करने आते रहे। इन यात्रियों में फाहियान, ह्वेनसांग (सुयेनच्वांग ) एवं इत्सिंग के नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा और भी कई चीनी यात्री समय-समय पर भारत आते रहे हैं। यहाँ प्रमुखरूप से फाहियान, ह्वेनसांग एवं इत्सिंग के यात्रा विवरण तथा उनके द्वारा वर्णित तत्कालीन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है। फाहियान गुप्तकाल में भारत आया तथा ह्वेनसांग सम्राट् हर्ष के समय में। इनके बाद लगभग तीन सौ वर्षों के अन्तराल इत्सिंग एवं कुछ अन्य यात्री भी भारत की यात्रा पर आये । इसमें संदेह नहीं कि धर्म की पिपासा बड़ी प्रबल होती है, वह अर्थ की पिपासा से, 'जिससे प्रेरित होकर आजकल लोग एक देश से दूसरे देश में व्यापार के उद्देश्य से जाते हैं कहीं प्रबल होती है। जिस समय ये लोग भारत आये उस समय मार्ग अत्यन्त भयावह और अनेक कण्टकों से पूर्ण होते थे । इन दुर्गम मार्गों को पार करना कोई सरल काम नहीं था। वे यहाँ किसी सुख विशेष के लाभ के लिए नहीं आये। उनके अन्तःकरण में तो केवल धर्म का पवित्र भाव था । और इसी पवित्र भावना के बल पर भयावह दुर्गम मार्ग की कठिनाईयों को झेलते हुए यहाँ तक पहुँचे जो अलौलिक और प्रशंसनीय साहस का उदाहरण है। दोनों देशों के बीच मधुर और उदात्त सम्बन्धों को बयाँ करने वाली यह यात्री - कथा जैसी सूचक है वैसी ही यह भारतीय संस्कृति की सात्त्विक और उच्चस्तरीय भूमिका की भी द्योतक है। बौद्ध धर्मावलम्बी चीन के लिए भगवान बुद्ध का जन्मस्थान 'भारतवर्ष' परम तीर्थ के समान था। चीनी यात्रियों का मानना था कि जब तक भारत में बौद्ध धर्मावलम्बी राजाओं का शासन है तब तक ही उन्हें भारत में अच्छी सुविधाएँ मिलने की संभावना है। इसके बाद हिन्दू धर्मावलम्बी शासकों के राज में शायद उतना सहयोग और सुविधाएँ न मिलें। किन्तु गुप्तकाल में फाहियान जब भारत आया तो उसने महसूस किया कि हिन्दू धर्मावलम्बी राजा भी चीनी यात्रियों को सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं और आदर-सत्कार भी पहले जैसा ही करते हैं। भारत में तो सर्वधर्म के साधुओं को सर्वकाल में भावभरा आदर-सत्कार मिलता रहा है। यहाँ आनेवाले यात्रियों के साथ वर्ण, देश, गोत्र या धर्म सम्बन्धी किसी प्रकार का भेद-भाव कभी नहीं हुआ । यहाँ तो सर्वधर्म समभाव की भावना जन्म-जन्मान्तर से चली आ रही है । यहाँ के वासियों का ध्येय ही 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' रहा है। For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर • २६ चीनी यात्रियों का ध्येय : चीनी यात्रियों के प्रमुख ध्येय थे- तथागत भगवान बुद्ध की जन्मस्थली के दर्शन करके पवित्र-पावन होना। भगवान बुद्ध के उपदेश जिस भाषा में संगृहीत थे उस भाषा का अध्ययन करना | बौद्ध ग्रन्थों की प्रतिलिपि तैयार करके तथा मूल ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों का संग्रह करके उन ग्रन्थों एवं बौद्ध प्रतिमा आदि जो भी धार्मिक सामग्री मिले उसे अपने साथ लेकर जाना । ___ इन वस्तुओं का संग्रह करके ले जाने का मूल उद्देश्य इन यात्रियों का अपने देशवासियों के लिए था। इनकी प्रसन्नता तो इस कार्य की सिद्धि में ही समाई हुई थी। परन्तु यह कार्य इतना सरल भी नहीं था। चीन से भारत तक चलकर आना जीवन-मरण का खेल था। धधकते रेतीले रास्ते, भयानक जंगल, पथरीले रास्ते और हिमाच्छादित दुर्गम गिरि-शिखरों को पार करना कोई साधारण काम नहीं था। भयानक जंगलों में बसने वाले हिंसक प्राणियों का सामना करने की हिम्मत और शक्ति जिसमें हो वही महात्मा इस दुर्गम सफर को तय करने का साहस जुटा सकता था। भारत आनेवाले ये चीनी यात्री ऐसे ही महात्मा थे। इनके पुरुषार्थ से संपूर्ण विश्व के इतिहास का वास्तविक गौरव बढ़ा है। ईसा की चौथी से सातवीं सदी के बीच ऐसे अनेक चीनी यात्री हिन्दुस्तान आये। इनमें से कितने ही यात्री इस भव्य साहस में अपने प्राणों की आहूति देकर धर्मवीरों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करा चुके हैं। जो प्रमुख विद्वान् भारत पहुँचे उनके विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ निम्नोक्त हैं : फाहियान : ई. सन् ३९९ में छह साथियों के साथ बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक की खोज में फाहियान भारत की यात्रा पर निकला। इसने चीन के चांगगान नामक स्थान से यात्रा आरम्भ की। निरन्तर प्रवास के बाद समुद्री एवं रेगिस्तानी दुर्गम रास्तों को पार करते हुए कठिन यात्रा पूरी कर यह मित्र-मण्डली पेशावर पहुँची। परन्तु यह मित्र-मण्डली प्राकृतिक प्रकोपों से अखण्डित न रह सकी। पेशावर पहुँचने से पहले ही इस दल का एक यात्री बर्फीले तूफान में मारा गया; तीन यात्री वापस चीन लौट गये। फाहियान और उसका एक साथी सहित छह में से सिर्फ ये दो लोग ही भारत तक पहुँचने में सफल हुए। फाहियान भयावह मरुस्थल यात्रा का वर्णन करते हुए लिखता है कि-मरुभूमि में भयंकर राक्षस फिरा करते हैं, गर्म हवा चलती है। वहाँ जाकर, उनसे कोई बचकर नहीं आता! न ऊपर कोई चिडिया उडती है और न नीचे कोई जीव-जन्तु ही दिखाई पडता है! आँख उठाकर जिधर For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ देखो चारों ओर रेत ही रेत! वीरान और सुनसान भूमि! कहाँ जायें कोई मार्ग नहीं सूझता! बहुत ध्यान देने पर भी कोई मार्ग नहीं मिलता! हाँ मुर्दो की सूखी हड्डियों के अवशेष जरूर दिखाई पड़ते हैं! फाहियान ने अपने यात्रा विवरण में मथुरा पहुँचकर वहाँ से भारत का वर्णन करने की शुरूआत की है। वह पाटलीपुत्र भी गया। सम्राट अशोक के महल को देखकर वह अत्यन्त चकित हुआ। विदित हो कि सम्राट अशोक ने कलिंग के युद्ध में हुई हिंसा से द्रवित होकर बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था । उसने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा सहित कई विद्वान् भिक्षुओं को बौद्ध-धर्म-दर्शन एवं अहिंसा के प्रचारार्थ लंका, वर्मा तथा चीन सहित कई देशों तक भेजा था । फाहियान ने तत्कालीन परिस्थितियों का जो वर्णन किया है उसके आधार पर गुप्तकालीन लोकस्थिति एवं विविध परम्पराओं का बोध प्राप्त होता है। इन जानकारियों से हमें एक अति समृद्ध, सुखी और नीतिमान भारत का चित्रण मिलता है। मृत्यु-दण्ड की सजा का अभाव, मदिरा एवं अन्य मादक पदार्थों के सेवन का निषेध, गुरुकुलों में बटुकों द्वारा शास्त्र एवं शस्त्र-विद्या का संयुक्त अभ्यास | आज अत्यन्त सभ्य गिने जाने वाले राष्ट्रों के लिए भी अशक्य माने जानेवाले आदर्श भारत ने गुप्तकाल में ही प्रसिद्ध करके दिखा दिये थे। इस हकीकत का फाहियान ने मुक्त कण्ठ से वर्णन किया है। तत्कालीन भारत में अतिथि-सत्कार एवं भारतीय शिक्षा-पद्धती का वर्णन करते हुए फाहियान कहता है : अहा! भारत में शिक्षा के लिए कितनी सुन्दर व्यवस्था है। गुरु और शिष्यों का सम्बन्ध विश्व-भर के लिए आदर्श है। विद्यार्थी चाहे राजा का लड़का हो अथवा भिखारी का, सबको अध्यापक अपने पुत्र के समान रखता और पढ़ाता है। गुरु उन्हें रात-दिन अपने नियन्त्रण में रखकर उनके जीवन को अत्यन्त उन्नत बना देता है। हमें सब तरह से भारत का अनुकरण करना चाहिए। वह चीन से सर्वथा श्रेष्ठ है। वह अनुकरणीय है और हमारे लिए आदर्श है। जब मैं स्वदेश में था, तब अपने को विनय का पूर्ण ज्ञाता समझता था; किन्तु भारत में आकर मैंने इस विषय में अपने-आप को कोरा अनभिज्ञ पाया। आह! यदि मैं भारत न आता तो, शुद्ध रीति और अपनी अनभिज्ञता दूर करने का अवसर कब पाता। यद्यपि मुझे आते और जाते, दोनों समय भयंकर लुटेरे-दल का सामना करना पड़ा। और मेरी जान भी खतरे में थी, फिर भी भारत विश्व-भर में दर्शनीय और रहने योग्य स्थान है। यदि जन्मभर मनुष्य अध्ययन करना चाहे, तब भी वहाँ की शिक्षा का पार न पावेगा। वहाँ के विहार, विश्वविद्यालय, ग्रन्थालय, चैत्य आदि देखकर ही अनुभव किये जा सकते हैं। वहाँ का समाज अत्यन्त प्रिय मालूम For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ श्रुतसागर - २६ होता है। विदेशियों का जितना आदर-सत्कार वहाँ होता है, उतना इस भूखण्ड में शायद ही कहीं होता हो! वहाँ की उर्वर और समतल भूमि, पहाडी उपत्यका, वनप्रान्त एवं खेतों में लहलाती फसलों को देखकर आँखें अघातीं नहीं। बारी-बारी से सुन्दर ऋतु-परिवर्तन तो वहाँ की अलौकिक ईश्वरीय देन है। भारतवर्ष का वर्णन कहाँ तक करूँ वह तो केवल देखकर ही अनुभव किया जा सकता है। ह्वेनसांग : ___ फाहियान से दो सौ वर्ष बाद एक और विख्यात चीनी यात्री भारत आया, जिसका नाम था ह्वेनसांग। यह चीन देश का एक महान् पण्डित था। भारत की यात्रा करना अति कठिन और जीवन को जोखिम में डालने के समान होने के कारण, अपने देश के एक महान् पण्डित की जिन्दगी को जोखिम में डाला जाये यह चीन के सम्राट् को बिल्कुल मान्य नहीं था। इसलिए ह्वेनसांग को चीन छोडकर जाने की आज्ञा सम्राट ने नहीं दी। लेकिन वेनसांग की भारत यात्रा करने की लालसा अदम्य और अडिग थी। अतः २९ वर्ष की आयु में ई. सन् ६२९ में एक रात को उसने चोरी-छुपे अपना घर छोड़ दिया। चौकीदारों से नजर बचाकर ह्वेनसांग ने चीन की सरहद को पार किया। तीन हजार मील का दुर्गम 'प्रवास करके ई. सन् ६३० में वह गांधार होते हुए काशमीर पहुँच गया। वहाँ उसका खूब आदर-सत्कार किया गया। काशमीर में दो वर्ष रहकर उसने संस्कृत एवं संस्कृत के ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया । वहाँ से ह्वेनसांग भगवान बुद्ध की जन्मभूमि के दर्शन करने हेतु निकला। सम्राट हर्ष की राजधानी में उसका जोरदार स्वागत किया गया। कन्नौज में कुछ समय रहने के बाद वह नालन्दा विद्यापीठ में अध्ययन करने हेतु पहुँचा। नालन्दा उस समय अपनी उन्नति के चरम शिखर पर था। सभी दिशाओं में इसकी कीर्ति-पताका फहरा रही थी। सम्पूर्ण सभ्य समाज में से यहाँ विद्योपार्जन हेतु विद्यार्थी आते थे। शीलभद्र नामक एक प्रखर बुद्धिशाली बहुश्रुत महा पण्डित उस समय इस विद्यापीठ का कुलपति था। नालन्दा में भी ह्वेनसांग का जोरदार स्वागत किया गया। यहाँ उसने विद्योपासना एवं बौद्ध ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने में पाँच वर्षों तक अथक परिश्रम किया। इस पञ्चवर्षीय समयान्तराल में वेनसांग की कीर्ति भारत में इतनी फैली की सम्राट हर्ष ने उसे अपनी राज्यसभा में आने हेतु अनेकबार आमन्त्रण भेजा। भारतवर्ष की प्रशंसा करते हुए वेनसांग कहता है-यहाँ की सभी बातों से मैं मुग्ध हो उठा हूँ! यहाँ की सन्तान पितृभक्त होती है, माता-पिता पुत्र-वत्सल For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દર मार्च - २०१३ होते हैं। गुरु-शिष्यों में अनन्य प्रेम और भक्ति का भाव रहता है। प्रजा राजभक्त होती है। राजा प्रजा की भलाई के लिए कट-मरने को तैयार रहता है। राजाप्रजा सभी में विद्या के प्रति बड़ी अभिरुचि रहती है, कभी कोई राजा सैकड़ों पीठे तैयार कराके अध्यापकों को निमन्त्रित करता है तो कभी कोई राजा राज्य-भर में चैत्य बनवाकर बुद्धिमानों के मन को धर्म की ओर आकृष्ट करता है। उपासना एवं अध्ययन के लिए संघाराम बनाये जाते हैं। किसान अपने खेतों में और व्यापारी अपने जल-पोत अथवा बजडे (बेडे) पर मधुर राग आलापते रहते हैं। कोई भी कष्ट का अनुभव नहीं करता | पेट की चिन्ता यहाँ किसी को नहीं रहती। भारत में अन्न-धन की कमी नहीं है। अतिथि-सत्कार सभी जगह एक समान है। यहाँ के लोग हाथी की पूजा करते हैं! राजा तक हाथी का सम्मान करता है। कहीं-कहीं मुर्गे की पूजा भी होती है। इत्सिंग : __ भारत आनेवाले यात्रियों में इत्सिंग का नाम भी प्रख्यात है। बचपन से ही उसे बौद्धधर्म के अध्ययन के प्रति लालसा थी। इसी ज्ञानपिपासा की पूर्ति हेतु वह समुद्री-यात्रा करके जावा-सुमात्रा के रास्ते ई. सन् ६७३ के दरम्यान ताम्रलिप्ति बंदरगाह होते हुए भारत पहुँचा। ___ पन्द्रह वर्षों तक उसने भारत के विभिन्न स्थलों पर अध्ययन किया । दस वर्ष तो उसने नालन्दा विद्यापीठ में रहकर निरन्तर अध्ययन-अध्यापन कार्य किया। साथ ही महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ भी तैयार की। वेनसांग-जैसी प्रखर बुद्धि एवं प्रतिभा तो इसके पास नहीं थी लेकिन कठिन परिश्रम करके यह अपने साथ भारत से अनेकों अमूल्य ग्रन्थ और महत्त्वपूर्ण सामग्री लेकर गया। भारतवासियों की सामाजिक परम्परा से सम्बन्धित अनेकविध बातों का उसने वर्णन किया है। शिष्टाचार और अतिथि-सत्कार में उसने भारतवासियों को चीन से आगे बताया है। कुशीनगर, काशी आदि अनेकों तीर्थस्थलों की यात्रा करते हुए वह समुद्री रास्ते से वापस चीन लौट गया। स्वदेश पहुंचने पर स्वयं चीन की साम्राज्ञी 'चोउ-की-धू-होऊ ने अपने हाथों से उसका स्वागत किया था। इत्सिंग के निर्विघ्न और शान्तिपूर्वक स्वदेश लौट आने तथा महत्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपियों के संग्रह को देखकर सब में अपार आनन्द था। देश के कोनेकोने से लोग उसके दर्शन करने आये थे। वहाँ के लोग उसके दर्शन करके अपने को धन्य समझते थे। भिक्षु-वृन्द तो अतीव आनन्दित हो उठे थे। स्वदेश का एक व्यक्ति, जिसने लगातार २०-२५ वर्षों तक स्वजनों से दूर रहते हुए जान पर For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ६३ खेलकर कष्टप्रद यात्रा करके देश का नाम रोशन किया। विश्व-विख्यात नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन करके अगाध पाण्डित्य प्राप्त किया हो, जो भारत के पवित्र बौद्ध-तीर्थों के दर्शन करके पतित-पावन हो चुका हो, जिसने अपने पाण्डित्य को भी अपने देश की सेवा में अर्पित कर दिया हो, वह भला देश की आँखों में क्यों न बसे! देश उसकी चरण-रज को मस्तक पर लगाकर कृत-कृत्य क्यों न हो ! इन यात्रियों ने भारत की तत्कालीन शिक्षण प्रणाली एवं विद्या - विहारों, गुरुकुलों आदि के विषय में अनेकविध महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ अपने यात्रा विवरणों में लिखी हैं। इन तथ्यों के आधार पर तत्कालीन भारतीय शिक्षण-पद्धति, अतिथिसत्कार एवं न्याय-व्यवस्था के अखण्ड प्रवाह का ज्ञान प्राप्त होता है। सात वर्ष की उम्र में विद्यार्थी आश्रम या मठ में गुरु के पास विद्याभ्यास हेतु जाता था । आश्रम के छोटे-बड़े सभी काम वह स्वयं करके गुरु के निकट रहकर गुरुमुख से ज्ञान प्राप्त करता था। इन संस्थाओं में सभी जाति एवं धर्म के विद्यार्थियों को अमीर-गरीब का भेद किये बिना प्रवेश दिया जाता था । इन संस्थाओं में विद्यार्थियों को शब्द ( व्याकरण - साहित्य), शिल्प (हुनरउद्योग), चिकित्सा ( रोगोपचार विधि), हेतु-विद्या ( न्यायशास्त्र ) तथा अध्यात्मविद्या (धर्म एवं तत्त्वज्ञान) से सम्बन्धित शास्त्रों का गहन अभ्यास कराया जाता था। तीस वर्ष की उम्र तक अध्ययन-कार्य चलता था । तत्कालीन विद्वान् अध्यापकों के अध्यापन कौशल एवं पाण्डित्य का ह्वेनसांग ने खूब बखान किया है। छोटेछोटे आश्रमों, गुरुकुलों एवं मठों के अलावा आज हम जिन्हें विश्वविद्यालयों की तरह जानते हैं वैसी ही अनेकों ख्याति प्राप्त संस्थाएँ उस समय विदेशों तक प्रसिद्ध थीं। उनमें से कई संस्थाएँ तो अलग-अलग प्रकार की प्रमुख विद्याओं के विशेष अध्ययन हेतु प्रसिद्ध थीं। उदाहरण स्वरूप तक्षशिला विद्यापीठ चिकित्सकीयअध्ययन हेतु, उज्जयिनी विद्यापीठ ज्योतिष - शास्त्रीय अध्ययन हेतु, वलभी विद्यापीठ जैन-धर्म-दर्शन के अध्ययन हेतु, काशी विद्यापीठ वेद-वेदांग के अध्ययन हेतु तथा नालन्दा विद्यापीठ महायानीय बौद्ध सम्प्रदाय के अध्ययन हेतु विशेषरूप से प्रसिद्ध थे। इन विद्यापीठों में विभिन्न देशों के हजारों विद्यार्थी एक-साथ अध्ययन करते थे । तत्कालीन भारतवर्ष ने विद्योपासना में कैसी अद्भुत प्रगति की थी इसका अनुमान इन विद्यापीठों की अध्यापनशैली एवं यहाँ के वैशिष्ट्य वर्णन से लगाया जा सकता है, जो निम्नवत है : For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ तक्षशिला विद्यापीठ : संसार के सबसे प्राचीन विद्यापीठों में जिसकी गणना सर्व प्रथम होती है, ऐसी मात्र भारत की ही नहीं बल्कि एशिया की प्रमुख विद्यादायिनी संस्था भारतभूमि पर रावलपिण्डी नामक प्रदेश में विकसित हुई। ऋषि दौम्य, चाणक्य, पाणिनी और नागार्जुन जैसे भारत के समर्थ पण्डित इस संस्था के चमकते हुए सितारे थे जिनकी यशोपताका आज भी उनके द्वारा विरचित ग्रन्थों के माध्यम से संपूर्ण विश्व को ज्ञान-विज्ञान द्वारा प्रकाशित कर रही है। ¿ बौद्ध धर्म के उदय से पहले यह वैदिक साहित्य के अध्ययन-अध्यापन का प्रमुख केन्द्र था। इसके बाद बौद्ध धर्म-दर्शन, चिकित्सा शास्त्र एवं तत्त्वज्ञान के अध्ययन हेतु इसका नाम अग्रगण्य संस्थाओं में सबसे पहले गिना जाने लगा । कनिष्क के समय में इसकी ख्याति अपनी चरम सीमा पर थी । युद्ध- कौशल विषयक विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भी इस विद्यापीठ की प्रसिद्धि चारों ओर फैली हुई थी । यहाँ गरीब छात्रों तथा राजकुँवरों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था। दोनों ही वर्गों के छात्र बिना किसी भेद-भ द-भाव के एक-साथ बैठकर समान शिक्षा ग्रहण करते थे । मार्च २०१३ - सिकन्दर भारत से वापस लौटते समय इस विद्यापीठ में से कई विद्वान् अध्यापकों को अपने साथ लेकर गया था । संसार के दूसरे किसी भी विद्यापीठ ने नहीं भोगा हो ऐसा लगभग बारह सैका तक यशस्वी और दीर्घ आयुष्यकाल तक इसका अस्तित्व रहा। ई. सन् ५०० के आस-पास तोरमाओं के जंगली हूण टोलाओं के हाथों इस विश्व प्रसिद्ध विद्यापीठ का नाश हुआ । नालन्दा विद्यापीठ : For Private and Personal Use Only ह्वेनसांग ने इस विद्यापीठ का वर्णन करते हुए लिखा है कि पहले यहाँ एक सुन्दर उपवन था । पाँचसौ व्यापारियों ने उसे खरीदकर भगवान् बुद्ध के लिए भेंट स्वरूप अर्पित किया ! भगवान् ने वहाँ रहकर धर्मोपदेश दिया । हूणों के द्वारा तक्षशिला का विध्वंस होने के बाद नालन्दा विद्यापीठ का महत्त्व और भी बढ़ गया | सातवीं सदी में तो भारत के अग्रगण्य विद्यापीठों में इसकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई। पटना से कुछ दूर गंगा नदी के किनारे रमणीय स्थल पर यह विद्याविहार स्थापित था । प्रातःकाल के धूमस में घिरा हुआ नालन्दा विद्यापीठ अतीव मनोहर दिखाई पड़ता था । यहाँ के स्तूप, विहार और मन्दिरों के निर्माण में कुशल नगर रचना की कला का स्पष्ट चित्र दिखाई पड़ता है। यहाँ के भवनों का निर्माण-कार्य अत्यन्त मजबूत किस्म का था । गगनचुम्बी वेधशाला, विशाल परकोटा, भव्य Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर • २६ ६५ विद्या-विहार, विद्या-विहार के अन्दर आठ बडे-बडे सभागार और सौ व्याख्यानखण्डों का वर्णन करते हुए ह्वेनसांग जैसे थकता ही नहीं । यहाँ के विशाल और कलात्मक प्रवेशद्वारों, श्रेष्ठतम कारीगरी वाले स्तम्भों और मनोहर छत्रों को देखकर हर कोई चकित रह जाता था। यहाँ के हरे-भरे उपवनों तथा लाल कनक के फूलों से सुशोभित जलाशयों का वर्णन ह्वेनसांग ने दिल खोलकर किया है। ईसा की पाँचवीं सदी में स्थापित यह विद्यापीठ विश्व के अग्रगण्य विद्यापीठों में से एक था। इसकी स्थापना से लेकर विध्वंस-काल तक सात-सात सदियों तक इसकी कीर्तिपताका सम्पूर्ण विश्व में फहराती रही। भारतीय राजा महाराजाओं ने इसे स्थापित करने एवं समृद्ध बनाने में खूब दिलचस्पी दिखाई। तिवेट, चीन, जावा, सुमात्रा, सिलोन (श्रीलंका) आदि देशों से यहाँ अध्ययन हेतु आनेवाले विद्यार्थियों की एक लम्बी कतार थी। अतः उपरोक्त साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध होता है कि जिस प्रकार आज भारतीय विद्यार्थी विदेश में अध्ययन हेतु जाते हैं, उसी प्रकार किसी समय विदेशी छात्र भी विविध विषयों के अध्ययन हेतु हिन्दुस्तान के इन विद्यापीठों में आया करते थे। वेनसांग जैसे चीनी पण्डित ने नालन्दा में लम्बे समय तक रहकर हिन्दू धर्म-दर्शन, वेद-वेदांग एवं बौद्ध धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया। यहाँ का अध्ययन-अध्यापन श्रेष्ठ कोटि का था | उच्च विद्या के अध्ययन हेतु इससे बढकर और कोई संस्था पूरे विश्व में नहीं थी। यहाँ के ग्रन्थागार अतीव विशाल और अध्ययन-सामग्री से परिपूर्ण थे। तीन विशाल भवनों में ग्रन्थों को सुव्यवस्थित तरीके से रखा गया था। इन भवनों के नाम थे-रत्नोदधि, रत्नसागर और रत्नरञ्जक | इनमें से पहला भण्डार ही नौ मस्जिला था। इसीसे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ विद्यार्थियों के अध्ययन-अध्यापन हेतु कितनी ग्रन्थराशी संग्रहीत रही होगी। __ नालन्दा विद्यापीठ जिस प्रकार धर्म और दर्शन, व्याकरण और व्युत्पत्तिशास्त्र, तर्कशास्त्र और साहित्य के अध्ययन का मुख्य केन्द्र था उसी प्रकार शिल्पस्थापत्य एवं अन्य शिक्षण-कलाओं में भी उसका प्रमुख स्थान था। यहाँ प्रत्येक विषय के अनेकानेक मूर्धन्य पण्डितगण निवास करते थे। यहाँ दस हजार विद्यार्थी और पन्द्रहसौ अध्यापक रहते थे। आज समग्र विश्व में शायद ही कोई ऐसा विश्वविद्यालय होगा जहाँ पन्द्रसौ अध्यापक हों। सभी छात्रों तथा अध्यापकों के आवास एवं भोजन आदि की सम्पूर्ण सुख-सुविधाएँ विद्यापीठ द्वारा उपलब्ध कराई जाती थीं। खर्चे की पूर्ति हेतु सौ गाँव जागीर के रूप में विद्यापीठ को दान में दिये गये थे। भारतीय राजा-महाराजा भी समय-समय पर विद्यापीठ के लिए पुष्कल दान देते थे। यहाँ महायानीय बौद्ध-धर्म के अध्ययन हेतु विशेष अनुकूलता For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ मार्च - २०१३ थी। ब्राह्मण-धर्म एवं दर्शन के अलावा साहित्य, व्याकरण और कला का भी उच्चस्तरीय अध्ययन कराया जाता था। हवेनसांग इस विद्यापीठ का वर्णन करते हुए कहता है कि-जहाँ स्थापत्य का यह महान् प्रासाद स्थित है वहाँ का प्राकृतिक वातावरण भी उसकी शोभा में चारचाँद लगा देता है। जमीन पर कई सरोवर हैं। जिनमें नीलोत्पल विपुल मात्रा में हैं। इनके सुन्दर नीले रंग के साथ कनक-पुष्प भी चारों ओर गहरा लाल रंग विखेरते हैं। आम्रकुजों की घनी छाया जमीन पर चारों ओर फैली हुई है। यहाँ के आचार्य ज्ञान-ध्यान-विज्ञान-कला-साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् हैं। यहाँ के प्रवेशद्वारों पर कुशल द्वारपाल नियुक्त किये जाते हैं जो विद्यापीठ में प्रवेशार्थ आने वाले छात्रों का साक्षात्कार लेकर, उनकी योग्यता को परखकर ही अन्दर जाने देते हैं। भारत में स्थित इन विद्यापीठों, गुरुकुलों, आचार्यों एवं ग्रन्थागारों को देखकर मेरा मन मुदित हो गया। वाकई भारतवर्ष जगद्गुरु है। कालान्तर में नालान्दा की बढ़ती हुई ख्याति ही उसके विध्वंस का कारण बन गई। एक आततायी शासक ने पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर इस दैदीप्यमान ज्ञानदीप को सदा-सदा के लिए बुझा दिया! नालान्दा के इस सम्पूर्ण स्वाभाविक और मानव-निर्मित सौन्दर्य में से सिवाय खण्डहरों के अब कुछ भी नहीं बचा है। यत्र-तत्र मिट्टी के ऊँचे-ऊँचे ढेर दिखाई देते हैं; खण्डित पत्थरों की प्रतिमाएँ कोस-कोस तक बिखरी हुई मिलती हैं। पुरातत्त्वविद् अपने फावडे और कुदाल लेकर वहाँ कुछ खोज निकालने में व्यस्त हैं। एक आततायी शासक बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इस अद्भुत ज्ञानसागर को नेस्तनाबूत कर दिया। यहाँ के ग्रन्थालयों में आग लगा दी गई। जिसमें हजारों-लाखों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जलकर राख हो गये। वर्षों तक यहाँ के ग्रन्थालयों से धुआँ निकलता हुआ देखा गया! और इस प्रकार हमारे ऋषिमहर्षियों द्वारा निर्मित अमूल्य धरोहर नष्ट हो गई। इस धरोहर में से जो कुछ भी अंश स्वरूप बचा है उसे आज हमारे श्रेष्ठी एवं श्रुतसेवी संस्थाएँ संगृहीत कर बचाने के उपक्रम में लगे हुए हैं। विक्रमशिला विद्यापीठ : वेनसांग के भारत से विदा होने के लगभग दो सौ वर्षों के बाद ईस्वीसन की नौवीं सदी में, भागलपुर जिले में गंगा नदी के किनारे विक्रमशिला नामक एक और विद्यादात्री संस्था का जन्म हआ। तिब्बत से असंख्य छात्र इस विद्यापीठ में अध्ययनार्थ आते थे। इस संख्या के बढ़ते हुए प्रमाण का अनुमान इसी से लगाया For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ६७ जा सकता है कि विक्रमशिला का एक छात्रावास तो 'तिवेट भवन' के नाम से ही जाना जाता था । आठ हजार विद्यार्थी एक-साथ बैठ सकें ऐसा विशाल सभागार इस संस्था का गौरव था । नालन्दा की तरह ही इसके चारों ओर एक बड़ा परकोटा था; जिसके छह प्रवेशद्वार थे। इन सभी प्रवेशद्वारों पर एक-एक विद्वान् आचार्य की देख-रेख रहती थी । ये छह आचार्य और विद्यापीठ के प्रधान आचार्य मिलकर कुल सात समर्थ - पण्डित विक्रमशिला का प्रशासन संभालते थे । यहाँ भी नालन्दा जैसी ही प्रवेश प्रक्रिया थी । वलभी विद्यापीठ : नाशिक होते हुए मालवा जाते समय ह्वेनसांग ने सौराष्ट्र में हर्ष के जमाई मैत्रकवंशीय ध्रुवसेन की राजधानी वलभी में प्रवेश किया। ध्रुवसेन ने भी सम्राट अशोक की तरह बौद्ध धर्म स्वीकार किया था । हर्ष की पञ्चवर्षीय परिषद् की तरह वलभी में भी एक बड़ा मेला भरता था। उस मेले में विद्वान् पण्डितों को खुले हाथों दान दिया जाता था । ह्वेनसांग के एक शिष्य दुई-ली ने उस समय के गुजरात की समृद्धि का वर्णन करते हुए लिखा है कि इस राज्य में दूर-दूर के मुलकों से आकर बसी हुई बंजारों की पोलें (बस्तियाँ) मीलों तक फैली हुई दिखाई पडती हैं, जिनके पास अथाह सोना जवाहरात है। पच्चीस लाख तोला सोना-चाँदी से भी अधिक धन जिनके पास है, ऐसे अनेकों कुटुम्ब - परिवार यहाँ निवास करते हैं। वलभी में भी नालन्दा जैसी ही उच्च शिक्षण व्यवस्था थी । यहाँ जैन-धर्मदर्शन एवं न्याय - विद्या का विशेष अध्ययन कराया जाता था। काँची विद्यापीठ : जिस प्रकार तक्षशिला और नालन्दा उत्तर भारत के विद्यास्तम्भ थे उसी प्रकार काँची विद्यापीठ दक्षिण भारत का महत्त्वपूर्ण शिक्षण संस्थान था । 'दक्षिण भारत का नालन्दा' के नाम से इस विद्यापीठ की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी । नालन्दा के साथ यहाँ के अध्यापकों एवं छात्रों का गहरा सम्बन्ध था । शिल्प - शास्त्र और स्थापत्य में इसका अनन्य स्थान था । पल्लव राजाओं ने इस विद्यापीठ को खुले हाथों दान दिया । सुप्रसिद्ध नैयायिक वात्स्यायन और समर्थ पण्डित बौद्धन्यायविशारद दिङ्गनाग जैसे आचार्यों ने इसकी कीर्ति में चार चाँद लगा दिये। इन विद्यापीठों की संस्कृति एवं अध्ययन-अध्यापन व्यवस्था से आकर्षित होकर असंख्य विदेशी विद्यार्थी यहाँ अध्ययनार्थ आते थे। उसी कड़ी में चीनी For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च २०१३ ६८ विद्यार्थियों का भी आगमन हुआ, जिन्होंने अपने यात्रा विवरण की कहानियाँ यत्रतत्र लिखी हैं। उन्हीं वृत्तान्तों को आधार बनाकर मैंने यहाँ यत्किञ्चित् प्रस्तुत् करने का प्रयास किया है। आशा है गवेषकों को पसन्द आयेगा । - नालन्दा, तक्षशिला, वलभी, विक्रमशिला आदि प्राचीन विद्याविहारों की ग्रन्थरक्षण परम्परा को जीवित रखने हेतु हिंदुस्तान में आज भी अनेकों ग्रन्थभण्डार सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । इसी तरह का एक छोटासा प्रयास अहमदाबाद एवं गांधीनगर के मध्य श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा स्थित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कर रहा है। इस ज्ञानमंदिर में राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की पावन प्रेरणा से लगभग दो लाख प्राचीन पाण्डुलिपि ग्रन्थों का संग्रह है। संभवतः आज यह हिंदुस्तान का सबसे बडा ग्रन्थागार है । यहाँ हस्तलिखित ग्रन्थों को विशेष रूप से जर्मन स्टील एवं सागवान की लकड़ी से निर्मित अलमारियों में रखा गया है । इन अलमारियों की खासियत यह है कि इनमें रखे हुए ग्रन्थों में वर्षात के मौसम में लेशमात्र भी भेज नहीं आ सकती, दीमक एवं सिल्वर - फिश जैसे कीटाणु भी प्रवेश नहीं कर सकते हैं, यहाँ तक कि अग्नि अथवा जल के प्रकोप से भी ग्रन्थों को सुरक्षित रखा जा सकता है । यहाँ ग्रन्थरक्षण हेतु पारम्परिक एवं वैज्ञानिक संसाधनों का उपयोग किया गया है । इस ज्ञानमंदिर की ख्याति आज चारों ओर फैल रही है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ आनेवाले शोधार्थियों को कुछ ही समय में बिना किसी भेद-भाव के आवश्यक सामग्री उपलब्ध करा दी जाती है। यही कारण है। कि आज यहाँ देश-विदेश से आनेवाले शोधार्थियों की संख्या में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है । प्राचीन विद्याविहारों की उस दैदीप्यमान गौरवमयी परम्परा को यहाँ जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है, जो सराहनीय है ! संदर्भ-ग्रन्थ : १. दक्षिण - पथ, लेखक - श्री जयकान्त मिश्र, साधना कार्यालय आगरा से प्रकाशित । २. फाहियान का भारत दर्शन, लेखक- दामोदरलाल गर्ग, आदर्शनगर जयपुर से प्रकाशित | ३. सुंगयुन का यात्रा - विवरण, अनुवादक- जगन्मोहन वर्मा, काशी नागरीप्रचारिणी सभा से प्रकाशित । For Private and Personal Use Only ४. फाहियान और ह्वेनसांग की भारत यात्रा, लेखक- ब्रजमोहनलाल वर्मा, हिंदी ग्रन्थ प्रसारक समिति छिंदवाडा से प्रकाशित । ५. बौद्धधर्म के २५०० वर्ष का इतिहास, संपादक- पी.वी. बापट, पब्लिकेशन डिवीजन दिल्ही से प्रकाशित । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir સંગ્રહાલયના બે ચોવીશી પટનો પરિચય હિરેન દોશી જૈન કલામાં પ્રાય તીર્થંકર ભગવંતોની પ્રતિમા સર્વાધિક પ્રાપ્ત થાય છે. તીર્થકર ભગવંતોના નિર્વાણ બાદ કેટલોક સમય એમનું સ્મરણ યથાવત્ બની રહ્યું, એમની સ્મૃત્તિને ચિરંજીવ બનાવવાના હેતુથી તીર્થકર ભગવંતોની પ્રતિમાઓનું સ્થાપન થયું, તત્કાલીન શાસકોના પ્રભાવ હેઠળ તીર્થંકર ભગવંતની પ્રતિમાઓમાંના નિર્માણમાં ઘણા ફેરફારો જોવા મળે છે, તીર્થકર ભગવંત સદૈવ ધ્યાનાવસ્થામાં હોવાથી એમની પ્રતિમા ૧. ખડુગાસન (કાયોત્સર્ગ) ૨. પદ્માસન આમ બે આસનોમાં જોવા મળે છે. કાલાંતરે જિન-પ્રતિમાઓમાં દ્રિતીર્થિ, ત્રિ-તીર્થિ, ચતુર્વિશતિ જિન-પટ વિગેરે વિવિધ્ય મળતું રહ્યું. લગભગ દસમી સદીમાં ચોવીશી પટો નિર્માણ પામ્યા, ચોવીશી પટ્ટો શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક અને દિગંબર એમ બંન્ને પરંપરામાં મળી આવે છે, દિગંબર પરંપરામાં પણ ચોવિશી પટ્ટોમાં ઘણાં પ્રકારનું વૈવિધ્ય જોવા મળે છે. આ ચોવીશ તીર્થંકર-પ્રતિમાઓમાં સામાન્યથી અષ્ટપ્રાતિહાર્ય, લાંછન, અને યક્ષ-યક્ષિીનું અંકન પણ પ્રાપ્ત થતું રહ્યું, નામ, સ્થાપના, દ્રવ્ય, ભાવ એમ કુલ ચાર નિક્ષેપે સમસ્ત લોકને પાવન કરતા તીર્થકર ભગવંતોના અભિનવ સ્વરૂપની પરિકલ્પના કરવામાં આવી છે. અને તીર્થકર ભગવંતોના વિવિધ રસ્વરૂપોની પૂજા-અર્ચના વિગેરેની પરંપરા પણ અનવચ્છિન્ન રૂપે મળી આવે છે. ચોવીશી પટ નંબર – ૧ પ્રસ્તુત ચોવીશીમાં તીર્થકર ભગવંતોના બાળ સ્વરૂપનું અંકન છે. વિ. સં. ૧૨મી સદીના આ શિલ્પમાં વર્તમાન ચોવીશીના તીર્થકર ભગવંતની માતા એના બાળ સ્વરૂપ પરમાત્માને ખોળામાં લઈને બેઠાં છે, પહેલી લાઈનમાં પ્રથમ તીર્થંકર, બીજી લાઈનમાં ત્રણ તીર્થકર, ત્રીજી લાઈનમાં પાંચ તીર્થકર, ચોથી લાઈનમાં સાત તીર્થકર, અને પાંચમી લાઈનમાં આઠ તીર્થકર બિરાજમાન છે, પાંચમી લાઈનના મધ્યભાગમાં મંગલ-કુંભનું સ્થાપન કરવામાં આવ્યું છે. તોરણ અને થાંભલી-યુક્ત દેરીમાં દરેક માતા બિરાજમાન છે, દરેક લાઈનના આરંભ અને અંતે ચામર-ધારી પરિચારકો જણાય છે. માતા અર્ધપદ્માસનમાં બિરાજમાન છે, દરેકની નીચે માતાના નામો લખ્યાં છે. પ્રસ્તુત ચોવીશીમાં લેખ વિગેરે કોઈ સાધન પ્રાપ્ત થતું નથી. * ટાઈટલ પેજ નં. ૧ For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir gિo માર્ચ - ૨૦૧૩ ચોવીશી પટ નંબર - ૨ પ્રસ્તુત પટમાં ચોવીશ દેરી બનાવી ચોવીશ તીર્થંકર ભગવંતોની પ્રતિષ્ઠા કરેલ છે. દરેક દેરીમાં ઉપરના ભાગે તીર્થકર ભગવંતનું નામ અને ત્યારબાદ ક્રમાંકનું આલેખન થયું છે. દેરીની નીચેના ભાગે લાભ લેનાર વ્યક્તિનું નામ આલેખેલ છે, પટમાં ઉપરના ભાગે શિખરની આકૃતિ ઉપર ફરકતી ધજા જણાય છે, યથાશક્તિ એક-એક વ્યક્તિ સ્વતંત્ર રીતે જિનાલય બંધાવ્યા સરખો લાભ મેળવી શકે એ ઉદ્દેશથી જ આ પ્રકારના ચોવીશી પટોનું નિર્માણ સંભવે છે. આ પટ ભરાવનાર તરીકે ઉલ્લેખિત ચોવીશ વ્યક્તિઓ નામાનુસાર સ્ત્રી, તેમજ પ્રાયઃ એક જ પરિવાર-કુટુંબના સભ્ય હોવાની શક્યતા વધુ છે, પ્રસ્તુત લેખમાં આ પેટ ભરાવનાર વ્યક્તિઓનો નામોલ્લેખ આપેલ છે. લેખમાં નામ આગળ આપેલ ક્રમાંક દેરી નંબર અને તીર્થકર ભગવંતના ક્રમને જણાવે છે. २. चोवीशी पट लेख ૧. તે નિર્ણવી, ર. વિદેવી, રૂ, પૂ, ૪, વણિવી , ૬. વેતરેવી, ૬. મલ્ફિી , . વર્લ્ડ, ૮. શનીવે, ૬. દૂરવા, ૧૦. કેવી, ૧૧. મીનાવી, ૧૨. રવી, ૧૩. પૂનિજ, ૧૪. સર્દી, ૧૬. વીન્દુ, ૧૬. કીન્હાવે, ૧છે. મૂળ, ૧૮. પૂણી, ૧૬. સુવરે, ર૦, ધૂની, ૨૧. વાની, ર૨, વહૂતેવી, ર૩, ૨નનવી, २४.जाल्हदेवी સ્થાનાંગસૂત્રની સાક્ષીએ રોગોત્પત્તિના નવ કારણો ૧. અત્યાસન :- એક આસને લાંબો સમય બેસવાથી. ૨. અત્યાશન :- વધુ ભોજન કરવાથી, કે અપથ્યનું સેવન કરવાથી. ૩. અતિનિદ્રા :- વધારે પડતું સુવાથી. ૪. અતિ જાગરણ :- વધારે મોડે સુધી જાગવાથી. ૫. ઉચ્ચાર નિરોધ :- મળ(ઝાડો) રોકી રાખવાથી. ઉ, પ્રશ્રવણ નિરોધ :- પેશાબ રોકી રાખવાથી. ૭. ગમન :- નિરંતર ચાલવાથી. ૮. ભોજન પ્રતિકુળતા :- પ્રતિકુળ ભોજન કરવાથી (પ્રકૃતિ વિરૂદ્ધનું ભોજન કરવાથી.) ૯. ઈન્દ્રિયાર્થના વિપાક :- એન્દ્રિક વિષયોનું અતિ સેવન કરવાથી. આ નવ કારણોથી શરીરમાં રોગો ઉત્પન્ન થાય છે. (સ્થાન-૯, સૂત્ર-૯૯૭) * ટાઈટલ પેજ નં. ૪ For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग्रहालयमा प्रतिमालेखो आजे आपणी परंपरा अने श्रमण संस्कृतिनो क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त नथी, इतिहासना केलाय तत्त्वो ग्रंथ-भंडारो, ताम्रपत्रो, शिलालेखो, अने प्रतिमालेखोमां धरबायेला छे. आवी ऐतिहासिक साधन सामग्रीमा प्रतिमालेखो अग्रता क्रमे छे, प्रतिमा लेखो बे विभागमां मळे छे. १. पाषाण प्रतिमा लेखो २. धातु प्रतिमा लेखो, धातु प्रतिमानी अपेक्षाए पाषाण प्रतिमामां लेखो बहु ओछा प्राप्त थाय छे. प्रतिमा लेखोमां श्रमण परंपरा अने तत्कालीन श्रावकोना वंशादिनी नोंध प्राप्त थाय छे. श्रमण परंपराना इतिहासमां खूटती कडीओनुं अनुसंधान करवामां प्रतिमा लेखो बहु महत्त्वनो भाग भजवे छे. पूज्यपाद् गुरुदेव श्रीमद् आचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा प्रभु शासननी आवी ऐतिहासिक मूल्योनी काळजी अने जतन माटे सतत उद्यमशील अनेकांईक करी छूटवानी भावना धरावी, प्रभु शासननी शान अने गरिमाने हृष्ट पुष्ट करता रहे छे. पूज्य गुरुमहाराजना अथाग प्रयत्नथी विनिर्मित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर अने सम्राट् संप्रति संग्रहालयमां आवी केटलीय ऐतिहासिक सामग्रीओ संकलित, संगृहीत अने सुरक्षित छे संग्रहालयमा रहेला धातु अने पाषाण प्रतिमाना लेखो अहीं प्रस्तुत छे. आ लेखो उतारी आपवानुं पुण्य- कार्य परम पूज्य शासनसम्राट् श्रीना समुदायना आचार्य भगवंत श्रीसोमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब अने एमना शिष्य परिवारे करी आप्युं छे. संग्रहालयमां नोंधायेल क्रमानुसार ज प्रतिमाना लेखो प्रकाशित करीए छीए. संपा. धातु प्रतिमालेख श्री शांतिनाथ, पंचतीर्थी - १ १. संवत् १५६१ वर्षे माघ वदि ८ सोमे श्री ब्रह्माणमच्छे श्रीश्रीमालज्ञा. श्रे. खेता भा. खेतलदे सु. पोपट भा. दूबी सु. लींबा भा. ललनादे सु. पद्मा युतेन स्वपूर्वजनमित्तं आत्मश्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारि. प्र. श्री बुद्धिसागरसूरिपट्टे श्रीविमलसूरिभिः द्या... श्री पद्मप्रभस्वामी, चतुर्विंशति - ३ २. संवत् १४३८ वर्षे ज्येष्ट वदि ४ शनौ श्रीनाणकीयगच्छे For Private and Personal Use Only ...गोत्रजा भा. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ मार्च - २०१३ डाका भातृ जयतसिह नाणसीह?(इ?).....देदा भा. पू...... द्वितीय नाम कील्हणदेव्या पुत्र धरण-धिर सहितयो आत्मश्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभचतुर्विंशतिजिनालयः का. प्र. श्रीमहेंद्रसूरिभिः ।।श्री।। श्री सुमतिनाथ, चतुर्विंशति - ४ ३. संवत् १४७५ वर्षे ज्यैष्ट वदि १२ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ कडूआ भातृ ईला माता कामलदे पितृमातृभ्रातृश्रेयोर्थं वइरसीके(हे)न श्रीसुमतिनाथचतुर्विंशतिपट्टे कारितं श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीसागरतिलकसूरिणामुपदेशेन ।। ___ चतुर्विंशति - ५ ४. सं. ...................... वीरम भा. लाजा श्रे. राणा भा. सिरियादे श्रे. बीहडा भा. कोल्हणदे सर्वगोत्रिणां श्रेयसे ...........चतुर्विंशति?बिंब करा. का. पिप्पलाचार्य श्रीगुणसमुद्रसूरि शिष्य. श्रीशांतिसूरिभिः ।। श्री चंद्रप्रभस्वामी, चतुर्विंशति -६ ५. संवत् १३८७ वर्षे माघ शुदि ५ रवौ श्रीकाष्ठसंघे आचार्य श्रीशुभकीर्तिगुरोपदेशेन नरसिंहपुर खेता सुत साजण वधू नागल सुत माणल सुत साढा सुत तेजाकेन श्रीचंद्रप्रभ श्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं ।। श्री आदिनाथ, पंचतीर्थी - ७ ६. संवत् १५७१ वर्षे माहा शुदि १३ रवौ राजाधिराज श्रीनाभिनरेश्वर माता श्रीमरूदेवा तत्पत्र श्री:श्री:श्री श्री श्री आदिनाथबिंब कारितं सेवक तेजाच्धेना भोपाल लीखमीसी नीबाभिधानेन कर्मक्षयार्थं शुभं भवतु नुडलाइ वास्तव्य ।। श्रीश्रीश्रीश्रीश्री श्री शांतिनाथ, पंचतीर्थी - ८ ७. संवत् १५५१ पौष सुदि १३ शुक्रे श्रीमंडपे श्रीश्री........... सोनी संग्रामस्य भार्यया नाथी सुश्राविकया पुत्र उदयाकेरण मुख्यपरिवारसहितया स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथ बिंबं श्रीअंचलगच्छेश श्रीसिद्धांतसागरसूरीणामुपदेशन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीश्रीपत्तननगरे श्रीसंघेन पूज्यमान चिरंनंदतात् श्री।। __श्री अरनाथ, पंचतीर्थी - ९ ८. संवत् १५६२ वर्षे वैशाख वदि १० रवौ वौ. उपकेशज्ञातीय श्रीछाजडगोत्रे सा. वयरसीह भार्या कउडी पुत्र. सा. नायमल्लना पुत्र हालासहितया श्रीअरूनाथबिंब For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ७३ कारितं निजपुन्यार्थ प्रतिष्ठिता श्रीमलधारगच्छे भ. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।। श्री सुपार्श्वनाथ, पंचतीर्थी - 20 ९. सं. १५४१ वर्षे माघ शुदि १३ रवौ श्रीमंडपे श्रीमालज्ञातीय सं. ऊदा भा. हळू पु. सं. खीमा भा. पूजी सु. सं. जगसी भा. माकुं पु. सं. गोल्हा भा. सामा पु. मेघा पु. शाणी लघुभ्रातृ सं. राजा भा. सांगू पु. सं. जावड भा. रमाई जीवादेसुहागदे-सक्तादे-धनदे सु. सं. हीरा भा. रमाई सं. लालादि कुटुंबयुतेना ४? बिंबकारयित्रा श्रेयसे श्रीसुपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीलक्ष्मीसागरसूरिपट्टे श्रीसुमतिसाधुसूरिभिः ।। श्री पार्श्वनाथ, पंचतीर्थी - १ १०. संवत् ११७८ पोस वदि ११ शुक्रे श्रीहाइकपुरीयगच्छे श्रीगुणसेनाचार्य संताने सवणीतीग्रामे ठा. झमणाग ......... सुत वछलेन भार्या जसदेवि समन्वितेन श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा उभयश्रेयोर्थं कारिता।। श्री चन्द्रप्रभ, एकलतीर्थी - १३ ११. सं. १२३८ मार्ग. सुदे १५ गुरो अधेह भा. लिज श्री महावीरप्रत्यमा कारापिता पुणदेवी आत्मश्रेयोर्थं प्रतिष्ठिता श्रीचंद्रप्रभौ श्री............।। श्री शांतिनाथ, त्रितीर्थी - १४ १२. सं. १२१८ वैशाख वदि ५ शनौ १. श्रीभावदेवाचार्यगच्छे जसधवल पुत्रिकया सहजिया आत्मश्रेयोर्थं श्रीशांतिजिनकारित।। श्री चन्द्रप्रभस्वामी, चतुर्विंशति - १७ १३. संवत् १४७९ वर्षे पोष वदि ५ शुक्रे श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन श्रीश्रीमाल ज्ञा. परी. धना भा. परी, धांधलदे तयो सुतेन परी. हीराकेन निजपितमातपुण्यार्थं स्वश्रेयोर्थं च श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं चिरंनदतात्।। श्री आदिनाथ, पंचतीर्थी - १६ १४. सं. १२२१ वैशाख शुदि ४ सोमे श्रीप्राग्वाटज्ञातीय महं. रूपा सुत महं......... सामलेन ................ श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ।। (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ત્રિભુવનવિહાર રાણકપુર તીર્થ ઃ એક પરિયય કનુભાઈ એલ. શાહ શ્રી શત્રુંજય મહાતીર્થનું નામ સ્મરણ થતાં જ ઊંચા પર્વત પર મંદિરોની નગરી એવું ચિત્ર મનમાં અંકિત થાય, શ્રીસમેતશિખરનું નામ લેતાં જ પર્વત પર શામળા પાર્શ્વનાથનું મંદિર તેમજ ઊંચી-નીચી ટેકરીઓમાં વીસ તીર્થંકરોના પગલાંની દેરીઓનું ચિત્ર મનમાં ઉપસે જ્યારે શ્રી રાણકપુર તીર્થનું નામ પડતાં જ નયનરમ્ય કોતરણીવાળા સ્તંભોનું વિશાળકાય શ્રી ઋષભદેવનું ચતુર્મુખ જિનપ્રાસાદ એવી સ્પષ્ટ છબિ માનસપટ પર ઉપસી આવે છે. આ મંદિરના નિર્માણકર્તા શ્રેષ્ઠી ધરણાશાહ હોવાથી ‘ધરવિહાર’ તરીકે પ્રસિધ્ધિ પામ્યું છે. આ મંદિર ત્રણે લોકમાં દીપક સામન હોવાથી ‘ત્રૈલોક્યદીપકપ્રાસાદ' અથવા ‘ત્રિભુવનવિહાર’ તરીકે પણ ઓળખાય છે. આ ઉપરાંત આ મંદિરને ‘નલિનીગુલ્મ વિમાનની' પણ ઉપમા આપવામાં આવી છે. મંત્રી ધરણાશાહ :- શેઠ કુંરપાલ અને તેમની પત્ની કામલદેને બે પુત્રો હતા રત્નાશાહ અને ધરણાશાહ*. પોરવાડ જ્ઞાતીય ધરણાશાની પત્નીનું નામ ધા૨લદે હતું. ધરણાશાના મોટાભાઈનું નામ રત્નાશા અને તેમની પત્નીનું નામ રત્નાદે હતું. ધરણાશા અને રત્નાશાને નાનપણથી જ ઘરના સુસંસ્કાર અને ધર્મપરાયણતાનો સમૃદ્ધ વારસો મળ્યો, પંદરમી સદીમાં થયેલા આચાર્ય શ્રી સોમસુંદરસૂરિજીની પ્રેરણાથી ધરણાશાહે તેમનું જીવન ધર્મ તરફ વાળ્યું. બત્રીસ વર્ષની ભરયુવાનીમાં શત્રુંજય તીર્થમાં બત્રીસ સંઘોની વચ્ચે ઇન્દ્રમાળ પહેરી ચોથા બ્રહ્મચર્ય વ્રતનો કઠોર નિયમ ધારણ કર્યો. ધરણાશાહે તીર્થયાત્રામાં અને અન્ય ધાર્મિક કાર્યોમાં પોતાની લક્ષ્મીનો સદુપયોગ કર્યો. શેઠ ધરણાશાની બુદ્ધિમત્તા અને દાનવીરતાની ગુણસમૃધ્ધિ પારખી, કુંભા રાણાએ તેમને મંત્રીપદે સ્થાપ્યા. જિનાલય નિર્માણ :- મંત્રી ધરણાશા ધર્મપરાયણ હોઇ ભગવાન ઋષભદેવનું એક અલૌકિક અને ભવ્ય મંદિરનું નિર્માણ ક૨વાની ભાવના તેમને જાગૃત થઇ. * सं. १५०७ चैत्र वदि ७ शनौ प्राग्वाट. सं. कुमरपाल भा. कामलदे पुत्र सं. धरणाकेन भा. धारलदे पुत्र जाजा - जावड ज्येष्ठभ्रातृ सं. रत्ना पुत्र लाखु सजी-सालिग सोन्त પૌત્ર સોના મહળતી-સાંડા-ગુળરાખ-પર્વત-વાછા-રાનિન-પાસા-આશા-સો.... રાખાવિ कुटुंबयुतेन स्वकारिते चतुर्मुखप्रासादे द्वितीया भूमौ मूलनायक : श्रीयुगादिदेवः का. प्र. तपागच्छेश श्री सोमसुंदरसूरिशिष्य श्रीमुनिसुंदरसूरि - श्रीजयचंद्रसूरिपट्टयोः रत्नशेखरसूरिभिः । સં. સાનિાવે પ્રમત્તિ ।। ( राणकपुर- जिनालयना रंगमंडपमां बिराजमान आदिनाथ प्रतिमा लेख ) For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ એક અનુશ્રુતિ તો એમ કહે છે કે ધરણાશાને એક રાત્રે સ્વર્ગલોકના ‘નલિનીગુલ્મ દેવવિમાન’ જેવું મંદિર નિર્માણ કરવા માટેનું સુંદર સ્વપ્ન આવ્યું. ધરણાાએ વિચાર્યું કે મારે પણ સ્વપ્નમાં દર્શન કર્યા જેવું જ એક અતિભવ્ય અને અતિસુંદર જિનપ્રાસાદનું નિર્માણ કરવું. આ માટેની તૈયારીઓના પ્રારંભમાં નામાંકિત શિલ્પીઓ પાસેથી મંદિરના નકશાઓ મંગાવ્યા. સૌના નકશાઓ જોતાં-જોતાં છેવટે મુંડારાના વતની દેપા કે દેપાક નામના શિલ્પીનો નકશો પસંદગી પામ્યો. શિલ્પી દેવા એક અનોખા પ્રકારનો ક્લાકાર હતો. પૈસા કરતાં એને પોતાની કલાસમૃદ્ધિને છતી કરવાનો શોખ હતો. મંત્રી ધરણાશાની ધર્મભક્તિથી આકર્ષાઈને આ કાલાકારે એક ઉત્તુંગ અને ભવ્યમંદિરનું નિર્માણ કરવાનો સંકલ્પ કરી, સંવત ૧૪૪૬માં મંદિરનું કાર્ય શરૂ કર્યું. આ મંદિરનું નિર્માણ ૫૦ વર્ષે પણ પૂર્ણ થઇ શક્યું નહીં. ધરણાશાને આ મંદિર સાત મજલાનું કરવું હતું. તેને અટકાવીને પોતાની વૃદ્ધાવસ્થાને ધ્યાનમાં રાખીને મંદિરમાં ભગવાન ઋષભદેવની પ્રતિષ્ઠા કરાવવાનો નિર્ણય કર્યો. એટલે સંવત ૧૪૯૬માં આ પ્રતિષ્ઠા આચાર્ય ભગવંતશ્રી સોમસુંદરસૂરિજીના વરદ હસ્તે સંપન્ન થઇ. ધરણાશાએ એમની અંતિમ ઘડીઓમાં જિનમંદિરનું થોડું બાકી રહેલું કાર્ય પૂર્ણ કરવા મોટાભાઈ રત્નાશાને જણાવ્યું. શ્રી ધરણાશાના અવસાન બાદ આઠ-દસ વર્ષ સુધી મંડપોનું કલાત્મક શિલ્પકામ રત્નાશાએ કરાવ્યું અને તીર્થની શોભા વધારી. આ મંદિરના નિર્માણ માટે મંત્રીશ્રી ધરણાશાહે કુંભા રાણા પાસે જમીનની માગણી કરેલી. રાણાએ જમીન ઉદારતાથી આપવાની સાથે ત્યાં નગર વસાવવાની પણ સલાહ આપેલી, એ પ્રમાણે ગામ વસાવીને રાણાના નામ પરથી ગામનું નામ રાણકપુર રખાયું. એ પછી લોક જીભે આ નગરનાં નામોનો જુદો-જુદો ઉચ્ચાર થવા લાગ્યો - રાણપુર, રાણીંગપુર, રાણીકપુર, રાણકપુર છેવટે રાણકપુર નામ પ્રસિદ્ધ થયું. સંવત ૧૭૪૬માં કવિશ્રી શીલવિજયજીએ રચેલ ‘તીર્થમાળા'ના વર્ણન પરથી એવું જણાય છે કે એ સમયે રાણકપુર ઘણુ સમૃદ્ધ હતું. અને શ્રાવકોના જ ત્રણ હજાર જેટલાં ધરો હતાં. ત્યારબાદ એ નગર વેરાન બન્યું. ७५ આ મંદિર મધાઈ નદીની પાસ, અરવલ્લી ગિરિમાળાની નાની નાની ટેકરીઓ અને શાંત એકાંત નિર્જન જંગલ એમ કુદરતના આ ત્રિવિધ સૌંદર્યો વચ્ચે માનવસર્જિત સ્વર્ગલોકના દેવ વિમાન સાદેશ આ શિલ્પ સમૃદ્ધિવાળા મંદિરના દર્શન કરી, માનવી પોતાની જાતને ભૂલી, પ્રભુને સમર્પિત થઈ દિવ્યર્લોકના આનંદની અનુભૂતિ કરે છે. જિનાલય પરિચય :- આ મંદિરની નિર્માણ કથાના ચાર આધારસ્તંભો છે આચાર્ય શ્રી સોમસુંદરસૂરિજી, મંત્રી શ્રી ધરણાશાહ, શ્રી રાણા કુંભા અને શિલ્પી દેપા. આ ચારેની ભાવનારૂપ ચાર સ્તંભોના આધારે ગગનને આંબતાં, કોતરણીયુક્ત સ્તંભોથી શોભતાં, વિશાલ મંદિરની રચના સાકાર થઇ. : For Private and Personal Use Only આ મંદિરને ચાર દ્વાર છે. મંદિરના મૂળ ગભારામાં ભગવાન ઋષભદેવની ૭૨ ઇંચ જેટલી ચારે દિશાઓ ત૨ફ મુખ કરતી ચાર ભવ્ય પ્રતિમાઓ બિરાજિત Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ છે. બીજા અને ત્રીજા માળના ગર્ભગૃહમાં પણ આ રીતે ચાર ચાર જિનપ્રતિમાઓ છે. માટે આ મંદિર ચતુર્મુખજિનપ્રાસાદ તરીકે પ્રસિદ્ધ થયું, ગોડવાડની મોટી પંચતીર્થીમાં જેટલાં પ્રાચીન જૈન મંદિરો છે તેમાં સૌથી મોટું અને શિલ્પ સમૃદ્ધિની દૃષ્ટિએ આ મંદિર અનુપમ છે. આ જિનાલયમાં ૭૬ નાની શિખરબંધી દેરીઓ, ચાર રંગમંડપ તેમજ શિખયુક્ત મોટી દેવકુલિકાઓ છે. ચાર દિશાઓમાં રહેલા ચાર મહાધર પ્રાસાદોમાં ૮૪. દેવકુલિકાઓ છે. મંદિરના ત્રણ માળમાં ૨૪ રંગમંડપો, ૮૫ શિખરો અને ૧૪૪૪ સ્તંભો છે. તેમજ ૮૪ ભોંયરાઓ પણ છે. આ ધરણવિહાર મંદિર ૪૮૦૦૦ વર્ગ ફીટના વિસ્તારમાં પથરાયેલું છે. મંદિરની ઊંચાઇના પ્રમાણમાં જગતિ ભોયતળિયાની ઉંચાઇ અને વિસ્તાર, ચારે દિશામાં એક સરખાં પગથિયાં, શૃંગાર ચોકીઓ તે ઉપરના મંડપો, દરવાજાઓ બધું માપ એકસરખું નજરે પડે છે. અંદરની બાજુએ ચારે દિશાના ચાર દરવાજાયુક્ત મુખ્ય મંદિર, તેના ચાર સભા મંડપ, ચાર વિશાળ મેઘનાદ મંડપો, તેના તોરણો યુક્ત ઊંચા સ્તંભો, મુખ્ય મંદિરના ચારે ખૂણામાં શિખરબંધી દેરાસરો, ભમતીની શિખરબદ્ધ દેવકુલિકાઓ, વચ્ચે વચ્ચે ચારે તરફના એકસરખા મોટા ગભારા ઉપર બે માળ અને શિખરબંધી રચનાવાળું આ મંદિર છે. આ બધા ઠેકાણે શિલ્પના દર્શન તો થાય જ છે પરંતુ મેઘનાદ મંડપની શિલ્પકળાની સમૃદ્ધિ જ યાત્રિકનું મન હરી લેવા પૂરતી છે. આ મંદિર નિર્માણમાં થયેલા ખર્ચની વિગતો ૧૮મા સૈકામાં રાણકપુરની તીર્થયાત્રાએ આવેલા જ્ઞાનવિમલસૂરિજીએ રાણકપુર તીર્થ સ્તવનમાં ઘણવિહારના વર્ણનમાં જણાવેલ છે. જિનમંદિર નિર્માણમાં આજથી સાડાપાંચસો વર્ષ પૂર્વ ૯૯ લાખ સુવર્ણમુદ્રાઓનો ખર્ચ થયો હતો. “પોરવાડ નિન્ના ના દ્રવ્ય તાયો મુખ્ય મંદિરની રચના પછી રાણકપુરની જાહોજલાલીમાં વિદેશી આક્રમણના કારણે ઓટ આવી. મોગલ સમ્રાટ ઔરંગઝેબે આ પ્રદેશમાંથી પસાર થતાં ધરણવિહારને ઘણું નુકશાન પહોચાડ્યું હતું. એ પછી આ વિસ્તારમાં દુષ્કાળનો ઓળો ઉતરતાં આસપાસની વસતી શહેરોમાં સ્થળાંતરિત કરી ગઇ. આ તીર્થની આસપાસ ગીચ ઝાડી ઊગી ગઇ, રસ્તાઓ વિકટ અને નિર્જન બન્યા, જંગલી પશુઓનો ભય વધ્યો. એટલે લોકોની આ પ્રદેશમાં અવર જવર ઘણી જ ઓછી થઈ. યાત્રીઓથી ધમધમતું સ્વર્ગસમું આ તીર્થ સાવ નિર્જન બન્યું. જિનાલયનો જીર્ણોદ્ધાર :- જેમ ભરતી પછી ઓટ અને ઓટ પછી ભરતી આવે છે તેમ આ મંદિરના ચઢતીના દિવસો આવ્યા. અમદાવાદના નગરશેઠ હેમાભાઈ વખતચંદ સંઘ કાઢીને સાદડી ગામમાં આવેલા ત્યારે એમને આ તીર્થની કફોડી જીદશા જોઇને આ તીર્થને ડાકુ-લૂંટારાઓના ભયથી મુક્ત કરવા પગલા ૨. જૈન તીર્થ સર્વસંગ્રહ, ભાગ-૧, ખંડ બીજો પૃ. ૨૧૬. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर • २६ લીધાં. આ વાસ્તવિકતા પિછાણીને સાદડીના શ્રી સંધને રાણકપુર તીર્થના જીર્ણોદ્ધારની ભાવના જાગી. જીર્ણોદ્ધાર માટે સંપત્તિ તથા કારીગરો મેળવવા જેવા અનેક જટિલ પ્રશ્નોના કારણે ભારતના સમસ્ત થે. મૂ. પૂ. જૈન સંધની પ્રતિનિધિ સંસ્થા શેઠ આણંદજી કલ્યાણજી સાથે વાટાઘાટો આદરી. છેવટે શ્રી સાદડી સંઘે શેઠ આણંદજી કલ્યાણજી પેઢીને આ તીર્થનો વહીવટ સોંપ્યો. શેઠ આણંદજી કલ્યાણજી પેઢીના સુકાની શ્રેષ્ઠીવર્યશ્રી કસ્તૂરભાઈ લાલભાઈએ શાસનસમ્રાટ શ્રીમદ વિજય નેમિસૂરીશ્વરજી મહારાજ સાહેબની સલાહ અને આજ્ઞા લઇને એ સમયના કુશળ શિલ્પીઓનો સાથ લઈને અને તે સમયના સ્થાપત્યના વિદ્વાન અને નિષ્ણાંત શિલ્પી ગ્રેગસન બેટલીનો પણ સાથે મેળવીને રાણકપુરના મંદિરના જીર્ણોદ્ધારનું કાર્ય સુંદર રીતે પાર પાડ્યું. શ્રેષ્ઠીવર્ય શેઠશ્રી કસ્તૂરભાઈ લાલભાઈની વિશાલ દૃષ્ટિથી મંદિર અને પરિસરની વ્યવસ્થાઓમાં નવેસરથી રચના કરવામાં આવી. ઝુમ્મરો, મેઘનાદ મંડપ વગેરે ફરી ચેતનવંતા બન્યાં. નવી ધર્મશાળા, ભોજનશાળા અને અન્ય સુવિધાઓ પણ ઊભી કરવામાં આવી. વિ.સ. ૧૯૯૦માં શરૂ કરેલું જીર્ણોદ્ધારનું કાર્ય અગિયાર વર્ષ સુધી ચાલ્યું. વિ. સં. ૨૦૦૯માં ૫. પૂ. વિજયઉદયસૂરિજી મ.સા. તથા પ.પૂ. વિજયનંદનસૂરિજી મ.સા. વગેરે આચાર્ય ભગવંતો અને મુનિ ભગવંતોની નિશ્રામાં યાદગાર રહે તેવો પુનઃ પ્રતિષ્ઠાનો ઉત્સવ ઉજવાયો. સાવ ઉજડ અને વેરાન બની ગયેલા આ મંદિરે પુનઃ એના શિલ્પ, સૌદર્ય અને ધર્મભાવનાનો ધ્વજ લહેરાયો. આ જિનમંદિરમાં ૧૪૪૪ સ્તંભોની અનુપમ રચના કરવામાં આવી છે. આ સ્તંભોની ભવ્યતા અને એની કોતરણી દર્શનાર્થીઓને આકર્ષે છે. આ સ્તંભો આડી અને ઊભી હરોળમાં એવી રીતે ગોઠવવામાં આવ્યા છે કે દર્શનાર્થીઓને ગમે તે બાજુએથી પ્રભુ દર્શનમાં અવરોધરૂપ બનતા નથી. આ સ્તંભો સ્થાપત્ય સૌંદર્યનો અનુભવ કરાવે છે. તેમજ એનું નકશીકામ મન હરી લે છે. એવી જ રીતે એક જ પત્થરમાંથી બનાવેલાં મનોહર તોરણો એ આ જિનમંદિરનું આગવું કલા પાસું છે. આ મંદિરની ભૂતકાલીન મહત્તા આંકનારા સ્તવનો અને તીર્થમાળાઓ રચાઈ છે. શ્રી મેહ કવિએ સંવત ૧૪૯૯માં રચેલા રામપુર તુક્રવાસી સ્તવન માં તેમણે પ્રત્યક્ષ જોયેલા ગામનું વર્ણન કર્યું છે. આબુના મંદિરો એની ઝીણી કોરાણી માટે પ્રસિધ્ધ થયાં. રાણકપુરના મંદિરમાં કાંઇ કોતરણી ઓછી નથી, પણ પ્રેક્ષકનું ધ્યાન એની સપ્રમાણ વિશાળતા તરફ ખેંચાય છે. તેથી જનસમૂહમાં “આબુની કોરણી અને રાણકપુરની માંડણી’ એવી લોકોકિત પ્રસિધ્ધિ પામી. કવિશ્રી મેહે પણ રાણકપુરના મંદિરની કોરાણીને આબુની કોણી જેવી, એના જીવનમાં નીચેની પંક્તિમાં વર્ણવી છે. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ge www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ‘વિવિધ રૂપ પૂતલી અપાર, કોરણીએ અર્બુદ અવતાર’ તો, ઋષભદાસ કવિએ આ તીર્થનું મહાત્મ્ય નીચેની પંક્તિઓમાં દર્શાવ્યું છે. ‘ગઢ આબુ વિ રિસયો, ન સુણ્યો હીરનો રાસ રાણકપુર નવિ ગયો, ત્રિષ્યે ગર્ભાવાસ’ मार्च २०१३ જેમણે ખરેખર આબુ અને રાણકપુરની જાત્રા કરી નથી, શ્રીહીરવિજયસૂરિ રાસનું શ્રવણ કર્યુ નથી એનું જીવતર એળે ગયું છે એમ જાણવું. નીચેની લોકોકિતમાં પણ રાણકપુરનું મહત્ત્વ દર્શાવ્યું છે. ‘શત્રુંજયનો મહિમા અને તારંગાની ઊંચાઇ આબુની કોરણી અને રાણકપુરની બાંધણી; કટકું, બટકું ખાજે, પણ રાણકપુર જાજે’ ધર્મરસિકો માટે રાણકપુર તીર્થ ભક્તિ અને આરાધનાનું પવિત્ર ધામ છે. ઇતિહાસવિદો માટે પંદરમા શતકના મેવાડના અને ભારતના ઇતિહાસની ગૌરવગાથા છે. દેશ અને વિદેશના પ્રવાસીઓ માટે ભારતીય ધર્મ સંસ્કૃતિનું એક અનન્ય અને અદ્વિતીય સ્થળ છે. સ્થાપત્યરસિકને માટે સ્થાપત્યના સૌંદર્યનો અનુભવ કરાવનારું બેનમૂન સ્થાપત્ય છે. સંદર્ભસૂચિ ૧. રાણકપુર, લે. રતિલાલ દી. દેસાઈ, શેઠ આણંદજી કલ્યાણજીની પેઢી, અમદાવાદ, ૧૯૮૭ ૨. જૈન તીર્થ સર્વસંગ્રહ, ભા.૧ ખંડ બીજો, શેઠ આણંદજી કલ્યાણજીની પેઢી, અમદાવાદ ૩. રાણકપુર તીર્થ, લે. રમણલાલ ચી. શાહ, જૈનદર્શન પરિચયશ્રેણી-૪, પુસ્તક-૪, શ્રી જયભિખ્ખુ સાહિત્ય ટ્રસ્ટ, અમદાવાદ, એપ્રિલ, ૧૯૯૩ ૪. રાણકપુરની પંચતીર્થી (સચિત્ર), લે. પં, અંબાલાલ પ્રેમચંદ શાહ, પ્રકા, શ્રી યશોવિજયજી જૈન ગ્રંથમાળા, ભાવનગર, ૧૯૬૭ ૫. રાણકપુરની ભીતરમાં, લે. આ. શ્રી મુક્તિપ્રભસૂરિ, પ્રકા. વિજયમુક્તિચંદ્રસૂરિ ગ્રંથમાળા, સુરત ભક્તિ અને કળાના સંગમનું તીર્થ શ્રી રાણકપુર, લે. રતિલાલ દીપચંદ દેસાઈ, પ્રકા. આણંદજી કલ્યાણજીની પેઢી, અમદાવાદ, ૧૯૭૯. ૬. જૈન સત્ય પ્રકાશ, વર્ષ-૯, અંક-૮, ક્રમાંક-૧૦૪, ૧૯૪૪, ૭. નામંવિર રાનપુર, લે. યરાન બૈન, પ્રહા. સામને હસ્તીમન, ચોમ્બે, ૧૯રૂ * એક વિશેષ નોંધ : રાણકપુર પ્રતિષ્ઠા લેખ સંગ્રહ-સંપા. ૫. પૂ. શાસનસમ્રાટ્નીના સમુદાયના ૫. પૂ. આચાર્યભગવંતશ્રી સોમચન્દ્રસૂરીશ્વરજી મ. સા. દ્વારા રાણકપુર પ્રતિષ્ઠા લેખ સંગ્રહનું સંપાદન કાર્ય ચાલુ છે, જે ટૂંક સમયમાં પ્રકાશિત થશે. - For Private and Personal Use Only ૩. આનંદકાવ્ય મહોદધિ- હીરવિજયસૂરિરાસ, પૃ.-૯૨ પ્રકા- દેવચંદ લાલભાઈ પુસ્તકોધ્ધાર ફંડ, સુરત ૪. ત્રૈલોક્યદીપક રાણકપુર તીર્થ પૃ.-૬૨ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આચાર્યશ્રી કૈલાસસાગરસૂરિ જ્ઞાનમંદિર, કોબા સંક્ષિપ્ત કાર્ય અહેવાલ ફેબ્રુઆરી-૧૩ જ્ઞાનમંદિરના વિવિધ વિભાગોના કાર્યોમાંથી ફેબ્રુઆરીમાં થયેલાં મુખ્યમુખ્ય કાર્યોની ઝલક નીચે પ્રમાણે છે ૧. હસ્તપ્રત કેટલૉગ પ્રકાશન કાર્ય અંતર્ગત કુલ ૯૩૯ મતો સાથે કુલ ૧૪૧૯ કતિલિંક થઈ અને આ માસાંત સુધીમાં કેટલૉગ નં. ૧૫ માટેની લિંકનું કાર્ય પૂર્ણ થયું તથા ૧૬ કેટલૉગ માટે ૧૨૪૦ લિંકનું કાર્ય પૂર્ણ થયું. ૨. હસ્તપ્રત સ્કેનીંગ પ્રોજેક્ટ હેઠળ હસ્તપ્રતોના પ૬૭૩૮ પાનાઓનું સ્કેન કરવામાં આવ્યું. ૩. વિશ્વ કલ્યાણ ગ્રંથ પુનઃ પ્રકાશન પ્રોજેક્ટ હેઠળ ૫૧૮ પાનાઓની ડબલ એન્ટ્રી કરવામાં આવી. ૪. લાયબ્રેરી વિભાગમાં જુદા-જુદા ૯ દાતાઓ તરફથી ક00 પુસ્તકો ભેટ સ્વરૂપે પ્રાપ્ત થયાં. ૫. લાયબ્રેરી વિભાગમાં પ્રકાશન એન્ટ્રી અંતર્ગત કુલ ૬૮ પ્રકાશનો, ૯૦૦ પુસ્તકો તથા પ્રકાશનો સાથે ૪પપ કૃતિ લીંક કરવામાં આવી, તેમજ ૧૦૨ પ્રકાશનો તથા ૩૬ કૃતિઓ તથા ૨૭ પ્રકાશન કૃતિલિંકની સંપૂર્ણ માહિતી સુધારવામાં આવી. ૬. મેગેઝિન વિભાગમાં ૨૮૨ પટાંકની સંપૂર્ણ માહિતી ભરવામાં આવી તથા તેની સાથે યોગ્ય કૃતિ લિંક કરવામાં આવી. તેમજ ૧૫૯ મેગેઝિન અંક કોપીઓની માહિતીઓ ભરવામાં આવી. ૭. ૪ વાચકોને હસ્તપ્રત તથા પ્રકાશનોના ૧૨૨૫ પાનાની પ્રીન્ટ કૉપીઓ ઉપલબ્ધ કરાવવામાં આવી. આ સિવાય વાચકોને કુલ ૩૭૩ પુસ્તકો ઈશ્ય થયાં તથા ૩૪૯ પુસ્તકો જમા લેવામાં આવ્યાં. વાચક સેવા અંતર્ગત પૂ. સાધુસાધ્વીજી ભગવંતોને તથા વિદ્વાનોને નીચે પ્રમાણે માહિતી આપવામાં આવી. a. ૫. કુલચંદ્રવિજયજી મ.સા.ને શત્રુંજય અંગે, મુ. પરમપ્રેમવિજયજી મ.સા ને ગુરુવંદન સંબંધી તેમજ પ્રો. પ્રીયોત્ર બાસરોવીઝ - પોલેંડને જૈનન્યાય અને પ્રો. યોગિનીબેનને વૈદિક સંસ્કૃત આદિ ગ્રંથોની માહિતી આપવામાં આવી, ૮. સમ્રાટ સંપ્રતિ સંગ્રહાલયની મુલાકાતે ૯૪૭ યાત્રાળુઓ પધાર્યા. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाचार सार श्री घंटाकर्ण महावीर देव मन्दिर की प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न श्री तारंगा महातीर्थ की तलहटी में स्थित श्री सम्भवनाथ जैन आराधना केन्द्र के परिसर में सम्यग्दृष्टि शासनरक्षक श्री घंटाकर्ण महावीर देव की मंगलप्रतिष्ठा २० फरवरी, २०१३ को परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य भगवन्त श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की निश्रा में सम्पन्न हुई । दिनांक १८ फरवरी, २०१३ से २० फरवरी, २०१३ तक आयोजित त्रीदिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया था । इस मंगलमय अवसर पर परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब, पूज्य पंन्यास श्री प्रशान्तसागरजी महाराज साहब, पूज्य मुनिवर श्री पद्मरत्नसागरजी महाराज साहब, पूज्य मुनिवर श्री पुनीतपद्मसागरजी महाराज साहब, पूज्य मुनिवर श्री भुवनपद्मसागरजी महाराज साहब एवं अन्य साधुसाध्वी भगवन्त उपस्थित थे। देश के विभिन्न भागों से पधारे हजारों श्रद्धालुओं ने इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में उपस्थित होकर पुण्य लाभ अर्जित किया । श्री सम्भवनाथ जैन आराधना केन्द्र, तारंगा ने श्री घंटाकर्ण महावीर देव मंदिर का निर्माण एवं प्रतिष्ठा कराने का सम्पूर्ण लाभ श्री जयेशभाई शाह परिवार, मुंबई को दिया था । सागर समुदाय की तीन साध्वियाँ दुर्घटनाग्रस्त सागर समुदाय की तीन साध्वियाँ परम पूज्य श्री कल्पगुणाश्रीजी म. सा., परम पूज्य श्री कल्परत्नाश्रीजी म. सा. एवं परम पूज्य श्री हर्षनन्दिताश्रीजी म. सा. एक जैन श्रावक के साथ मुंबई में गोरेगाँव से शान्ताक्रूज की ओर दिनांक २६ फरवरी, १३ को विहार करके आ रही थीं, तब जोगेश्वरी (पश्चिम) में एस. वी. रोड पर प्रातः ६.३० बजे अज्ञात दूध वाहन द्वारा उन्हें अचानक टक्कर मार देने से गंभीर रूप से घायल हो गयीं। सभी घायलों को तत्काल कपाडिया हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनका उपचार चल रहा है। समाचार प्राप्त होने तक उनकी हालत नाजुक है, किन्तु खतरे से बाहर बताया गया है। परम पूज्य पंन्यास श्री देवेन्द्रसागरजी म. सा. जो शान्ताक्रूज उपाश्रय में विराजमान थे, के द्वारा घटना की जानकारी देने पर वैयावच्च प्रेमी गुरुभक्तों ने कपाडिया हॉस्पीटल जाकर उनके स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त की एवं उचित व्यवस्था करवाई। पूज्य पंन्यासश्री ने गोरेगाँव श्रीसंघ को भी इस घटना की सूचना दी एवं वे स्वयं भी उनके स्वास्थ्य की जानकारी लगातार ले रहे हैं। श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र एवं ज्ञानमन्दिर परिवार परम कृपालु परमात्मा से उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की मंगल कामना करता है। For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra శాస్ www.kobatirth.org , कंइक अनोखं सर्जाय हे. गुरुवरना आशिषथी आवुं अभिनव सर्जन एनी साक्षी पूरे छे... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री बुद्धिसागर विहार - पद्म पिरामीड जिनालय, महुडी तीर्थ राणकपुरनी शिल्प-समृद्धि For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्लगमन ESTATA TRIPOST लान SORARAM चोवीशी पट BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर - 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स: (079) 23276249 E-mail : gyanmandir@kobatirth.org website : www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only