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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २६ ३५ निज-सेवक कथनइ जांणी वात, दरिसन देखवा हरख न मात. ९ नेम पधार्या जिन नेम..... रथि बइसी आविउ तिणि कालि, पंचाभिगम साचवि तिणि तालि. १० नेम पधार्या जिन नेम..... देई प्रदक्षिणा सागरचंद, भेट्या यदूपतिपयअरविंद. ११ नेम पधार्या जिन नेम..... यथा-योगि बिठउ सुभरीति, धर्म सुणइं आदरि मन प्रीति. १२ नेम पधार्या जिन नेम..... |ढाल-सातमी।। ।।झूबकडानी देसी।। भाखि भगवंत जांणिनई रे, मधुर-वचनइ हितसीख सोभागी सांभलउ धर्म करउ तुमो धुरि लगइ रे, सरस जास रस-ईख सोभागी (आंकणी) भव गोत हिरउ दोहिलउ रे, जिहां कणि विसमी व्याधि सोभागी, कर्म करू रज ऊपहरू रे, किम वीयई जीव समाधि सोभागी. ६ सांभलउ धर्म करउ... राग-द्वेषनी सांकलई रे, बंधाणा सवि जीव सोभागी, सूख थोडां संसारमि रे, दुरगति दुख अतीव सोभागी. ७ सांभलउ धर्म करउ... मिथ्यामति सवि परिहरउ रे, आदरउ श्रीजिनधर्म सोभागी मुगतिरमणि तुम वालही रे, छांडु विरूयां५ कर्म सोभागी. ८ सांभलउ धर्म करउ... देसन वाणि सूधारस्यइं रे, प्रीणिउ सागरचंद सोभागी, समकित आदरइं सुंदरू रे, सवि तिजिउ मिथ्याकंद सोभागी. ९ सांभलउ धर्म करउ.. श्रावक धर्म अंगीकरी रे, आविउ वंदी गेहि सोभागी, विहार करिउ नेमीसरि रे, अवर गामि-पुरि रेहि सोभागी. १० सांभलउ धर्म करउ... For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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