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श्रुतसागर - २६
३५ निज-सेवक कथनइ जांणी वात, दरिसन देखवा हरख न मात. ९
नेम पधार्या जिन नेम..... रथि बइसी आविउ तिणि कालि, पंचाभिगम साचवि तिणि तालि. १०
नेम पधार्या जिन नेम..... देई प्रदक्षिणा सागरचंद, भेट्या यदूपतिपयअरविंद. ११
नेम पधार्या जिन नेम..... यथा-योगि बिठउ सुभरीति, धर्म सुणइं आदरि मन प्रीति. १२
नेम पधार्या जिन नेम..... |ढाल-सातमी।। ।।झूबकडानी देसी।। भाखि भगवंत जांणिनई रे, मधुर-वचनइ हितसीख सोभागी सांभलउ धर्म करउ तुमो धुरि लगइ रे, सरस जास रस-ईख सोभागी
(आंकणी) भव गोत हिरउ दोहिलउ रे, जिहां कणि विसमी व्याधि सोभागी, कर्म करू रज ऊपहरू रे, किम वीयई जीव समाधि सोभागी. ६
सांभलउ धर्म करउ... राग-द्वेषनी सांकलई रे, बंधाणा सवि जीव सोभागी, सूख थोडां संसारमि रे, दुरगति दुख अतीव सोभागी. ७
सांभलउ धर्म करउ... मिथ्यामति सवि परिहरउ रे, आदरउ श्रीजिनधर्म सोभागी मुगतिरमणि तुम वालही रे, छांडु विरूयां५ कर्म सोभागी. ८
सांभलउ धर्म करउ... देसन वाणि सूधारस्यइं रे, प्रीणिउ सागरचंद सोभागी, समकित आदरइं सुंदरू रे, सवि तिजिउ मिथ्याकंद सोभागी. ९
सांभलउ धर्म करउ.. श्रावक धर्म अंगीकरी रे, आविउ वंदी गेहि सोभागी, विहार करिउ नेमीसरि रे, अवर गामि-पुरि रेहि सोभागी. १०
सांभलउ धर्म करउ...
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