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मार्च - २०१३
टक। सोर ऊठिउ विण अवसर पाखड़, कुमरी लेई जातउ कोई राखइ, नभसेन नीसासा बहु नाखि, वज्जिाइ] हणिउ वेदन परिभाखि'. ७२
जी राजेसर.... उग्रसेन सवि राजीया रे, विलखवदन थया तामो, सोधवा लागा चिहूं दिसइं रे, यादव सवि अभिरांमो. ७३
जी राजेसर.... [टक।। यादव सवि अभिराम तिहां कणि जोता, आव्या नारि जेणि वनि, प्रद्युमन-शांबकुमर तिहां पणि, सागरचंद पासि दीठी धणि. ७४ कमलामेला परणी लही रे, धनसेन उग्रसेन रायो, कोपाकुल थया ततखिणइ रे, कुवचन कहि चिति लायो, ७४
टक। कुवचन कहि चित्ति लाई रे पापी, अपकीरति जगि तुमची व्यापी, कूडी बुधि इसी कूणि आपी, न्याय रीति तुमे. दूरि कापी. ७५
जी राजेसर.... करी अन्याय जासिउ किहां रे, पुण्यहीण गमारो, सीख देवा नही को तिसउ रे, रेति-रेति जात कुमारो. ७६
टक।। रेति-रेति जात कुमर तिवारि, अमसर सीख देसइ विवहारइं, भाटकि आंधलउ भीति संभारी, अमो पड्या तुमारी लारि. ७६
जी राजेसर.... कुवचन बोल सुण्या तिसारे, खंत उपरि जिम खारो, शांबकुमरनि रोकीया रे, करता ऊग्र प्रहारो. ७७
* पीडाथी दुःखी थयेला अवाज करता व्यक्तिनी जेम बोले छे. [?]
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