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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ श्रुतसागर - २६ टक।। करता ऊन प्रहार सडा-सडि, संबकुमर पणि आव्या अडो-अडि, सुभट तिहां भिडि भीम भडो-भडि, भालानि तरवारि कडो-कडि. ७७ जी राजेसर.... कुमरि कटक करिउ वेगलउ रे, भूज बलि तेणि तुरंतो, उग्रसेन सवि चिंतवइ रे, साथनो आणिउ अंतो. ७८ [टक।। साथनो आंणिउ अंत रे भाई, बल नवि चालि एहसिउं लाई, पाछा वल्या सघला सखाई, कृष्णनइं ओलंभउ५ दीयई धाई. ७८ जी राजेसर.... ।।दाल- 11 चौपईनी।। राग-भूपालि उग्रसेन धनसेन वचन्नि, गोपीनाथ आविउ तिणि वन्नि, शांबकुमरनि हाकी कहि, उत्तम अन्याय सांसी किम रहि. ७९ रे कुपुत्र ए कीधू किसिउ, निरमल-कुलनि खंपण जिसिउं, हिवि नभसेननि कन्या देहि, मानि वचन मत ढील करेहि. ८० राजकन्या वली अवर सुचंगि, परणावउ सागरनि रंगि, तातवचन सूणी संबकुमार, वीनती एक करि मर्नुहारइं. ८१ कहउ तात किहां वात सांभली, शास्त्रमांहि दीठीसिउं भली, परणी कन्या किम देवाय, न्याय इसिउं अवलउ किम थाय. ८२ तुम वचनई क्ली देसिउं वही, हठनी वात तिजी अम्हे सही, वचन तुम्हारु सिरि चाडीयई, गूढ-प्रपंच ए देखाडीयई. ८३ वृद्धकानि घाती जइ वात, किमही काज न विणसि तात, इम करता घरमा नही खेम, अंतरद्रष्टि देखउ एम. ८४ प्रद्युमननइं सांबकुमारि, प्रीछवीयउ८ श्रीकृष्ण मुरारि, पद्मनाभ मनि चिंतइ आज, मुष्टि भली बोली वछराज. ८५ For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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