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मार्च - २०१३ ||ढाल-पांचमी।। ।राग-टोडी।। धन्यासिरी-एहनी देसी।। पाछलि खबरि करी घणी रे, साधई न दीठउ सोय, पइंठउ एकांति घरि जई रे, कहू तस सुधि किम होयो रे. ५० अरणक चींतवइं हा! हा!, कूण की— काजो रे, संयम छोडीयुं लागी, कूलमई लाजो रे. ५१
___ अरणक चींतवई... (आंकणी) सु(शु)द्धि विना भद्रा तदा रे, दुख धरती दिन राति, अरणक-अरणक मूखि जपइ रे, जोती फिरइं तिणि धाति रे. ५२
अरणक चीतवइं... सुतवियोगि गहिली थई रे, दीसि अंग विपरीत, कर्म तणी पाडूई१६ रे, जीव न चेति विदीतो रे. ५३
अरणक चीतवई... बालक जे जे नाहनडा रे, देखी रूप-सरूप, जाई कहि मुगधपणई रे, ए मुझ सूत अनूपो रे. ५४
अरणक चींतवइं... विधि वसि विपरीत देखिनइ रे, हासी करि सविलोक, नवि जांणि भोला इसिउ रे, करमबंधन फल रोको रे. ५५
अरणक चींतवई... बहु कालि आवी तिस्यइं रे, तिणि आवासनिं हेठि, गोखि बिठां अरणकि इसी रे, दीठी जननी द्रेठी रे. ५६
अरणक चीतवइं... मुझ विजोगि गहिलीई रे, मात किसो करइ एम, एह अकारिज मि करिउ रे, कष्टि८ पड़ी लहं प्रेमई रे. ५७
अरणक चीतवइं... रयणचिंतामणि व्रत भलू रे, हारिउ काचनि काजि, काया पोष करि इसिउ रे, मलिन करिउ जीव साजि रे. ५८
अरणक चीतवई...
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