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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० मार्च - २०१३ ||ढाल-पांचमी।। ।राग-टोडी।। धन्यासिरी-एहनी देसी।। पाछलि खबरि करी घणी रे, साधई न दीठउ सोय, पइंठउ एकांति घरि जई रे, कहू तस सुधि किम होयो रे. ५० अरणक चींतवइं हा! हा!, कूण की— काजो रे, संयम छोडीयुं लागी, कूलमई लाजो रे. ५१ ___ अरणक चींतवई... (आंकणी) सु(शु)द्धि विना भद्रा तदा रे, दुख धरती दिन राति, अरणक-अरणक मूखि जपइ रे, जोती फिरइं तिणि धाति रे. ५२ अरणक चीतवइं... सुतवियोगि गहिली थई रे, दीसि अंग विपरीत, कर्म तणी पाडूई१६ रे, जीव न चेति विदीतो रे. ५३ अरणक चीतवई... बालक जे जे नाहनडा रे, देखी रूप-सरूप, जाई कहि मुगधपणई रे, ए मुझ सूत अनूपो रे. ५४ अरणक चींतवइं... विधि वसि विपरीत देखिनइ रे, हासी करि सविलोक, नवि जांणि भोला इसिउ रे, करमबंधन फल रोको रे. ५५ अरणक चींतवई... बहु कालि आवी तिस्यइं रे, तिणि आवासनिं हेठि, गोखि बिठां अरणकि इसी रे, दीठी जननी द्रेठी रे. ५६ अरणक चीतवइं... मुझ विजोगि गहिलीई रे, मात किसो करइ एम, एह अकारिज मि करिउ रे, कष्टि८ पड़ी लहं प्रेमई रे. ५७ अरणक चीतवइं... रयणचिंतामणि व्रत भलू रे, हारिउ काचनि काजि, काया पोष करि इसिउ रे, मलिन करिउ जीव साजि रे. ५८ अरणक चीतवई... For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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