________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५१
श्रुतसागर · २६
हा! गुरू सीख न मइं वही रे, नवि पालिउ आचार, दिन गया अकीयारथा रे, करि पछतायु कुमारो रे. ५९
अरणक चीतवइं... ढाल-छट्ठी।। ।।ऊच्छरपणीनी।। तुरत ऊतरिउ गुखथी९ अरणक, मातनि चरणे लागोजी, दया लगई लोचनि जल-भरतउ, मोहनो बंधन भागोजी. ६० गद-गद वांणी पि एणी परि, ते हुं अरणक मायाजी, तुज ऊदवेग करिउ एतादिनि, हवि मुज करहु पसायाजी. ६१ नेह सलूणे" नयणे निरखिउ, भद्राई निज-पुत्तोजी, आलिंगिउ हीयडइ अति-भीडी, जगि उपाहनो तुरतोजी. ६२ ठामि आविउं चित खिणमि हरखि, बोलि माता प्रेमिंजी, भलि मिलिउ तुं पुत्र अनोपम, एता दिनि रहिउ केमइंजी. ६३ कही अरणकि तव वात आपणी, भोग-सरूप विचारजी, फिरि कही माता निसुणउ जाया, आदरउं संयमभारजी. ६४ व्रतथी चूकउ दिन एतालगि, विषय कलणि अविचारइंजी, विण चारित्रि वच्छ! परिभवि पांमिसि, दुक्ख अधिक संसारइंजी. ६५
ढाल|| वीर वखाणी रांणी चलणाजी ए देसी।। मात सुणउ अरणक कहिजी, नवि पलि मई व्रत एह, तुं कहितउ अणसण ग्रहिउंजी, व्रतभंगि जीविउं सिउं देहि. ६६
मात सुणउ अरणक...(आंकणी) अगनिपरवेस भलउ जीवनिजी, व्रत नवि खंडयई जांणि, विष थकी विषय विरूआ२१ कह्याजी, ए अरिहंतनी वांणि. ६७
मात सुणउ अरणक... माती जे कहउ ते तिसिउंजी, सीलभंगि हीला साच, लाज आवि पणि मझ हविजी, मुनि रहितां सुण उवाच. ६८
. मात सुणउ अरणक...
For Private and Personal Use Only