________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२
मार्च - २०१३ २. विक्रमनी अंदाजे १७मी सदीमां आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराजनी निश्रामा विजयशेखरना शिष्य मुनि गणेशे ठाणांगसूत्र वृत्ति सहित धवलकनगर (धोळका)ना ग्रंथागारमा पठन-पाठन हेतु मुकाव्यानो उल्लेख प्राप्त थाय छे. प्रत विशेष :
मध्यकालीन साहित्यनी घरेणा जेवी कृतिओ आ ज्ञानमंदिरनी शोभाने तरोताज्जा राखे छे. आ बे कृतिओनी हस्तप्रत ज्ञानमंदिरमा १७५२४ नंबर पर नोंधायेल छे. प्रतनुं माप २७X१२' छे. कुल पत्रो १० छे. दरेकपत्रमा १३ लीटी, दरेक लीटीमां ३८ थी ४३ अक्षरो लखाया छे. वच्चेना चोखंडामां चार अक्षरो लखेला छे. प्रतमां दंडनो उपयोग लगभग नथी. पडिमात्रानो उपयोग घणा स्थाने थयेलो छे. खास करीने अनुनासिकने संयोगे वधारानो अनुस्वार घणे ठेकाणे मळे छे. जेम के आंणी, छांनू, नामि, ख ने स्थाने 'ष' देषि-देखि, सुष-सुख, रेष-रेख क्यांक स्वतंत्रपणे ख अने ष पण लखायेलो जोवा मळे छे. अक्षरो चोक्खा अने सुघड छे. पहेला पत्रनी पाछळनी बाजुएथी सागरचंदमुनि रास शरू थाय छे, अने पेज नं. ७ना आगळना पेज उपर सागरचंदमुनि रास पूरो थाय छे. पेज नं. ७ ना पाछळना भागथी अरणिकमुनि रास शरू थाय छे, अने पेज नं. १० ना पाछळना भागे अरणिकमुनि रास पूरो थाय छे. सागरचंदमुनि रासमां ९० नंबर पछीनी कडीओ १ नंबरथी शरू थाय छे.
प्रथम कृतिनी आदिमां (भले चिह्न) श्रीवीतरागाय नमः लखीने प्रतिलेखके कृतिनुं आलेखन कर्यु छे. कृतिनी ढाळ, देशी, अने राग माटे लाल रंग वापर्यो छे, तूटी गयेलो पाठ हांसियामां उमेर्यो छे. प्रतना अंते प्रतिलेखन पुष्पिका आ प्रमाणे
पुष्पिका :- संवत १७०३ वर्षे कार्तिकमास शुक्लपक्षे ७ शनौ वणथली ग्रामे ऋ. श्रीश्रीश्रीश्रीश्री मेघाजी तस शिष्येण आंबा आत्मार्थं श्रीरस्तू ।।श्री।।
प्रस्तुत बन्ने रासोना संपादनमां जिनाज्ञा विरुद्ध कांई पण लखाई गयुं होय एनुं त्रिविधे-त्रिविधे मिच्छामि-दुक्कडम्.
For Private and Personal Use Only