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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सागरचंदमुनि रास प्रथम दुहा सारद सार सदा दीयइं, मुझ मुखि वचनविलास, भगवति प्रणमूं भावसिउं, पु(पूरइ मननी आस. १ जेसलमेरि जगत्रगुरु, जीवन श्रीजिनपास, बेबे कर-जोडी वीनQ, आपउ बुद्धिप्रकास. २ साहिज' दीजइ सगुरुजी, मन सुधि मागु मान, साध तणा गुण गावतां, अंगि वाधि अति वान. ३ खिमा गुणे जगि प्रगडउ, सहिजइ सागरचंद, तस अवदात' कहुं भलउ, आंणी परिमाणंद. ४ |ढाल-पहिली।। ||चंदायणनी देसी(शी)|| एह ज जंबुद्वीपि सुठांम, दक्षिणभरतइ क्षेत्र अभिराम, देस भलउ सोरठ सुखवास, द्वारिकानयरी लीलविलास. १ वासुदेव नवमउ तिहां जाणु, कृष्णराय यादवकुलि भाj, वड बांधव बलभद्र विराजइ, तस सुत निषध अनोपम छाजइ. २ निषधकुमर बेटउ अति बलीयउ, सागरचंद कलाइ कलीयउ, चतुर सुवेधक'नइ ज वाणुं, सोभागी देवकुमर समागु. ३ शांबकुम[रसिउं अति सुसनेह, जीव एकनइ जूदी देह, चकोरनी वाहली रजनी जेम, कमल विकासन सूरिज तेम. ४ यादवकुंयर अतिदुरदंत, रुपइं जीतिउ जिणि रतिकंत, निज इच्छाइं मिली सब खेलइ, सुखइं समाधिइं रहि मन मेलइं. ५ हिवि तिणि पुरि कहिउ महामंडलेस, नामइ धनसेन पुण्य वसेस, कमलामेला कन्या तास, रूप-गुणइं रंभा अभास. ६ यौवनवइं कुंयरि संपन्न, सकलकला भरी नारि रतन्न देखी जुवजन पांमई मोद, सुंदर सहिजइं जिसी कमोद. ७ For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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