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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१३ देखो चारों ओर रेत ही रेत! वीरान और सुनसान भूमि! कहाँ जायें कोई मार्ग नहीं सूझता! बहुत ध्यान देने पर भी कोई मार्ग नहीं मिलता! हाँ मुर्दो की सूखी हड्डियों के अवशेष जरूर दिखाई पड़ते हैं! फाहियान ने अपने यात्रा विवरण में मथुरा पहुँचकर वहाँ से भारत का वर्णन करने की शुरूआत की है। वह पाटलीपुत्र भी गया। सम्राट अशोक के महल को देखकर वह अत्यन्त चकित हुआ। विदित हो कि सम्राट अशोक ने कलिंग के युद्ध में हुई हिंसा से द्रवित होकर बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था । उसने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा सहित कई विद्वान् भिक्षुओं को बौद्ध-धर्म-दर्शन एवं अहिंसा के प्रचारार्थ लंका, वर्मा तथा चीन सहित कई देशों तक भेजा था । फाहियान ने तत्कालीन परिस्थितियों का जो वर्णन किया है उसके आधार पर गुप्तकालीन लोकस्थिति एवं विविध परम्पराओं का बोध प्राप्त होता है। इन जानकारियों से हमें एक अति समृद्ध, सुखी और नीतिमान भारत का चित्रण मिलता है। मृत्यु-दण्ड की सजा का अभाव, मदिरा एवं अन्य मादक पदार्थों के सेवन का निषेध, गुरुकुलों में बटुकों द्वारा शास्त्र एवं शस्त्र-विद्या का संयुक्त अभ्यास | आज अत्यन्त सभ्य गिने जाने वाले राष्ट्रों के लिए भी अशक्य माने जानेवाले आदर्श भारत ने गुप्तकाल में ही प्रसिद्ध करके दिखा दिये थे। इस हकीकत का फाहियान ने मुक्त कण्ठ से वर्णन किया है। तत्कालीन भारत में अतिथि-सत्कार एवं भारतीय शिक्षा-पद्धती का वर्णन करते हुए फाहियान कहता है : अहा! भारत में शिक्षा के लिए कितनी सुन्दर व्यवस्था है। गुरु और शिष्यों का सम्बन्ध विश्व-भर के लिए आदर्श है। विद्यार्थी चाहे राजा का लड़का हो अथवा भिखारी का, सबको अध्यापक अपने पुत्र के समान रखता और पढ़ाता है। गुरु उन्हें रात-दिन अपने नियन्त्रण में रखकर उनके जीवन को अत्यन्त उन्नत बना देता है। हमें सब तरह से भारत का अनुकरण करना चाहिए। वह चीन से सर्वथा श्रेष्ठ है। वह अनुकरणीय है और हमारे लिए आदर्श है। जब मैं स्वदेश में था, तब अपने को विनय का पूर्ण ज्ञाता समझता था; किन्तु भारत में आकर मैंने इस विषय में अपने-आप को कोरा अनभिज्ञ पाया। आह! यदि मैं भारत न आता तो, शुद्ध रीति और अपनी अनभिज्ञता दूर करने का अवसर कब पाता। यद्यपि मुझे आते और जाते, दोनों समय भयंकर लुटेरे-दल का सामना करना पड़ा। और मेरी जान भी खतरे में थी, फिर भी भारत विश्व-भर में दर्शनीय और रहने योग्य स्थान है। यदि जन्मभर मनुष्य अध्ययन करना चाहे, तब भी वहाँ की शिक्षा का पार न पावेगा। वहाँ के विहार, विश्वविद्यालय, ग्रन्थालय, चैत्य आदि देखकर ही अनुभव किये जा सकते हैं। वहाँ का समाज अत्यन्त प्रिय मालूम For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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