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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ श्रुतसागर - २६ होता है। विदेशियों का जितना आदर-सत्कार वहाँ होता है, उतना इस भूखण्ड में शायद ही कहीं होता हो! वहाँ की उर्वर और समतल भूमि, पहाडी उपत्यका, वनप्रान्त एवं खेतों में लहलाती फसलों को देखकर आँखें अघातीं नहीं। बारी-बारी से सुन्दर ऋतु-परिवर्तन तो वहाँ की अलौकिक ईश्वरीय देन है। भारतवर्ष का वर्णन कहाँ तक करूँ वह तो केवल देखकर ही अनुभव किया जा सकता है। ह्वेनसांग : ___ फाहियान से दो सौ वर्ष बाद एक और विख्यात चीनी यात्री भारत आया, जिसका नाम था ह्वेनसांग। यह चीन देश का एक महान् पण्डित था। भारत की यात्रा करना अति कठिन और जीवन को जोखिम में डालने के समान होने के कारण, अपने देश के एक महान् पण्डित की जिन्दगी को जोखिम में डाला जाये यह चीन के सम्राट् को बिल्कुल मान्य नहीं था। इसलिए ह्वेनसांग को चीन छोडकर जाने की आज्ञा सम्राट ने नहीं दी। लेकिन वेनसांग की भारत यात्रा करने की लालसा अदम्य और अडिग थी। अतः २९ वर्ष की आयु में ई. सन् ६२९ में एक रात को उसने चोरी-छुपे अपना घर छोड़ दिया। चौकीदारों से नजर बचाकर ह्वेनसांग ने चीन की सरहद को पार किया। तीन हजार मील का दुर्गम 'प्रवास करके ई. सन् ६३० में वह गांधार होते हुए काशमीर पहुँच गया। वहाँ उसका खूब आदर-सत्कार किया गया। काशमीर में दो वर्ष रहकर उसने संस्कृत एवं संस्कृत के ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया । वहाँ से ह्वेनसांग भगवान बुद्ध की जन्मभूमि के दर्शन करने हेतु निकला। सम्राट हर्ष की राजधानी में उसका जोरदार स्वागत किया गया। कन्नौज में कुछ समय रहने के बाद वह नालन्दा विद्यापीठ में अध्ययन करने हेतु पहुँचा। नालन्दा उस समय अपनी उन्नति के चरम शिखर पर था। सभी दिशाओं में इसकी कीर्ति-पताका फहरा रही थी। सम्पूर्ण सभ्य समाज में से यहाँ विद्योपार्जन हेतु विद्यार्थी आते थे। शीलभद्र नामक एक प्रखर बुद्धिशाली बहुश्रुत महा पण्डित उस समय इस विद्यापीठ का कुलपति था। नालन्दा में भी ह्वेनसांग का जोरदार स्वागत किया गया। यहाँ उसने विद्योपासना एवं बौद्ध ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने में पाँच वर्षों तक अथक परिश्रम किया। इस पञ्चवर्षीय समयान्तराल में वेनसांग की कीर्ति भारत में इतनी फैली की सम्राट हर्ष ने उसे अपनी राज्यसभा में आने हेतु अनेकबार आमन्त्रण भेजा। भारतवर्ष की प्रशंसा करते हुए वेनसांग कहता है-यहाँ की सभी बातों से मैं मुग्ध हो उठा हूँ! यहाँ की सन्तान पितृभक्त होती है, माता-पिता पुत्र-वत्सल For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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