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દર
मार्च - २०१३ होते हैं। गुरु-शिष्यों में अनन्य प्रेम और भक्ति का भाव रहता है। प्रजा राजभक्त होती है। राजा प्रजा की भलाई के लिए कट-मरने को तैयार रहता है। राजाप्रजा सभी में विद्या के प्रति बड़ी अभिरुचि रहती है, कभी कोई राजा सैकड़ों पीठे तैयार कराके अध्यापकों को निमन्त्रित करता है तो कभी कोई राजा राज्य-भर में चैत्य बनवाकर बुद्धिमानों के मन को धर्म की ओर आकृष्ट करता है। उपासना एवं अध्ययन के लिए संघाराम बनाये जाते हैं। किसान अपने खेतों में और व्यापारी अपने जल-पोत अथवा बजडे (बेडे) पर मधुर राग आलापते रहते हैं। कोई भी कष्ट का अनुभव नहीं करता | पेट की चिन्ता यहाँ किसी को नहीं रहती। भारत में अन्न-धन की कमी नहीं है। अतिथि-सत्कार सभी जगह एक समान है। यहाँ के लोग हाथी की पूजा करते हैं! राजा तक हाथी का सम्मान करता है। कहीं-कहीं मुर्गे की पूजा भी होती है। इत्सिंग :
__ भारत आनेवाले यात्रियों में इत्सिंग का नाम भी प्रख्यात है। बचपन से ही उसे बौद्धधर्म के अध्ययन के प्रति लालसा थी। इसी ज्ञानपिपासा की पूर्ति हेतु वह समुद्री-यात्रा करके जावा-सुमात्रा के रास्ते ई. सन् ६७३ के दरम्यान ताम्रलिप्ति बंदरगाह होते हुए भारत पहुँचा।
___ पन्द्रह वर्षों तक उसने भारत के विभिन्न स्थलों पर अध्ययन किया । दस वर्ष तो उसने नालन्दा विद्यापीठ में रहकर निरन्तर अध्ययन-अध्यापन कार्य किया। साथ ही महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ भी तैयार की। वेनसांग-जैसी प्रखर बुद्धि एवं प्रतिभा तो इसके पास नहीं थी लेकिन कठिन परिश्रम करके यह अपने साथ भारत से अनेकों अमूल्य ग्रन्थ और महत्त्वपूर्ण सामग्री लेकर गया। भारतवासियों की सामाजिक परम्परा से सम्बन्धित अनेकविध बातों का उसने वर्णन किया है। शिष्टाचार और अतिथि-सत्कार में उसने भारतवासियों को चीन से आगे बताया है। कुशीनगर, काशी आदि अनेकों तीर्थस्थलों की यात्रा करते हुए वह समुद्री रास्ते से वापस चीन लौट गया। स्वदेश पहुंचने पर स्वयं चीन की साम्राज्ञी 'चोउ-की-धू-होऊ ने अपने हाथों से उसका स्वागत किया था।
इत्सिंग के निर्विघ्न और शान्तिपूर्वक स्वदेश लौट आने तथा महत्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपियों के संग्रह को देखकर सब में अपार आनन्द था। देश के कोनेकोने से लोग उसके दर्शन करने आये थे। वहाँ के लोग उसके दर्शन करके अपने को धन्य समझते थे। भिक्षु-वृन्द तो अतीव आनन्दित हो उठे थे। स्वदेश का एक व्यक्ति, जिसने लगातार २०-२५ वर्षों तक स्वजनों से दूर रहते हुए जान पर
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