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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर • २६ ६५ विद्या-विहार, विद्या-विहार के अन्दर आठ बडे-बडे सभागार और सौ व्याख्यानखण्डों का वर्णन करते हुए ह्वेनसांग जैसे थकता ही नहीं । यहाँ के विशाल और कलात्मक प्रवेशद्वारों, श्रेष्ठतम कारीगरी वाले स्तम्भों और मनोहर छत्रों को देखकर हर कोई चकित रह जाता था। यहाँ के हरे-भरे उपवनों तथा लाल कनक के फूलों से सुशोभित जलाशयों का वर्णन ह्वेनसांग ने दिल खोलकर किया है। ईसा की पाँचवीं सदी में स्थापित यह विद्यापीठ विश्व के अग्रगण्य विद्यापीठों में से एक था। इसकी स्थापना से लेकर विध्वंस-काल तक सात-सात सदियों तक इसकी कीर्तिपताका सम्पूर्ण विश्व में फहराती रही। भारतीय राजा महाराजाओं ने इसे स्थापित करने एवं समृद्ध बनाने में खूब दिलचस्पी दिखाई। तिवेट, चीन, जावा, सुमात्रा, सिलोन (श्रीलंका) आदि देशों से यहाँ अध्ययन हेतु आनेवाले विद्यार्थियों की एक लम्बी कतार थी। अतः उपरोक्त साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध होता है कि जिस प्रकार आज भारतीय विद्यार्थी विदेश में अध्ययन हेतु जाते हैं, उसी प्रकार किसी समय विदेशी छात्र भी विविध विषयों के अध्ययन हेतु हिन्दुस्तान के इन विद्यापीठों में आया करते थे। वेनसांग जैसे चीनी पण्डित ने नालन्दा में लम्बे समय तक रहकर हिन्दू धर्म-दर्शन, वेद-वेदांग एवं बौद्ध धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया। यहाँ का अध्ययन-अध्यापन श्रेष्ठ कोटि का था | उच्च विद्या के अध्ययन हेतु इससे बढकर और कोई संस्था पूरे विश्व में नहीं थी। यहाँ के ग्रन्थागार अतीव विशाल और अध्ययन-सामग्री से परिपूर्ण थे। तीन विशाल भवनों में ग्रन्थों को सुव्यवस्थित तरीके से रखा गया था। इन भवनों के नाम थे-रत्नोदधि, रत्नसागर और रत्नरञ्जक | इनमें से पहला भण्डार ही नौ मस्जिला था। इसीसे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ विद्यार्थियों के अध्ययन-अध्यापन हेतु कितनी ग्रन्थराशी संग्रहीत रही होगी। __ नालन्दा विद्यापीठ जिस प्रकार धर्म और दर्शन, व्याकरण और व्युत्पत्तिशास्त्र, तर्कशास्त्र और साहित्य के अध्ययन का मुख्य केन्द्र था उसी प्रकार शिल्पस्थापत्य एवं अन्य शिक्षण-कलाओं में भी उसका प्रमुख स्थान था। यहाँ प्रत्येक विषय के अनेकानेक मूर्धन्य पण्डितगण निवास करते थे। यहाँ दस हजार विद्यार्थी और पन्द्रहसौ अध्यापक रहते थे। आज समग्र विश्व में शायद ही कोई ऐसा विश्वविद्यालय होगा जहाँ पन्द्रसौ अध्यापक हों। सभी छात्रों तथा अध्यापकों के आवास एवं भोजन आदि की सम्पूर्ण सुख-सुविधाएँ विद्यापीठ द्वारा उपलब्ध कराई जाती थीं। खर्चे की पूर्ति हेतु सौ गाँव जागीर के रूप में विद्यापीठ को दान में दिये गये थे। भारतीय राजा-महाराजा भी समय-समय पर विद्यापीठ के लिए पुष्कल दान देते थे। यहाँ महायानीय बौद्ध-धर्म के अध्ययन हेतु विशेष अनुकूलता For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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