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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ मार्च - २०१३ थी। ब्राह्मण-धर्म एवं दर्शन के अलावा साहित्य, व्याकरण और कला का भी उच्चस्तरीय अध्ययन कराया जाता था। हवेनसांग इस विद्यापीठ का वर्णन करते हुए कहता है कि-जहाँ स्थापत्य का यह महान् प्रासाद स्थित है वहाँ का प्राकृतिक वातावरण भी उसकी शोभा में चारचाँद लगा देता है। जमीन पर कई सरोवर हैं। जिनमें नीलोत्पल विपुल मात्रा में हैं। इनके सुन्दर नीले रंग के साथ कनक-पुष्प भी चारों ओर गहरा लाल रंग विखेरते हैं। आम्रकुजों की घनी छाया जमीन पर चारों ओर फैली हुई है। यहाँ के आचार्य ज्ञान-ध्यान-विज्ञान-कला-साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् हैं। यहाँ के प्रवेशद्वारों पर कुशल द्वारपाल नियुक्त किये जाते हैं जो विद्यापीठ में प्रवेशार्थ आने वाले छात्रों का साक्षात्कार लेकर, उनकी योग्यता को परखकर ही अन्दर जाने देते हैं। भारत में स्थित इन विद्यापीठों, गुरुकुलों, आचार्यों एवं ग्रन्थागारों को देखकर मेरा मन मुदित हो गया। वाकई भारतवर्ष जगद्गुरु है। कालान्तर में नालान्दा की बढ़ती हुई ख्याति ही उसके विध्वंस का कारण बन गई। एक आततायी शासक ने पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर इस दैदीप्यमान ज्ञानदीप को सदा-सदा के लिए बुझा दिया! नालान्दा के इस सम्पूर्ण स्वाभाविक और मानव-निर्मित सौन्दर्य में से सिवाय खण्डहरों के अब कुछ भी नहीं बचा है। यत्र-तत्र मिट्टी के ऊँचे-ऊँचे ढेर दिखाई देते हैं; खण्डित पत्थरों की प्रतिमाएँ कोस-कोस तक बिखरी हुई मिलती हैं। पुरातत्त्वविद् अपने फावडे और कुदाल लेकर वहाँ कुछ खोज निकालने में व्यस्त हैं। एक आततायी शासक बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इस अद्भुत ज्ञानसागर को नेस्तनाबूत कर दिया। यहाँ के ग्रन्थालयों में आग लगा दी गई। जिसमें हजारों-लाखों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जलकर राख हो गये। वर्षों तक यहाँ के ग्रन्थालयों से धुआँ निकलता हुआ देखा गया! और इस प्रकार हमारे ऋषिमहर्षियों द्वारा निर्मित अमूल्य धरोहर नष्ट हो गई। इस धरोहर में से जो कुछ भी अंश स्वरूप बचा है उसे आज हमारे श्रेष्ठी एवं श्रुतसेवी संस्थाएँ संगृहीत कर बचाने के उपक्रम में लगे हुए हैं। विक्रमशिला विद्यापीठ : वेनसांग के भारत से विदा होने के लगभग दो सौ वर्षों के बाद ईस्वीसन की नौवीं सदी में, भागलपुर जिले में गंगा नदी के किनारे विक्रमशिला नामक एक और विद्यादात्री संस्था का जन्म हआ। तिब्बत से असंख्य छात्र इस विद्यापीठ में अध्ययनार्थ आते थे। इस संख्या के बढ़ते हुए प्रमाण का अनुमान इसी से लगाया For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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