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मार्च २०१३
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न कराय, जीव छोडी देवाय, पण व्रत केम छोडाय इत्यादि.... अहीं माता गुरु स्वरूप बनी अरणिकने सांत्वना आपी, सात्विकतानुं वावेतर करे छे.
माता तुं कहीश, एम करीश. पण माराथी व्रत पालन नहीं थाय. तुं कहे तो हुं अणसण स्वीकारी लऊं, पण व्रतनो भार माराथी वहन नहि थाय, इत्यादि अरणिक पोतानी वात माताने जगावे छे. वर्षो पहेला मोहनी घेरी निद्रामा पोढेला अरणिकने माता मीठां वचनोथी जगाडे छे. माता फरीथी व्रतनुं आचरण करवानी वात करे छे, माता समजावी गुरुभगवंत पासे लई जाय छे, अरणिक फरीथी महाव्रत लई, अणसणनी आराधना करवा, गीष्म- काळमां सिद्धगिरिराज पर जई, जया शिला पूंजी संथारो करे छे. माखणनी जेम शिला उपर अरणिकनो देह ओगळी जाय छे, अरणिक ध्यान बळे काळ करी स्वर्गे पधार्या.
ढाळ आठमी, कडी - ६ (कडी क्रमांक ७३-७८) राग धन्यासी
आ प्रमाणे अरणिके दुष्कर एवा उष्ण परिषहने सहन कर्यो, कर्म खपाव्या. आ ते संयमना एक गुणनी पण विशिष्टपणे आराधना करवाथी आत्मानो विकास थाय छे, पाछळनी ऋण गाथाओमां कविए पोतानी गुरु-परंपरा जणावी छे.
कृतिनाम
अरणीक मुनिनी ढाळो
अर्हनकमुनिनी कथा
अरणिकमुनि सज्झाय
अरणिकमुनि सज्झाय
अरणिकमुनि कथा
अरणिकमुनि सज्झाय
अरणिक मुनि
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमां संगृहीत अरणिकमुनि संबंधी कृतिओनी नोंध
अरणिकमुनि सज्झाय
अरणिकमुनि सज्झाय
अरणिकमुनि दृष्टांत
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