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श्रुतसागर - २६ समजी, एनी मजाक करे छे, अरणिक अने एना परिधमां रचाती घटनाओनी हारमाळा एटले नियतिए जेने निःसासा आप्या होय एनी हालतनो प्रत्यक्ष चितार... __विधीनी विचित्रता केवी छे. ए क्षणमात्रमा आ चरित्र समजावी दे छे. अरणिक गोखमां बेसी चो-तरफ दृष्टिपात करी रह्यां छे. जोवानुं कांई नथी, पण समये पोतानी उपर करेला प्रहारो केमे'य करीने भूलाता नथी, अंदरनो ताप केमेय ओछो थतो नथी. बहार जोवू तो निमित्त-मात्र छे, नजरमां भीनाश नथी. छे मात्र कोरी खाय एवी शून्यता.
अचानक एनी नजर आजथी केटलाक वर्षो पहेला ज्यां अरणिके विसामो लीधो हतो, ए ज स्थाने एनी नजर पड़े छे. एक वृद्ध स्त्री त्यां विसामो लेवा बेठी छे, अरणिकनी स्मृतिमां बाजेला समयना पोपडां खरवा मांडे छे, पोतानी माता मळी आवता अरणिक आनंदित छे. तो आवी दुर्दशा बदल पस्तावानो य पार नथी.
अरणिक तरत ज नीचे आवे छे. पोतानी मातानी आवी हालत जोई, पोते करेली भूल बदल एना पस्तावानी आगमां पेट्रोल उमेराय छे. अरणिक समजी जाय छे, के मारा कारणे ज मारी मातानी आ हालत थई छे. मारो वियोग ज मातानी आ परिस्थिति प्रत्ये जवाबदार छे.
ढाळ छठी, कडी - ६ (कडी क्रमांक ६०-६७) ऊच्छरपणीनी देशी
मातानी दशा जोईने अरणिक ध्रुसके-ध्रुसके रडे छे. गद्-गद् वाणीमां पोते अरणिक छे, ए, माताने जणावे छे. माता पण एने वात्सल्यथी नवडावे छे, तुं आटला दिवस क्या हतो? क्यां रहेतो हतो? एवा तो जात-जातनां प्रश्नो अरणिकने पूछे छे.
माताने मळवाथी अरणिके हळवाशनो अनुभव कों, पिताना विरह बाद आटला वर्षो सुधी भरायेलो ड्रमो आजे धुम्मसनी जेम अंदरथी ओगळी रह्यो हतो. माता सामे होवाथी अरणिक निरांतनो श्वास लई रह्या हतां, अरणिक अत्यार सधीमां वीतेला समयनी घटनाना एक-एक पडलने खोले छे. क्यांय सुधी माता अने अरणिकनो संवाद चाले छे,
ढाळ सातमी, कडी - ७, (कडी क्रमांक ६६-७२)
वीर वखाणी राणी चेलणाजी देशी चारित्र वगर आ भवनी जेम तुं परभवमां पण दुःख पामीश. तुं आटला दिवस अविरतिमां रह्यो, हवे ए बधा दोषोनुं प्रायश्चित्त कर, जीवना भोगे पण व्रतनो भोग
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