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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० मार्च - २०१३ ___साथे आवेल स्थविर साधु आगळ नीकळी गया, आगळ स्थविर साधुने भेगुं थर्बु मुश्केल होय, गरमीना कारणे अरणिकेना पग एक डगलुं मांडवाने समर्थ नथी. त्यारे आवा मार्गे कई रीते जवाशे? मारा पिताने धन्य छे! जेणे आटला दिवस आq कठिन चारित्र पाळ्युं, मने जतन पूर्वक पाळी पोषीने मोटो कर्यो, कोई दिवस मने दुःखनो अनुभव न थवा दीधो....विगेरे चितवता अरणिक वसतिमां पाछा फर्या, वसतिमा रहेला साधुओए कोमळ-देह सुख-शीलतानुं कारण छ, अरणिकथी संयम-पालन नहीं थई शके... ईत्यादि विचारीने साधुओए वसतिमाथी बहार काढ्या, उपाश्रयेथी नीकळी, धीमे पगले चालतां ऋषि हवेली पासे स्हेज छोयो लेवा माटे आव्या, शरीरना आराम माटे छांया अने विसामा मळी रहेशे, पण विचारोना आ चालता वमळने विसामो आपवानुं स्थान क्या... एक नोखी एंधाणी के भय वर्ताता शून्य-मनस्क थई, आंखो मीची, विसामो लई रह्यां. ढाळ चोथी, कडी-99 (कडी क्रमांक ३४-४९) रबारी के छोहरा फाग ए ज हवेलीना नवयौवना शेठाणी झरूखे बेसी चारे-कोर दृष्टिपात करता होय छे, एटलामां अचानक नझर विसामो लेता मुनि पर पड़े छे. पोतानी हवेलीना छांये विसामो लेतो रूप अने तेजना अंबार जोई एनुं मन आकर्षित थयु, दासीने बोलावी, मुनिने आमंत्रण आपी, ऊपर बोलावी लाव. दासीना आमंत्रणे मुनि ऊपर पधार्या, शेठाणीए वहोराववा मोदक मंगाव्या, क्षुधा पीडित मुनि पण हरखित थयां, शाने आ तप आदर्यु छे, आ यौवनवयमां आवं कष्ट शा माटे वेठो छो. आप अहीं प्रेमथी निवास करो, हुँ आखी हवेलीमा एकली ज छं. शेठाणीना आवा रागसभर वचनोथी मुनिनुं मन मीणनी जेम पीगळी जाय छे. कवि अरणिकनी मानससंवेदनाने बहु ऋजु शब्दोमां व्यक्त करे छे. वनिताना वचनोथी अरणिकनुं परिवर्तन थयु. व्रत छोडी, अरणिक घणो समय ए शेठाणीने त्यां रह्यां, ढाळ पांचमी, कडी-१० (कडी क्रमांक ७०-७९) राग टोडी - धन्यासिरि अरणिकनो आत्मा जागे छे, पोतानी भूलनुं प्रायश्चित्त करवा पोताना गुरुदेव विगेरेनी तपास करे छे. साधुओ तो त्यांथी अन्यत्र विहार करी गया होय छे, अरणिके विचारे छे - बहु खोटुं कर्यु. आ में शुं कर्यु. प्रभुना वेशनो त्याग करी, मारा कुळनी लाज डूबाडी. ईत्यादि विचारे छे. आ बाजु भद्रा माताने खबर पडे छे. के अरणिक व्रत छोडी, कोईक शेठाणीनी हवेलीमां निवास कर्यो छे. नगरनी शेरीओमा अरणिक-अरणिक करती माता भद्रा दिवस-रात फरे छे. जे नानुं बाळक मळे एने तुंज मारो अरणिक छो, एम कही एने बोलावे छे. नगरना लोको गांडी For Private and Personal Use Only
SR No.525276
Book TitleShrutsagar Ank 2013 03 026
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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