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श्रुतसागर - २६
तेह सारसो३ संबंध मझ, होसइ केणि संचि, रिषि कहि सर्व भलउ होसि, ताहरि पुण्यप्रपंचि. ४७
ढाल-त्रीनी।। राग धन्यासी।। ।।उसरपणी अवसरपणी।। इम कमलामेला समजावी, नारदई वचन विनाणिजी, आविउ सागरचंदनि पासि, प्रीति-कथा कही जांणिजी. ४८
इम कमलामेला.... (आंकणी) सही करि माने तुं मझ वातडी, प्रीति सांधि भली जोडिजी, सागरचंद सुणि मनि हरखिउ, रोमंचिउ नेह कोडिजी. ४९
इम कमलामेला.... नारदरिषि निज थांनकि जातां, दीधउ चित्रतपट्टजी, नीली राग चतुरपणि जाणिउ, राजकुंयर गहिगट्टजी. ५०
इम कमलामेला.... निरखइं चित्रितरूप पट्ट तव, रमणीरागतरंगिजी, आगलि-पाछलि मंदिरि अंगणि, देखइं भामिनि नी]भंगिजी. ५१
इम कमलामेला.... तिणि वधि खिण एक बिठउ, कुंयर करतो मनि संकल्पजी, एहवि आविउ शांबकुमर तव, पूंठइं गति करी अल्पजी. ५२
इम कमलामेला.... रां[रा]मति वसि५ बेहु पाणि करीनि, ढांकि लोचन दोइजी, सागरचंद बोलिउ तिणि वेलां, वात हीयइ मुखि सोयजी. ५३
इम कमलामेला.... मूंकि-मूंकि आंखडीया मोरी, तुहि ज कमलानारिजी, तुज मुखचंद-चकोर चाहिवा, हरख अछि मनुहारिजी. ५४
इम कमलामेला.... शांबकुमर हसि पभणि सुणि सुत, हउं नहीं तुज चिति कोईजी, कमलामेला मेलक हूं छउं, ईष्टमित्र तुज जोइजी. ५५
इम कमलामेला....
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