________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मार्च २०१३
६८
विद्यार्थियों का भी आगमन हुआ, जिन्होंने अपने यात्रा विवरण की कहानियाँ यत्रतत्र लिखी हैं। उन्हीं वृत्तान्तों को आधार बनाकर मैंने यहाँ यत्किञ्चित् प्रस्तुत् करने का प्रयास किया है। आशा है गवेषकों को पसन्द आयेगा ।
-
नालन्दा, तक्षशिला, वलभी, विक्रमशिला आदि प्राचीन विद्याविहारों की ग्रन्थरक्षण परम्परा को जीवित रखने हेतु हिंदुस्तान में आज भी अनेकों ग्रन्थभण्डार सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । इसी तरह का एक छोटासा प्रयास अहमदाबाद एवं गांधीनगर के मध्य श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा स्थित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कर रहा है। इस ज्ञानमंदिर में राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की पावन प्रेरणा से लगभग दो लाख प्राचीन पाण्डुलिपि ग्रन्थों का संग्रह है। संभवतः आज यह हिंदुस्तान का सबसे बडा ग्रन्थागार है । यहाँ हस्तलिखित ग्रन्थों को विशेष रूप से जर्मन स्टील एवं सागवान की लकड़ी से निर्मित अलमारियों में रखा गया है । इन अलमारियों की खासियत यह है कि इनमें रखे हुए ग्रन्थों में वर्षात के मौसम में लेशमात्र भी भेज नहीं आ सकती, दीमक एवं सिल्वर - फिश जैसे कीटाणु भी प्रवेश नहीं कर सकते हैं, यहाँ तक कि अग्नि अथवा जल के प्रकोप से भी ग्रन्थों को सुरक्षित रखा जा सकता है । यहाँ ग्रन्थरक्षण हेतु पारम्परिक एवं वैज्ञानिक संसाधनों का उपयोग किया गया है । इस ज्ञानमंदिर की ख्याति आज चारों ओर फैल रही है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ आनेवाले शोधार्थियों को कुछ ही समय में बिना किसी भेद-भाव के आवश्यक सामग्री उपलब्ध करा दी जाती है। यही कारण है। कि आज यहाँ देश-विदेश से आनेवाले शोधार्थियों की संख्या में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है । प्राचीन विद्याविहारों की उस दैदीप्यमान गौरवमयी परम्परा को यहाँ जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है, जो सराहनीय है !
संदर्भ-ग्रन्थ :
१. दक्षिण - पथ, लेखक - श्री जयकान्त मिश्र, साधना कार्यालय आगरा से प्रकाशित । २. फाहियान का भारत दर्शन, लेखक- दामोदरलाल गर्ग, आदर्शनगर
जयपुर से
प्रकाशित |
३. सुंगयुन का यात्रा - विवरण, अनुवादक- जगन्मोहन वर्मा, काशी नागरीप्रचारिणी सभा से प्रकाशित ।
For Private and Personal Use Only
४. फाहियान और ह्वेनसांग की भारत यात्रा, लेखक- ब्रजमोहनलाल वर्मा, हिंदी ग्रन्थ प्रसारक समिति छिंदवाडा से प्रकाशित ।
५. बौद्धधर्म के २५०० वर्ष का इतिहास, संपादक- पी.वी. बापट, पब्लिकेशन डिवीजन दिल्ही से प्रकाशित ।