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विजयशेखर गणिना बे रास
संपा. हिरेन दोशी
मध्यकालीन साहित्य पद्य कथाओथी भर्यु-भर्यु छे. पद्य कथानको बोधनी दृष्टिए सरळ बने, सामान्य जन तेने पोतानी भाषामां उतारी अने पचावी शके छे. कथा साहित्यना माध्यमे धर्मोपदेश अने जीवनंना विशाळ तत्त्वने उजागर करती अंचलगच्छीय गणि विजयशेखरनी बे रासा कृतिओ सागरचंदमुनि रास, अरणिकमुनि रास अहीं प्रकाशित करीए छीए.
जैन धर्मोपदेशना तत्त्वोने कथाना माध्यमे पोतानी साहित्य रचनामां वणी लेवानुं जैन साहित्यकारो क्यांय चूक्या नथी कथा साहित्य धर्मोपदेशना तत्त्वनी साथे-साथे व्यवहार जीवन प्रत्येनी एक अनोखी दृष्टिनुं प्रदान करतुं होय छे. कथाना माध्यमे तत्त्वने वाचक सुधी पहोंचाडवानी परंपरा मूळ आगमोमां मळती आवे छे, ज्ञाताधर्मकथांग विगेरे तेना उदाहरणो छे.
मध्यकालीन साहित्यकारोमां विजयशेखरनुं स्थान बहु महत्त्वपूर्ण रह्युं हशे . चंदराजनी चोपाईमां कवि पोताना विशे वात करतां जणावे छे.
'तस सानिधथी हुं लहुं, कविजनमांहि मान : '
आ उल्लेख द्वारा एमनी साहित्यकार अने कवि तरीकेनी प्रतिभा जणाई आवे छे. विजयशेखर महाराजनी कृतिओ काव्यात्मक, तत्त्वविचारात्मक, बोधात्मक, अने स्तुत्यात्मक एम बधा प्रकारनी छे. एमनी कृतिओमां कवित्वनी अभिनव समृद्धि जणाय छे. साडा त्रणसो वरसना समयनो तडको पड्यो, छताय एमना कवित्वनो रंग आजेय ताजो अने चळकतो लागे छे कवि क्यारेय विलय नथी पामतां, काव्यना अक्षरोमां सदाय जीवता ज होय छे.
कवि विजयशेखरे मध्यकालीन साहित्यने घणी कृतिओ आपी, साहित्यने समृद्ध अने सद्ध कर्यु.
विजयशेखरनी परंपरा :
विजयशेखर महाराजना जन्म समय, स्थान, माता-पितादि संबंधे विशेष माहिती मळी शकी नथी.
अंचलगच्छीय कवि विजयशेखर महाराजनी गुरु परंपरा आ प्रमाणे छे. आचार्य कल्याणसागरसूरि महाराजनी परंपरामां
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