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श्रुतसागर - २६
२५ नारद जंपइ सूणि सुत वात, तुंज गुण विनय अधिक मनि भात, तुज चिति दीसइ भली सजनाई, चोज नी वात कहुं चिति लाई. १८ इणि पुरि श्रीधनसेन महाराय, महाधनवंत सेनासमुदाय, कमलामेला बेटी तास, जूवजन पेखि पडइ मृगपासि. १९ इसी नारि मइं दीठी आज, साज सघसि तठउ माहाराज, तस रूपइं मोरूं मन रीझइं, जाणुं तुझ कारिज कोई सीझइं. २०
ढाल-बीनी। अलबेलानी देसी।। वात सूणी कुमरी तणी रे लाल, सागरचंदकुमारि मनमोहिउ रे, मगन थयउ चिति चीतवइ रे लाल, ऐ ऐ नारि संसारि मनमोहिउ रे. १ कुंयर बोलि कूतिकी रे लाल, भेदिउ कामनि बांणि मनमोहिउ रे, चिट-पटि लागी चित्तमइ रे लाल, विषयारस सहि नांण मनमोहिउ रे. २
कुंयर बोलि कूतिकी रे लाल(आंकणी) यत:तप-जप-संजिम ताम नर साधई निरुता थिया। अंगि न वाजइ जांम नयण बांण नारिह तणा ।।२७।। [ ]
चालि।। नारद रिषि प्रति पूछतो रे लाल, सागरचंदकुमार मनमोहिउ रे, कहउ केहनि दीधी अछइ रे लाल अथवा कुंयरि विचारि मनमोहिउ रे. २८
कुंयर बोलि कूतिकी...
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