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भारतीय प्राचीन विद्यापीठों की संस्कृति और चीनी यात्री
डॉ. उत्तमसिंह
प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा भारत आने वाले चीनी यात्रियों का रहा है । जबसे चीनवालों को बौद्ध धर्म का उपदेश मिला तबसे चीन के यात्री भारतवर्ष की ओर तीर्थयात्रा करने आते रहे। इन यात्रियों में फाहियान,
ह्वेनसांग (सुयेनच्वांग ) एवं इत्सिंग के नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा और भी कई चीनी यात्री समय-समय पर भारत आते रहे हैं। यहाँ प्रमुखरूप से फाहियान, ह्वेनसांग एवं इत्सिंग के यात्रा विवरण तथा उनके द्वारा वर्णित तत्कालीन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है। फाहियान गुप्तकाल में भारत आया तथा ह्वेनसांग सम्राट् हर्ष के समय में। इनके बाद लगभग तीन सौ वर्षों के अन्तराल इत्सिंग एवं कुछ अन्य यात्री भी भारत की यात्रा पर आये ।
इसमें संदेह नहीं कि धर्म की पिपासा बड़ी प्रबल होती है, वह अर्थ की पिपासा से, 'जिससे प्रेरित होकर आजकल लोग एक देश से दूसरे देश में व्यापार के उद्देश्य से जाते हैं कहीं प्रबल होती है। जिस समय ये लोग भारत आये उस समय मार्ग अत्यन्त भयावह और अनेक कण्टकों से पूर्ण होते थे । इन दुर्गम मार्गों को पार करना कोई सरल काम नहीं था। वे यहाँ किसी सुख विशेष के लाभ के लिए नहीं आये। उनके अन्तःकरण में तो केवल धर्म का पवित्र भाव था । और इसी पवित्र भावना के बल पर भयावह दुर्गम मार्ग की कठिनाईयों को झेलते हुए यहाँ तक पहुँचे जो अलौलिक और प्रशंसनीय साहस का उदाहरण है। दोनों देशों के बीच मधुर और उदात्त सम्बन्धों को बयाँ करने वाली यह यात्री - कथा जैसी सूचक है वैसी ही यह भारतीय संस्कृति की सात्त्विक और उच्चस्तरीय भूमिका की भी द्योतक है। बौद्ध धर्मावलम्बी चीन के लिए भगवान बुद्ध का जन्मस्थान 'भारतवर्ष' परम तीर्थ के समान था। चीनी यात्रियों का मानना था कि जब तक भारत में बौद्ध धर्मावलम्बी राजाओं का शासन है तब तक ही उन्हें भारत में अच्छी सुविधाएँ मिलने की संभावना है। इसके बाद हिन्दू धर्मावलम्बी शासकों के राज में शायद उतना सहयोग और सुविधाएँ न मिलें। किन्तु गुप्तकाल में फाहियान जब भारत आया तो उसने महसूस किया कि हिन्दू धर्मावलम्बी राजा भी चीनी यात्रियों को सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं और आदर-सत्कार भी पहले जैसा ही करते हैं। भारत में तो सर्वधर्म के साधुओं को सर्वकाल में भावभरा आदर-सत्कार मिलता रहा है। यहाँ आनेवाले यात्रियों के साथ वर्ण, देश, गोत्र या धर्म सम्बन्धी किसी प्रकार का भेद-भाव कभी नहीं हुआ । यहाँ तो सर्वधर्म समभाव की भावना जन्म-जन्मान्तर से चली आ रही है । यहाँ के वासियों का ध्येय ही 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' रहा है।
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