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पार्श्वनाथ भगवानना बे स्तोत्र
संपा. हिरेन दोशी महेंद्रसूरिकृत पार्थजिन स्तोत्र प्रत-विशेष :- वि. सं. २०५५मा आगमप्रज्ञ मुनिराजश्री जंबूविजयजी म. सा. द्वारा करावेल आचार्य हेमचंद्रसूरि ज्ञानमंदिर-पाटणनी झेरोक्ष प्रतमाथी आ स्तोत्र मळ्युं छे. जेनो अमे साभार उपयोग कर्यो छे.
कृतिसार :
कमळनी कोमळता जेना देहमां सौंदर्यनो संचार करे छे. वादळनी कांति जेवा मणिमय नागराजोनी फणानो विस्तार जेना मस्तके शोभे छे. एवा पार्श्वनाथ प्रभु जय पामे छे. प्रभुनी आवी प्रभाव गर्भित स्तवनाथी स्तोत्र प्रारंभाय छे. जमीननो कादव आकाशमां रहेला सूर्यना तापथी जेम नाश पामे छे. तेम हे भगवान ! तारुं मुखबिंब जोवाथी मारो पापनो कादव नाश पामी जाय छे, सूकाई जाय छे. उपमितिमा पण कर्दा छ के भगवाननी दृष्टि पडे एटले संसार-सागर तरवो नथी पडतो, पण सूकाई जाय छे. हे पार्श्वनाथ प्रभु तारा चरण-कमळनी सेवाथी मारा बधां ज धारेलां कार्यों पार पडे छे. प्रभु तुं खरेखर कल्पवृक्ष छो. शुं क्यारेय कल्पवृक्षनी सेवा निष्फळ जाय? न ज जाय. अवश्य फळदायी बने छे. वधु एक उदाहरण आपी भगवद्दर्शननी महत्ता बतावे छे- गरुडना दर्शन थतां सापना समूहमां नाश-भाग मची जाय छे. गरुडनी नजरमा साप टकी शकतो नथी. तेम गरुड समान हे प्रभु तारा दर्शन करवाथी मारा सापोलिया जेवा दुःखोना मुकाममां नाश-भाग मची जाय छे. तमाम पीडा अने परेशानी पलायन पामे छे.
तारा मंत्रना स्मरण मात्रथी विद्या-राज्य-लक्ष्मी विगेरे चिंतामणि रत्ननी जेम क्षणमां ज प्राप्त थाय छे.
आंगणामां उडती धूळ उपर पाणी छांटवाथी जेम धूळ बेसी जाय छे उपशमन थाय छे. एम हे प्रभु शीतल जल समान तारा नामनु स्मरण करचाथी ग्रह, रोग, शोक अने पीडानी धूळ घडीकमां उपशमी जाय छे. बेसी जाय छे. __मे (महेंद्रसूरिए)श्रीअश्वसेन-पुत्र(पार्श्वनाथ भगवान)नी निर्वाण-पदनी प्राप्ति अर्थे, विविध प्रकारना विशेषणोथी युक्त पार्श्वनाथ भगवाननी स्तवना करी. आ
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