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3000
श्रीजम्बर दार संगृहीत ।।
परदेशी राजाका चोपाई।
का मयावधि कृपा करे. । इसका
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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। । योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। ।। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोधसंस्थान एवं ग्रंथालय)
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक:१३६५
न
आराधना
महावीर
कन्द्रको
कोबा.
अमृतं
तु विद्या
तु
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079)23276252,23276204 फेक्स : 23276249
Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर हॉटल हेरीटेज़ की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355
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मुनि चेतन विजयजी कृत १। श्रीजम्बु चरित्र।
पृ० १-६॥ शषि जयमखजी कृत । परदेशी राजाकी चौपाई।
पृ०६१-१३० ।
Vith Dass. " Brilliant Press." Calcutta.
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॥श्रो॥
॥ अथ श्री जम्बू चरित्र प्रारम्नते ॥
(दोहा) श्री अरिहन्त नमो सदा, अरी न आवे पास । अष्टकर्म पूरें टले, बाठों गुण पर काश ॥ १॥ सिद्ध नमो बदु जावसुं सिद्ध होय सब काम । अन्तर ध्यान लग यके, सदा जपों तुम नाम ॥२॥ याचारज को बन्दिये थातम निर्मल होय । लक्ष चौरासी नरमना, फेर न आयें सोय ॥३॥ उबकाया पद नित ननो, पावें उत्तम झान । मन बचन कायासुद्ध कर, निलदिन कीजे ध्यान ॥४॥ साध सकल बन्दो सवा, पाप सवें मिट जाय । पञ्चनाम जपतां चको, पायें सुख अधिकाय ॥५॥
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गन्धु चरित्र
(चौपाइ) परम पुरुष परमातम देव, बन्दों नाव सहित नित मेव । गुरुके चरण नमो तिर काल, गुरु सम कोइन दीन दयाल ॥६॥ दया करो मुझ सारद माय, तिमर हरो नित लागुं पाय तुम प्रसाद नाषा कलु करों, जम्बू चरित्र नाम ते धरों ॥६॥ राजमही नगरी सोजन्त, समोसरण राजें नगवन्त । वारे पर पदा बैठे जिहां, श्री जिन बीर विराजे तिहां ॥6॥ राजा श्रेणिक सुने वषाण, अमृत धुन बोलें नगवान । एक देवता
आयो तिहां, बचन प्रकाशें नगवन जिहां ॥ ए मेरा थित केता जगवान, ते तुम कहो वचन परमान। जगवन कहें सुनो सुर बात, तेरा थित दिन सात विष्यात ॥ १० ॥ एता वचन सुनि जव देव निज थानक पहुंता ततखेव । पूढे श्रेणिक राजा तिहां एकुन देवत उपजें किहां ॥ ११ ॥ श्री जगवान कहें सुन राय, ए सुर जम्बू स्वामी थाय । चरम केवल। जम्बू स्वाम, सुना पाउला नवको नाम १२ ॥ श्रेणिक सुन जम्बूकी बात, पांचे नतमें कहो बिष्यात । एहिज जम्बूछी मका, भरत क्षेत्र सोने विस्तार ॥ १३ ॥ तिलक नगरी है
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जम्खु चरित्र
सुग्राम, जिहां बसे श्क रावड़ नाम । पामर जात कहे सबकोय, रेवती त्रिया पुत्रले दोय ॥ १४ ॥ श्क लवदेव पुत्र गुणधाम, जावदेव पूजा सुतनाम दिदा ले जवदेव सुजान, करें बिहार जपें लगवान १५॥ पञ्च महाबत पालें सदा, क्रोध मान माया नहि कदा। मुनि नवदेव महा गुणवन्त, सुद्ध चेतना झानी सन्त ॥ १६ ॥ (दोहा) इकदिन मुनि जवदेवजी पहुंचे नगर सुयाम । बिहरण कारण यावियो, निज बन्धवके धाम ॥१७॥ नाव देव परणा थकां कङ्कण मोरा हाथ । नारि नागिला परिदर चले जाव जव साथ ॥ १७ ॥ गुरु पासें
आए जवें नावदेव नवदेव । जवसे पूवें साधुजी जावदेव का हेव ॥ १७ ॥ हो जब तुम निज जाता को दयायला प्रतिबोध । कठिण साधको पंथ है ज्ञान बिना नदि सोध ॥ २० ॥ कहें साध जबदेवको सुनो हमारै वैन । दिदा लेवे बंधवा तव पावे सुख चैन ॥ २१॥ ( चौपाइ) जावदेव नाश के लाज, दिक्षा बिया पास मुनिराज । बार बरस पाट्यो चारित्र. नेम धरमसुं रहें पवित्र ॥१५॥ एक समे जब जाइ जान, हंस किया परलोक
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जम्बु चरित्र ।
ज्यान । तद परिणाम गयो फिर जाव, मरण जात को पायो दाव ॥ २३॥ नाव चिन्तव्यो जालं तिहां नारिनागिला गेड़ी जिहां। तिनसुंजाय करोघर वास, करि बिचार तब हुई उदास ॥२४॥ आयो निज नगरी सुग्राम, सोधत फिरे नागिला बाम जा दिनसो तजि स्वामी गयो, त्रिया नागिला तप बहु कियो ॥२५॥ देह कोण कारे साधे धर्म जिन आगम के जाने मर्म । आवेळे दरशन नागिला देवल पास नाव तव मिला ॥ २६॥ पूवें नावदेव सुन नार, बचन एक मेरो उरधार । जावदेव ब्राह्मण था एक, ताकी नारी महा सुबिवेक ॥ २७ नाम नागिला कसाही दाज, प्रीतमोड़ गयो तत काल । तेह विरी, जे तुम देखो सो कहो खरी ॥ २७ ॥ तवं नागिला कियो बिचार लखी चलनसुं निज जरता र संजन सुंघ्रष्ट थाय, तिनको सही कहें चितलाय ॥ श्ए ॥ तुम सुं तिनसुं है कलु काम, ते तुम बात कहा गुणधाम कहें नावजी सुनो बिचार, मेरी त्रिया नागिला नार ॥ ३० ॥ कहें नागिला हुं बुं तेह, नाव कहें उर्बल क्यु देव । सुनो साधजी मैरी वातं, तुमतो
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जम्धु चरित्र ।
संजम लियो बिख्यात ॥ ३१ ॥ ता दिनसुं तप संजम धरूं, बह पारणे अविल करूं । नाव कहें तव बचन प्रकाश, हमसुं नारी कर घरवास ॥ ३५ लोग इवें यापन दाय, नार कहें संजम मत खोय चारित्र के चिन्तामणि रत्न, ते मत बिसरो राखो यत्न ॥ ३६ ॥ रतन बाड़ कङ्कर कुन गहे, तज हस्ती रासन कुन लहे। कल्प वृक्ष किम गंडा जाय, कोन धतूग गहें सदनाय ॥ ३४ ॥ तज अमृत विष पिबें कोन, को तज नगर करें बनगौन इम प्रतिबोध नागिक्षा करें, बहुत साध संजम सुं तरें ॥ ३५ ॥ ते तुम याद करो क्युं नाहि, तख्या साध बहु संजम माहि। नरत सगर चारित्र ले तरा, मीच प्रत्येक वुद्ध जे खरा ॥ ३६ ॥ मृगा पुत्र प्रारू गज शुकुमाल, एसब सीके संजम पाल मे ताज कुन मेघ कुमार, धन्ना साखना अणगार ॥३७॥ एवं घणा साध जे नया चारित्र ले शिवपंथे गया । तुम क्यु कायर हो निरधार, श्म प्रतिबोध कत्यो जव नार ॥ ३०॥ नावदेव संजम थिर कियो, चारित्र गल देवगत लियो। नार नागिला पाली क्रिया, नपा अवतारी त्रिया
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जम्बु चरित्र ।
३७ ॥ संजम ले चूको मत कौय, मानव जव फिर नाही होय । श्रापा समऊ क्रिया तप करें. सुद्ध चतना कारज सरें ॥ ४० ॥ (दोहा) लावदेव को जीव जो आऊ सागर सात । थित पाली चवियो जिहां ते सब कहुँ विख्यात ॥४१॥ महा विदेह जु क्षेत्र है सोने अति विस्तार । वीत सोक पुर अति जला बिचरे बहु अणगार ॥४२॥ पदम रथ तिहां राजवी करें राज अनिराम । पटराणी सोने नली बनमाला ते नाम ॥४३॥ बनमाला प्रसव्यो हि पुत्र एक सुकमाल । शिवकुमार नामे हुई यात रसाला ॥४४॥ स्त्री परणी तव पांचसें सुद हिल आवास । इकदिन वेग गोखड़े जोवे नगर जिल्लाल ॥ ४५ ॥ ( चौपाइ) तिन अवसर
नराय, धर्मघोष साधू सुखदाय। बिचरें मोजके पास, उर्बल देह दीण है मास॥ ४६ का बन्यो अलिराय, श्रावी बांधो सीस
यो हो कर जोड़, एता कष्ट करो र ॥ ४ ॥ मुनि बोलें तव बचन प्रमान करो निमित्त धर्मको जान । कुमर कहें मुऊ धर्म बताव, मै निकरों धर्म सुन जीव ॥ ४ ॥ साधू
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जम्बु चरित्र। कहें सुनो मुक बात. मेरे गुरु श्राचार्य विख्यात । धर्म बतायेंगे गुरुदेव, सुनके कुमर चलें ततखेव ॥४॥ बाय बन्दना गुरुको किया, धर्मदेशना गुरु तव दिया । सुन्यो धर्म जव कुमर सुजान, हुवो विरक्त धर्म चित धान ॥ ५० ॥ निज मन्दिर आए तत काल, सुन्दर यौबन रुप रसाल । मात पितासो कहि समुजाय, धर्म ध्यान मेरे मननाय ॥ ५१ ॥ मात पिता जब आज्ञा दक्ष, श्री गुरु पासे दिदा लश् । बार बरस संयम बादरें, बह पारणे श्रां बिल करें ॥५५॥ चारित्र सुद्ध पालके मुत, विद्युन्माली देव तव हुन । थित पायो पट्योपमचार,श्रोता सुनो बात विस्तार ॥ ५३॥ देव आउषो पूरो कियो कहूँ कथा जनम जिहां लियो । राजगृही नगरी गुणषाण, झपन दत्त में सेठ सुजान ॥५४॥ ताकी त्रिया धारणी नाम, धस्यो गर्न सोने अजिराम ते सुर आयो उदर मजार, सूता सुख सज्या निर धार ॥५५॥ सुपनामे जम्बू तरु देख, उठी जागि नेना अनमेष । धर्म ध्यानसुं रैण विताय, श्रावी पिर कुं कहि समुशाय ॥५६॥ झपन दत्तको हरष अपार, प्रसव्यो पुत्र धारणी नार । सुपन देख
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जन्बु चरित्र ।
जम्बू तरु सार, नाम दियो तस जम्बू कुमार ॥ ५७॥ जली लांत जव कियो, बहुन दान याचक ने दियो। अनुक्रम बांधे कमर सुजान यौवनवंत नयो गुणखान ।। ५७॥ पिता देख बालक को रूप, ए सुत सुन्दर अधिक अनूप ! कन्या
आठ सोधक लियो, जम्बूको विबाइ धापियो । ५॥ तिन अवसर वाहर आराम, समोसस्या सुधर्मा स्वाम । जम्बू बन्दन आया तवें, धर्मदेस ना सुनियो जवें ॥ ६० ॥ सुन्यो धर्म सुधर्मा पास मन बैरागें नए उदास , नगर मादि आवे तेवार अकस मात इक वुर्ज मजार ॥ ६१ ॥ गोलो एक लोहको ट्रट, पड्या कुमरके सनमुख बूट । झपन दत्त सुत अचरिज देख, हुढं चित्त वैराग बिसेष ६५ ॥ (दोहा) इह संसार असार है सार एक जिन नाम.। फिर पाठे पाए तिहां जिहां सुधर्मा स्वाम ॥ ६३ ॥ बारे ब्रत धारण किया स्वामि सुधर्मा पास । अनि बन्दन करि श्रावियो जम्बू निज आवास ॥ ६४ ॥ मात पितासुं वोनवें अनु मत दीजें थाज । संयम मारग आदरं करुं धर्म को काज ॥ ६५ ॥ मात कहें सुन बछ तूं व्याह
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बम परिवार
करो इकबार । मनोरथ पूरे माहरी, धुपकर रहे कुमार ॥ ६६ ॥ मात पिता जान्यो तवें, करें याद मंमान । पुत्रीको देवें नही, कुमर उदासी जान ॥ ७॥ तद कन्या था मिली, कहें वात तजि लाज । जोव्याहें जम्बू मुळे. तो सन्हेिं सब काज ॥ ६७॥ नहि तो जम्बू सायमे, प्रत धारो निरधार । मात पिता सब सांजली, कन्या बात विचार ॥ ६ए ॥ कन्या या व्याहिया, जम्बू सों कर जोड़ । दाहेज दिया घणा, दर्व निवाएं कोड़ so ॥ था कन्या व्याहके, जम्बू आए गेह । रैन समे निज महलमे, थावें करती नेह ॥ ७१ तब जम्बू तिरया प्रतें, कहें बात समुझाइ । मत पूषो संसारमे, करो ध्यान चितलाई ॥ १२ ॥ संसार असार दे, जैसे संका रङ्ग। दिणको खिर जागा, मतकरोचको सह ॥ ३ ॥ तरुवर खेल मुहावनो, बेठे पंछी थाय । रैन समे बासा करें प्रातलमे उड़ि जाय ॥ १४ ॥ इह सुरत जाने कारिमा, बादल को थावास | पिरतें चार न लागि हैं, कुग नेह विलास ॥ ४५ ॥ ( चौग) तर से राजग्रही के पास, जीम पलिमे घसते पास ।
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लम्बु चरित्र ।
प्रजब मामे चोर सिरदार, परिकर जहां पांच
सार ॥ १६ ॥ से सुनियो जम्बूकी बात, अर्थ निवाणू कोड़ि विख्यात । व्याह करी जम्बू ध्याय, प्रजव चोर सिहां तव धाय ॥ ७७ ॥ प्रजव चोर पांचसें सर्व, कोड़ि निवाएं बांधे दवे । तब से देखे जम्बू तिहां, बांधे चोर गांवड़ी जिहां ॥ 90 अम्बू मनमे करें विचार, लोगन मे अपजस सिर धार। जब सब दर्व चौर से गया, तब से दिक्षा को मन जया ॥ १ ॥ इम जानि सुमिरें नवकार सर्वे चोर थंज्या सेवार । तद प्रजवो जाहिर हो कहे, जम्बू कुमार विद्या बहु स ॥ ० ॥ यंत्र नि विद्या मोकों देय, अनेक विद्या मुकसे क्षेय कहें जम्बू प्रजव सुन पात, विद्या धन सुरू कोन सुहात ॥ ८१ ॥ काम न यावे मेरे कोय, व्रत यादरों प्रात जय होय । क्या दुख तुमको प्रजयो कहें, स्त्री ध्याव तेरे सङ्ग रहें ॥ ८२ ॥ एता धन है कर तूं जोग, मतढोड़े पाथे संजोग । तत्र जम्बु बोले करि ज्ञान, जग सुख है मधु बिन्दु समान ८३ ॥ प्रजव करें क्या है मधु बिन्ध, हम कहो. धारणी नम्द । कहें जम्बु मधु बिन्दु समान
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जम्नु चरित्र ।
जग वन मे नरजीव निधान ॥ ४ ॥ काल गयन्द जनम है कूप, अजगर सही नरकको रूप । सर्प कषाय चार है जान, बिषिया सुख मधु बिन्छ समान ॥ ५ ॥ बड़ तरु है श्राऊषा ऐन, स्वाम स्वेत उंदर दिन रैन । मधुमाषी परिवार घने एता पुख नर सुख करि गिने ॥ ६ ॥ विद्या धर गुरु धर्म विमान, इह संजोग मिलाद थान नहि नीसरिय जम्बु कही, प्रजव कहें निकलिये सही ॥ ७ ॥ (दोहा) प्रजव कहें जम्बु प्रतें सुनो बचन तुम एक । नाता तोड़ो शाउसुं, ऐसो कहा विवेक ॥ ७ ॥ अगर नाता जम्बु कहें मथुरा नगरी गाम । तिहां एक बेस्या बसें कुबरसेना नाम ॥ नए ॥ तिन पुत्र अरु पुत्रिका जोड़े जनिया माय । सन्मुकमे दोऊं धस्या, पैश दिया बहाय ॥ ए ॥ ते सिन्छक सोरीपुरें आये तटके तीर । एहावेंखें दो बाणिया, पेइ देखी नीर ए॥ ततखिण पेइ खोलियो, निकले दोय सरुप क बालक इक बालिका, सुन्दर रूप अनूप ॥ ए ॥ एक महाजन पुत्रको, लीन्हा अपने पास जा बाणिया बालिका, राखी निज श्रावास
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१५ मा चरित्र । ९३ ॥ अनुक्रमे दोय वाधिया, हवे योवन पन्त माहो माहे व्याहिया, ऐसो मिलियो तन्त ॥ ए४ चौपाइ) श्कदिन रमते पासा सार. दीनी मुंजी नाम निहार । कुबेरदत्त बालक को नाम, कुबेर बत्ता पुत्रिका ताम ॥ एए॥ ब्रात बहिन थापसमे जान, पूढे मात पितासों धान । तव कहि मात पिता सब बात, सुन कुवरदत्ता अकुलात ॥९६ कुवेरदत्ता दिक्षा लिया, उद्धर किरिया तप बहु किया । तप जप करतां उपजा ज्ञान, सब विरतंत जातको जान ॥ ए ॥ कवरदत्त गेड़ घरवास मथुरा नगर गयो व्यापार । तिहां एक देस्याको धाम, कुवेरसेना ताको THE ए॥ रूप देख मोह्यो ततखेर, कवरदन जान नहि जब । निज माताहुँ सङ्गम को, विहां पुत्र एक श्रवत ॥ एए द सब कुवेरदमा जार, शिग्धुनि कहती हैं श्रज्ञान । हाहा विर्षे सुख एसा होय, करें अनर्थ साप नहि जोय ॥ १३ ॥ तो में जा प्रतियोg सही थाइ मथुरा माके रहि । साधवी कहें बेस्यासुं पात, हमकुं जगां देहु विख्यात ॥ ११॥ दियो नगां बेस्या निजगेह, रही साधवी निर्मल देह
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मम्बुः परिच। सवते पुत्र पाबने रहें. तिनको साधवी ऐसा कहें २॥ मत रोवे तुं मेरा नात, हम तुम जनमे एकी मात । इह नाता तूं नाइ नया, निज अननी का बेटा यया ॥ ३ ॥ पूजा नाता एरुणी कहें, कहा पुत्र तूं रोता रहें । कुबेरदत्त जु मेरा पनी. इस नाते तुज बेटा गिनी ॥४॥ तीजा नाते देवर जान, मत गावे पाहो अयान । मेरे पतिका तुं हैं प्रात, एसच बात कही विख्यात ॥ ५॥ चौधे नान सुना विचार, लगे नतीजा तूं निराधार । मत से जास्त श्राज. बिपिया सुखमे होय अकाज ६ ॥ हे चाचा मत रोवें श्राप, माका पति सो मेरे पार । तसका तुं हें नाइ सही, पचम नाता चाना वह। ॥ ७॥ हे पोता रोता चुप रहो, सोक पुत्रका बेटा कहो । ए खटनाते पोता जया, ए नाता धावकसं थया ॥७॥ स्टनाता जाजसो पहें कचेरदत्त व्रात मुफ रहें। मुज तुझ माता एकी घ्राल, हा तूं जाइ विख्यात ॥ ९॥ जे नाते तुं हैं नात, मेसी साका पति विख्यात । हे दादा सुन मेरी बात, पिता हमारा तिसका तात ॥ १० इंतो है मेरा भरतार, मेतो परणी तेरा बार दे
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जम्नु गरिन ।
बेटा सुन मेरी यात, मेरी सोतिनका , जात ॥११ तें मेरा सुसरा विख्यात, निज देवरका तूहें तात ए पटनाता गुरुणी कही, कुबेरदत्तसं लागी सही १२॥ खटनाता चेम्यासुं कहें, तूंनो मेरी माता रहें मु0 जनी तातें तूं मात, कुबेर दत्ता कहती बात १३ ॥ जे नाते दादी लगी, मेरे तातको माता सगी। तीजे नाते जानी जान, निज जाइकी बहू निदान ॥ १५ ॥ चौथे नाते मेरी बहू, कुबेरदत्ता कहती सहू । तूं सौतिन सुतकी जारजा, तातें बहू कही थारजा ॥ १५ ॥ पांचे नाते सासू कही मेरे पतिकी माता सही। बडे नाते सौतिन लगी मेरे पतकी पतनी सगी ॥ १६ ॥ षटनाता माता सुं करी, वेस्या सुनके कोपी खरी । ए गुरणी ऐसी किम लवे, तव पेश्की कहती सवे ॥ १७ पेश्की सव जानी बात, बेस्या मनमे बहुत खजात बैराग पामी दिक्षा लिया, तव बेस्याने बहु तप किया ॥ १७ ॥ थितपूरी कर देवत हुई, कहें जम्बू प्रजव तुम जुर्छ । ऐसा नाता है संसार सुद्ध चेतना उतरें पार ॥ १ए ॥ ( दोहा ) प्रनक कहें जम्बू प्रतें पुत्र होय तुक एक । तद तुम
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जम्भु चरित्र । १५ हीका जिनियो दुत गति कर्म कि ॥ २० ॥ कर जम्बू प्रनवा सुनो कोन करें गति कर्म । थाप किया फल पाश्ये पाप पुन्य थारु धर्म ॥ २१ पृष्टान्त को गति कर्मको प्रचव सुनो चितलाय महेस्वर इस उत्री बसें पिता कह्मो समुझाय २१॥ मरती पेला पुत्रको पात कही जब तात मम सराप घावें अब जैसा करियो घात ॥ २३ इक असा मारी करी सराध कीजियो मुस। चिन्ता रमे पहुंचे सही वचन कहा मै तुस ॥ २४ ॥ (घोपार) थार्यध्यान से मुठ तात, हवा जैसा मुनियो पात । मात मरीने कुत्ती नइ, अपने घरमं कई न ग ॥२५॥ महेस्वर इसकी देनार भोग जोग सङ्गे जार । येस्स महेस्वर कियो कवायः भार पुरुषको मारयो आय ॥ १६ ॥ ते पुरुष की ज्याने मस्यो, उसही बीके मुत यो तस्यो । तात मात मिस करते प्यार, थायो भाइ पिताको वार १७ ॥ तेडिज नेपामारी करी, पुत्र गोद से नहाय वरी। माका जीव कूतरी जद, चावे हा पाका सह ॥ तिन घौसर बाहार के काज, भाए: शिक्षा एक सविरमा । विपरित बार देखिके जो
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१५
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म्युचरित्र ।
किसानी त ॥ ३ ॥ ध्याय महेश्वर सुनिल करि धरदास पाठा
साधू पास, फिरा साधा। तुमे, कारन को बतावो हमे ॥ ३० हंसे काहे तु का विवार, सो हमेको कहिये निरधार । साध कहें संमार विचित्र से देख हम आज चरित्र ॥ ३१ ॥ सात ने बेरी प्रतिश ६६ नैका है तूं बाल हृणियो जिसकुं सो है तात, कर्डे साधजी सी बात ॥ ३२ ॥ पोखो बैरीको निरधार, उड़ तेरी पतनीका जार। जो सुत्रधा तरी तिया साथ, तिसे इथे तूं अपने हाथ ६३ ॥ इह कु| तेर। है मात, इसे देखके सी बात । इह वृत्तान्त कुती जब सुनी, जो इइ जावी ज्ञानी सुनी ॥ ३४ ॥ तत्र उपजो कुत्तीको ज्ञान मनमे जान्यो गई। निधान । पग इसाग सुतको कियो, पुत्र ध्यायके धन सय लियो || ३५ ॥ मद्दे स्वर को आइ प्रतीत, पाष बैराग्य धरमकी रीत बैरागे बिड्डा तव धर्म, गति पाइ छूटी सब कर्म ३६ ॥ इह जगकी गति प्रजवो देख, रिता पुत्रको कारण पेस । सो है गति कर्म विचार, सुद्ध खना पावे पार ॥ ३१ ॥ ( दादा ) सुनके प्रजो ॥ ॥
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जम्बु चरित्र । यह कथा, चुप हो रहें निदान । जम्बूकी पहिली त्रिया, समुख स्त्री गुणखान ॥ ३० ॥ ते बोली खामी सुनो. एक हमारा वैन । हमको तजि दिदा ग्रहो, सोचोगे दिन रैन ॥ ३५ ॥ जैसे बग पामर रहें, ते परतायो श्राप । तैसें तुम पड़तायोगे, पावें करिहो ताप ॥४०॥ तव जम्बखामीकहें, कहो प्रिया तुम बात । कैसें वग पत्ताश्यो, कथा कहो विख्यात ॥४१॥ पहिली त्रिया कहें कथा, स्वामी सुन चितलाय । मारवाड़ के देशमे, पामर जाट कदाय ॥ ४२ ॥ ( चौपाइ) इकदिन ते वग पामर जाट, गये मालवा देशके बाट । श्रनुक्रम आये मालव जिहां, गये सासरे बेठे तिहां ॥ ४३ ॥ सासू जिमन तेड्यो घरे, मालपुया ले आगुं धरें जिमी पामर मिग जया, आज चिज देखा नै नया ४४॥ असा जिमन जिमे नही, अजव वस्तु देखा नहि कहीं। तव सासूसे पूढें बात, ए कुन वस्तु कहो मुझ मात ॥४५॥ गुड़ गेहूं के है ए चीज, वग माझे हमकुं द्यो बीज । मै बोऊं अपने घर जाय तो शह बस्तु हमेसा थाय ॥ ४६॥ मालपुया खाउँ मै सदा, कहे सासकुं पामर तदा। गेहूं ऊखः
(३)
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जम्नु चरित्र ।
सासने दिया, दोनो बीज जाटने लिया ॥४॥ वग पामर आये निज गेह, दियो बीज सुतको करि नेह । कहें जाट सुतसुं करि हेत, ए बीया तुम बोउ खेत ॥ ४ ॥ बेटा कहे सुनो तुम बात कोडूं नया खेतमे तात । दिन दशका तुम देरी करो, ए बोया ले घरमे धरो ॥ ४५ ॥ सुनी बचन सुतको जव तात, कोप करी बोटों बिख्यात । कोठू हमने खाया सदा, मीग बस्तु न खाया कदा ॥ ५०॥ अरे मुर्ख जानो नहि तमे, मालपुया खाना है हमे । तिसते कोडूं काटो जाय, ए बीया लेके तूं बाय ॥५१॥ तद कोड्रंको पूरे किया, गुड़की बीज बोयके दिया। उह धरती बालुकी रही पानी बिन कलु उपजे नही ॥ ५५ ॥ (दोहा) दिन २ कूवा खोदतें, रैन पवन सञ्चाल । बालू कूये मे जरा, सूक गया ततकाल ॥ ५३॥ बिन पानी उपजा नही, जली गयो ते बीज। गेहूं ऊख न नीपजा, दोनु खोया बीज ॥ ५४ ॥ गुड़ को; दोनु गया, जाट महा परताय । तैसें तुम सुन मुक्तिका, मीग सुख चितलाय ॥ ५५ ॥ तिसको खालच तुम करो, जगका सुख विष नोग। हमको
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जम्बु चरित्र ।
१९
तजि दिदा ग्रह्यो, नही रहे तुम जोम ॥ ५६ ॥ संयम लेतेहो सही, सुख संसारी त्याग। पीले मन थिर ना रहे, विसर जाय बैराग ॥ ५७॥ तद मुक्ति जी नहि मिले, जग सुख नाही होय । फिर पाठे पळतावोगे, दोनो सुखको खोय ॥ ५७ ॥ जैसे वग पताश्या, तिम करते तुम काम । सोचोगे तुम
आपको, नही रहे चित गम ॥ ५ए ॥ (चौपाई जम्बू कहे वनिता सुन बात, विषयाविषमुक नाहि सुहात । जो पबतावेगा नर कोय, वायसनि परे लोजी होय ॥ ६० ॥ हूं जैसा लालच नहि करूं विषिया सुखमे हूं ना परूं । पियसुं कामणि पूर्वे तथा, कुन ए बायस कहिथं कथा ॥ ६१ ॥ जम्बू कहें प्रिया सुन बात, जरुयच नाम नगर विख्यात नरमदा नदी बहती जिहां, करी कलेवर मूवा तिहां ॥ ६ ॥ बहु पंबी तस आवे जाय, आमिष जद करे मनलाय । अधोछार गजको है जिहाँ कलवा एक बिचरै तिहां ॥ ६३॥ सब पंडी मूरख सिरताज, आवेहें उड़ जावें नाज । मै नही जाऊं श्तथी कदा, नदन करि हुं बैग सदा ॥ ६ ॥ हां आहार है विस्तार, जैसा जान कलेवर धार
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२०
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जम्बु चरित्र |
कलेवर खाता २ जवें, गजपेट ज पेठा तवें ॥ ६५ जु कोइ दिन पिछे गरमी जया, गजको कलेवर सूखी गया । धूप पड़ा सकुचाते द्वार, जितर काग रहे निरधार ॥ ६६ ॥ इक दिन मेह जया बिस्तार, नदी पूर आई तिनवार । दहे कलैवर गजका जवें. वह
या सागरमे तवें ॥ ६७ ॥ पानी की सरदी बहु थिया, तव उद द्वार मोकला जया । तत्रते काग निकला सही, चारतरफ देखे जल रही ॥ ६८ ॥ बैठनको जागा नहि कहीं, उड़ २ बैटे उहां फिरसहीं | कवा वांदी मुबा सदी, बायसके सम हमतो नही ॥ ६ ॥ तुम सरीर पर मुक नहि लोज, जो होवे अति सुन्दर सोभ । नहि मुवुं जव सागर मादि, चेतनता सुध शिवपद यांदि ॥ 3o दोदा) पदम श्री डूजी प्रिया, ते बोली सुन खाम दम भैसी स्त्री पायके, लोज करो शिव वाम ॥ ७१ पिन तुम बानर के तरे, पछतावोगे आप | लोन बहुत नहि किजिये, फिरके पश्चाताप ॥ ७२ ॥ जम्बू कहें कहो प्रिया, ते कुन बांदर होप | कैसे ते पाया, कथा कहो तुम सोय ॥ ७३ ॥ बनिता जम्बूको कहे, कथा सुनो चितलाय, बांदरकी में
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जम्वु चरित्र ।
कहुं सवें, श्रोता सुन सुखदाय ॥ ४ ॥ ( चौपाई इक वनमे बांदर बांदरी, जुदा रहे नहि एकेघड़। स्त्री नरतार देत अति धरें, इकदिन बनमे फिरता फिरें ॥ ३५ ॥ तिहां इक अहमे निर्मल नीर बांदर बांदरी बैग तीर । करे बिचार बांदरा तिहां, स्नान करिये कुन्ड है जिहां ॥ १६ ॥ तद वृद उपर चढ़ियो धाय, दोनु प्रहमे कूदे जाय गिरत प्रमाने मानव जया, बन्दर रूप सबि मिट गया ॥ ॥ बन्दर कहे कूदिये फेर, देवत हुनें अवकी बेर । बांदरी कहे सुनो मुफ पीव, बहुत लोन नहि कीजें जीव ॥ ॥ आपन पशु तें मानव जया, एताहिमे सुख बहु थया।अव लालच मत करो सुजान, नहि मान्यो बांदर अज्ञान ॥ए अहमे फेर कूदियो जवें, बांदर रूप नया ते तवें बांदरी फिर नहि कूदी जिहां, नारी रूप रही ते तिहां ॥ ७० ॥ एते मे जित शत्रु राय, शिकार देत तिहां ते थाय । त्रिया बांदरी अद्भुत रूप ते देखी जित शत्रु नूप ॥ १॥ रूप देख नूप सङ्ग लिया घर आए पटराणी किया। इकदिन राजा राणी तिहां, बैठे जाय गौख है जिहां ॥ ५॥ उह बन्दर
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जम्मु चरित्र
एकाकी थया, बांधी पुरुष पकड़ ले गया। नाच सिखाया बांधी जवें, सीखा नाचन बन्दर तवें ७३ ॥ बन्दर बांधी लाया तहां, राजा गणी बैठा जिहां । लगा नचावन बांधी जवें, निज तिय बन्दर देखी तवें ॥ ४ ॥ राणी बन्दर चिन्दा सही, रोने लगा बन्दर रही। राणी बन्दर नाषा कहें, अव पळताया कबु नहि लहें ॥ ५ ॥ तैं नहि माना मेरी बात, किया लोन तें अति विख्यात। ताते तूंतो बन्दर रहा, ते नहि माना मेरा कहा ॥ ७६ मेरा तेरा नया बिजोग, मत रोवें नहि कीजें सोच तव बांदर सुनके चुप रहा, जो राणीने बातें कहा ७७ ॥ ( दोहा ) जैसा स्वामी मतकरो, हमको तजके लोज । चाहो सुख तुम मुक्तिका, कैसे पायो सोन ॥ ॥ जिम बांदर पडतावते, तैसा करते थाप। अधिक लोन नहि कीजिये, होवे पछाताप नए ॥ तव तियको जम्बू कहे, सुनो बचन चितलाय । कवाड़ी जैसा हूं नही, मूर्ख विवेक रहाय ए ॥ कामिनी जम्बूने कहे, कौन कवाड़ी जीव मूर्खतातें किम कियो, ते तुम नाषो पीव ॥ ए१ चौपाइ ) जम्बू कहें एक बन माहि, कठियारो
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जम्धु चरित्र ।
इक श्रायो ताहि । लक्कड़ लेके कोयला करें, अग्नि तपावें बहुबिध परें । ए ॥ स्तू गरमी की साग प्यास, सूखे कएल नीर बिन तास । निज नांडे का पानी पिया, ते बरतनको खादी किया ॥ १३ प्यास बहुत लागी फिर तास, पानी रश्चक नहि है पास । सोधे बनमे पानी नही, लागे प्य स मिले नहि कहीं ॥ ए४ ॥ बहुत प्याससुं निजा लियो, दक्षत नीचे जा सूतियो। सूता सुपना देखे तिहां, बहुत नीद लीन्हा है जिहां ॥ ए५ ।। कूवा तलाव नदीको नीर, तेमे पीधा श्राप शरीर । जब जागा फिर प्यासा रहा, उठके हूंढ़े पानी कहां ए६ ॥ तव देखा इक गढ़ है तिहां, चहला बहुत जराहै जिहां । सीक घासका लियो उठाय, चहला मे तव दियो मुबाय ॥ एy ॥ मुखमे श्राप निचोड़े घास, नहि गइ फिर वाकी प्यास । तैसा मै न करूं इह काम, जोग नागिहों मै शिवधाम ॥ ए७ ॥ तुमरी जोग न मनमे आन, जैसे चहला बून्द समान । सो मुझको नहि थावे दाय, थोड़ा सुख मुख बहुत कहाय ॥ एए ॥ ऐसा बचन सुनी जव कान, जी त्रिय चुप रहे निदान । जम्बू स्वामी
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जम्मु चरित्र ।
धीरजयन्त, आगे श्रोता सुन बिरतन्त ॥ २०० दोहा ) श्रव तीजी तिय इम कहे, पदम सेना जु नाम । स्वामी सञ्जम मति धरो, सञ्जम मुक्कड़ का ॥ १ ॥ जो योगे पडतावगे, नृपकी राणी जम । तेनो पुख पायो घणो, तुम पावोगे तेम ॥ २॥ तव जम्बू स्वामी कहें, ललना कहिये बात गणी किम सुख पाश्या, ते तुम कहो विख्यात ३॥ कहें पदम सेना तव, स्वामी सन चितलाय राणीकी में कहुँ कथा, जे पुख पायो काय ॥ ४ कामिन पियसुं नापती, साच बचन हिय धार चेतनना सुध होयके, श्रोता सुनो विचार ॥ ५ चौपाइ ) राजगद्दी नगरी विस्तार, निहां बसे देवदत्त सुनार । तिनके दर्य बहुत है पास, घरमे एक पुत्र है तास ॥ ६॥ इक सुनारकी पुत्री थान कियो विवाह पुत्रको जान । स्त्री जरतार बहुत है प्यार, सुख बिलसे नित तेह सुनार ॥ ७॥ अन्य पुरुषसो खुवधी त्रिया, देखी सुसरे सुतकी प्रिया सुतसुं जाय हकीकत कही, तेरी त्रिया सती तो नही ॥ ७॥ पुत्र न माने एको बात, मेरी त्रिया सती विख्यात । तव ते बूढ़ा चुप हो रहा, सुनी
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जव चरित्र ।
धात जे सुतने कहा ॥ ५ ॥ इकदिन तिया सत्र ले जार, षाड़ीमे सूती निरधार । तवते सुसरे देखा सह, सूती जार सङ्ग ले बह ॥ १० ॥ सुसर देख निमावस नार, लियो खोलि नेपुर निरधार । पग नेपुर सुसराले चला, उठी त्रिया जानो सव कला ११॥ सुसर कहेगा सूतसुं जाय, मेतो पहिले कहुं समुकाय । परपुरुष को विदा कर दिया, सूती जाय जिहां निज पिया ॥ १५॥ घड़ी इकमे पिठ को जगाय, कहने लागी पात बनाय । पग नेपुर सुसरा ले गया, अनघट काम बाज ए नया ॥ १३ प्रास कहेगा तुमसुं जवें. दोस मुसीको देगा तवें खवरदार तुम रहियो प्रात, मत मानो जो नापे तात ॥ १४ ॥ प्रात जया दिनकर परकाश, सुसर श्राय बेटाके पास । सुनो पुत्र तुम बहुकी बात जार सङ्गाले सूती रात ॥१५॥ पग नेपुर मै खोली लिया, तुके दिखापन को मै किया। कहे पुत्र बूढा सुन बात, तेरी अकल कहां गई तात ॥ १६ ॥ क्या कम देता तें श्राज, मेरी बहू सती सिर ताज । जव तें नेपुर लिया उतार, तब मै सुताचा निरधार ॥१७॥ धिक्कार तुके है श्राया तिहां, पेटा
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मम् वरित्र ।
।
बहु सैनमे जिदां । लाज न थाइ तुकको ध्याज उद सुसराकी कीन्दी लाज ॥ १० ॥ सती बाज कर बोली नदी, तुमको लाज न थाइ कहीं । तें तो जूता सी कहे, मेरी बहुतो सात्री रहे ॥ १७ बूढा कदि हकीकत सर्वे, बेटा तो नदि गानी तदे जूटा हुया बुढा तब सही, सुद्ध चेतना पानी कड़ी २० ॥ ( दोहा ) बहु कड़े सुसरा मुळे, दीन्हा आज कलङ्क । करूं धीज परतीतको, तो भै निस ॥ २१ ॥ साच जूट निर्णय करुं करी प्रतिज्ञा याज । जव कलङ्क मुक्त मेटिदें, तब रद्दसी मुक साज ॥ ११ ॥ नगर माहि इक बको, देव लड़ें निराम। मूरत सोने यक्षकी, ते जानेव गाम ॥ १३ ॥ जूठा निकले पगबिचें, दाव रखे ते यक्ष । साचा ततखिण नीकलें, सब देखे परतक्ष २४ ॥ साच झूठ इम जानिये, यक्षदेव परसाप । चेतनता सुध होयके, श्रोता सुनियो बात ॥ २५ चौपाइ ) धीज करनको चाली बहु, मिला खलक देखनको सहु । जीड़ नइ खाये सब लोग, बहू आरसे लियो संजोग ॥ २६ ॥ तवते बहु जारसुं कही, एक फन्द कीजो तुम सड़ी। स्नान करी
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जा चरित्र। । १७ जाउँ जवें, गहिला होके बूजो तवें ॥ २५ ॥ लोग देवता थडियो मुफे, एती बात कही मै तुफे, तव उनने असाही किया, सहूलोग देखत बू लिया शण ॥ नार गश् यक्षके पास, जोड़ी हाथ करे घरदास । पहिले गहिले बुवा श्रङ्ग, श्रवर पुरुष नहि किया प्रसङ्ग ॥ २५ ॥ जो मै फूठ कहूं एबात, तो तुल दाब रखो बिख्यात । नहितो मुझने दीजो
ने या कहि करजोड़ ॥ ३० ॥ जैसी बाद बडूने कार १. यक्ष चरणतुं निकली सही। रक्षा बिनाया की पात, दोय पुरुष कहती सियान ।। ३१ ।। सुनी बात नारीकी जवें, यह दे गोड़ी तवें. जाची न दोष सब गया, तव नुका ३२ ॥ उस दिनसो बुढा दिन रात, नीदना अचरिज बात । नगरीमे जाने सवकोय, देवदासको नीद न होय ॥ ३३ ॥ सुना अपने असा वैन, देवदत्त सोवें नहि रैन । राजा जी जय किरो बिचार, बड़े कामका जानि सुनार ३४॥ जनानी ज्योढ़ी है जो खास, चौकीदार करूं में तास । एतो जागे सारी रात, नूपति राख्यो ते विख्यात ॥ ३५ ॥ देवदत्त तव रहता तिहां, पट
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२८
मम्बु चरित्र ।
राणी की ड्योढ़ी जिहां । श्रागे बात बहुत विस्तार श्रोता सुनियो श्रवण मकार ॥ ३६ ॥ पटरानी राजाकी तिहां, फीलवानसु खुवधी जिहां। हाथी सजकर थाया रेन, पटरानीको कीन्हा सैन । राणी गो धैठी थाय, हाथी अपना सन्म नाय ३०॥ पटरानीको लिया उतार, ते देख देवदास सुनार । महावत राणी करि जोग, राखी गौख न देखे लोग ॥ ३ए ॥ बुढा देख विचारन लगा, श्राज सकस चिन्ता मुफ नगा। जो राजाके घर ए घात, मुफ गरीवकी कौन बिसात ॥ ४ ॥ दोहा) चिन्ता मिटी सुनारकी, श्राइ निभाधार प्रात समे नृप देखियो, एतो सुता जोर ॥४१॥ राजा पूढे तेहसु, साची कहियो मुस। आगे नीद न श्रावती, क्युं थाइ थव तुस ॥ ४५ ॥ तव सुनार कदि रायसुं, रेनीका संजोग । इस्ती राणी शानियो, कियो महावत जोग ॥४३॥ राय हुकम तवही कियो, तिनोको ले जाय । वैजार गिर पर वतसुं, दीजो सही गिराय ॥ ४ ॥ दया करी सब लोकनें, नृपसुं दियो बुड़ाय । फीलमानको काडियो, राणी सङ्ग लगाय ॥ ४५ ॥ (चौपाइ)
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जम्बु चरित्र ।
राणी महायत सजाय, देश निकाला बीया गय जमते ५ श्राये किहां, पुर बाहर देवख रे जिहां ४६ ॥ सूना देवस तिहां न कोय, जिहां प्राय सूताई दोय । सेमे राजाका चोर, चोरी कर थाया ते गेर ॥ ७॥ पीले फोज रायका जवें बिपा चोर देवसमे तवें। चौकिदार जु बाहर रहे प्रात होय पकहुंगा कहे ॥ ४ ॥ तिहां महावत सूता सही, राणी जिहां जागती रही। श्राग चांदने राणी देख, एतो नरहै रूप विशेष ॥ ४॥ राणी पूढे तूं है कौन, किनकारण बैग है मौन । मै हूं चोर तुमीसो कहा, माके मारे में लिप रहा ५० ॥ मुके श्रादरें राणी कह।, तो मै तुके बचावं सह।। जो तुम कहो बचन परमान, कर उपगार बचावो जान ॥५१॥ प्रात दुवा राजाके लोग देवल बीच थाय संजोग । तस्करका राणकर गही, ए पति मेरा पैसा कही ॥ ५५ ॥ ए तुम चोर महावत जान, हम पंडी परदेशी प्राण । पकड़ महावत साये तिहां, राजाजी बैठेथे जिहां ॥५३ राय दिखाया सूजी तवें, जान महावत मूवा जवें राणी पनी चोरके मार, आगे जङ्गल है कन्तार
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३०
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धम्पु चरित्र
५४ ॥ नदी एक आई जब तिहां, पार जानेको नाव न जिदां । तव तस्कर राणीको कड़े, कपड़ा गहना जो तुक रहे ।। ५५ ॥ ते सब दिजे मुके उतार, मे रख श्राजं तटनी पार । पिछे तुक ले जाउं सड़ी, तबते राणी नागी रही ॥ ५६ ॥ (दोहा कपड़ा गहना चोरको, राणी दीया उतार । 'राणी तो नागी रही, चोर चला तब पार ॥ ५७ ॥ कहे चोर राणी सुनो, ए जङ्गलको जोय । यांदी तुं बैठि रहो, यवर सोधियो कोय ॥ २० ॥ भैसा कहके चोरटा, चला गया तब आप । नदी तीर राणी रही, करती महा बिलाप ॥ ५० ॥ फीलधान मरती समे, देखी त्रिया चरित्र । सुन परियामे से मुवा, हूवा देव पवित्र ॥ ६० ॥ हुवा महावत देवता, "उपजता ज्ञान बिसेष । यवधि करी जोयो तवें, पिछला जब तव देख ॥ ६१ ॥ ( चौपाइ राणीके प्रतिबोध न काज, तव सुर कियो वैक्रिय साज । जम्बूक रूप देवता किया, मास पिन्ड मुखमे तव किया ॥ ६२ ॥ नदी तीर राणी है जिदां जम्बूक जाके ऊजा तिहां । एतामे इक मंत्री जीव, जननुं बाहर पाये सदीव ॥ ६३ ॥ गी बड़
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जम्बु चरित्र ।
देख मास रख दिया, उह मबली को लेने किया वाया गिध मास लेगया, मबली तत्र पाणी मे गया ६४ ॥ इसी देख राणी तेवार, दोनु खोया मूर्ख गमार । गीदड़ कड़े सुजग सुन बात, मै तिर्यञ्च पशुकी जात ॥ ६५ ॥ मनुष होय तिनो को खोय तूं न हि दिलमे जाने सोय । राखी कड़े कौन तै तिन ते तुम जाषो बचन नवीन ॥ ६६ ॥ कड़े जम्बूक राणी सुन बात, राय महावत तस्कर जात । मुज वीतक कैसें तूं कदे, तुं क्या जाने कहां तूं रहे ६७ ॥ प्रगट कियो सुर अपना रूप, सुन्दर सोने अधिक अनूप | कहे महावतका हुं जीव, राणी लाजी याप सदीप ॥ ६० ॥ तव सुर कड़े जड़ सुन बात, तेरा दोष नदि विख्यात । एसब काम रु मोद बिकार, तूं मत लाजें आप विचार ॥ ६९ ॥ तंव राणी प्रतिबोधी सदी, सुनी बात देवत जो कही । दुइ साधवी राणी जवें, गया देव निज थानक तवें ॥ ७० ॥ स्वामी जैसा है इइ कथा तुमतो दीक्षा ब्योगे यथा । पि पिढें पछतावा सही राणी जिम मैं तुमसो कही ॥ ७१ ॥ सुनके जम्बू बेसा कही, ज्ञान बिना पछतावा सही। आगे
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३.२
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जम्बु चरित्र |
'
यात कें विस्तार, सुद्ध चेतना पायें पार ॥ ७२ ॥ दोहा) तत्र जम्बू तियसो कहे, सुनो बात गुणनेह विद्युनमासी हूं नही, हास्यो विद्या जेइ ॥ ७३ ॥ विद्युनविद्या खोयके, पायो मुख्य अपार । तैसें हूं नत्रि चूकिड़ों तुमरे वचन लिगार ॥ ७४ ॥ कई पद्मनात, विशुनमाली नाम | कैसे विद्या हारियो, ते जापो सुऊ खाम ॥ ७५ ॥ तत्र जम्बू स्वामी कड़े, सुनो त्रिया तुम बात । विधुनमासी की कथा, सर्व कहुं विख्यात ॥ ७६ ॥ चतुराचित दे सजिलो, मोह काम तजि थाज । चेतनता सुध होय. कीजो पनो काज ॥ 99 ॥ ( चौपाइ ) जम्बूद्रीप बहुत विस्तार, जरत क्षेत्र सोने सुख कार | तिहां इक नगर बसें सुनाम, हे कुष्टपुर नाम इक गाम ॥ ७८ ॥ तिहां बसे ब्राह्मन सुत दोय नाम कहुं सुनियो सबकोय । श्क विद्यनमाली है नाम, पुत्र मेघरथ पूजा ताम ॥ ७९ ॥ दोनो है विद्या धनहीन, महा दुखी दुखसो अधीन । इक दिन पुरके बाहर गया, विद्याधरसुं मिलना नया ॥ ८० ॥ दो मूरख विद्याधर देख, कड़े बचन तव एक विसेष | जो मानो मेरा तुम बात, तो
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जम्व चरित्र |
इक बिद्या है बिख्यात ॥ ८१ ॥ जिनसुं सुख पावोगे सही, स्वामी प्रमाण जो तुम कही । तद विद्याधर पैसा कहें, बचन हमारे जो सर दहें ॥ ८२ ॥ करो व्याद चन्डा लिन घिया, बाहिर गाम रहो ले त्रिया तिनसुं जोग मती तुम करो, ब्रह्मचर्य षटमासी धरो ॥ ८३ ॥ मन्त्र बताउं जपियो जाय, उठेमास मन्त्र सिध थाय । देवि चण्डाली परत होय तुमको बिद्या देवे सोय ॥ ८४ ॥ विद्या प्रजाव राज तुम करो, अनेक रायकी पुत्री बरो। चण्डाली का देखी रूप, दाव जाव करती जु अनूप ॥ ८५ ॥ तुम जो चूको उसके साथ, चूको तौ विद्यानदि हाथ सा कहिके दिar किया, विध समेत मन्तर
दियो ॥ ८६ ॥ विद्याधर किन्ही बहु दया विध बतलाय ठिकाने गया । ब्राह्मण पुत्र मन्त्र तव लियो, चण्डालनिसों निसपत कियो || ८५ ॥ बाहिर रहे गामके जाय, उद मन्तर जपे मनलाय
दिन ते चण्डालिन रमे, विद्यनमाली रातके इसमे ॥ ८० ॥ रूप देखके चूक्यो जवें, विद्या सिद्ध बनहि तवें । छोटा चात मेघरथ जहीं, ते तो व्रतसुं क्यों नहीं ॥ १९ ॥ विद्या सिद्ध न सत्र काज
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जम्बु चरित्र।
वहुत मुलक का पाया राज । बहुत रायकी पुत्री वरी, उसको विद्या सिध हुइ खरी ॥ ए० (दोहा नया मेघरथ तव सुखी, जम्बू कहे सुन नार । तुमरी जोग जानिया, चण्डाक्षी निरधार ॥ ए१ हंतो चूको नहि कदा, मेघरथ परें जान। अनेक सुख है सिद्धके, ते पालं शिवधान ॥ १॥ विद्यन माली चूकीयो, सुख पायो विस्तार । तिम हूं नोगन जोगवी, नहि नर संसार ॥ ए३ ॥ नोग तजे संसारको, जोग कर जो कोय । ते पावे सुख सासता, नरक बास नहि होय ॥ ए॥ श्ह सिका सुन लीजिये, तीजी त्रिया सुजान । चेतनता सुध होयके, लीजे अविचल थान ॥ ए५ ॥ ( चौपाइ चौथी कामिण बोली ताम, कनक सेना है ताको नाम । जम्बू खामोसुं तव कहे, हमकुं बोड़ मुक्त सुख गहे ॥ ए६ ॥ खामी लोन मती तुम करो फिर पाउ परतावो खरो । जैसे एक खेत रखवाल ते सुख पायो बहुत बिहाल ॥ एy ॥ जम्बू कहे कौन खेतिहार, बनिता ना जरत मकार । सुर पुर नामे नगरी जिहां. पांवर एक बसें है तिहां ए ॥ खेती करन हार है तेह, करे खेतको रक्षा
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जम्भु चारत्र ।
जह । नाज खतका पक्का जवें, पनाया माला खेत मे तवें ॥ एए ॥ उपर बैठ बजावे संख, मरे जानवर उड़े जु पंख । इकदिन गाय भैंस ले चोर, ते तव आया खेतकि थोर ॥ ३० ॥ संख वजावो पामर तवें, जान्यो चोर देवता जवें। कोप करी मुऊ उपर देव, नाग गया तस्कर ततखेद ॥१ पांवरं लिया चौरका मास, गाय नेंस कपड़ा संजाल अवर जगेम बेचा जाथ, जैसा किया लोन अधि. काय ॥२॥अधिक लोज पांवरका रही, श्राज हुँनर में पाया सही । इकदिन चोरी करके चोर बाया फेर खेतके डर ॥३॥ पांवर संख बजाया फेर, तस्कर जाना शायकी वेर । ए रखवाला खेत का सही, पायाजेद देवता नही ॥ ४॥ तव पांवर को पकड़ा जाय, मार दिया सब लिया बिनाय । सबीलोक पूने कर दया, रे पांवर तुझको क्या जया ५॥ तुमतो थैसा करते काम, पांवर सम पढतावो खाम । कनक सेना बात इह कही, आगे श्रोता सुनियो सही ॥ ( दोहा ) तव जम्बू खामी कहे त्रिया सुनो हम बात । मुफे लोग तृस्ना नदी, जैसे बांदर जात ॥ ७॥ कनक सेना जातवें, ते कुन
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अम्बु चरित्र ।
बन्दर हाय । मुफ आगल ते जापिये, प्राणनाथ तुम जोय ॥ ॥ जम्बू स्वामी तब व, जङ्गल वन विस्तार । बन्दर बन्दरो जोड़ ले, बले तिहां निरधार ॥ ए॥ बांदर तो बढ़ा दता, तरूण बांदरा एक । ते तो तव आयो तिहां, बूढ़ा कियो विवेक २०॥ बन्दर तो देखी तवें, बूढ़ा गया पलाय। परबत के खूहाण मे, ते तो लिपियो जाय ॥ ११ ॥ पानीकी बहु तिस लगी, पानी मिले न कोय । चहला ले १ देहमे, लगा लपेटन सोय ॥ १२ ॥ बारश से कीचको, बहुत खगावे तेह । धूप लगी तव सूखीया, उलटी जलती देह ॥ १३ ॥ मुख पाया ते कर्मसुं, बांदर सम हुँ नाहि । फसुन तृला कीचमे, जो मुख पाईं तांहि ॥ १४ ॥ असा मूरख मै नही, कामिन सुन मुझ वैन । चेतनता सुध कीजिये, पावे अविचल चैन ॥ १५ ॥ (चौपाइ तव ते बोली पञ्चम बाम, ताको महसेना है नाम खामी बहुत लोज मत करो, सिद्धी सम परतावो खरो॥ १६ ॥ जम्बू बोलें सिद्धी कौन, किम पुख पाइ जाषो जौन । स्त्री कहे एक कोश् ग्राम, सिद्धी वुद्धी रहे सुगम ॥ १७ ॥ दोनो त्रिया दलिखी
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जम्नु चरित्र ।
रहें, धन पार्षे फुस्ख बहुला सह । इकदिन सार्थ बाहके लोय, खाता पिता सुखिया जोय ॥ १७ तद पूना ब्राह्मणसुं जाय, एते लोग सुखी किम थाय । हम दालोडी क्यों कर नये, सुख सम्पति मेरे क्युं गये ॥१५॥ तव द्विज बोले बचन विचार पुस्तक देख कहे निरधार । एसब लोग पूजिया देव, तुमतो देव न कीन्हा सेव ॥ २० ॥ तवते गणपत पूजन लगी, जले जावमे रहती जगी। तूग देव जुहमास, कहे मागमे पूरो आस ॥ २१ ॥ बुद्धी कहती सुनियो देव, मोहर एक श्राप नित मेव । गणपति नित एक मोहर द६, बुद्धीतो धन वन्ती ॥२२॥ सिद्धी सूबे करिमुऊ दया, तुऊ को दौलत कैसे जया। कहे देवता दीया मुळे पूजो देव कही मै तुझे ॥३॥ सिद्धी गइ देवता पास, पूजा करे दर्वके आस । तवें देवता तूना सही क्या मागे असा तद कहीं ॥ २४ ॥ ॥ तव सिद्धी बौली ततखेव, बुद्धीसो पूना मुक देव । मोहर दीय देवता दिया, सिद्धीतो नित तिनसुं लिया २५ ॥ दुवा दर्व सिद्धीको जवें, बुद्धी थाके देखी तवें । बुद्धी पूढे सिद्धी कने, कैसे धम हुवाहै तने
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गए चश्त्र।
२६ ॥ कहन लगी देवता दिया, जिसी देवसुं तेने लिया। मोहर श्क मांगी तें जोय, मैंने मांगी मोहर दोय ॥ २७ ॥ हमने तुऊसो छूना लश्, तव तो मै धनवन्ती नइ । बुद्धी सुनके इषा धरी फिर गणपतकी सेवा करी ॥ २७ ॥ बहमास प्रस्त्र तव थया, मांगो तुम कीया मे दया। स्वामी तुम थागसमे कही, मेरी थांख एक खो सही ए कानी करो देवता मुझे, मेतो वास की जब तुळे सवें देवता औसा किया, बुद्धीका कानी कर दिया ३० ॥ बुद्धी या पड़दे रही, तब सिडीन जाना सही । अवकी वेर दर्व बहु लियो, बुद्धीको देवत ने दियो ॥ ३१ ॥ बहुधन लालं मैजी जाय, तव गणपतके सन्मुख श्राव । सेवा करी रिजा देव तव गणेश तुगे ततखेव ॥ ३५ ॥ क्या मांगे हैं तूं मुफ पास, ते तुम कहियो पूरो बास । तवते बोली दीजें देव, बुझीसो पूना ततखेव ॥ ३३ ॥ तवें देवता चूना दिया, दोनो आँखज अन्धी किया मोहर खोय आंखवी गया, तव सिद्धीको बहु उख जया ॥ ३४ ॥ तैसे स्वामी करते काम, क्यों बोड़ो हम जैसी बाम । दिदा गहो मुगतके काज, नही
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जम्बु चरित्र।
मिले तुमको शिवराज ॥ ३५ ॥ जगके सुखवी योगे खोय, सिद्धी सम पछतावा होय । श्वात महसेना कही, चतुर लोक तुम सुनियो सही ३६ ॥ ( दोहा ) अव जम्बू खामी कहे, सुनो पञ्चमी नार । जातवन्त इयकी तरे. हूं चालुं निर धार ॥ ३३ ॥ कु राह मग चाचं नही, चालों पन्थ सुपन्थ। कोन तुरङ्गम तिय कहे, ते तुम ज्ञापो कन्थ ३०॥ जम्बू कहे तिय सांजलो, अद्भुत बात अनूप संतनपुर इक नगरमे, जितसत्रु तिहां जूप ॥ ६॥ नृपके एक तुरङ्ग है, जातवन्त बहु मोल । राजा हयसुंरञ्जिला, यामे तो बहु तोल ॥ ४० ॥ ते घोड़ा जिनदत्तको, दिया सिस्वावन चाल । हंस चाल सीख्योजत्रे, कुमग दियो सब टाल ॥४१॥(चौपाइ सोल्यो हंससु मारग चाल, सबकु पन्थको दीन्हा टाल । सुना रायका बैरी जवें, नली चाल घोड़ेका तवें ॥ ४२ ॥ जितसत्रु नृपके श्रावास, घोड़ा एक थमोलिक खास । मेरा सेवक असा कोय, उह घोड़ाकू लावे सोय ॥ ५३॥ तव श्क चाकर बीड़ो लियो, रेनसमे जा खातर दियो। तव उह बाह खोल से चला, घोड़ा जातवन्त है जला ॥ ४ ॥ इयत
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२०
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जस्तु चरित्र ।
कुपन्य चाले नदी, बहुत कुरा चलाया जहीं । दिन जगत छोड़ाके कान, चोर चलावत अपने धान ॥ ४५ ॥ घोड़ा रहा धनीके पास, बहु सुख पाया करें बिलास | चोरोंके बस पड़ान इंस, तैसें इम हैं उत्तम वंश ॥ ४५ ॥ अश्व समान मोक्ष मग ठोड़, जगकु राइसों निज मन मोड़ । मोह चोर बस नदि रह्यो, सत्य शील समता गुण चह्या ४७ ॥ तुम मुकको बहु बातें कही, पन्थ कुपन्थ चलावो सही । मै मूरख नहि सुनियो नार, पट्टों न जग के जोग विकार ॥ ४८ ॥ ( दोदा ) जम्बूकी बी त्रिया, कनक सिरी तस नाम । तुमतो पकड़ी टेक जो, नदी छोड़ते खाम ॥ ४९ ॥ जैसें ब्राह्मण पुत्र इक, तैसें तुम निरधार । तद जम्बू स्वामी कहें, ते जपो मुख नार ॥ २० ॥ कामिन कहे स्वामी सुनो, एक गामके माह । परित ब्राह्मण एक था, तिसका सुत है तां ॥ ५१ ॥ निमुरख समजे नही, पिता कियो तब काल । तद माता सुतको कहे, सीख सुनो मुऊ वाल ॥ ५२ ॥ कोइ वस्तु जे पकड़िये, बोड़ी जे नहि तेद । वचन मान लियो जवें, माता कहती जेद ॥ ५३ ॥ इक दिन
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मम्बु चरित्र ।
खर कुंजारका, नार दियो सब गेर । जागा नगरी बीचमे, कोश्न था नेर ॥५४॥ प्रजापती तिहां दौड़ता, श्रा करता सोर। पकड़ो ५ कहि तवें लोक न थावे और ॥ ५५ ॥ (चौपाइ ) ब्राह्मण को सुत मूरख जोय, गर्दन पूंठ गहीहै सोय । खरतो मुह पर मारे लात, तोहि नबोड़े मूरख जात ५६ ॥ लोक कहे मूरख तें बड़ा, एती लात ज मुह पर पड़ा । तव उद् घोला सुनहो लोक, तुम मूरख जो बोलो फोक ॥ ५७ ॥ मै पन्डित हों वैसा कही गही वस्तु किम बोइं सही। मेरी माय शिखाया जवें, गही वस्तु किम बोर्नु तवें ॥ १७॥ तैसें स्वामी तुमने किया, सीख सुधर्मा खामी दिया सोश बचन जु दिढ़ता किया । ती नहि बोड़ो जो ब्रत लिया ॥ ५ ॥ जैसा जोग बोड़के पीब, कहां मुकत चाहो हो जीव । ब्राह्मण सुत सम हांसी होय, एती बात कहा मै सोय ॥ ६॥ ॥ (दोहा तद जम्बू स्वामी बदे, सुनो त्रिया मुक पास । हूं उस ब्राह्मणकी तरें, नहीं तुहारो दास ॥ ६१ ॥ त्रिपा कहे ब्राह्मण किसो, ते मुऊ कहिये स्वाम जम्बू खामी तद कहें, कुशल गाम श्कनाम ॥६५
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१२
मम्वु चरित्र। तिहां बसें रजपूत इक, घोड़ी उसके गेह। तिसका सहीस चोरके, दाना बेचे तेह ॥ ६३ ॥ उह घोड़ी नूखी मरे. थाखिर कियो काल । मरके एकज गाममे, हुश्ते बेस्या वाल ॥ ६४ ॥ ते सहीस जव काल कर, जनमे ब्राह्मण गेह। पुत्र पने ते अवतरा हु यौवन देह ॥ ६५ ॥ ( चौपाइ) इक दिन उह बेस्याको देख, रूपवन्त है अतिहि बिसेष बेस्यासो प्रार्थना करें, बेस्या उसको मन नहि धरें ६६ ॥ उसको करज पूर्वमा सही, बेस्यासो बहु तेरा कही। दिख रञ्जनको करता काम, उसके घरका हुवा गुलाम ॥ ६७ ॥ उसके घरका फूग स्वाय, नाचकाम करता मनलाय । जातबि खोइ अपना तझी, मैतो जैसा मूरख नहीं ॥ ६७ ॥ जो तुमरा फूला श्रादरं, गुलाम होके सेवा करूं। शिव सुखका मै लोजी सही, सुद्ध चेतना जम्बू कही ६ए ॥ ( दोहा ) जव बोली त्रिया सातमी, रूप स्त्री ते नाम । स्वामी तुम जैसा करो, मासाहस सब काम ॥०॥ मासाहस पंखेरुघा, साहस निर नय थाय । छदन ब्याघ्रके पैठके, मांस दादको साय ॥ १ ॥ सूता मुहमे बाघके, खगा मांस जो
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अनुचरिक)
होय । ते खावे उह पंखिया, थवर न खावे कोय ७२ ॥ मासाहस मुखसुं कहे, मेरी साहस जोय रखे कोइन कीजियो, थोर पंखियो सोय ॥ ७३ चौपाय) उसके देखा देखी और, बाघके मुखमे पैठे दौर । तिसको दाव रखे मृगराज, तैसे खामी करते काज ॥ ४ ॥ परकी होड़ करे जो कोय, थाखिर उसको बहुमुख होय । तुमने देख सुधर्मा स्वाम, देखा देखी करते काम ॥ ५ दिक्षा लेने को तुम जए, असा साहस मत करनए । सुधर्मा मासाहस समान, और पंखिया तुमहो जान ॥७६ दिक्षा कठिन बहुत है स्वाम, मुक्कर ब्रत पालनको काम । उखसुं पाली जाती सही, एती बात मै तुमसों कहो ॥ 9 ॥ मासाहस सम साहस धरें ते प्राणी नवसागर तरें। त्रियासातमी पैसे कही सुनी बात जम्न सब सड़ी ॥ son (दोहा) तव नम्बू स्वामी मोम स्त्री सुन बात । हुँ धरम मित्रसुं हित करूं, श्रोस्न सौ न सुहात ॥ ए॥ एहिज अम्बनीपमे, भरत खेत्र मझार । जित सत्रु राजा बसें, धान दान विस्तार ॥ ७० ॥ मंत्री नाम सुबुद्धि जो, तीन मित्र है तास । नित मित्र
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सम्व चरित्र।
पर्व मित्र है, जुहार मित्र फिरजास ॥१॥ बहुत हेत नित मित्रसुं, कधी जुदा नहि पाय । खाना पीना पहरना, पहिले देके खाय ॥२॥ बार परब को दूसरो, मित्र बहु प्यार। तीजा मित्र जुहार को, मिलन सो व्योहार ॥ ३॥ (चौपाइ) राजा कोप्यो मंत्री साथ, पकड़ लाव उसको गहि हाथ चले पकड़ने नृपके दास, श्राया नाग मित्र के पास ७४ ॥ तव नित मित्रन आदर दियो, जाना कोप रायने कियो। उसे देख मुख टेढ़ा किया, घरके बाहर कादी दिया ॥५॥ परव मित्रके मंत्री गया बननेजी नहि कीन्ही दया। अपने घरसुं बाहर किया, निराधार होके मग लिया ॥ ६ ॥ मिले जुहार मित्रसुं जाय, श्रादर दियो बहुत अधिकाय घरमे राख दिलासा दिया, राय पास जश् श्ररजी किया ॥ ॥ गुन्हा माफ करायो जाय, फिर मंत्रीस्वर कीयो राय । बचा जीवसुं मंत्री ताम भरममित्र श्राया बहुकाम ॥ ७ ॥ दोन मित्रज शत्रू थया, जीव सुबुद्धि मंत्रीस्वर जया। जिसपर कोप किया जमराय, नित्य मित्र देह सङ्ग थाय हए ॥ जोजन करे बहुत परकार, पहर बसन
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जम्बु चरित्र |
आभूषण सार । बहुत प्यार कर पोष्यो जवें, यन्त का राखें नहि तवें ॥ ए ॥ पूजा परव मित्र परवार, मात पिता जाइ सुत नार । कोप्यो काल जीवपर जवें, एसब राख न सकें तवें ॥ १ ॥ मसान तक पहुंचायें सही, परव मित्र थैसा जो कही | खारथके सब है परवार, सुद्ध चेतना उतरे पार || २ || ( दोहा ) निराधार जीवड़ा जया कोइ न खाया काम । धरम जुद्दार मित्र जव, जीव सहाइ ताम ॥ ९३ ॥ बरस मध्य इकवार जो, नाम धरमको लेत । सोइ धर्म इद जीवको, अविचल शिवसुख देत ॥ ए४ ॥ धरम मित्र सम को नही देख्या जगने जोय | बचे कालसुं जीवड़ा, धर्म सहाइ होय || ५ || धरम मित्रसुं प्यार है, कहि जम्बू सुन नार । तुमसब परवी मित्र हो, स्वारघिया निरधार || ६ || तुमसब अपने गरजके सको न काल बचाय । धरम मित्र जो मन बसे कहा करें जमराय ॥ ए७ ॥ ( चौपाइ ) जैस सिरी जु श्रातमी नार, जम्बूसुं कहती निरधार । मै नदि मानो तुम जो कही, जैसें द्विजपुत्री रही ८ ॥ कढ़ी रायसं कल्पित कथा, तैसे लामी
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४
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जम्छु चरित्र |
करते यथा । जम्बू कड़े कौन द्विज धीय, तब लिय बोली सुन मुऊ पी ॥ एए ॥ श्रीपुर नामे दे इक माम, सिरी सार राजाको नाम । तिसको बिसन पड़ाई श्राय, नइ कथा नित सुनता राय ॥ ४०० नगर लोक सब कहते कथा, अपनी २ वारी यथा कथा एक नित सुनते राय, जिसकी वारी सो कहि जाय ॥ १ ॥ इक दिन बूढ़ा ब्राह्मण तहां, तिसकी चारी या जिहां | उससे कथा कही नहि जाय बूढ़ा जया शक्ति नहि काय ॥ २ ॥ तद बेटी को ब्राह्मण कही, मेरी बदले तूं जा सही । कथा राय को कहियो जाय, पिता बचन शिर लियो चढ़ाय ३ ॥ ब्राह्मणकी बेटी तव गई, सनमुख जा राजाके जइ । कथा एक तुम सुनियो राय, पिता हमारा । ब्राह्मण थाय ॥ ४ ॥ पुत्र एक ब्रानका जिदां किया सगाई मेरी तिहां । उड़ ब्राह्मणका बेटा जवें सूरत मेरी देखन तवें ॥ ५ ॥ मेरे घरमे याया तेद, एकाकी मै रहती गेइ । उसे देख मै आदर दिया, श्रागत जगत बहु विश्व किया ॥ ६ ॥ जले जसे व्यञ्जन पकवान, उसे जिमाया मैने ध्यान । त्रिस-हुवा जोजन कर जवें, मुजे अकेली देखा तवें
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जम्नु चरित्र ।
४७
७॥ रूप देख मोया तेवार, मुजसो जोग किया निरधार । पीने घड़ी दोर जव सुवा, झूल रागम तव तमुवा ॥ ७॥ तव सिसको मैंने क्या किया गढ़ा खोदके गाड़ी दिया । पर वयात न जाने कोय, राजा पसें सांची होय ॥ए॥ तव ब्राह्मणकी बेटी कहे, बहुत कथा नृप सुनते रहे । उह सब सांची है जो बात, तो इह सांची है विख्यात ॥१॥ असा कहिके घरको गइ, नृप जाना सब थैसी नइ उस दिनसो राजाजी जया, बोड़ दिया सब सुनना कथा ॥ ११ ॥ तैसे खामी तुमने कही, कल पित बातज श्द सब सही । मै नही मानो एसब बात तव जम्बू बोले विख्यात ॥ १२ ॥ (दोहा) हूँ ललिताङ्ग समो नही, जो मानो तुम बात। त्रिया कहे ललिताङ्ग कुन, ते नापो अवदात ॥ १३ ॥ तव जम्बू स्वामी कहें, जरत क्षेत्रमे सार । बसंत पुर नगरी तिहां, सुखिया लोक अपार ॥ १४ ॥ सप्तप्रजव राजा जिहां, रूपवती तिय नाम । ते पटराणी जूपकी, सोने नृपके धाम ॥ १५ ॥ रूप वती राणी तिहां, गोखें बैठी आय । खलिता कमर सादका, देखी सुन्दर काय ॥ १६ ॥ राणी
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अम्बु चरित्र ।
ती मोकली, तेड़ायो निज गेट् । ललिताङ्ग कुमर यावियो, राणी करती नेह ॥ १७ ॥ तिन अवसर
पालकी, श्रावनकी सुन बात । तब राणी लखिताको, कही बचन जयखात ॥ १० ॥ शीघ्र जायके पिरो, मोरीमे बहु कीच । कुमर जाय बिपियो तिहां, टक्यो मोखा बीच ॥ १९ ॥ ( चौपाइ ) बिषे जाय ललिताङ्ग कुमार. मोरी मध्य रहें निरधार। टके मोखा मोरी बिच, जिहां बहुत है जूठा कीच ॥ २० ॥ टिपे रहे कोक दिन तिहां जूना खाना खाता जिहां | जीया जूग खाके जयें हुवा वला देही तवें ॥ २१ ॥ इक दिन वर्षा तु तव जया, पाणी मोरीमे बहु गया । चला प्रवाद जोरसुं नीर, वह थाया मोरीके तीर ॥ २२ ॥ निकला बाहिर कुमर सुजान, तव ते खाया अपने थान निजघर थाया दुख सब गया, फिर शरीरसुं ताजा जया ॥ २३ ॥ इक दिन सवारी कर जला बड़ी जलुससुंकुमर चला । बजार होके व्याया ज फिर राणीने देखा तवें ॥ २४ ॥ रूप देखके मोदी सही तव राणी ती सो कही। ले खावो ललिताङ्ग कुमार, सुनके दूती गइ तेवार ॥ २५ ॥ तुमको
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जम्बु चरित्र ।
तेंडे राणी श्राज, कुमर कहें मेरो नहि काज। मोरी विच फसा था तिहां, मैने जूग खाया जिहां २७॥ सो मुख मुझको भूला नही, मै नहि जाउं अवतो तहीं । बहु उपाय राणीने किया, ललिता कुमर दिल नहि दिया ॥ ॥ नहि माना राणी बहु कही, कहे जम्बु मै तैसा नही । कामिन सवें सुनो विख्वात, मै नहि नानो तुमरी वात ॥ २ संसार रूप मोरी माह, कौन पड़े उत्तम नर तांद दिदा लेस्युं जम्बु कही, सुन यावे प्रतिबोधी सही ३०॥ प्रनवो चोर पांचसे सवें, बचन सुनी प्रति घोध्या तवें । श्राप तियाके मातरु तात, ते पायो प्रतिबोध विख्यात ॥ ३१ ॥ एवं पांचवें सत्ताइस दिदा लेस्ये विस बावीस । परिवार सहित प्रनयों खास, जास्ये कोनिक राजा पास ॥ ३२ ॥ बीर प्रनु श्रेणिक सुं कहे, जे तो परधन प्रजवो गहें । ते लोकने आपमें सही, श्रेणिक पागल नगवन कही ॥ ३३ ॥ कोणिकने क्षमा वसें आय, धमना थानक देवें बताय । राजाने देखाड़ी सर्ब, प्रजव जला बीने बहु दर्ष ॥ ३४ ॥ कोणिक यादि सरव तिहां, प्रनवो आयो जम्बु जिहा । श्रावी कहे
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मम्बु चरित्र।
धन्य बो तुमे, चोरी बिसन मुकायो हमे ॥ ३५ दोहा ) जम्बुने प्रजवो कहे, संयम लेसु सङ्ग । तव ते कोणिक बोलियो, सुनो बंऊनो अङ्ग ॥ ३६ बंकराय नो पुत्र बो, तुमसु संयम होय। चोर बिसम को मूकियो, उत्तम मारग जोय ॥ ३ ॥ पहिले तुम कुल ने विषे, सदा धर्म आचार । म प्रसंसा सब करे, राजादिक निरधार॥३८॥ हिवें तिहां थी चालियो, बायो गुरुने गम । धर्माचार्य गुरू जिहां नाम सुधर्मा स्वाम ॥ ३५ ॥ जम्बु स्वामी श्रावियो थाजरणादिक गेड़। चेतनता सुध होयके, बांदे दो कर जोड़ ॥४०॥ (चौपाई) जम्बु कहे स्वामी मुकतार, जग सागर थी पार उतार। तिहांसुधर्मा स्वामी कहें, संयम नार जम्बु निरवहें । ४१ ॥ संयम मुक्कर अति घना, मैण दंतसुं लोहा चना लोद चना चावें नदि कोय, संयम मारग डुक्कर होय ॥४२॥ जम्बु सुनो साध आचार, जैनि ग्रंथ होय श्रणगार । ते चौवीस बोल मन धरे, जाव जीव लगते नव तरे ॥ ५३॥ पांचे सुमति गुपति जै तीन, ए आराधे मुनि परवीन । प्रथम बोत्र साधे जे जती, ताको पाप न लागे रती ॥५॥
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जम्बु चरित्र ।
देव गुरु थासातना तजे, मन बचन कायासु नित जजें । जो बोल सदा मनलाय. संयम पालें जे मुनिराय ॥ ४५ ॥ उएढा ऊह्ना बांबें नही, धूप शीत होवे जो कहो । तीजी बोल साध मन धरें ते संसार सुंदेला तरें ॥४६॥ परिग्रह बिन साध मार्गे चलें, पुरमत पाप सबी ते दलें । चार वोल एकाकी जान, पालें मुनि पावें शिवथान ॥ ४ ॥ लोच करावें पञ्चम बोल, ते मुनि सहसें अधकी तोल । नमो तेइने सीस नवाय, नवर का पातिक सव जाय ॥४०॥ एकवार जीमे मुनि सदा, रोगादिक श्रावे नहि कदा । उहा बोलकी एही रीत रस इन्त्रीको मुनिवर जीत ॥ ४ ॥ सिसा जूम करें मुनिराय, जय नहि थाने मन वचकाय । सात वोलके खंबन कहें, साध सोइ जो श्न बिध रहें ५० ॥ विलादिक तपस्या करें, अष्टम बोल मुनि मन धेरै । कर्म थाउ नहि थावे तिहां, करें तपस्या मुनिवर जिहां ॥ ५१ ॥ सदा योगमे मुनि वर रहें, नवमो बोल सुधर्मा कहें। जे पालें ते साध कहाय, ते मुनि बन्दो मन बचकाय ॥ ५५ सहत परीसह जे वावीस, ते अणगार नमो निस
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अम्बु चरित्र ।
दीस । दशें बोल संयमके कहें, सहे परीसह मन थिर रहे ॥ ५३॥ चौबिहार रैनको करे, रात्री जोजन मुनि परिहरे। बोल ग्यारे पाले मुनि, सुद्ध चेतना होवे गुनी ॥ ४ ॥ तजे प्रमाद साध निज अङ्ग, बार बोल पाले मनरङ्ग । साध होय थालस नहि करे, नव सागर सुंदेला तरे ॥ ५५ ॥ बन्ध रहित नित करे बिहार, श्म मुनिवर पालें आचार तेरे बोल साधके कहें, अष्टकर्म सुंन्यारा रहें ॥५६ पर घरका लेवें थाहार, नोजन करे सदा इकवार चौद चोख पाने मुनिराज, श्रातम साध न करते काज ॥ ५५ ॥ जहा पानी पीवे सदा, जीव दया बगड़े नहि कदा। पनर बोल को एह विचार, सचित वस्तु नहि वे धनगार ॥५॥ जिम तिम नाषा बोले नही, असञ्जम बेम कहे नहि कहीं सोल बोल निज मनमे धरें, मिथ्या बचन सदा परिहरें ॥ ५५ ॥ वैन लोक ना सहियो सही. बोल सतरमा इनविध कही । इह बिध मुनिवर पालें धर्म, तो नहि लागेको कर्म ॥६०॥ एक स्थानक मुनि नदि रहें, यती मार्गमे यैसा कहें। बोल अगरे एही चाल, जो पाले सो दीन दयाल ॥६१
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अन्धु चरित्र ।
क्षमा करे साधु नित मेव, जैन धर्मको जाने लेब तजें क्रोध समतामें रहे. जगनीस बोल इन बिध कहे ॥ ६॥ नित पडि लेहन कीजे ताम, पूंजि प्रमार्जन करिये काम । सबै जीवकी दया बिचार बीस बोल पाले निरधार ॥ ६३ ॥ गुरुको बचन करे परमान, बोल कवीस नपरि जान । जो मुनि पालें ज्ञानी होय, शिव थानकमे पहुचे सोय ६५ ॥ श्रागम सूत्र जणे नित मेव, जिन बाणीके जाने नेव । इह बावीस बोल गुणखान, पाले मुनिवर चतुर सुजान ॥ ६५ ॥ गुरु कुलवास बसे नित मेव, सदा करे मुनि गुरुकी सेव । तस बोल साध मन धरे, जनम के पातिक हरे ॥ ६६ ॥ पञ्च महाबत पाले यती, नितको पाप न लागे रती। इह चौवीस बोलकी रीत, चेतन सुद्ध कियो परतीत ॥ ६७ ॥ (दोहा.) इण पर दिदा दोहिलो कहे सुधर्मा स्वाम । मेघ कुमर पलताश्या, थिर मन कीजै काम ॥६०॥ जिम अरणक साधू थयो थिर चित सास्यो काज । कहे जम्बु गुरुदेव ने कुण धरणक मुनिराज ॥ ६॥ ॥ श्री गुरु कहे जम्बु प्रतें, तगरा नामे गाम । दत्त नाम विव
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जम्बु चरित्र।
हारियो, बनिता ना नाम ॥ ७० ॥ पुत्र अरइनक तेहने, करे साधको सङ्ग। धर्म देसना सांजली, लगे धर्मके रङ्ग ॥ १ ॥ शद्धि तिहुं जन गंडिया, दिवा लिया जाय। सुतने निदा गोचरी जान न देवे माय ॥ १२ ॥ (चौपाइ) तिहुं जन दिदा पाले सदा, मात पिता सुत अरणक तदा थरणक पिता काल बस थया, दत्तमुनि देवलोके गया ॥७३॥ गयो तात सुरलोके जवे, माता थरणक रहते तवे । अरणक मुनि गोचरी गया, उस काल गरमी बहु नया ॥ ४ ॥ परिसद मुनि अन सहतो तिहां, विवहारी घर आयो जिहां । गेह निकट मुनिवर तव गया, बाया देखी ऊना थया ७५ ॥ बिवहारी की नारी तिहां, बैठो मन्दिर गौखे जिहां। पति परदेश गयो व्यापार, गृहमे रहे बिरहनीनार ॥४६॥ तिहां ऊना साध सकमाल, अरणक मुनिने देखी वाल । हरषित नश् साधको देख, काम बिकल्प जइ बिसेष ॥ ७ ॥ निग्रंथ साधू तेड़ी घरे, कहें स्वामी संयम का धरें ए योवन निर्मल डे काय, संयम युक्ति नही मुनि राय ॥ ७० ॥ अयुक्त काम कियो अणगार, संयम
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जम्बु चरित्र ।
मुक्कर है निरधार । मुनिवर मारग डुक्कर जान यौवन बय मत करे सुजान ॥ ए ॥ ए मारग बूढ़ापन कही, जरा होय तव कोजो सही। मेरे घर रहिये मुनिराय, मुऊ शरीर धन बिलसो श्राय ७ ॥ अरणक रहे नार जव कही, नैन वैन विधानो सही । सुखे रहे साधू जब तिहां, काम लोग धन बिलसे जिहां ॥ १ ॥ श्रीगुरु कहें जंबू सुन बात, स्त्री मोह बहु बड़ा विख्यात । साहसीक नर कायर जया, नन्दिपेन वस्या पर गया ॥ ७२ काम देवकी शह परिवात, शास्त्र सिद्धान्त कही बिख्यात । वहु नर नारी के बसि रहा, श्री गुरु जम्बू सुं तव कहा ॥ ३ ॥ तिन अवसर अरणक की मात, नगर मादि फिरती बिख्यात । वाम १ सुत सोधेजही, अरणक पुत्र मिला नहि कहीं॥७४ बिरह शोक माता बहु धरे, व्याकुल चूत थ ते फिरे । अरषक २ करे पुकार, नगर माहि फिरती निरधार ॥ ५ ॥ फिरती साध्वी जिहां, गोख देव आई तव तिहां । ते साध्वी अरणक नी मात आवी ऊजी रही विख्यात ॥ ६ ॥ सुनी बचन माताकी जवें, अरण क हेग उतरे तवें । उतर)
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जम्बु चरित्र ।
हो आयो तिहां, माताजी ऊना जिहां ॥ ७७ अरणक कहे रोय मत मात हुं बु तेरो सुत विख्यात तव ते माता बोली जिहां, रे सुत तेरो संयम किहां ७७ ॥ पुत्र कहे माता सुन बात, मुझसुं संयम पड़ें न मात । संयम मारग डुक्कर कही, साहसीक नर पाखें सही ॥ नए ॥ हूं तो माता कायर रही तव ते गुरणी थैसा कही। हेअरणक कुल अपना देष, चिन्तामणि सुं अधिक बिसेष ॥ए॥ चिंता मणि सम संयम जान. मत मूको उत्तम गुण खान सुनी बचन माताका जवें, ते प्रतिबोध पामियो तवें ॥१॥ फिर संयम थाराध्यों सही, बिरें उप्ल कालमे रही। विषम परीसह अन शन कियो मोह ममतमूकी सब दियो ॥ए ॥ साधू अरणक पैसा नया, अन सन ले सुरलोके गया। इक अवतारी हो से सही, हे जम्बू संयम श्म कही ए३ ॥ (दोहा) जम्बू धर्माचार्य ने, नायें दो कर जोड़। कायर ने पुक्कर हुवे, साहसीक ने थोड़ ए४ ॥ स्वामी सुधर्मा जानियो, जव्य जीव ए होय । निर्मल ज्ञान एह बे, धन २ जम्बू सोय ए५ ॥ श्री गुरु जम्बूने दियो, चारित्र रूप निधान
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जम्मु चरित्र ।
मन वच काया सुद्ध है, पालो आप सुजान ॥ एवं जम्बु सोल बरसां लगे, कीयो गृहस्था बास । सतरमे बरसे लियो, सञ्जम उत्तम खास ॥ ए॥ सञ्जम ले वहु तप करें, बिचरें बातम जाव । अनेक नेद ने तप तणा, तिनसुं राग्वे चाव ॥ एप चौपाई ) तप करते नित बहु उजमाल, अष्टम दशम पुआल । मास दामन तप करते जान, मास क्षमन साधे गुणखान ॥ ७ ॥ बीश बरस बन मस्थे रहें, विचरें मुनि परीसह सहें । शुक्ल ध्यान ने जोगें जान, उपज्यो निर्मल केवल ज्ञान ॥ ५०० बर्ष चमालिश केवल पाल, असी बरसनो आऊ टाल । सब पुखनो क्षय करस्ये जवें, मोद परापत थासे तवें ॥१॥ वीर कहें श्रेणिक सुंघात, हम सुं चौसठ बरस विख्यात । पावें जम्बु केवल ज्ञान केवल पाल जाय शिव थान ॥ ॥ हमसे पढ़ें बारमें साल, गौतम केवल होय बिसाल । पीले आठ बरस जव जाय, केवल पद सौधर्मा पाय ३॥ हम थी बीस बरस जब थया, सुधर्म केवलि मुक्त गया। पहें बरस चमालिश ताम, केवल पालें जम्बु स्वाम ॥ ४ ॥ श्रेणिकसुं कहते जगवान
( ८ )
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जम्बु चरित्र ।
जम्बु पीछे जावे झान। दशें बोल बिछेदें जाय ताको नाम कहो सुन राय ॥ ५॥ एक बोल मन पर्यव शान, जो परमा अवधी जान । पुलाग लवधी तीजो कहें, एनी ज्ञान नही कबु रहें ॥६ थाहारक शरीर नहि जवे, चौथा बोल कहा मै तवे। खायक समकित पांचम नही, हा उपसांत मोहन कही ॥ ७॥ ग्यारमा गुण गणा जाय जिन कल्पीको मार्ग न थाय । सप्तम बोल नही रहे कोय, ज्ञान बिना कटु सिद्ध न होय ॥ ॥ त्रिकरण सञ्जम मन वचकाय, लेवें पालें जे मुनि राय । श्हबी बोल जम्बु तक रहा, बोल शागारमा इन विध कहा ॥ ए॥ केवल झानकी प्राप्ति न होय नवमो बोल कहावे सोय । जम्बु पीछे केवल गया तो मत गड़ो मुनिवर दया ॥ १०॥ दशमा बोल मोक्ष पद जान, श्रेणिकसुं कहते नगवान । श्ह दश बचन गया बिछेद, सुद्ध चेतना जाने नेद ॥११ दोहा ) हे श्रेणिक जम्बु तणा, पांचे जवकी बात ए दृष्टान्त संखेप सुं, जानोगे विख्यात ॥ १५ ॥ जम्बु चरित्र ने विषै, बहुत बात विस्तार । यहां संखेपे जानियो, दया धरम चितधार ॥ १३॥ जम्बु
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जम्चु चरित्र।
चरित्र सांजली, सद्दह सीजे कोय । ते श्राराधक जानिये, नब्य जीवसो होय ॥ १५ ॥ जम्बुना अध्येनमे, श्कविसमा उद्देस । तिहां बहुत विस तार है, यामे ले लबलेस ॥ १५॥ चाषा जम्बु चरित्र ए. पूरो जयो सुजान । जणे गुणे जे सांजवें ते पावे बहु ज्ञान ॥ १६ ॥ वाचक पद धारकांनए शद्धि विजय गुरुदेव । तिनके सिप चेतन विजय नही ज्ञानको नेव ॥ १७ ॥ श्री गुरुदेव दया किया उपजा मनमे शान । नाषा जम्बु चरित्रकी, रचना रची सुजान ॥ १७॥ ज्ञान कलुजानो नही. कियो बुद्धि विस्तार । यामें जो कबु चूक है, पमित लेहु सुधार ॥ १५॥ संबत अगरे बावने, श्रावनको है मास। सुकल तीज रविवार को, पूरो ग्रन्थ बिलास २०॥ बङ्गादेस गङ्गा निकट, गञ्ज अजिम पवित्र । श्री चिन्तामणि पासको, देवल रचा विचित्र ॥२१ सतरे सिखर सुहावनो, गुमटी च्यार सुचङ्ग । सोने कलस सुवर्ण के, कश्स रूप अनङ्ग ॥२५ बिम्ब मनोहर सोजतो, पारस परम दयाल । नर नारी दरशन करें, सदा होय उजमाल ॥ ५३ ॥ ऊपर चौमुख राजते, श्री सीमन्धर देव !
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जम्मु चरित्र । लाव जगति चित लायके, सब जन करते सेव ॥ ५२४ ॥ ॥ ॥
® ॥ ॐ इति श्री जम्बु चरित्र सम्पूर्ण ॥
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अथ परदेशी राजाकी
चौपाई।
( दोहा ) राय प्रसेणी सूत्रमे, राय प्रदेशी नो नाब । सूरीयान सुर मरिने हुबो, धरम तणे परनाव ॥१॥ आमल कंपा नगरीयें, समोसख्या महाबीर।सुरीआन तिहां श्रावियो, नाटक करिवा तीर ॥२॥ दक्षिण बाम जुजा. थकां, काढ्या एकसो श्राव । कुमरी कुमर जुदा नाटक करणे घाट ॥३॥ बीर चरित्र धुर माडिने, आण्यो नाटक मादि । गोतम प्रमुखे दिखाश्ने, निज थानक सो जाय ॥४॥ देव तणी शद्धि देखिने पुढे गोतम स्वामि । एतलि इद्धि इण काढ़ने धरी कोनसे गम ॥ ५॥ गुफा प्रगट छारे जणी घणा मानवी होय । मेह आये माहे धसै, बारे
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६
परदशी गानाकी चौपाई।
दिसे न कोय ॥ ६॥ कपड़ो काढि बजाज जिम बांधि माहि दे भेल । शुरोपानतिम देवने, कति लेइ सकेलि॥७॥ पूरब नव प्रनु कुन हुँतो, बसतो कुन से गाम । करणी इण केस। करी, कहो कृपा करि स्वाम ॥ ॥ पाटिल जब करणी करी, माडि कहे बर्द्धमान । गोतमादिक संघागले, ते सुन ज्यो करि ध्यान ॥ ए ॥ ( ढाल १) तिनकाले तिनहि समेजी, जम्बुदीप मकार । जरत खेत्रे सेतंबिका जी, नगरी हुँती बिसतार हो ॥ गोतम पूरबलो नव एह १० ॥ थति खिमा श्रधिकी करी जी, जहर दियो निज नारी हो । गो० पू०११ मृगबन नाम उद्यानमे जी, दिशा इशानके माद पान फूल फल सोनतो जी, शीतल गहरि गंह हो गो पूरा ११ ॥ सेतंविका नगरी तनो जी, हुतो प्रदेशी राय । हिमवन्त नगरिनी उपमा जी, मोटो राय कहाय हो ॥ गोंग पूण १३ ॥ श्रधम पाप बलज हुँतोजी, अधरमी लोक प्रसिद्ध । अधरम पू हिंमतो जी, अधरम ब्यापार निविधि हो गो० पू०१४॥ श्रधरम मे राच्यो रहे जी, अधरम नो उतपाते । अधरम नी कोइ कहे जी, तुरतर्नु
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परदेशी राजाकी चौपाइ। ६३ माने बात हो ॥ गोपू०१५ ॥ जीव इने खड़गें' की जी, लालासुं करे नेद । क्रोधे रीस चढ़ायने, जी, सूज क्षुध हुवे खेद हो ॥ गो० पू० १६ ॥ होस्या जीव जु मारता जी, होय घणो साहसीक हाथ खरड्या सोही थकी जी, श्सी लगावे लीक हो ॥ गो पू०१७ ॥ लांच सुंक लेतो थको जी, कर लगावतो लार । निंद्या करतो परतणी जी. क्रुड़ कपट जएढार हो ॥ गो० पू० १७ ॥ परचण्ड, पाखन्डी हुतो जी, मनग्राही अनिमान । सील, रहित ब्रतको नहि जी, नहि पोषद पञ्चखाण हो गोग पू० १ए ॥ कबहु उपवास न कियो जी. नहो दिमा मरजाद । निरगुण घनो ओगुण ग्रही जी; कूड़ो बाद विवाद हो ॥ गो ०.२० ॥ घणा उपद चोपद नणी जी, मिरमादिकनी जात । खेचर जंदर नो बियो जी, करे इत्यादिक घात हो, गो० पू०३१॥ अकड़ी करते. मारतो जी, चावा, दिक सो कूट । खाल उपाड़े जीवतां जी, पाप; किया सन्तुष्ट हो ॥ गो० पू० २५॥ अधरम नी, बांधी धजा जी, केतु ग्रह सम जान । साधरमी थाया थकांजी, तु नही अनिमान हो ॥ गोष
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
पू०५३॥ बिनय नाव कोइ नही जी, नही आसन नी म। जो निजपर नादे समे जी, करे आकरो दंग हो ॥ गोपू०२४॥ कर आकरो लगावतो जी, बिचरतो इन रीत । धाप जिसा झानी कह्या जी, तिन बिरियानी नीत हो ॥ गो० पू०२५॥ पटराणी ने रायनी जी, सूरीकन्ता नाम । हाथ पाव सुकमाल बे जी, धारणी परे नवश्राम हो गो० पू० ५६ ॥ राजा सु अति रागीणी जी, सबदादिक बहु प्रीत । सुख बिलसें संसारना जी, न गमे काल बिदीत हो ॥ गो पू० २७ ॥ सुत परदेशी रायनो जी, राणी नो अङ्गजात । सुरीकन्त नाम हुतो जी, सूपकला विख्यात हो ॥ गो० पू० ३७॥ इद्धि दाने बहु दीपतो जी, लोक कहै धन धन्न । कोगरी जन्डारनो जी, उमराव दे बहु मान हो ॥ गो० पू० श्ए ॥ परदेशी राजा तने जी हाथी घोड़ा देश । रथ पायक बहुला हुंता जी माल नन्डार बिसेष हो ॥ गोपू० ३० ॥ राजानो जाइ बड़ो जी, हुतो चित्र प्रधान । मित्र सखा सम जानिज्यो जी, बुद्धिवन्त गुणवान हो ॥ गो पू॥ ३१ ॥ दानादिक करि दीपतो जी, लोकांमे
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पम्दशी गानाकी चैपाइ।
श्रदत्त । लेइ मंग सन्तोषने जी, बांध्यो राजनो सुत हो ॥ गोपू०३२ ॥ चारि बुद्धि करि दीपतों जी, घणी अधिक उतपात । अणदिनी अणसांनली जी, श्राण मिलावे बात हो ॥ गो० पू०३३ बिनय कर्म परनाम की जी, चारू बुद्धिने जोग गाम नगर परि सिद्धि घणो जी, माने राजा लोग हो । गो० पू०३४ ॥ राय परदेशी के घणो जी, कारण चितनो जोर । घणो पूनिया जोग बे जी, पूले बारम्बार हो ॥ गो० पू० ३५ ॥ राज नगरने लोकमे जी, मेढ़ी नेत्र समान। आधार जुत बाल. म्वणो जी, न्यायवन्त अनिराम हो ॥गो पू०३६ जुप तणी श्राझा थकी जी, अन्तेवर मे जाय । अति प्रतीति संका नहि जी, बहु मन मांही सुहाय हो ॥ गोपू०३५ ॥ परदेशी राजा तणों जी, अन्तेवास कहाय । देश कुणाला सावथी जी' जितसत्रु तिहां राय हो ॥ गो० पू० ३० ॥ सावथी नगरी तणो जी, कोष्टक ने ज्यान । पत्र फूल फल सोजतो जो, बरनन मोट मान हो ॥ गो० पू०३ए दोहा ) परदेशी तिण अवसरे, चित प्रधान ने तेड़ । जाजं नगरी साव थी, जितशत्रु नृप केड़
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६६
परदेशी राजाकी चौपाइ ।
४० ॥ ले जाउँ हम नेटणो, जितशत्रु ने सौंप । तहत बचन चित मानियो, स्नान ध्यान करि चोप ॥४१॥ हुकम कियो सेवक नणी, रथसजि कियो तयार। रथ चढ़ीने चित चालियो, सङ्ग सुजट परिवार ॥ ४२ ॥ सुख समाधे चालतो, आयो सावथि माहि । बेग उतर रथसों तिहां, बेटण नृपना पाय ॥ ५३॥ ले मोटो नेटणो, मेट्यो नृपने पास। रायप्रदेशी कहि जिका, सरव बात प्रकाश ॥ ४ ॥ सुनि राजा हरषित हुवो, चित्तने मेरो दीध । सातनंम आकाश में, जतरो सुखमे लीन ॥ ४५ ॥ लोग पञ्च इन्त्री तणा बिचरे नोगत एम । एकमना थकी सांजलो, जिन धर्म पामे केम ॥ ४६ ॥ ( ढाल २) तिण अवसर पास संतानिया जी, केशी समण कुमार । गुण झानी देवै आप घरण व्यारे, पांचसै परिवार ॥ जलाइ पधास्या हो पास संतानिया जी0 ४७) टेक ॥ बिनय ज्ञान सहित चारित्र जलो जी, थानों प्रवचन माय । लज्याने मरजादा आचार नी जी, हलवा अव्यने नाव ॥ ज०४७ ॥ मन बच काया नो तेज बे जी, घणो जस सोजाग ।
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परदेशी राजाकी चौपाई।
जीत्या चारि कषाय नली पर जी, तृष्णा लोन नो त्याग ॥ ०४ए ॥ जीती निंदा पथैनी दमी जी, परी सावली वावीस । जीवन आसामरणरो जय नही जी, तपस्या करण साहसीक ॥ ज०५० सञ्जम पालता बहुगुण पड्या जी, चरण करण परधान । निसेध डे अनाचार नो जी, तत्वनो निर्नय मान ॥ ०५१॥ मान माया दवटे राखी जी, रुध्यो क्रोधने लोन। किरिया तणी खप वहुली करे जी, खंत्यादिक गुण सोज ॥ ज०५५ बिद्या मंत्र करी नरपुर था जी, ब्रह्मचर्य परधान
आगम बेद करीने श्रागला जी, साते नयना जाण ॥ ज०५३ ॥ नियम अनिग्रहमें काग घणा जी, सेगे काल्यो साच । सुच प्रधान अव्य जांव थी जी, निकलङ्क काळ नवाच ॥ ज०५४ ॥ नाण प्रधान मत्यादिक निरमला जी, दरशन चारित्र एम। चारि ज्ञान चौदे पुरव धणी जी, अधिक दया धर्म प्रेम ॥ न० ५५ ॥ साध पांचसै साथ परिवस्या जी, करता उग्र बिहार । गाम नगर उलकता नी, सुर्षे तिहां लार ॥ ना ५६ ॥ जिहां पिण सावथी नगरी कने जी, कोष्टक बनके
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परदेशी रानाकी चौपाइ।
माहि । यथाजोग्य थानक लेइ जी, उतरा डे तिहां श्राय ॥ ज० ५॥ विचरे सञ्जम चोखो पालता जी, आतमई चाव । किणबिधि श्रावे परिषदा बांदवा जी, सुगजो सहु धरि चाव ॥ ज०५७ ॥ तिण अवसर नगरी सावथी तणाजी त्रिक चोकादिक बाट । लोक कहे कसी गुरू थाविया जी, पांचसे मुनीने थाट ॥ ज० एए॥ माहो माहे चरचा ईणविध.करेजी, नाम लिया निसतार । जिनना दरशन वाणी सुण्या धकांजी निदचे होय जवणर ॥ ज० ६० ॥ के कहे दरशन देखस्यांजी, केश कहे सुनस्यां बाण।। केश कहे मनना संसा जांजस्यां जी, केई कौतुहल जानि जय ६१ ॥ एक अदर आरजनो सानो जी, इण जव परजव खेम । घणा अरथ धास्यां शिव सुख दुवै जी, नही संसो शहां केम ॥ ज०६५ ॥ ईम बिचारि घोड़ा चढ्या जी, केश रथने सुखपाल । के पासिकि याके घुम वहलमे जी, गया तिण बागवि चाल ॥ ज०६३ ॥ पांच अनिगम विधी सुं साचवै जी. मन बचनने काय । सेवा करता तिन प्रकारनी जी, जिम उववाश् माहि ॥१०६४
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परदशी गनाकी चौपाइ।
तिण थवसर चित्त स्वारथी जी, सुणि जन शब्द बिसेष। चिन्ता मन माहि एहवउपनी जी, बहु जन जाता देष ॥ न० ६५ ॥ सावथी नगरी में याज किसो अने जी, ई महोदय कोइ । कार्तिक हरि चतुरानन रूजनो जी. नाग वैश्रमण होय ॥ जा ६६॥ जुन यद कोइ जैरव को देहरोजी, वृक्ष परबत गुफा कूर । नदी तलाव नाहाह समुनो जी, एता प्रमुख अनूप ॥ न० ६७ ॥ लोग उग्रक्षत्री कुल उपना जी, इक्षाग बंशी आय । सजि बाजरण चढ्या निज बांहने जी, टोले मिल ५ जाय ॥ ज०६७ ॥ चित मनमे श्म तेवडी जी, सेवक पुरष बुलाय । चित उपनी सो मामी कहि जी, करि प्रणाम बहुलाय ॥ च ६ए ॥ केसी
या नो निहचो दुतो जी, सेवक बोच्यो सोय । ईजादिक सस्वर तनो नही जी, श्राज महोब्ब कोय ॥ ज०॥ केशी स्वामी पांचसै साधूसों जी, बाग पधास्या तेह । उपादिक कुल बहुजन बन्दिवा जी, जाइ सबद हुवे जेह ॥ ज० १ ॥ गुरू आयानो हरष हुवो घणो जी, सेठ सेनाधिष जाइ । बन्दन पुजन विधि मामि कहि जी, चित
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परंदशी राजाको चौपाइ।
सुणी हरषित थाय ॥ १२ ॥ (दोहा) सेवक नरने तडिन चित्त कहे एदवी बात । रथने साज तयार कर, च्यार घंटारो रथ ॥ ७३ ॥ सेवक सुनि हरषित थयो, रथ सजि कियो तयार । स्नान बिले पन चित करी, सज गहणा कस्या सिणगार,॥७४ अलप चार बहु मोलना, अछूत सजि सिरोपाव रथ बैसी चित चालियो, बन्दन नो धरि चाव ॥ ७५ ॥ सूर सुजट नर परिवस्या, कोरंट फूलनी माल । माथे बत्र धरावतो, सावथी नयरी विचालि ७६ ॥ चित बलिने तिहां आवियो, कोष्टक नाम उद्यान । रथ यापीने निकट थी, बंद्या गुरू बहु मान ॥ ६ ॥ तीन प्रदक्षिणा दे करी, बंद्या श्री गुरूदेव । करतो सनमुख बेसिने, तीन प्रकारनी सेव ॥ ७ ॥ चित प्रमुख परिषद जणी, केशी दे उपदेश । जव्य जीवां समझायवा, जीवदया धर्म वेस ॥ ॥चारि महाव्रत धर्म मे, मामि कहै बिसतार । चोपे चित धारापता, हुवे जीव निस तार ॥ ७ ॥ परिषदा सुन हरषित थई, बन्दी निज पुर जाय। चित्त पिण सुनि रीज्यो हों, जिन धरम आयो दाय ॥ ॥ चित बंदीने श्म
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परदेशी राजाको चौपाइ।
७१
कहे, मे सरध्या तुम बैण । सुरय मुकति दायक सही, डोसाचा थे सेण ॥१॥ रूच्यो धरम परितीतसुं, तहत जाणि निसन्देह । श्लो पुछो बलि बली, धर्म कहो तुम एह ॥ २॥ सेठ सेनाधिप राजवी, उग्र कुलादिक सार । धन बाहन देशादितजि, लीधो सञ्जम जार ॥ ३ ॥ जैसी पुंह चन माइरी, तनुं अथिर संसार । पिण मुझने समाश्यो, श्रावक ब्रत स्यो बार ॥ ४ ॥ ढील करो मति गुरू कहे, जो है ताहरा लाव । चित्त हाथ जोड़ी कहे, ब्रत सीधा करी चाव ॥ ५ ॥ ढाल ३) कहीये मेलसी श्रावकना ब्रत वार एदेशी देव धरम गुरु साचा धारिने, तजीयो चित्त मिथ्या तो जी। खरी पारषा आइ धरमनी, जेदी सातें धातो जी॥ चित उजलाविरे निजातमा ७६ केशी गुरु दिल धारो जी। सुगरु सङ्गति किया थकां, निहचे खेवों पारो जी॥ चि०७ ॥ त्याग कियो तस मारण तणो, जाने पिनि थाकुड़ो जी। पांच फूल तजा मोटका, मोटी चोरी करि बुटोजी चि०७ ॥ परनारी नो त्याग न कियो, श्रापणी नी मरजादो जी। परिग्रह मरजाद पांचमै, उगे
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परदेशी रानाकी चौपाह।
दिश ब्रत धारो जी ॥ चि० नए ॥ मरजादा बोल बवीसनी, पनरै करमा दानो जी। अनरथ दन्म त्याग थाठमो, सामायक ब्रत नवमोजी॥चि०ए दशमो देशावगासिया, म्यारमो पोषध सारो जी अतिथ संबिजाग ब्रत विधि करी, एह व्रत बारों जी॥चि ॥ पञ्च पकार अणुव्रत कह्या, तिन गुण ब्रत रीतो जी। सिख्या ब्रत चविधि धन्यो वारह कह्या बिनोती जी। चि० ॥ ॥ श्रावक धर्म श्म यादन्यो, बांद्या गुरु हुलासो जी। चल घंटा रथ बैग्नेि, पहुंत्यो निज श्रावासो जी॥ चि० ए३ ॥ तवतै चित श्रावक हुवो, नवतत्व जीव अजीवो जी। पुन्य पाप आश्रव संवरो, निरजरा ने बंध मोषो जोचिए ॥ एनवतत्व धान्य निरमला, किरिया अधिक रण जाणो जी। माहो विचक्षण झानो करी, पतलो कपटने मानो जी चि० एए ॥ आपदा कष्ट पड्या थकां, न बांडे देबनो. साजो जी। सुर नागादि चलावै धर्मसुं तो न चले धरम जाजो जी॥ चि० ए६ ॥ जिन प्रवचन मे सका नही, पर पाखंमनी नहि चाहो जी। फल प्रतें मनना.धारे, सांधा थरम प्रायो
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परदेशी राजाकी चे.पाही जी॥ चि० ए॥ श्ररथ पुढे निरणो करे, सांचे श्ररथ करे ढंगो जी । हाड़ हाड़ मीजी बहुरङ्गी, जिसो किरमची रङ्गो जी.॥ चि० ए॥. गुरुदेव पासे धारियो, एह थरथ परमंमो जी। पुत्र कलत्र धन धानतें, जाण्या सहु अनरयो जी ॥ चि० एए ए गुण दरशन समकित ना कह्या, चारितमा गुण एमों जी। चउदश थापम पुनिममावस्या, पोषध करे धर पेमो जी ॥ वि० १००॥ कल्याण कारिणी तिथि तीनुं बड़ी, चउमासानी संधै जी। तिनमे प्रति पूरण पोसा करे, बोडि संसारना फन्दो जी चि०१॥ दान देवानि मती निरमसी, बागल नोगल बारो जी। स्फाटक नीपरे हियो निरमलो मुक्या अजङ्गवारो जी॥ चि० ॥ श्रप्रतिती घरमे पईसे नही, पैग नही अप्रतीतो जी। सम पनि ग्रंथने फासुए घणा, दान देवै सुबिनीतो जी चि०३॥ असण पानने षादम सादमे, पीढफलग संथारो जी। शम्या वस्त्र पात्रने कारलि, श्रोस नेषज सारो जी॥ चि०४॥ इत्यादिक दान प्रतिक लाजता, घणों शील श्राचारो जी। नान्द्रा,मा साँस वरतमे, सेंनी सरधा धारो जी लि...
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Acila
परदेशी राजाकी चौपाइ।
बीजा उपवास एकासणा, देशनोकारसी श्रादोजी इणपरि विचरे चित बिनावतो, सरधा संबेग जादो जी॥ चि०६ ॥ गुण कविस करे चित दीपतो, तेहना जिन्न जिन्न नामोजी। एह कथाने परंपरा कह्या, सुनज्यो धारि बिबेको जी ॥ चि० ॥ पहिलो गुणतो क्षु पनो नही, धरमोप मरणनो धारो जी। जो गुण रूप श्रावक तणो, प्रकति सरम तीजे सारो जी ॥ चि ॥ करतुत कारी जस या लोकमे, चउथो सबनुं प्यारो जी। कूड़ कपट परनाम न पांचने, मरपै पापथी न्यारो जी चिए ॥ सातमे केहने उग बञ्चे नही, बाठमे दाक्षन्य कयालो जी। नवमे सजावंत होश धरमे करै, दोहला दया संजालो जी ॥ चि० १०॥ हुवै मध्यस्थ राग द्वेष पातला, गुण ग्यारमो बै एक जी। नली सोमदृष्टि होई बारमे. गुणनो राग सनेहो जी॥ चि० ११॥ धरम कथा दृष्टांत गुण चौदमे, कहेज रूडै जावो जी। जैन तनो पष मिलतो पनरमे, श्रवर पुन जानन चावो जी॥ चि०१॥ बड़ा जिम किरिया करै सतरमे, आनंद बिम कामदेवो जी। बिनय करै गुर मायितनो,
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
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अठारमें बहु जेदो जी ॥ च० १३ ॥ जाण दुवों कीधा उपगारनो, बीसमें पर हितकारो जी | काम कार्य करै घणो तदितसुं, लबधिलपी बिस तारो जी ॥ च० १४ ॥ थोड़े कड़े पिण जाव जाने घो, इक विसमो गुण एमो जी । इत्यादिकश्रावक गुण दिपता, चित जणी गुण एमोजी ॥ चि०१५ सरधावंत गुण करि दिपतो, एहवो चित परधानो जी । दिते बिते दे युगतसुं, दिन २ चढ़ते वांनो जी ॥ चि० १६ ॥ जिन मारगनै घणो दिपावतो हिंसा धर्म दुरंतो जी । परचो बोडैबे पाखएक तनो बाद विवाद पडतो जी ॥ चि० १७ ॥ अतिचार लागा घालवतो, सूत्रमाहि बिसतारो जी। एहवा श्रावकना गुण बरव्या, सुणतां जयतां निसतारो जी ॥ च० १० ॥ ( दादा ) तिन अवसर सऊ जेटनो, जितसत्रु राजान | चित जणी ए तेड़िने बचन कदै बै बांन ॥ १५ ॥ जा तुं नगरी सेतं बिका लेई नेटो एह । परदेशी राजा जणी, पुहुंचावो ससनेह ॥ २० ॥ पगे लागणो माहरो, कहि राजाजी ने जाय । प्रमाण बचन चित करि जियो हाथ नेटो सहाय ॥ ११ ॥ चित जिहां थी
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परदेशी रानाको चौपाइ ।
अग्नेि, मनमे धास्यो थाम । सेतंबिकानी बिनती करिज केशी साम ॥ २२ ॥ मेतो जिन धर्म पामियो, मोटा गुरु संजोग । सेतंबिका गुरु पांगुरे तो समजे गजा लोग ॥२३॥ एसी करि विचारणा रथ बैसी चित जाय । किन बिध करे जतावणी, ते सुनज्यो चितलाय ॥ २४ ॥ इच्छामुनि बैठा रहे श्ठा करे बिहार । पिण श्रावकने बीनती, करि वांनो व्यवहार ॥ २५ ॥ समऊनहारा समऊसें, निश्चै नय इम जान । पिण साधु तारक कह्या, ए व्यवहार प्रमाण ॥ ३६ ॥ हेतु युगत दृष्टांत दे सारै घणानो काज । पर उपगारीश्म कह्या, तारण तरण जहाज ॥ २७ ॥ सुबुधि नाम प्रधान जिम फरसो अह जल कीध। जितशत्रु राजा नणी, श्रावकना ब्रत दाध ॥॥लयो राजानो नट णो, सुन सुत्रनी बात । केशी गुरूने जेटीया, जव हीरो लागो हाथ ॥२१॥ अव्य हीरा पाया थका श्ण नव माही सुख । ज्ञान हीरा पाये मिटे, नव शानंतना मुख ॥ ३० ॥ इंसादिक देव लोकना पुद्गलिक सुख जोय। निरञ्जन निराकारना, यात मीक सुख होय ॥३१॥ तिण कारण करूं बीनती
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
मुकति घरमने देत जाव दलाली दिव सुनो होय घणा सावचेत ॥ ३२ ॥ ( ढाल ४ रसिया नीदेशी ) चित इम लेई राजाने जेटलो, आया गुराजीने पास हो । महामुनि । सेतं विकाने आता जावसुं बन्दन करे हुलास हो ॥ म० पूज पधारो जी नगरी हम तणी ३३ ॥ होसी घणो उपगार हो । म० । घणा जीवाने मारग धानस्यो, देस्यो: पार उतार हो । म० पू० ३४ ॥ सेतंबिका नगरी दो सामी दीपती, सदाई देखिवा जोग हो । म० तिणमे खाया नफो बहु नीपजे, सुखी बसे बहु लोग हो | म० पू० ३५ ॥ परदेशी ने मेख्यो जेट णो ले चाल्यो बे जेम हो । म० । इकवार दोवार किधी बिनती, गुरु नही बोल्या तेम हो । म० पू० ३६ तीजी वार करतां बिनती, दृष्टांत दे मुनिराय हो म० । फलियौ फूल्यो कोई बाग बै, पशु पंखी जाय कै न जाय हो ॥ म० चतुर नर दे उत्तर हमने इस बातरो ३५ ॥ दां सांमी जाय इम चित कहै, बक्षि बोल्या श्राम हो । च० । तिण बागमे कोई पारबी बसै, तो जाय के नहि जाय हो ॥ च० ३८ ॥ नहि जाय पंखी चित इस कड़े, जय जपने विधाय
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परदेशी रानाकी चौपाइ।
हो । च० । इण दृष्टांते सेविया नयरी, बसै परदेशी राय हो ॥ च० ३ए ॥ थांरो प्रयोजनसुं रायसुं, बचन कहै चित एम हो । म । लोक बसेडे से सेनापति, करसी स्वामीजीरी सेव हो म० पू० ४ ॥ नाव सहित बहिरावसी, असनादि चारों श्राहार हो । म । बस्त्र पात्र थानक प्रमुख नी, होसी पूजा सतकार हो ॥ म० पू० ४१॥ जांति करि कीधी बिनती, चितडा हो सुबिनीत हो । म । बलि मुनि बोल्या चित जाणसी जिम साधानी रीत हो ॥ म०पू०४२ ॥ सुन बाणी चित हरषित हुवो, रोमांचित थई देह हो । म० समको धरमी नरनो खरो, धरम दलाली सुं नेह हो ॥ म० पू० ४३ ॥ ( दोहा ) बन्दन कीधी नावसुं, श्री गुरुने बहु राग । लेई नेटणो चालतो श्रायो सेबिया बाग ॥४४॥ बन पासकने श्म कही, थावै केशी खाम । तोतुं देज्यो श्रागन्या पाट पाटला गंम ॥ ४५ ॥ जिन अवसर गुरु पांगुरे, खबर दीजियो मोहि । थाया तणी बधामणी, आशा पूरो तोहि ॥ ४६ ॥ श्णविधि करी जतावणी, चित आयो निज गम । पांच सयांतुं
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पधारिया, विचरत केशी वाम ॥ ४ ॥ नाम गोत्र बुझी करी, थानक थाझा दीध। तिन थावि चितने कही, जाणु अमृत पीध ॥ ४ ॥ सुनता हे उतस्यो, स्तुति बन्दन बहु कीध । रथ बैसी बन्दन चलो, जिन गुण मारग लीध ॥ ४ए ॥ करि चन्दन बैव्यो तिहां, गुरु दीधो उपदेश । नीजी सब परिषद सुणी, जीव दया धर्म एष ॥ ५० ॥ साजल सहु हरषित हुवा, फिर प्रणम्यां गुरु पाय धर्म दलाली चित करे, ते सुनज्यो चितलाय ॥ ५१॥ ( ढाल ५ ननदरी देशी ) हाथ जोड़ी करे वीनति, सांजल जो मुनिराय हो । स्वा । राय प्रदेशो पापीयो, थाणो मारग नाई हो ॥ ५२ स्वा० ॥ म्हारे राजाने धर्म सुणावज्यो, होसी घणो उपगार हो । स्वा० । उपद चोपद पसु पंखिया, साता उपजै सार हो ॥ ५३ स्वा० म्हाण. मंग करने थोड़ो लेवै, जीवनी जयणा थाय हो स्वा । पशु पंखी मिरग बंदर नोलिया, उपजे दया दिलमाहे हो ॥५४ स्वाग म्हा॥ सरव प्रजा साता लहै, देश बिदेश सुख होय हो । स्वा । लाज गुण होसी घणो, टलसी घणानो पुःख हो
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
५५ स्ग म्हा॥कीधी वलि बिनती, उपगारी होई नरम हो । स्वा० । गुरु कहे चिहुं बोला करी नख है केवल धरम हो ॥ ५६ चितजी हुं धरम सुना किनविधै ॥ किम करि श्राणु गम हो चि० । चार बोलते सांजलो, नाषु तेहना नाम हो ॥ ५७ चि० हुं ॥ बाग थानक बाया साधजी सांमो न जाय चलाय हो । चि० । बन्दण नाव करे नही. चरचा न करे चितव्याय हो ॥ ५०चि० हुं० ॥ घर आये पिण ना सके, असनादिक बहि राय हो। चि०। जिहां पिण बन्दणा ना करे पूजा दिक सतकार हो । एचि हुं० ॥ मारग मिलि यां साधजी, जावै मुखने टालि हो । चि० । हाय जंचो पिण ना करे, करे मान अधिकार हो । ६० चि० हं ॥ के कोईसो बातां लगै, के किणन सई तेडि हो । चि० । कैते आंख्यां ढाकिले, देवे गरदन फेर हो ॥ ६१ चि० हुं० ॥ ए चारूं सामिल किये, पामे धरम विशेष हो । चि०। थारो राजा च्यारां माहिला, बोल न पामे एक हो ॥ ६ चि० चित कहे देश कमोदना, घोडा राख्या हगय हो स्वा । किण इक काले रायने, मै पिण दियो
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अताप हो वा हा ६३॥ तिन नित करिने थालिसु, 'तुम तणी हजुर हो । स्था। अपदेशों निःशय थका, संग होयनें सूर हो । स्वा० महा ६४ ॥ ऊंचे शब्दें प्ररुपज्यो, यशनें पराकम ताण हो । स्वा। शंका को मति राख ज्यो, मो सरिखो प्रधान हो । स्वा० म्हा०६५ ॥ चार ज्ञान तणावणी, थे जो गुणारी रेल हों। स्का । राय परवेशीने लायनें, देस्युं लारै मेल हो ॥ स्वा० म्हा० ६६ ॥ अथ दोहा । गुरु बोल्यारे जाणस्यै, चिन्ता अवसर देख । सांजलिने चित सारथी, हरखित हुवो विशेष । ६७ ॥ नदिने बन्दना करी, चित थायो निजगेह । किण विधि लावे रायने, सांजलज्यो ससनेह ॥ ६७ ॥ मुनि शानि उपदेश दे, न्याय तणे संबंध । मिस करि आयो रायमें, जिसौथापने, बंद ॥६५॥ ढाल ६ ही ॥ राग देशी ॥ थाई राजाने ईम कहैं, सांजलजो महारायोजी। घोडा देश कमोदना, मे ताजा किया परायो जी॥ परम दलाली चित करेजी ( ए टेक) ॥ 3- ॥ सांजसको नरनारीजी- चित सरिता
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परदेशी रानाकी चौपाइ।
उपगारिया, बिरसा ईण संसारोजी ॥ ध०७१ ॥ मुऊने आप सुपा हुँता, सो देखोले चौडेजी। अब सर बरते एहवो, घोडा किसाईक दौडेजी ॥ध० ७२ ॥ राय परदेशी चित तणों, मान्यो बचन अनूपोजी। राजा बहुली अबै, घोडा देखण चोंपोज) ॥ ध १३ ॥ रथमें घोडा जोतीया, उपर बैठो रायोजी । चित बैठगे खेडवा जणी. केश योजन ले जायो जी ॥ध० ॥ श्रांम्हा साम्हा दोडावीया. बाया जाण उमेदोजी। पर देशी तब ईम कहै, चितमें पाम्यो बूं खेदो जी ॥ ध० ७५ ॥ गय परदेशी इम कहै, चित ! अवसरनो जांणोजी । सघन बाया के बागनी, रथ उनो राख्यो श्राणोजी ॥ ध० ७६ ॥ धरम कथा केशी कहै, उचै उचै सादो जी। राय परदेशी देखिने, मन पाम्या विषवादो जी ॥ धo 5॥ चित ! बैठ्या कुंण जड मूढ ए, कुण जड करे सेवाजी। पंडित नहिं ए अजाण बै, काढण सागो केवाजी ॥ ध० ॥ ए धरम कहै दीपै घणों, ईण मूढा मध्य थापो जी । स्युं एहनो रोजगार हैं। रोक्यो सघलो बागोजी॥ध० पुए ॥
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मे तिहां बैठि सकू नहीं, मो मन एहची थाईजी। जेती मुख्ने उपनी, चितने तेह सुणाई जी॥ ध० ७० ॥ चित कदै सुण ए मोटका, केशी श्रमण कुमारो जी। बिचरत बाया बागमें, पांचसै मुनि परिवारो जी॥ ध०७१ ॥ बालपणे व्रत आदो . तजी मोह ने मायाजी। सरधा एहनी बै खरी, जुदा कहै जीव काया जी ॥ ध०
॥ चितना बचन ईस्या सुणी, बोख्यो श्म महारायोजी। जो चित ए नर योग्य बै तो हम जाई चलायो जी ॥ ध०७३ ॥ हा स्वामी नर मोटका, बचन कानमें घाख्या जी। राजा चित बिहुँ जणा, केसी समण पै चाख्या जी ॥ ध०
४॥ राजा जाय जनो रह्यो, उचो न कियो हाथो जी। श्रावो बैठो नहिं मुनि कह्यो. पबितायो नरनाथो जी ॥ ध० ५ ॥ मुनि कहै नृप सरि मालिने, जो करि विनदै वाद जी। तिको पुरुष खरडै की, स्वामी उजड खरडै चाहे जी॥ ध० ६ ॥ इण अष्टांते रायतें, जांज्यो मांहरौ डांणो जी । तैं उचो हाथ कियो नहीं योंही उनो आणों जी ॥ ध० 0 ॥ बाग मांहि
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मुक देखिने, थारा मनमें ईम आई जी । कुण बैग जड मूढ ए । चितने सबतें सुणाईजी ॥ ध० ७॥ तुमनें चित ! चरचा करी, चलिने मो आयोजी। वो बैठो साधो ना कहि, श्रआयनें तब पबितायो जी ॥ धo Gए ॥ एहै रथ सांचो अजे, हा स्वामी ए सांचोजी । दोनु हाथ जोडी लिया, जाण्यो मारग नहीं काचो जो ॥ ध० ए० ॥ बलतो राजा ईम कहै, स्वामी कहोतो वैसोंजी । गुरु कहै जागा ताहरी, बैसण मैं किम कहिस्यो जी ॥ ध० ए१ ॥ पूढे रायस्वामी प्रते, ज्ञान दरसण कोई थांमेज) । मनरी बातें किम कही। उत्तर द्यो स्वामी म्हांने जी॥ ध० ए५ ॥ अथ दोहा ॥ राय परदेशी गुरु प्रते, पूलै धरि करि चाव । किण प्रयोगे जाणीयो, म्हारो मनरो नाव ॥ ५३ ॥ च्यार झान मो कने बै, सुण परदेशी राय । केवल झान तो नहि, इम जाएयो मन नाव ॥ ए४ ॥ नंदी सत्तरमें कह्यो, न्याय। श्ररथ लगाय। गुरु कहै राय सरध ले, जूदा जीवनै काय ॥ एए ॥ वलतो राजा श्म कहै, जीव
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काय बै एक । सरधा ए म्हारी खरी, धार राखी ॐ विशेष ॥ एद ॥ पहिलो प्रसनै श्म कहै, सांजलज्यो मुनिराय । म्हारो परदादो हुँतो, शण सेतंविकारे माय ॥ एy ॥ ढाल मी ॥ गोयम समुद कुंमार ॥ ए देशी ॥ अधरमी श्रवनीत, चलतो म्हारी रीत, दादो हम तणो ए । पापी हुँतो घणो ए ॥ ए ॥ पाखंडी प्रचंड, लेतो अकरा दंड, प्रमुखिया सुखि ए। प्रसुखिया पुखिए ॥ एy ॥ तुम कहणी मुनिराय, हो गयो हुसी नरकां मादि, हेत दादो तणो ए, मोसु होतो अतिघणोए । २०० । श्राय दादो कहै थाप,पोता मत करि पाप, हूं नरक पड्योए, पाप घणो कन्योए ॥ १ ॥ ईम कद दादो आय, तो मार्नु मुनिराय, नहीतर माहरीए । प्रगन्या छै खरीए ॥५॥ गुरु कहै हेत लगाय, सुण प्रदेशीराय, राणी ताहरीए । सुरीकंता खरोए ॥३॥ पहेरि उढ जलनाय, सहु सिणगार वणाय, से जगहैणा तणीए । जलुसाइ अति घणीए ॥४॥ को पुरुष अनेरो थाय, काम जोग विलसाय, निजर थारी पडैए । दंड कुंण सो करैए ॥ ५॥
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
कहै छेउं हाथो न पाय, शूलि देउरे चढाय, सिर काट धरुए, जीव रहित करुंए ॥ ६॥ नर तोसुं करे अरदास, मोनै महलो नातीलारै पास, हुँ ज.यने कहुँ खरोए । मो जिम मति करोए ।
॥ हुँ दुःख पानं आप. परनारीने पाप, तोतुं जाणदे ए । विसामो खाणदे ए ॥ ७॥ वात न मानुं एह, मो अपराधि तेह, खिण मात्र सहीए, ढीलो मेलुं नहिए ॥ ए॥ गुरु बोख्या सुण राय, श्तरै गुनैद कराय, अलगो न जाणदे ए, विसामो न खाण दे ए ॥ १० ॥ थार दादै वोलव्या कुड, संच्या पापना पूर, जाय नरके पड्योए । जंजीरा जड्यो ए ॥ ११ ॥ पल सागरनी मार, विण जुगतां निरधार, बुटवो नहिं ए। इम जाणो सहिए ॥ १५ ॥ करै परमाधामी घात, ज्यांहरि पनरै जाति, रुखवाला घणां ए। पुःख नरक तणा ए ॥ १३ ॥ चाहै सीखई जाय, पण दादो न सकै श्राय, मार घणीपडैए, ढीलो नही करैए ॥ १४ ॥ तिण दृष्टांते मान, जूदा जीवने काय, फेर जाणो मतिए । म्हें फूठ न बोला जति ए॥ १५ ॥ ये जली कही मुनिराय, पिण म्हारी न
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परंदशी राजाकी चौपाइ।
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श्रावी दाय, जुगत मेलो घणी ए । बुध थाहरी निरमली ए ॥ १६ ॥ सुण स्वामी मुफ बात, धर्मिणी थी साख्यात, दादी हम तण। ए । नवतत्व विध जणी ए ॥ १७ ॥ करती पडिकमणो पचखाण, सुणती साधांरी वांण, चालती तंत मैए। उंडा थांरा पंथमें ए ॥ १७ ॥ म्हारी, दादी साम, करती धर्मरो काम, तप किरिया घणी ए । चतुराश् लणी ए ॥ १५ ॥ सांचा मुनिना थाट, टले फुःख उचांट, तुम कहैण। सही ए। देव लोकां गए ॥ २० ॥ ह दादी नइ अत, हतो इसटनै एकंत, अ.पण! गोडतीए । आघो न बोडतीए ॥१॥ देवलोक थी आय, दादी कहै
म आय, पोता धर्म करोए, ए मांग है खगेए॥ २५ ॥ ऐसी दादी कहैवाय, तो मार्नु मुनिराय, नाहं तो माहरो ए । मत काट्यो खरोए ॥ २३ ॥ गुरु कहै सजिन राय, कोइ देव पूजणने जाय, असनान मंजण करी ए। धूपणो कर धरी ए॥ २४ ॥ कोश् श्वेतखानारे मांहिं, जगी कदै वत लाय, आवो पगधरो ए । मोसुं बातां करो ए ॥ २५ ॥ जाय कै नही जाय, उत्तर दे मोनै राय,
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सांमी सुचाइ घणी ए । न जाय तण नणीए ॥ २६ ॥ गुरु कहै सांजलि एम, थारी दादी आवश् केम, पुरगंध इहां तणी ए। उची जावर घणीए ॥ २७॥ पांच सइ जोयण लग जाय, दादी न सके आय, नेह लगै नवइ ए । सुखमें मगन हुवैए॥ २७ ॥ देवन सके श्राय, नव नेह लपटाय, सुखमें जिलै जिवे ए। श्रादि करै कठए ॥ श्ए ॥ मोहरत नाटक सार, वरस जाय दस हजार, पिढ्यां खपै घणी ए । कहै किण जणीए ॥ ३० ॥ पल सागरनी थित, महल देवीने चित्त, मोह रह्या सहीए । आय सके नहींए ॥ ३१ ॥ राय समकि
णि न्याय, जुदा मानि जीव काय । राजा कहे वलिए, बुद्धि थारी निरमलीए ॥ ३ ॥ ज्ञानी पुरुषो को श्राप, ज्ञान तणो परताप । हेत मेलो सहीए, मो दिल से नहींए ॥ ३३ ॥ दोहा ॥ तिजो प्रश्न गुरु प्रते, एम पूडे राजान । सन्ना मध्य प्रजु एकदा, बैगे करि मंडाण ॥ ३४ ॥ सेठ सेनापति मन्त्रवी, देखतां सहु कोय । कोटवाल एक चोरने, याणि सुंपियो मोय ॥ ३५॥ में परिखा करवा जणी, घाटयो कुंजी मांह । काठगे
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जडीयो ढांको, संधि न राखी कांय ॥ ३६ ॥ लोह कुंजी लोह ढांकणो, सीसा संधि नराय । रखवाला सुधि राखीया, काल किसी विध जाय ॥ ३७ ॥ पाठे कुंजी ढांकणो, में खोल्यो मुनि सोय | चोर मूवो श्रतम गयो, बि दुवो नहीं कोय | ३८ ॥ निकलतो देख्यो नहीं, दुवो न कोई बेक । काया जीव जुदा २. हुं किम मानुं टेक ॥ ३७ ॥ जीव काया एकीज है, यह म्हारो मत साच । एहवी बात सुणी करी. बोल्या मुनिवर वाच ॥ ४० ॥ ढाल ८ मी सुख कारीनी चाल ॥ सांजली परदेशी, कुडागार एक साल । बाहिर मध्य लिपी, ठंडी गंजीर विशाल ॥ ४१ ॥ मांई वायु न पैसे, श्राडा बजर किवाड । कोई ढोल लेईने, नर पैसे तिणवार || ४२ || पेठा पढे ढांके किवाड, बिप्र नवि राय । पक्को काम ज्युं कीधो, चूना पिठी लगाय ॥ ४३ ॥ ते मांहि बजावे, मोटे शब्द मेरी ढोल । ते बाहिर सुणे के नहीं, गुरु कड़े राजा बोल ॥ ४४ ॥ ते सुणिये स्वामी, एम बोल्यो नृप वाच | सांजलि गुरु जाखे, बड्यो कोई राय ॥ ४५ ॥ जेम शब्द
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
पुजननी, बाहेर निकल्यो जाय। ए जीव प्रतिहत, ते कहो किम लखाय ॥ ४६ ॥ परवतादिक जेदके, जीव निकलीनें जाय । तिए कारण सरधो, जुदी जीवन काय ॥ ४७ ॥ वलि बोल्यो नरपति थे कहो देत लगाय । निरमल बुद्धि याहरी, पण नावे मुऊ दाय ॥ ४८ ॥ वलि एक दिन स्वामी, बैगे मोटे मंडाण | कोटवाल मुऊ ने, सोध्यो चोर एक यान ॥ ४५ ॥ तेहने मारी ने, घाल्यो कुंजी जाए । काठो बीडिने राख यो, पांडे काढ्यो खान ॥ ५० ॥ ति मांहि स्वामी कीडा, पडिया दिवा सोय । ते पेठा किए विधि, छिद्र न दिवो कोय ॥ ५१ ॥ जो बि पडंनो, तो मानतो मैं दोय । नहीं तो सुखिमी, साव मत बे मोय ॥ ५१ ॥ गुरु कहे राय दिवां लोह, धर्म | हां दिवो स्वामी, अगनि
वरण होय लान ॥ ५३ ॥ वह्नि सघ परिणती, पेत्रि मांहि संनाल । कोई बिप्र पड्यो तिहां, किम हुवा काखोकाल ॥ ५४ ॥ राय कहे बि वि दुबो, तब गुरु बोया एम । जीव परवत जिवे, कुंभी बिद्र दुबे केम ॥ ५५ ॥ सरधो
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
तुं परदेशी, ए जिन श्रागम वाण । राय कहे जुगते मेलो, पण मुळ नावे दाय ॥ ५६ ॥ प्रश्न पूजे पांचमो, गुरु प्रते राजान । कोई तरुण पुरुष होई, सकल कला परधान ॥ ५७ ॥ समरथ होई प्रनु ते, बाण वाहनने काज । होवे हां समरथ. वत्रि बोयो नृप श्राम ॥ ॥ कोई हुवे घालक, बुद्धि गहन विज्ञान । ते बाण ना खिवा, समरथ हुवे गजान ॥ ५ ॥ तो सरधा करिने, मत लेखो ए मान, नहींतर मुऊ साचो, जीव काय नो झान ॥ ६० ॥ गुरु कहे गजा प्रते, कोई हुवे तरुण जवान । घण) बुद्धि चतुराई, नवो धनु. षने बाण ॥ ६१ ॥ ते बाण खेंचिवा, समरथ होई राजान । हां होवे स्वामी बलि, गुरु बोध्या ताम ॥ ६ ॥ तुम तरुण चतुर नर, डाह्या निपुण ज्युं होय । सब साज मिख्या पिण, जीवा तुटी सोय ॥ ६३ ॥ तो खेंचन समरथ, होय नहीं के होय । उपगरण अधूग. तब गुरु बोल्या जोय ॥ ६४ ॥ बालक ते नानो बुध, प्रगमी नहीं जाण । तरुणा नरनी परे, ते किम खेंचे बाण ॥ ६५ ॥ तिम सरध ले राजा, खोटो मत मति ताण ।
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
राय कहे दिल नावे, थे कहो झानने मान । ६६ ॥ वलि सांजलो स्वामी, तरुण पुरुष होवे सार । समरथ होई वाहिवा, लोहादिकनो जार ॥ ६७ ॥ तेहिज होई वृद्ध जो, जरी देह निरधार । लकडी लेई हिंडे, पड्या दांतने दाढ ॥ ६०॥ चाले मांदो नूखे, तृषाय पुरवल देह । लोहादिक वाहिवा, समरथ होतो तेह ॥ ६ ॥ तो सरधतो स्वामी, जीव काय जूदा एह । नहींतर नहीं मानु, बगे प्रश्न सुनेद ॥ ७० ॥ उत्तर गुरु नाख, कोईक नर राजान। होय चतुर विचक्षण, ते वलि तरुण जुवान ॥ १ ॥ नवां डोरी बीका, वांस करंडक जान । ते नार उपारने, जाणे विधि विज्ञान ॥ ७ ॥ ते उपारन समरथ, राजन् ! ते किम थाय। हाई स्वामी समरथ, वलि गुरु बोल्या वाच ॥ ३ ॥ ते नर होवे तुरनो, कावड डारो सुलकाय । करंडक सुलकावे, वांस लकडी जीव खाय ॥ ४ ॥ समरथ होवे वहेवा, लोहादिकनो बोऊ। राय कहे नहीं समरथ, जुना उपगरण होय॥ ३५ ॥ होय सब विधि समरथ, जुना उपगरण जाय । तो
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
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बोक उपाडे, राय कहे नहीं बास ॥ १६ ॥ उपगरण लांजे, वलि तो गुरु कहे चोज । बुढो उपाडे, होन इन्डि वलि खोज ॥ ७ ॥ तिणसो नहीं समरथ, वहेवा कावड जार । जुदा जीव काय बै, शंका म करि लगार ॥ ७ ॥ राय कहे ज्ञान बुद्धिसों, देत मिलावो श्याम । पणजीव काया जिन्न, दिल नहीं बेसे श्राम ॥ ए ॥ दोहा ॥ पूरे प्रश्न सातमो, श्रीगुरुनें राजान । प्रत्युत्तर दे किण विधि, ते सुणजो धरि ध्यान ॥ G० ॥ ढाल ए मी धरम मङ्गल महिमा निलोए, एचाल ॥ एक दिवस जरी परखदा, बैगे थो सना मांह । नगर गुतोए चोरटो, सोप्यो मुक आन । प्रश्न पूजे नर सातमो ॥ ए टेक० १ ॥ ज्ञान प्राप्तिने काज, सदगुरु मोटा जेटीया, तारण तरण जहाज ॥ प्र० ७२ ॥ में चोर जीवतो तोलीयो, पढे कन्यो उपाव । गल मसोसीने मारीयो, नहीं शस्त्र लगाय ॥ प्र० ३॥ मारीने फिर तोलियो, घट्यो वढ्यो न लिगार। तिण कारण में जाणीयो, जीव काया नहीं न्यार ॥ प्र०७४ ॥ चोर मुवाने जीवते, फेर पडतो स्वाम।
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परदेशी राजाकी चौपाई |
तो हुं न्यारो सरधतो, तुम कह्यो जे श्राम ॥ प्र० ८५ ॥ तो ते मो मत बै खरो, जोब काया ढै एक । एहनो उत्तर मुनि कहे, युगत मेलि विशेष ॥ प्र० ८६ ॥ मसक वाय जर मुंदिया. सुनि देखि राय | हां दिवी नृप कहे, बोल्या फिर मुनिराय ॥ प्र० ८9 ॥ पर उपगारी इम कड़े, समजावण हेत । आप तरे पर तारहि, खुल्या ज्ञाननां नेत्र ॥ प्र० ८८ ॥ वाय जरी तोले दवडी, पढे काढ देवाय । वलि तराजु तोलवे, किसो फेर दिखाय ॥ प्र० ८ ॥ राय कड़े प्रभु ना घटे, नहीं बडे तिल मात । वलि गुरु जाखे नूप तुं, देख लेने साख्यात ॥ प्र० ए० ॥ हलको जारी ना हुवे. वायु काढे राजान । तो अन्तर नहीं जिय गये, इम श्रद्धा चित्त न || प्र० १ ॥ राय परदेश | इम कदे, ज्ञाने पूरा ढो आप | देत युगत जाणो घण, ज्ञान तणे प्रताप ॥ प्र० २ ॥ इम मो बेस नहीं, शंका बै मुनिराय । प्रश्न यामो, वलि कहे सुणज े ते चित्तलाय ॥ प्र० ३ ॥ दोहा ॥ वाको प्रश्न आमो कहे गुरासुं राय । हुं मोटो मंडाण कारी, बेगे परिषद
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परदशी राजाकी चौपाइ।
माय ॥ ए४ ॥ कोटवाल एक चोरटा, आणी सुंग्यिो माय । में पारख करिवा नणी, खंड कीधा तप दोय ॥ एy ॥ तो पण जीव न दखियो. जब खड कीना चार । आठ साल संख्या किया, पण जीव न दिग न्यार ॥ ए६ ॥ जीव निकलतो दिग्वतो, तो में मानतो संत । तविण दिवा जाणीयो, म्हारो मत तंत ॥ ए॥ ढाल १० मी ॥ गुरु कहे राजा तुं एडवो ए, कीयाग मूरख जेहवो ए। चलतो राजा कहे एम ए, सामी कठीयारा मूरख केम ए ॥ ए७ ॥ गुरु कहे चाज लगाय ए, सांजल परदेशी राय ए। कठीयारा अटवी वाटमें ए, नला मिल च या काठन ए ॥ ए ॥ श्रया अटवी मांहि ए, मसलत कीधी मांहो मांहि ए । हम सब चल जीतरी ए, कठीयारा मिल एकण नणी ए ॥ ३० ॥ अमें नारी ले आवोयें जेटले ए, जोजन तैयार करें तटले ए। लाकडी थोडी ५
आपशु ए, थारी नारी करीने थापशु ए ॥१॥ तुं रहे प्रमादमें लाग ए, तो बूऊ जावेली बाग ए। तो लिजे काष्ठ अरणी सुं काढ ए, किजे
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परदशी गनाकी चौपाइ।
काम सरव विधिशु ए ॥ ॥ एम शिदा दीधी घणी ए, श्राया चाली अटवी तणी ए। एटले जागीने देखीयो ए. अग्नि खोरो बुझीयो देखीयो ए ॥ ३ ॥ हिवे किम निपजावु आहार ए, तो काढुं काष्ठने फाड ए। बांधी कमर फरसी कालने ए, थायो काष्ठ पे चालने ए ॥ ४ ॥ घणे जोर थकी तसु दोय ए, टुकडा कीधा तिनि सोय ए । नजर पड़ी नहीं आग ए, जब चार आठ सोल नाग ए ॥ ५ ॥ जब संख्याता खंड किया ए, तो नी अग्नि दिखाई नवि दियो ए। श्म कहि मुखी ते होय ए, सोंपी कुण विपदा मोय ए॥ ६ ॥ हुं अधन्य अपुन्य अनाग ए, दिवे काढुं किहांथी आग ए। मोंने संप्यो कुण जंजाल ए, फरसी हेली नाखी राल ए॥ ७ ॥ भारत करे श्रण वातरा ए, मोने कासुं कहेला सायरा ए। आरत रुष ध्यान रह्यो काल ए, करी निचो माथो घाल ए ॥ ॥ ज्युं २ आर्त्त करे जिवे ए, बांसु दोय चार पडे तिठे ए । एटले कठियारा श्रावीया ए, भारतरा लखण पिडानीया ए ॥ ए॥ कहे भारत ध्यान किम करे ए.
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
तब विलखो होईने बोलतो ए। थे कारज गया बतायने ए, मोसुं गरज सरी नहीं काय ए॥ १० ॥ निशा काष्ठ अगमि तणी ए, सहु वात कही साथ्या जणी ए। श्रग्नि निकली नहीं काठ मांदि ए, तिणसु फुःख पडियो आय ए ॥ ११ ॥ इण कारण दीलगिर हुवो ए, जाई जिहां उखे तिहां पीड ए। मांहोमांहि सहु श्म जणे ए,
आपां रह्या जागसे जड तणे ए ॥ १५ ॥ एटलामें डाह्यो एक ए, चतुराई वात विशेष बै ए। जाण कला सरव तणी ए, काष्ठमें लाकडी मथी ए॥ १३ ॥ अगन सधखी पाड ए, निपजावी चार थाहार ए । स्नान संपाडा करी सेव ए, पढे पूज्या घरका देव ए ॥ १४ ॥ नला होई नोजन करे ए, सहु चलु कर मुबण मुख धरे ए। सब जीमे ताजा होश ए, तिण मूर्खने कहे जोइ ए ॥ १५॥तें क्रोध कीधा दिल मांहि ए, पिण अकल नहीं तुझ मांहि ए । इम पाडिजे श्राग ए, सैसा चतरना माग ए ॥ १६ ॥ कठीयारो मूढ अजाण ए, लकडीसुं मांडी ताण ए । थग्नि पाडण नहीं पारखो ए, राजा तुं कठीयारा सारीखो ए ॥१७॥
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परदेशी राजाकी चौपाई |
राय कहे मुनिवर जणी ए, परखदा थाइ मिली घणी ए । थे हो अवसरना जाए ए. मुने बोट्या बो करडी वाण ए ॥ १० ॥ यह देख परखदा लोक ए, थांने मूरख कदेणो जोग ए । गुरु कहे राजा आप एटली ए, परखदा चाली बै केटली ए ॥ १५ ॥ हां स्वामी जाएं ते सार ए, परखदा चाली है चार ए । नाम कहे किसा २ ए, ते राजा कहे दिवे तिसा ए ॥ २० ॥ त्री गांधा पूर्व ब्राह्मण ती ए, कृषीश्वरनी चोथी जणी ए । गुरु कड़े तुं जाणे इस्यो ए, ए चारि अपराध्यांने दंड किस्यो ॥ २१ ॥ हां खामी जांएं दंड ए, अपराध्यांनो प्रचंड ए । राजानो खून करे तरे ए, बेदी जीव काया न्यारा करे ए ॥ २२ ॥ न्यातनो अपराधी थाय ए, तिसे वाले तिपायें लगायए । ब्राह्मणनो खूनी घणो ए, लंबन देवे श्वान कागा पग तो ए ॥ २३ ॥ के कुंडलनें आकार ए, दीजे दाग मध्य निलाड ए । निरजंबे वारमवार ए, काढीजे न्यातसुं बहार ए ॥ २४ ॥ रुषी श्वरासुं वांका व ए, ज्यांने उढ मूरख इस्यो कड़े ए| गुरु कहे वचन तें ना सह्यो ए, राजा
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
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थारे मुखे तें कह्यो ए ॥ २५ ॥ में निकल्या कदाग्रह बंडने ए. परखदा सारु दंडने ए । तुं प्रश्न पूढे वांकडो ए, जे क्रोध व्यापणनो टांकणो ए ॥ २६ ॥ न करे वीतराग वैर ए, पण बद्मस्थांरी लहेर ए । मोसुं वांकी चरचा करी घणी में जड मूरख कह्यो तुक जणी ए ॥ २७ ॥ तब वलतो बोल्यो राय ए, सुणजो स्वामी म्हारी वाण ए । हुं पहिले प्रश्न बुकियो ए, म्हारो कर्त्तव्य थाने सुकियो ए ॥ २८ ॥ म्हारी कही मनोगत बात ए, तबदी समज्यो स्वामीनाथ ए । हुं खडी तेढी आणतो ए, प्रश्न पूजया जाणतो ए ॥ २९ ॥ ज्ञान तणी प्राप्ति जणी ए, में वांकी चरचा करी घणी ए| ज्युं २ पुढवाड की तरे ए, जिन धरमनी खबर पडी ए ॥ ३० ॥ हुं जाएं जीव जीव ए, समकित चारित्रनी नीव ए। मैं मन विचार इसडो कियो ए, ढुं जाने वांको वर तियो ए ॥ ३१ ॥ जाणपणे सुधरे काज ए, एटले बोल्या मुनिराय ए । राय जाणे तुं एटला ए, व्यापारी चाव्या केंटला ए || ३२ ॥ जाएं हुं स्वामी चार ए, ज्यारा न्यारा
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
विचार ए । एक देवे पण करडो बोल ए, निव गांवडी खोल ए ॥ ३३ ॥ पूजो नरमाइ करे aणी ए, पण पोंच नहीं देवा तणी ए । तीजो सनमान दे बहु धरे ए, चोथो उलटी धकाधुमी करे ए ॥ ३४ ॥ गुरु कड़े चार मांहि ए, कुण व्यवहारी कहाय ए । दावक थुवक या ए, ले जावे दरबार में ताण ए ॥ ३५ ॥ मुखसे काढे गालीयो ए, थारो बाप दादो दिवालीयो ए । कुण कहे व्यवहारीयो ए, रायने कहे किम थे धारीयो ए ॥ ३६ ॥ राय कहे व्यापारी तीन ए, चोथो नहीं प्रवीण ए । बलता गुरु बोल्या तरे ए, राजा तुं पेक्षा व्यापारी परे ए ॥ ३७ ॥ वांका प्रश्न बातां कड़ी ए, पण जाणुं तुं व्रत लेसी सही थे । में लाधो थारो पारखो ये, तुं पहिला व्यापारीनी सारखो थे ॥ ३८ ॥ जड को राजा खेदे मर्यो, पण थेटलो का ठंढो पड्यो थे । कोई खुशामदी नहीं करी थे, समजायो निज न्यायर्थी थे ॥ ३९ ॥ आबा कह्या देत जुगत थे, तिसुं बेगी मिले मुगत थे । माइशे मत सुन को', राजा सूत्र अनुसारे में लह्यो थे ॥ ४० ॥
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परदेशी राजाकी चौपाइ। १०१ दोहा ॥ गुरु प्रते राजा कह्यो, थे अवसरना जाण । गुरु उपदेश जलो कह्यो, निपुण गुणानी खाण ॥४१॥ शरीर मांहिथी काढीने, समरथ को अतीव । थांवला प्रमाण मो हाथमें, जूदा दिखावो जीव ॥ ४५ ॥ ढाल ११ मी जगत गुरु त्रिशला नन्दन वीर, श्रेदेशी ॥ तिणे कालने तिणे समेजी, राय प्रदेशीने पास । बृद तणाजे पानडाजी, वाय हलावे तास ॥ ४३ ॥ मुनिसर उत्तर दीधो प्रेम ॥ जेहना प्रश्न पुडियोजी, निष्फल जाय कहो केम ॥ मु०४४ ॥ मुनिवर पूजे रायने जी. थे कोण हिलावे पान । देव असुर नाग किन्नरा जी, जात गंधर्व प्रधान ॥ मु० ४५ ॥ राय कहे नहीं देवता जी, जात गंधर्व न हिलाय । वृक्ष तणा थे पानडा जी, हिलावे वायुकाय ॥ मु० ४६ ॥ गुरु कहे तुं देखेय ने जी, रुप सहित वायुकाय । कर्म लेश्या वेद सहित ने जी, राग मोह कहेवाय ॥ मु० ४७ ॥ राय कहे देख्यो नहीं जी, तव गुरु बोल्या श्रेम । वायु रुप देखे नहीं जी, तो जीव दिखाउं केम ॥ मु०४७ ॥ बदमस्थ देखे नहीं जी, दश
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
स्थानक राजान | देखे तो श्रीकेवली जी, जीवकाया जूदा मान ॥ मु० ४७ ॥ प्रश्न दशमो राजा कहे जी, सांजलजो मुनिराय । जीव समो हाथी कुंथवो जी, ढुंतो किम मुनिराय ॥ मु० ० ॥ राय कहे हाथी थकी जी, कुंथवा ने थोडा कर्म । क्रिया याश्रव आहारनो जी, श्वासोश्वास कध जर्म ॥ मु० ५१ ॥ हाथी ने कुंथवा थकी जी, क्रिया कर्म बहु थाय । जावक्रांत रिध यति घणो जी, हुतो कड़े मुनिराय ॥ मु० ५२ ॥ राय कड़े जीव सारिखो जी, न्यूनाधिक क्यों क्रांत। तब गुरु राजाने कड़े जी, दीवानो दृष्टान्त ॥ मु० ५३ ॥ श्रति मोटी शाला मध्ये जी, दीवा मेलो जोय । आडा जडे किवाडने जी, बिड न राखे कोय ॥ मु० ५४ ॥ मांदि दीवो उजालवे जी, भेटलो करे प्रकाश । बाहेर ज्योत दीसे नहीं जी, इम जिय लगि यावास ॥ मु० ५५ ॥ सुडो कुंडो सरावलो जी, वाढो पाढो जाय । चोथो जवाने सोलमो जी, बत्तीस चोस प्रमाण ॥ मु० ५६ ॥ बिद्र दीवानो ढांकणो जी, दीघो ढांके कोय । तोहि
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परदेशी राजाकी चौपाइ। १०३ ज्योति माहि रहे जी, बाहेर ज्योत न होय ॥ मु० ५७ ॥ शाला मध्य उद्योत डेजी, नहीं शालानी बहार । श्ण दृष्टांते जीवडो जी, बांध्या कर्म अनुसार ॥ मु० ५७ ॥ जेहवो शरीर बांध्यो हुवे जी, जीव असंख्यात प्रदेश । नानी मोटी देहमें जी, सचेतन करे प्रवेश ॥ मु० ५तिण कारण सरदहो जी, जूदा जीवने काय । राय कहे में सरदह्या जी, पण मत बोड्यो नवि जाय ॥ मु० ६० ॥ दोहा ॥ प्रश्न अग्यारमो पूढीयो, मुनिवर दीधो जाब । लोह वणीक बेहडे कह्यो, तब आयो धर्म जाव ॥ ६१॥ राय प्रदेशी गुरु प्रते, बोस्यो जोडी हाथ । धरम खरो में जाणीयो, पण बुजो मुनि वात ॥ ६ ॥ दादा परदादा तणो, दरपिढी नो राह । बडा बडेरा सेवीयो, किम बूटे स्वामीनाथ ॥३॥ में तो खरो धर्म जाणीयो, थारो थे धर्म सार । पण मोसं बूटे नहीं, मारा बडा बूढारो जार ॥ ६३ ॥ में तो घणां दिन जालीयो, बोडता आवे लाज। जिम बै तिमही रहन द्यो, गई करो मुनिराय ॥ ६४ ॥ वचन सुणी राजा तणा, गुरु बोच्या वलि
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परदशी राजाकी चौपाइ।
श्रेम । राजा तुं पडतावसि, लोह वाणीया ओम ॥ ६५ ॥ स्वामी कुण लोह वाणीयो, पबितायो कहो केम । स्वामी कहो कृपा करी, जो मुऊ वरते देम ॥ ६६ ॥ ढाल १५ मी चोपईनी देशी॥ गुरु बोल्या राय सांजल एह, प्रश्न अग्याग्मांनो उत्तर जेह । केश्क वाणीया धनरी चाहनेला हुश् चख्या अटवी मांह ॥ ६७ ॥ चलतां अयो एक उद्यान, तामें देखी लोहा खान । निरधननें होइ लोहा धन्न, तेहने देखी हरख्या मन्न । ६० ॥ जाणे गयो हम दारिज दूर. सबने लोह उपाड्यो पूर । धनना अरथी श्रागर गया, तांबा खान देखी हरखीया॥६५॥ सरही लोह दिया निहां डाल, तांबो बांध लीयो ततकाल । तिणमें लोह वाणियो क, लोहनें सेंग कीयो विशेष ॥ ७० ॥ साथी बोल्या तिणसु श्रेम, बांडे नहीं लोह तुं केम । तांबासु लोह थावे घणो, जार बोडिदे लोहा तणो ॥ ११ ॥ प्रत्युत्तर जाग्वे तिणवार, दूर थकी में लायो नार । में कीधी खप यु ही जाय. तिण कारण बोडं नहीं जाय ॥ ७॥ तिहाथ चलीने आगे गया, तब
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
ते खाण रुपानी लगा। सब तांबो तज रुपो लीयो, उन मुरखनो हठ नहीं गयो ॥ १३ ॥ आगे दीठी सोना खाण, तिमहीज दीठी रत्नारी खाण । डाल दियो सब पीबलो नार, लीना बांधी रत्न अपार ॥ ४ ॥ लोह वाणीयो टेक न तजे, सब समजावे लोह न तजे। लोह रतननो अन्तर बह, अबलग सरिखा होशे सह ॥ ७५ ॥ लोह वाणीयो बाल्यो वाय. बोडे मेले करे बलाय । में तो नार लीयो सो लीयो, तुमने बोड न मेल न कीयो ॥ १६ ॥ मूढ वाणीयो इणविध कही, तुमें मान कलु दीसे नहीं। जब साथ्यां सघला जाणीयो, से साचु बोख्यो लोह वाणीयो ॥ ७ ॥ साथ्यां शिख दीधी घणी, पिण ते मुरखे नेक न गणी। सघला पाला आया तिणवार, पहुता आपण घरबार ॥ ७ ॥ नारी माल लाया ते घरे, शेक रतननो विक्रय करे । तेहना थाया बै बहु दाम, दाम थकी सुधरे सहु काम ॥ ए ॥ गइलो मनुष्य कोश् थाय, धनथी बुद्धि पूसरी आय । सात खणा कीना श्रावास, नरनारी बेग सहु पास ॥ ७० ॥ मादल
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
बाजी रह्या धधकार, बत्तीस विध नाटक होय सार । विलसे कामादिक बहु जोग, पुन्य थकी सब मिलीयो संजोग ॥ २ ॥ हिवे ते लोह वाणीयो श्राय, लोह लइ घर पेठो मांय । लोह वेचीयो गण्डी खोल, आयो थोडो तेहनो मोल ॥ ७२ ॥ थोडा दिनमें दीयोरे निमय, लारे' कुनार गई ते खाय । घरमांहि आश् दारिफ नूख, तेहि थकी देहि गइ सुक ॥ ३ ॥ एक पावलो लारे रखाय, तेहना फूलीचणारे मंगाय। फीरतोश शहर मकार, ते पायो साथ्याके घार ॥ ५ ॥ मदेव साहमा उंचो लाल, देखि २ तन उठे जाल । ज्यु देखे त्युं सोचज करे, पण सोच्यां अब गरज न सरे ॥ ५ ॥ साथ्यां तणी न मानी शीख, हाय पडी मुजने अब धीक । अधन्य अपुन्य पाप मुझ घणो, काली पीली अमावस जाणो ॥ ६ ॥ पूरंत पंत लक्षण मुऊ मांय, लज्जा दया रही नहीं कांय । पश्चाताप करे मन घणो, वचन न मान्यो साथ्यां तणो ॥ ७ ॥ तेहनी परे समजी तुं राय, विन समके पाले पडताय । प्रश्न अग्यारमांनो उत्तर एह, साजली
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परदेशी राजाकी चौपाइ । १०७ राजा हरख्यो तेह ॥ ७ ॥ दोहा ॥ परदेशी प्रतिबोधीयो, सांजली एह दृष्टन्त । देत युगत करी तारीयो, मिलीया केसी सन्त । ए ॥ लोह वाणीये जीम कस्यो, तिम ढुं न करूं स्वाम । तुम सरिखा गुरु नेटिया, सही सुधरसी काम ॥ ए ॥ स्वामी थे मोटा पुरुष, मुफ मना मेटी ज्रान्त हिवे कृपा करी धरमनो, यो उपदेश महान्त ॥ ए१ ॥ मुनिवर दीधी देशना, मोटी परखदा मांद । मोटाई मंडाण करी, सुणतां बहु सुख थाय ॥ ए५ ॥ ढाल १३ मी प्रति बुफोरे सही मानव अवतार ॥अहनी.देशी ॥ चेतन चेतोरे दे मुनिवर उपदेश, राखो श्रद्धा धरमनी। चेतन । परखो देव गुरु धर्म, मेटो माया जरमनी ॥ चे ए३ ॥ नविजन चेतोरे मनुष जमारो पाय, परमादे पडजो मति । चे। जरा रोग लगे थाय, सेग रहेजो सों सथो ॥ चे० ए४ ॥ नवि० वासो वसीयो आय, जीव वटाऊ पाहुणो । चेः । चट दे जीव चली जाय, केहने साथे न जावणो ॥ चे ए५ ॥ नवि० तन मुरग मति आण, एहनी मकरी तुं चाकरी । चे ।
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१०८
परदेशी राजाकी चौपाइ ।
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बोडी जासी प्राण, ढेरी कर देइ राखरी ॥ चे० ९६ ॥ नवि० जबलगि जीय घट मांद, तबल गि इन्द्रिय साबती | चे० । जिहां लगे रोग न आय, राखो धरमनी जाबती ॥ च० ए ॥ जवि० सत गुरुनी ए शीख, ए अवसर मति चूकजो । चे० | पर निन्दा परनार, तिए नेडा मति दुकजो || चे० ए८ ॥ जवि० तजे सगाने सयण, बोडे धन संच्यो हाथो । चे० । तजे लियाने पुत्र, न तजे धर्म जगनाथनो ॥ चे० ए० ॥ जवि० करजो कतु करतुत, मनुष तणो जव पायने । चे० । मति लीयो नरक ना दुःख, परनी चुगली खायनें ॥ चे० ४०० ॥ जवि० हाथी घोडा ने हाट, हांका हां रहसी सही । चे० । पाढे होवेला उचाट, गरज कांइ सरे नहीं ॥ चे० १ ॥ जवि० थ न चाले साथ, नारी न चाले गेहिनी । चे० । सघली रही पढ़ी वात, बोडी जाइ निज देहडी ॥ चे० २ ॥ जवि० जबलग स्वारथ होय, तबलग मुख जी जी करे | चे० । स्वारथ. सरीयां जोय, सामो देख्यां लड पडे ॥ ० ३ ॥ जवि० एह संसारनो रुप, देखिनें
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परंदशी राजाकी चौपाइ।
प्रति बोधज्यो । चे०। काम लोग महा कूप, ते मांहि मति नरकको ॥ चे० ४ ॥ नवि० साधपणों ल्यो सार, काम नोग त्यागन करो । चे । श्रावकना व्रत बार, शीव रमणी वेगी वरो ॥ चे० ५ ॥ नवि० अल्प आऊखो जाण, तन धन यौवन कारमो। चे। पालो जिनवर आण, संसार सुख संन्नारो मति ॥ चे ६ ॥ नवि० रुट्यो अनन्तो काल, आदि. अनादि प्राणीयो । चे । रह्यो आशा बार, समकित रहस्य न जाणीयो । चे ७ ॥ नवि० पाम्या वार अनन्त, आउ पलि सागर तणो। चे० । शुद्ध न मिलिया सन्त, नव सागर रुालया घणा ॥च० ॥ नाव इत्या. दिक उपदेश. जीव शब्दमें जाण जो । चे । गुरु नाखे धर्म एम, दया नाव दिल आण जो॥ चे० ए॥ दोहा ॥ सुगुरु तणी वाणी सुणी, घणो जरीऊयो राय । हाथ जोडीने एम, कहे, सरध्यां तुमारा वाय ॥ १० ॥ परदेशी राजा तिहां, श्रावकना व्रत लीध । लाग्यो रङ्ग मजीठको, जव, जव आशा सिद्ध ॥ ११ ॥ गुरुने विना खमा विया, उठण लाग्यो राय । आचारजनो हेत दै,
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
गुरु बोल्या इम बाय ॥ १२ ॥ ढाल १४ मी बेबे अरहंत रंगतु । घर २ माग ए देशी ॥ नृप जाणे है तु बहोत ए, आचारजनी केती जात ए । जाएं बुं स्वामीनाथ ए, आचारजनी तीन ए ॥ १३ ॥ गुरु कड़े जाणे तुं वे ए. कहे तीनुं जात ते केइ बै ए । कला शील्प धर्म आचारज ए, ए तीनुं नाम में धारिज ए || १४ || गुरु कड़े राय जाणे इसी ए यांरी सेवा जक्ति करवी किसी ए, जाएं स्वामी बिदु ती ए, कला शिल्प आयरिया जी ए ॥ १५ ॥ प्रभु यशनादिक आहार ए, जिमावे' पूजा सतकार ए । जले न्हावण सजण करी ए, पुष्प मीलादिक जर धरी ए ॥ १६ ॥ धन देई वस्त्र पहेराय ए, जे दर पिढी लगे खाय ए । ति खातां टूटे नहीं ए, तेने एवो दान दीराय ए ॥ १७ ॥ दिवे धरमाचारजनी जणी ए; स्वामी सेवा जक्ति करवी घणी ए । वन्दना सत्कार सनमान ए, aat प्रकारनो दान एं ॥ १८ ॥ ज्याने वचन विनयसुं जाणो ए, ज्यारो कडप घणेरो राखणो ए । प्राणी भूलो जवाटवी जिए जणी ए, त्याने
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परदेशी राजा की चौपाइ ।
मारग या कृपा करी ए ॥ १७ ॥ जे गुरु दीवो गुरु देव ए, नित कीजे त्यांरी सेव ए। सुगुरु विण घोर अन्धार ए, ज्यांने वंदिजे वारम्वार ए ॥ २० ॥ वलि बोल्या श्रीमुनिराय ए, थारे कासुं वै दिल मांह ए| तुं ऐसो विचक्षण जाण ए, मोंने बोल्यो वांकी वाण ए ॥ २१ ॥ में बहोंतेर कला जणी गणी ए, थामें चतुराई दीसे घणी ए । तें पामी समकित सार ए, व्रत श्राखडीनो तुं धार ए ॥ २२ ॥ तुं चाट्यो विन खमायरे, तो किम इ दिल मांहि ए। चरचा मोसुं कधी घणी ए, तुं चाल्यो सतं बिका जी ए ॥ २३ ॥ नृप कहे सांजलो मुनिराय ए, म्हारे इसडी आइ दिल मांह ए। नगर न्यांत में मो तणो ए, स्वामी अपयश फेल्यो है अति घणो ए ॥ २४ ॥ म्हारी ढुंती खोटी नित ए, म्हारी घणाने बै
प्रतीत ए । हुं रह्यो मीथ्यात्व में राच ए, कुण माने पापीरी साच ए ॥ २५ ॥ हुं वांको जड तो घणो ए. स्वामी नावे जरोलो मो तणो ए । ए नगरी मांदि जाय ए, कुटुम्ब कबीलो लाय ए ॥ २६ ॥ मोने देखे सघला लोय ए, हुं खमाऊं
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
नीचो होय ए। नरनारी जाणे एहवो ए. अनड नमायो बै केहवो ए ॥ २७ वाम ए दिल मांहि धारीने ए, में जाणते वन्दना ना करी ए। गुरु बोल्या श्म वाय ए, राजा ज्युं तुऊने सुख थाय ए ॥ २७ ॥ में एहवो निश्चय धारियो ए, राजा उठी सेतंबीका चालियो ए। तव नगरी मांहि जाय ए, कुटुम्ब नेलो कियो राय ए ॥ श्ए । सबही न्यातीना लोग ए, ज्यारो घणो मिलीयो संजोग ए। सूरीकंतादिक राणीया ए. राजा रथ बेसारी आणीया ए ॥ ३० ॥ अधिक धर्मसं प्रेम ए, राजा चढीयो को णीक जेम ए। गज होदे असवार ए, नृप चाट्यो मध्य बाजार ए ॥३१॥ ते मृगवन मांहि आय ए. हाथीसुं उतन्यो राय ए । तिहां देखता सहु कोय ए, खमावे वै नीचो होय ए ॥ ३५ ॥ राजा पांचे अंग नमाय ए, गुरु लाग लाल पाय ए । तब सब नरनारी जाणीयो ए, पापीने पैडे आणीयो ए ॥ ३३ ॥ नरनारी सुख पाम्या घणो ए, जलो होजो इण गुरु तणो ए। सहु मनरी पुगी मन रली ए, घणां जीवाके गरक पडी ए ॥ ३४ ॥ बोडाय
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
दियो मत खोटको ए, समझायो राजा मोटको ए । मोटो मारग वह जिन तणां ए, तो पाखंडी दबिया रहे ए ॥ ३५ ॥ जो मोटो समझे धरममें ए. तो घणा जीव पड़े शरममें ए। देखादेखी होय धरम ए, देखादेखी बांध करम ए ॥३६ ॥ धन २ केशी वाम ए, सान्या परदेशी ना काम ए। तिहां परखदा बैठी थाय ए, धरम देशना दे मुनिराय ए ॥ ३४ ॥ कही भागम' वाणी अमूप ए, जामें तीनुं लोकनुं सरुप ए । संघमा हर खत थाय ए; मुकायो परदेशी सय ए॥ ३० ॥ जिणे ऐसी जुगत बनाय ए, तिणसुं मिले वेगी मुगत ए। बेटे गुरांजीरा पाय ए, धरम श्रायो घणोई दाय ए॥ ३५ ॥ दोहा । उठण लागो तिण समे, गुरु कहे रहिजे तीक । पहिले रमणिक होयने पडे मति होय अरमणीक ॥ ४० ॥ कैसो रमणिक प्रजु, अरमणिक होय केम । वलितो गुरु एसो कहे, सांजलजो धरि प्रेम ॥ ४१ ॥ श्खु क्षेत्र ने अनखला, वागन नाटक सार । प्रवर्तता रमणिक होय, पडे धरमणिक नूपाल ॥ ४२ ॥ बाल १५ मी सिंधु रामन) देशी ॥ इकु रस हेतोरे
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परदेशी राजाकी चौपाई।
ज्यांरा पाका खेतोरे, रसरो बहु चालारे, वहे घाणीरा नालारे, नित काक ऊमालाहो, जीड लगी रहेरे ॥ ४३ ॥ इकु पीलीअरे, खाजेने दीजेरे, रस बहुला पीजेरे, देखी २ ने रीजरे, जब मागे रमणिक हो, खेत सुहामणरे ॥ ४ ॥ खाइ पाइने थायारे, ठिकाणे लगायारे, सुना हुवा खेतोरे, मांहे कडे रेतोरे, अरमणिक इण हेतो हो, राजा में कह्यारे ॥ ४५ ॥ बागा गहरी बायारे, मांजरीया यारे, घणो फूल्यो फलीयोरे, फल नारे ढलीयोरे, जब लागे रमणिक हो, बाग सुहामणोरे ॥४६॥ केश श्रावने जावरे, बहु चीजां खावेरे, पामे झतु शातारे, पान नीलांने रातारे, श्ण कारण रमणिक हो, लागे सुहामणरे ॥ ४ ॥ फागुण वाय वागेरे, पान जडवा लागेरे, निकल गया डासारे, फल नहीं रसालारे, अति काला डंकाला हो, बाग अशोजतारे ॥ ४ ॥ नटवानी शालारे, गावे गीत रसालारे, बाजा ताल बजावरे, बहु देखन थावरे, नटशाला सुहावे हो, राजन् अति घणीरे ॥ ४ ॥ जससुं मुख नावरे, हरताल लगावरे, स्वांग
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
नवा २ आणेरे, नाचे रुप रसाणेरे, जब लागे राजन हो, शाला सुहामणिरे ॥ ५० ॥ दिन श्रायो उगीरे, नाटक जाय पूगीरे, लोग लागा ठिकाणेरे, नट लाग्या आपण कामेरे, दिनरी तो सागे हो, शाला अशोजतीरे ॥ ५१ ॥ राते जाग्या हुतारे, ते पडिने सूतारे, मुख काजल रेखारे, आंख्या गीडज दीखेरे, शुन्य दीखे नट शाला हो, लोक अशोजतारे॥ ५५ ॥ लाटा धान गाहिजरे, खाजेने दिजेरे, उपजे धान ज्यादोरे, ढेर कियो अगाधोरे, जब जादोरे लाटा हो, चेल लागी रहेजी ॥ ५३ ॥ धूरने वले वोहरारे, मिलिया गोर गेरारे, हाकम ने लुटारारे, जाच. कादिक सारारे, वणजारा सोदागर हो, सेणा जोमीयारे ॥ ५४ ॥ चोधरी पटवारीरे, तुषायत श्रीडारीरे, काय थकी चुंगोरे, केश लेता तुगीरे, जष लागे रमणिक हो, लाटा चेलसुरे ॥ ५५ ॥ लाटाकुं तोलि आयारे, ठिकाणे लगायारे, जीडज , गश्नागीरे, रेत उडवा लागीरे, अरमणिक लागे
हो, लाटा अशोजतारे ॥ ५६ ॥ हिवे बारे काकोरे, वराग्य जे ताजोरे, धर्म पायो रसीलोरे,
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११६ :
परदेशी रामाकी चौपाइ । ।
पळे पड जाय ढीलोरे, तुं फागुण सरिखो बाग हो राजामति हुवेरे ॥ ५७ ॥ हिवडा में बैगरे, थारा नाक के सैगरे, मैं विहार करी जावांरे, श्रन्यगाम सिधावारे, तुं मटके वैरागी हो, राजा मलि हुवेरे ॥ १७ ॥ चारे रमणिकोरे, विधी तोपे शीखोरे, धरम पायो बैनीकोरेइणमें रहि वीकोरे, जो टीको तुक आवे हो, शिव रमणी तणारे ॥ ५५ ॥ दोहा॥ अरमणिक प्रजु में नहीं, धरम थकी अनुराग। सात सहस गाम खालसे, करं तिणरा चोनाग ॥ ६॥ एक जाम राणीयां निमित्त, एक जाग खजान । एक जाग हाथी घोडला, एक नाग देवं दान ॥ ६१ ॥ मोटी शाला मंडायनें, अशनादिकः निपजाय । श्रमण मांडण साक्यादिने, पुर्बल दान दिराय ॥ ६ ॥ आपे विधी वरत जे, पालु चोखा स्वाम । पोसा पडिकमणां करी, सारं थातम काज ॥ ६३ ॥ इत्यादिक बोली करी, नव्या गुरुना पाय । नाव सहित वंदना करी, आया जिण दिस जाय ॥ ६४ ॥ केशि सरिखा गुरु मिख्या, चित्त सरिखा परधान । एसा पापी जीबने, आयो धरमच्चे
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
गम ॥ ६५ ॥ ढाल १६ मी, वेगे पधारो महेलथी, ए देशी ॥ गुरु वांदि पाला गया, पहुता नगर मकार । चार जाग किया राजनां, श्राप हो बेगे न्यार ॥ ६६ ॥ वैरागे मन वालीयो (ए श्रांकडी) सुणी साधांजी वाण । दया नाव दिखमें रुध्यो, चित्त ठिकाणे श्राण ॥ वै६७ ॥ परदेशी राजा हिवे, मोटी शाला कराय । अशनादिक निपजायने, कुर्बल दान दिराय ॥ वैः ६७॥ परदेशी श्रावक थयो, हुवो नवतत्वनो जाण । डीगायो डीगे नहीं, जो देव चलावे आय ॥ वै० ६ए ॥ पोसह पडिकमणां करे, शील व्रतनो नेम । सेठी पाले श्राखडी, देव गुरु धर्मसु प्रेम ॥ वै० ० ॥ चौदे प्रकारनो दान दे, साधाने निर्दोष। हाडमें जिन धर्मसुं, रंगे हरखे पात्र पोष ॥ वै०११॥ देव गुरु धर्म परिखने, मोटो समकित धार । सका कंखा ना करे, रूच्या प्रव. चन सार ॥ वै०७२ ॥ जिण दिनसुव्रत श्रावों, राजा देश भंडार । बल वाहन राणीयो जणी. न कहे थायो पधार ॥ वै०७३ ॥ नोकर चाकर परिवारशू, उतयों मननो राग । परजवनी खरची
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
नणी, रात दिन रह्यो लाग ॥ वै० ४ ॥ बेलार नो पारणों, तपस्या करे बै अनङ्ग । मोक्ष जणी उठ्यो सही, करवा करमसुं जङ्ग ॥ वै० ७५ ॥ करडो हुँतो राजवी, पायो जिनवर धर्म । ज्यारे लागि रसायणा, एहवो हो गयो नर्म ॥ वै० ७६ ॥ गुण इत्यादिक घणां, जेम श्रावकमी रीत । केसी गुरु परतापथी, गयो जमारो जीत ॥ वै०७७॥ दोहा ॥ ज्यां लगि धर्म पायो नहीं,करतो मोटा पाप । संसार्याने न सुहावतो, पडती तेहनी गक ॥ ७ ॥ सूरिकता राणी इस्यो, हुतो नृपसुं प्यार । राणी नाम सुत नो दीयो, सूरिकंत कुमार ॥ पुए ॥ स्वारथनां सहु को सगां, जो जो इण संसार। किणविध विरचे कंतसुं, सूरिकंता नार ॥ ॥ कुण बेटा कुण पोतरा, कुण जार्याने जाय । स्वारथ लगि नेहा करे, परमारथ मुनिराय ॥ १ ॥ ढाल १७ मी विबियानी देशी ॥ दिवे राणी मन चिन्तवे, एतो नरम गयो पालरे । सार करे नहीं राजरी, मोने लाग्यो कुण जंजालरे । तुमे जुओरे स्वारथरा सगा ॥ ७ ॥ केसी श्रमण ज्युं आयने, श्ण
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कैसी शीखामण दीधरे । म्हारो ऐसो जोरावर राजवी, सोतो धरम गहेलो कीधरे॥ तुमे०७३ ॥ श्णसुं गरज न को सरे, नहीं चले राजनो नाररे । किणहि जहादिक जोगसुं, इणने नाखुं माररे॥ तुमे०७४ ॥ सूरिकंत कुमर जणी, हुतो ले बेसारं राजरे । तब काम चले म्हारा राजरो, म्हारा सिकसी बंबित काजरे ॥ तुमे० ७५ ॥ ऐसी मनमें तेवडी, एतो कुमर बोलायो पासरे । जेटली मन मांहि उपनी, सहु कही सुतने प्रकाशरे ॥ तुमेण ७६ ॥ बेटा तुं बापने मारदे, कीसी शस्त्र जदरने जोगरे । जिम राज पसारूं तो जणी, मीट जावे पुःखने शोकरे ॥ तुमे० ७७ ॥ कबु हित प्यार गिण्यो नहीं, इण वंबी धणोनी घातरे। एतो किणहीसुं लाजी नहीं, तुम जोवो नारीनी वातरे ॥ तुमे० ॥ कुमर सुणी मन चिन्तवे, थातो पुष्टिणी दीसे मुझ मातरे । म्हारो पिता पुष्टी हुँतो, लोहीसु खरड्या रहेता हाथरे ॥ तुमे ए ॥ एतो ना कह्यो माता के बूरी, हा हा किम मारूं मुफ बापरे । कुमर जाण अवसर तणो, सेतो हुई रह्यो चूपचापरे ॥ तुमे० ए० ॥
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१२०
परदेशी राजाकी चौपाइ।
सेतो श्रणबोले उठी गयो, राणीने न दीयो जवाबरे । तब राणी मन जाणीयो, हा हा म्हारी जासी थावरे ॥ तुमे ए१ ॥ में तो कह्यो थो हित नणी, कुमरने नावि दायरे। वाहेर वात हुवा थका, मुऊ पडे गलेमें आयरे। तुमे ए॥ कुमर कदे रखे रायने, म्हारी गनी रहे नहीं वातरे । जब लग कोट मिले नहीं, तो लुंकतनी करूं घातरे ॥ तुमे ए३ ॥ एतो अबला गति नारी तणी, इण कोइ न मानी वातरे। इतनो मन नहीं सोचीयो, म्हारा खाली हो जासी हाथरे ॥ तुमे ए४ ॥ श्म मन मांहि विचारने, कद राय एकलो देखरे । एतो बिमादिक जोती फिरे, देखी राजाने एकंतरे ॥ तुमे० ए५ ॥ एतो हाथ जोडीने श्म कहे, मोपे कृपा करो महारायारे । थारे बेलानो पारणो, जिको मौन रहिज्यो श्राजरे ॥ तुमे ए६ ॥ एतो मुख उपर मीठी घणी, मांडे बै बहुली प्रीतरे। मांहि घात खेले घणी, एतो दुश्मन केरी रीतरे ॥ तुमेक ए ॥ कुण माता कुण जे पिता, कुण नारी कुण जायरे। डील वस्त्र वैरी दुवे, जब कर्म उदय
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परदेशी राजाकी चौपाइ।.
हुवे थायरे ॥ तुमे ए ॥ वारमवार राणी कहे. परदेशीने बायरे । राणी उपाव करे केसो, ते सुणजो चित्त सायरे ॥ तुम० एएए ॥ एतो पहिलो सगपण पिड तणो, वली बीजो व्रतनो धाररे । तीजा तपसी वैरागोया, करुणा न थाणी लगाररे ॥ तुमे० ५०० ॥ श्रावना व्रत लिधा प, तप तेरा बेसानो कीघरे । एक उण चालीस दिना, राजा जसग नगारा दीधरे ॥ तुमे० १ ॥ दोहा ॥ राय प्रदेशी न जाणीयो, राणी तणु ए कूड । अशनादिकमें मेली', संघले वीषनुं पर ॥२॥ विधिशुं करी बिबामणा, उपर मेव्या थाल । जोजननी तैयारीयां, आबेग नूपाल ॥ ३॥ विविध परे जोजन हुंता, जीमत थाइ सहेर । राय प्रदेशी जाणीयो, राणी दीधो जहेर ॥४॥ जहर उतारण विधि घण), जाणे नूपाल । धीक २ इण संसारने, जीवो केता काल ॥ ५॥ विष निवारण मुदडी, हुती नृपनी पास । परजव उपर मांडीयो, जारे किसी जीवणरी श्राश ॥ ६ ढाल १७ मी बेबे मुनिवर वहोरण पांगुयोरे एदेशी ॥ राजा उठ्यो वेग
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
सिताबसुंरे, न यो राणी द्वेषरे । उजल करकस वेद उपनिरे, राख्या समता जाव विशेपरे ॥ जायजोरे समकित रस परिणम्योरे ॥ ७ ॥ जिन मारगने चाढी शोजरे, एसीतो विषमता कोइ विरला करेरे, जीत्या है तृष्णा मोहनें लोजरे ॥ जो० ८ ॥ आगेतो बीचमें अब वैरागनोरे, आयो मन मांहि अधिको जोसरे । वेदनी करम संच्या बै माहरेरे, नहीं राणीनो कोइ दोषरे ॥ जो० ए ॥ दाइ ज्वर तनमें एसो उपनोरे, बलतो हुवो बै सारी देदरे । औषध बेषध कोइ नवि कन्येोरे, राजा देदीशुं नाष्यो नेहरे ॥ जो० १० ॥ पुत्र नारीने सज्जन घर थकीरी, मुल न आयो माया मोहरे । हेल हकारो मुखसे ना कियोरे, धरमशुं लाग्यो अंतर नेदरे | ॥ जो० ११ ॥ मनरो तो जोस करीने वेगशुरे, छायो राजा पौषध शाला मांहिरे । जागा पडिलही लघु वड़ी नितरिरे, डाजादिक किया संथारा ठायरे ॥ जो० १२ ॥ आसन बेठा पूर्व दिशि मुख करीरे, लीया दोनुं माथे हाथ चढायरे । नमोत्थुणं कियो सिद्धां जणीरे, जब
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परदेशी राजाकी चौपाइ। १२३ थे मुगति विराज्या जायरे ॥ जो १३ ॥ बीजो नमुत्थुणं अरिहंता नणिरे, तीजा वलि केसी श्रमणने कीधरे। धरमाचारज मोटा माहिगरे, पूरब में श्रावकना व्रत लीधरे ॥ जो १४ ॥ हिवडां तो व्रत माहरे श्म हिज रे, नवरं विविध विशेषरे। श्हां तो में लेडं सोस आखडिरे, उहां तो आप रह्या देखरे ॥ जो० १५ ॥ पाप अगरा सघला पचखिनेरे, आहार चारे पचख्या जासरे । इष्टकांति काया करंडिया समिरे, वोसरावी हैं. लेवे श्वासोश्वासरे ॥ जो १६ कथाकारमें राणी म जाणीयोरे, रखे जीवपरो करे उपायरे । सुख समाधि पूजण मिसेरे. राजाने पूरो पाडुं जायरे ॥ जो १७ ॥ ढाल १॥ मी पेसानी ॥ राणी मांड्यो बेडपलाने शोकोरे, मारा वाला तणोरे विजोगारे । म्हारो कोइ नाम न लेजोरे, मुने दरसण देखण देजोरे ॥ १७ ॥ राणी एहवो कियो कूडोरे, उमरावाने कीधो पूरोरे । तिणे कपट एहवो केलध्योरे, म्हारो अबके हलो मेलोरे ॥ १५ ॥ म्हारे आडो परेच खींचावोरे, राणी मांहे गइ चालीरे,। इण
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
एहवो अकारज कीधोरे, जाइने गल ट्रंपो दीघोरे ॥ २० ॥ पुनः ढाल || पिण परदेशी यति क्षमा करीरे, राख्यो धरमसुं रुडो ध्यानरे । ऐसी क्षमा जो कोइ साधु करेरे, तेहने उपजे पूरण केवल ज्ञानरे ॥ जो० २१ ॥ तेरमा बेलानो ढुंतो पारणारे, घ्यालोयनिंदि निश्चल यारे । कालने अवसर मरण लदी कर रे, सुरयाज देव दुवो है जायरे ॥ जो० २२ ॥ पांचे परजाय करी अति दीपतोरे, पहिला देवलोक ततकालरे । क्षमाने करणी कधी अति घणीरे, ध्यरूप दिना में व्रतने पालरे ॥ जो० २३ ॥ इम निश्चय करी गौतम जाणजोरे, सुरयाज लहि देव कध एमरे । ज्योतिने क्रांति वधी बै एहनीरे, थेट नीजाया लीधा नेमरे ॥ जो० २४ ॥ दोहा ॥ वीर कहे सुण गोयमा, यह परदेशी राय । ततकाले सूर उपनो, नाटक कीयो आय ॥ २५ ॥ चार पढ्योपम उखो, देवो नाटक सान। सुर विमान परखद तणां, जाव कह्या वर्द्धमान ॥ २६ ॥ वलि गौतम पृष्ठा करी, विनयवंत घरी देत । सूरियाज स्थित पूरी करी, चवीने जासी केत ॥
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
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२७ ॥ ढाल २० मी वीर सुणो मोरी विनती पदेशी ॥ वीर कहे सुणो गोयमा, ए चवसी हो सूरियाज देव । महा विदेह क्षेत्रने विष, जन्म लेसी हो जिहां सुख नित मेव ॥ वीर॥ २० ॥ महल सुखासण पालखी, मणि माणेक हो मोती घन सार। सोनो रूपो अति घणो, अवसरसी हो जरीया जंडार ॥ वीर० श्ए ॥ रथ हाथी घोडा अति घणा, दास दासी हो बहुलो परिवार । प्रजुता घणी अन नाखिता, अवतरसी हो तिण कुलमें आय ॥ वीर० ३० ॥ ए जीव गरने श्रवतर्या, मात पिता हो. धरमे दृढ थाय । पूरे मासे जनमसी, जनम तिथी हो करसी बापने माय ॥वीर० ३१॥ पहिले दिन नाल बेदसी, दिखलासी हो तोजे दिन चंद सूर ।
ठे दिन बीज गावसी, अशुची करसी हो श्ग्यारमें दिन दूर ॥ वीर० ३५ ॥ श्रांगणे गुडल्या चमावसी, बेहु पगला हो हाथे थिरी कराय। जीमण कंवल वधारिवो, बोलावण हो करसो कान विधाय ॥ वीर॥ ३३ ॥ वरस गांव चोटी राखसी, करे मुंडण हो खरचे बहु वित्त ।
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
बाल अनेरा बै घणा, इत्यादिक हो बालकनी थित ॥ वीर० ३४ ॥ गरजथकी मांडी करी, जन्म लेश हो कला लग जाण । करसी रक्षा थति घणी, झधि पूरण हो मोटे मंडाण ॥ वीर० ३५ ॥ पांच धाया पालिजसी, अने हो खोजा दास्याने साथ । दासी अगरह देशनी, श्णने लेसी हो सहु हाथो हाथ ॥ वीर० ३६ ॥ एक थकी बिजी लीये, बेसारे हो निज खोला माय । हियडा सेतो जीडने, सुख जोगवता बलि नाचतां जाय ॥ वीर० ३७॥ गीत हालरिया गावतां, बजावसी हो बजवणां जोर । रमकडां बालक तणां, बाल लीला हो करसी बहु कोड ॥ वीर० ३० ॥ किहां बेसे सुवे किहां, किहां पासाथी हो दोडीने जाय । चुंबन गाल करतां थकां, जिण दिग हो नयण उराय ॥ वीरण ३५ ॥ रत्न जडीत श्रांगण जणी, तिण चालतां हो वाधे देखिने प्रेम । व्याधि रहित सुख में बढे, गिरि कंदरमें हो चपालता जेम ॥ वीर० ४० ॥ मात पितादिक कुंवरने, बरस पाउनो हो काफेरो जाण । न्हाइ धोश् शण
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
॥
गारिने, श्रुज वेला दो तिथी मुहूरत मान || वीर० ४१ ॥ कला याचारज पासदी, ते जणावशे हो इण कुंवरने आण । कला बहोत्तर पुरुषनी, इणने करसी हो बहु गुणनो जाण ॥ वीर० ४२ ॥ कला सूत्र अर्थ जणायने, गुरु देसी हा माईताने सुपि । देसी घी वधामणी, वैस्त्रादिक हो आमरण अनूप ॥ वीर० ४३ ॥ बहुत्तर कला जण्या थकां कुमर होसी दो बुध निधान । जोबन वय व्याप्यां थकां शूरवीर हो होसी गुणनी खाण ॥ वीर० ४४ ॥ जाषा वारे देशनी विण हो डाहो होसी जाए । नव अंग सुंदर शोजतो, नाटक चेटक दो गीतने गान || वीर० ४५ ॥ हसण बोलण चालण विषे, घी दोसी हो चतुराई चुप । जुद्ध करी परने दराय दे, सिणगारे दो होसी रुप अनूप ॥ वीर० ४६ ॥ जोग संजोग समरथ होसी, तेह बिहतो दो फिरसी काल अकाल | मात पिता बहु धामसी, अन्न पाणी हो सयपासण चाल ॥ वीर० ४७ ।। पि कुमर राचे नहीं, काम जोगनो हो लोलुप नहीं था । पंकेरुद कासारमें, जल
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
सेती हो रहे उंचो सदाय ॥ वी०४७॥ काम कादौ करी उपनो, जोग पाणी हो वधीयो ने सेह । पिण न लीपे काम नोगशु, लगावे नहीं हो कासुं निवीड सनेह ॥ वीर० ४ए ॥ साधु समीपे बुऊसी, घर त्यागो हो होसी अणगार । पंच सुमति तीन गुपति सों, घोर तपस्या हो करसी अतिसार ॥ वीर० ५०॥ निर्दोष आहार जोगवे, जे जीते हो मोह माया ने मान । उत्कृष्टी करणी करी, उपजासो हो अन्ते केवल ज्ञान ॥ वीर० ५१ ॥ दोहा ॥ हिवे दृढप्रज्ञा केवली, जाणसी सरव उपाय । दरसण करीने देखसी, तीन लोकनो जाव ॥ ५५ ॥ गत आगत सब जीवना, पुन्य पाप अहनाण होय हुवे होशे सही. तीनो कालनो जाण ॥ ५३ ॥ अनाचार बगनां करे, प्रगट चवडे होय । दृढप्रज्ञानी केबली जणी, बानो रहे नहीं कोय ॥ ५४ ॥ जिण कारण जीव खप करे, उदय होसी थाय । इण सरीखो दिसे नहीं. तीन लोकने मांय ॥ ५५ ॥ ढाल २१ मी धरम हिये धरो ए देशी ॥ केवल ज्ञान पाया पढेरे, विचरसी कितो एक
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परदेशी राजाकी चौपाई।
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काल । घणा वरस उपगार करे, केवल प्रज्ञापा लोरे ॥ धन जिन धरम ने ॥ ५६ ॥ तिणथी शीव सुख थायोरे, पुःख दोहग टले, दालिम पूर पलायोरे ॥ धन० ५७ ॥ शेष घाउखो थाकतारे, अणसण करसी सार। चार श्राहार पच खीनेरे, घणा जगति विस्तारोरे ॥ धन० ५७ ॥ जिण कारणने उठियोरे, करसी नगन ज्यु नाव । स्नान नहीं दातण नहीरे, लोच शील तप चावारे ॥ धन ५ए ॥ त्रधार मनही नहीरे, सोयवो नूमिका पीठ। नीदारथ अटन केरेरे, लाल अलान सम दिगेरे॥धन०६०॥मान अपमान कोई दियेरे, हेलानिंदादिक अनेक । सहे बचन लोका तणोरे, साहसे राखे धरम टेकोरे ॥ धन० ६१॥ एह अरथ थाराधनेरे, बेहले श्वासोश्वास । सिक बुऊ मुकायनेरे, करसी शिवपुर वासोरे ॥ धन० ६२ ॥ वीर जिणंद गौर म प्रतेरे परदेशी कह्यो नाव । सांजल श्रीनीतम कहेरे, तहत वचन लगवानोरे ॥ धन ३॥ राय पसेणी सूत्रमेरे, एह कह्यो अधिकार । जणे गुणे श्रवणे सुरे, पामे नवजल पारोरे ॥ धन० ६४ ॥ सूत्र (१७,
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परदेशी प्राजाकी चौपाई।
निरुध जे में कह्योरे. अधिको ओबो कोई । शषि जेमस एम कहेरे, मिच्छाम। दुक्कडं मोयर । धन० ६५ ॥
इति कृषि जयमल कृत परदेशी राजाको चौपाई सम्पूर्णम् ।
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