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जम्नु चरित्र ।
सासने दिया, दोनो बीज जाटने लिया ॥४॥ वग पामर आये निज गेह, दियो बीज सुतको करि नेह । कहें जाट सुतसुं करि हेत, ए बीया तुम बोउ खेत ॥ ४ ॥ बेटा कहे सुनो तुम बात कोडूं नया खेतमे तात । दिन दशका तुम देरी करो, ए बोया ले घरमे धरो ॥ ४५ ॥ सुनी बचन सुतको जव तात, कोप करी बोटों बिख्यात । कोठू हमने खाया सदा, मीग बस्तु न खाया कदा ॥ ५०॥ अरे मुर्ख जानो नहि तमे, मालपुया खाना है हमे । तिसते कोडूं काटो जाय, ए बीया लेके तूं बाय ॥५१॥ तद कोड्रंको पूरे किया, गुड़की बीज बोयके दिया। उह धरती बालुकी रही पानी बिन कलु उपजे नही ॥ ५५ ॥ (दोहा) दिन २ कूवा खोदतें, रैन पवन सञ्चाल । बालू कूये मे जरा, सूक गया ततकाल ॥ ५३॥ बिन पानी उपजा नही, जली गयो ते बीज। गेहूं ऊख न नीपजा, दोनु खोया बीज ॥ ५४ ॥ गुड़ को; दोनु गया, जाट महा परताय । तैसें तुम सुन मुक्तिका, मीग सुख चितलाय ॥ ५५ ॥ तिसको खालच तुम करो, जगका सुख विष नोग। हमको
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