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जम्बु चरित्र ।
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तजि दिदा ग्रह्यो, नही रहे तुम जोम ॥ ५६ ॥ संयम लेतेहो सही, सुख संसारी त्याग। पीले मन थिर ना रहे, विसर जाय बैराग ॥ ५७॥ तद मुक्ति जी नहि मिले, जग सुख नाही होय । फिर पाठे पळतावोगे, दोनो सुखको खोय ॥ ५७ ॥ जैसे वग पताश्या, तिम करते तुम काम । सोचोगे तुम
आपको, नही रहे चित गम ॥ ५ए ॥ (चौपाई जम्बू कहे वनिता सुन बात, विषयाविषमुक नाहि सुहात । जो पबतावेगा नर कोय, वायसनि परे लोजी होय ॥ ६० ॥ हूं जैसा लालच नहि करूं विषिया सुखमे हूं ना परूं । पियसुं कामणि पूर्वे तथा, कुन ए बायस कहिथं कथा ॥ ६१ ॥ जम्बू कहें प्रिया सुन बात, जरुयच नाम नगर विख्यात नरमदा नदी बहती जिहां, करी कलेवर मूवा तिहां ॥ ६ ॥ बहु पंबी तस आवे जाय, आमिष जद करे मनलाय । अधोछार गजको है जिहाँ कलवा एक बिचरै तिहां ॥ ६३॥ सब पंडी मूरख सिरताज, आवेहें उड़ जावें नाज । मै नही जाऊं श्तथी कदा, नदन करि हुं बैग सदा ॥ ६ ॥ हां आहार है विस्तार, जैसा जान कलेवर धार
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