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जम्बु चरित्र । यह कथा, चुप हो रहें निदान । जम्बूकी पहिली त्रिया, समुख स्त्री गुणखान ॥ ३० ॥ ते बोली खामी सुनो. एक हमारा वैन । हमको तजि दिदा ग्रहो, सोचोगे दिन रैन ॥ ३५ ॥ जैसे बग पामर रहें, ते परतायो श्राप । तैसें तुम पड़तायोगे, पावें करिहो ताप ॥४०॥ तव जम्बखामीकहें, कहो प्रिया तुम बात । कैसें वग पत्ताश्यो, कथा कहो विख्यात ॥४१॥ पहिली त्रिया कहें कथा, स्वामी सुन चितलाय । मारवाड़ के देशमे, पामर जाट कदाय ॥ ४२ ॥ ( चौपाइ) इकदिन ते वग पामर जाट, गये मालवा देशके बाट । श्रनुक्रम आये मालव जिहां, गये सासरे बेठे तिहां ॥ ४३ ॥ सासू जिमन तेड्यो घरे, मालपुया ले आगुं धरें जिमी पामर मिग जया, आज चिज देखा नै नया ४४॥ असा जिमन जिमे नही, अजव वस्तु देखा नहि कहीं। तव सासूसे पूढें बात, ए कुन वस्तु कहो मुझ मात ॥४५॥ गुड़ गेहूं के है ए चीज, वग माझे हमकुं द्यो बीज । मै बोऊं अपने घर जाय तो शह बस्तु हमेसा थाय ॥ ४६॥ मालपुया खाउँ मै सदा, कहे सासकुं पामर तदा। गेहूं ऊखः
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