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परंदशी राजाकी चौपाइ।
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श्रावी दाय, जुगत मेलो घणी ए । बुध थाहरी निरमली ए ॥ १६ ॥ सुण स्वामी मुफ बात, धर्मिणी थी साख्यात, दादी हम तण। ए । नवतत्व विध जणी ए ॥ १७ ॥ करती पडिकमणो पचखाण, सुणती साधांरी वांण, चालती तंत मैए। उंडा थांरा पंथमें ए ॥ १७ ॥ म्हारी, दादी साम, करती धर्मरो काम, तप किरिया घणी ए । चतुराश् लणी ए ॥ १५ ॥ सांचा मुनिना थाट, टले फुःख उचांट, तुम कहैण। सही ए। देव लोकां गए ॥ २० ॥ ह दादी नइ अत, हतो इसटनै एकंत, अ.पण! गोडतीए । आघो न बोडतीए ॥१॥ देवलोक थी आय, दादी कहै
म आय, पोता धर्म करोए, ए मांग है खगेए॥ २५ ॥ ऐसी दादी कहैवाय, तो मार्नु मुनिराय, नाहं तो माहरो ए । मत काट्यो खरोए ॥ २३ ॥ गुरु कहै सजिन राय, कोइ देव पूजणने जाय, असनान मंजण करी ए। धूपणो कर धरी ए॥ २४ ॥ कोश् श्वेतखानारे मांहिं, जगी कदै वत लाय, आवो पगधरो ए । मोसुं बातां करो ए ॥ २५ ॥ जाय कै नही जाय, उत्तर दे मोनै राय,
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