________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परदेशी राजाकी चौपाइ
सांमी सुचाइ घणी ए । न जाय तण नणीए ॥ २६ ॥ गुरु कहै सांजलि एम, थारी दादी आवश् केम, पुरगंध इहां तणी ए। उची जावर घणीए ॥ २७॥ पांच सइ जोयण लग जाय, दादी न सके आय, नेह लगै नवइ ए । सुखमें मगन हुवैए॥ २७ ॥ देवन सके श्राय, नव नेह लपटाय, सुखमें जिलै जिवे ए। श्रादि करै कठए ॥ श्ए ॥ मोहरत नाटक सार, वरस जाय दस हजार, पिढ्यां खपै घणी ए । कहै किण जणीए ॥ ३० ॥ पल सागरनी थित, महल देवीने चित्त, मोह रह्या सहीए । आय सके नहींए ॥ ३१ ॥ राय समकि
णि न्याय, जुदा मानि जीव काय । राजा कहे वलिए, बुद्धि थारी निरमलीए ॥ ३ ॥ ज्ञानी पुरुषो को श्राप, ज्ञान तणो परताप । हेत मेलो सहीए, मो दिल से नहींए ॥ ३३ ॥ दोहा ॥ तिजो प्रश्न गुरु प्रते, एम पूडे राजान । सन्ना मध्य प्रजु एकदा, बैगे करि मंडाण ॥ ३४ ॥ सेठ सेनापति मन्त्रवी, देखतां सहु कोय । कोटवाल एक चोरने, याणि सुंपियो मोय ॥ ३५॥ में परिखा करवा जणी, घाटयो कुंजी मांह । काठगे
For Private and Personal Use Only