________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८६
परदेशी राजाकी चौपाइ ।
कहै छेउं हाथो न पाय, शूलि देउरे चढाय, सिर काट धरुए, जीव रहित करुंए ॥ ६॥ नर तोसुं करे अरदास, मोनै महलो नातीलारै पास, हुँ ज.यने कहुँ खरोए । मो जिम मति करोए ।
॥ हुँ दुःख पानं आप. परनारीने पाप, तोतुं जाणदे ए । विसामो खाणदे ए ॥ ७॥ वात न मानुं एह, मो अपराधि तेह, खिण मात्र सहीए, ढीलो मेलुं नहिए ॥ ए॥ गुरु बोख्या सुण राय, श्तरै गुनैद कराय, अलगो न जाणदे ए, विसामो न खाण दे ए ॥ १० ॥ थार दादै वोलव्या कुड, संच्या पापना पूर, जाय नरके पड्योए । जंजीरा जड्यो ए ॥ ११ ॥ पल सागरनी मार, विण जुगतां निरधार, बुटवो नहिं ए। इम जाणो सहिए ॥ १५ ॥ करै परमाधामी घात, ज्यांहरि पनरै जाति, रुखवाला घणां ए। पुःख नरक तणा ए ॥ १३ ॥ चाहै सीखई जाय, पण दादो न सकै श्राय, मार घणीपडैए, ढीलो नही करैए ॥ १४ ॥ तिण दृष्टांते मान, जूदा जीवने काय, फेर जाणो मतिए । म्हें फूठ न बोला जति ए॥ १५ ॥ ये जली कही मुनिराय, पिण म्हारी न
For Private and Personal Use Only