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परदेशी राजाकी चौपाइ।
काय बै एक । सरधा ए म्हारी खरी, धार राखी ॐ विशेष ॥ एद ॥ पहिलो प्रसनै श्म कहै, सांजलज्यो मुनिराय । म्हारो परदादो हुँतो, शण सेतंविकारे माय ॥ एy ॥ ढाल मी ॥ गोयम समुद कुंमार ॥ ए देशी ॥ अधरमी श्रवनीत, चलतो म्हारी रीत, दादो हम तणो ए । पापी हुँतो घणो ए ॥ ए ॥ पाखंडी प्रचंड, लेतो अकरा दंड, प्रमुखिया सुखि ए। प्रसुखिया पुखिए ॥ एy ॥ तुम कहणी मुनिराय, हो गयो हुसी नरकां मादि, हेत दादो तणो ए, मोसु होतो अतिघणोए । २०० । श्राय दादो कहै थाप,पोता मत करि पाप, हूं नरक पड्योए, पाप घणो कन्योए ॥ १ ॥ ईम कद दादो आय, तो मार्नु मुनिराय, नहीतर माहरीए । प्रगन्या छै खरीए ॥५॥ गुरु कहै हेत लगाय, सुण प्रदेशीराय, राणी ताहरीए । सुरीकंता खरोए ॥३॥ पहेरि उढ जलनाय, सहु सिणगार वणाय, से जगहैणा तणीए । जलुसाइ अति घणीए ॥४॥ को पुरुष अनेरो थाय, काम जोग विलसाय, निजर थारी पडैए । दंड कुंण सो करैए ॥ ५॥
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