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परदेशी राजाकी चौपाइ।
मुक देखिने, थारा मनमें ईम आई जी । कुण बैग जड मूढ ए । चितने सबतें सुणाईजी ॥ ध० ७॥ तुमनें चित ! चरचा करी, चलिने मो आयोजी। वो बैठो साधो ना कहि, श्रआयनें तब पबितायो जी ॥ धo Gए ॥ एहै रथ सांचो अजे, हा स्वामी ए सांचोजी । दोनु हाथ जोडी लिया, जाण्यो मारग नहीं काचो जो ॥ ध० ए० ॥ बलतो राजा ईम कहै, स्वामी कहोतो वैसोंजी । गुरु कहै जागा ताहरी, बैसण मैं किम कहिस्यो जी ॥ ध० ए१ ॥ पूढे रायस्वामी प्रते, ज्ञान दरसण कोई थांमेज) । मनरी बातें किम कही। उत्तर द्यो स्वामी म्हांने जी॥ ध० ए५ ॥ अथ दोहा ॥ राय परदेशी गुरु प्रते, पूलै धरि करि चाव । किण प्रयोगे जाणीयो, म्हारो मनरो नाव ॥ ५३ ॥ च्यार झान मो कने बै, सुण परदेशी राय । केवल झान तो नहि, इम जाएयो मन नाव ॥ ए४ ॥ नंदी सत्तरमें कह्यो, न्याय। श्ररथ लगाय। गुरु कहै राय सरध ले, जूदा जीवनै काय ॥ एए ॥ वलतो राजा श्म कहै, जीव
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