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परदेशी राजाकी चौपाइ।
मे तिहां बैठि सकू नहीं, मो मन एहची थाईजी। जेती मुख्ने उपनी, चितने तेह सुणाई जी॥ ध० ७० ॥ चित कदै सुण ए मोटका, केशी श्रमण कुमारो जी। बिचरत बाया बागमें, पांचसै मुनि परिवारो जी॥ ध०७१ ॥ बालपणे व्रत आदो . तजी मोह ने मायाजी। सरधा एहनी बै खरी, जुदा कहै जीव काया जी ॥ ध०
॥ चितना बचन ईस्या सुणी, बोख्यो श्म महारायोजी। जो चित ए नर योग्य बै तो हम जाई चलायो जी ॥ ध०७३ ॥ हा स्वामी नर मोटका, बचन कानमें घाख्या जी। राजा चित बिहुँ जणा, केसी समण पै चाख्या जी ॥ ध०
४॥ राजा जाय जनो रह्यो, उचो न कियो हाथो जी। श्रावो बैठो नहिं मुनि कह्यो. पबितायो नरनाथो जी ॥ ध० ५ ॥ मुनि कहै नृप सरि मालिने, जो करि विनदै वाद जी। तिको पुरुष खरडै की, स्वामी उजड खरडै चाहे जी॥ ध० ६ ॥ इण अष्टांते रायतें, जांज्यो मांहरौ डांणो जी । तैं उचो हाथ कियो नहीं योंही उनो आणों जी ॥ ध० 0 ॥ बाग मांहि
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