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परदेशी रानाकी चौपाइ।
उपगारिया, बिरसा ईण संसारोजी ॥ ध०७१ ॥ मुऊने आप सुपा हुँता, सो देखोले चौडेजी। अब सर बरते एहवो, घोडा किसाईक दौडेजी ॥ध० ७२ ॥ राय परदेशी चित तणों, मान्यो बचन अनूपोजी। राजा बहुली अबै, घोडा देखण चोंपोज) ॥ ध १३ ॥ रथमें घोडा जोतीया, उपर बैठो रायोजी । चित बैठगे खेडवा जणी. केश योजन ले जायो जी ॥ध० ॥ श्रांम्हा साम्हा दोडावीया. बाया जाण उमेदोजी। पर देशी तब ईम कहै, चितमें पाम्यो बूं खेदो जी ॥ ध० ७५ ॥ गय परदेशी इम कहै, चित ! अवसरनो जांणोजी । सघन बाया के बागनी, रथ उनो राख्यो श्राणोजी ॥ ध० ७६ ॥ धरम कथा केशी कहै, उचै उचै सादो जी। राय परदेशी देखिने, मन पाम्या विषवादो जी ॥ धo 5॥ चित ! बैठ्या कुंण जड मूढ ए, कुण जड करे सेवाजी। पंडित नहिं ए अजाण बै, काढण सागो केवाजी ॥ ध० ॥ ए धरम कहै दीपै घणों, ईण मूढा मध्य थापो जी । स्युं एहनो रोजगार हैं। रोक्यो सघलो बागोजी॥ध० पुए ॥
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