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जम्बु चरित्र ।
ज्यान । तद परिणाम गयो फिर जाव, मरण जात को पायो दाव ॥ २३॥ नाव चिन्तव्यो जालं तिहां नारिनागिला गेड़ी जिहां। तिनसुंजाय करोघर वास, करि बिचार तब हुई उदास ॥२४॥ आयो निज नगरी सुग्राम, सोधत फिरे नागिला बाम जा दिनसो तजि स्वामी गयो, त्रिया नागिला तप बहु कियो ॥२५॥ देह कोण कारे साधे धर्म जिन आगम के जाने मर्म । आवेळे दरशन नागिला देवल पास नाव तव मिला ॥ २६॥ पूवें नावदेव सुन नार, बचन एक मेरो उरधार । जावदेव ब्राह्मण था एक, ताकी नारी महा सुबिवेक ॥ २७ नाम नागिला कसाही दाज, प्रीतमोड़ गयो तत काल । तेह विरी, जे तुम देखो सो कहो खरी ॥ २७ ॥ तवं नागिला कियो बिचार लखी चलनसुं निज जरता र संजन सुंघ्रष्ट थाय, तिनको सही कहें चितलाय ॥ श्ए ॥ तुम सुं तिनसुं है कलु काम, ते तुम बात कहा गुणधाम कहें नावजी सुनो बिचार, मेरी त्रिया नागिला नार ॥ ३० ॥ कहें नागिला हुं बुं तेह, नाव कहें उर्बल क्यु देव । सुनो साधजी मैरी वातं, तुमतो
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