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जम्धु चरित्र ।
संजम लियो बिख्यात ॥ ३१ ॥ ता दिनसुं तप संजम धरूं, बह पारणे अविल करूं । नाव कहें तव बचन प्रकाश, हमसुं नारी कर घरवास ॥ ३५ लोग इवें यापन दाय, नार कहें संजम मत खोय चारित्र के चिन्तामणि रत्न, ते मत बिसरो राखो यत्न ॥ ३६ ॥ रतन बाड़ कङ्कर कुन गहे, तज हस्ती रासन कुन लहे। कल्प वृक्ष किम गंडा जाय, कोन धतूग गहें सदनाय ॥ ३४ ॥ तज अमृत विष पिबें कोन, को तज नगर करें बनगौन इम प्रतिबोध नागिक्षा करें, बहुत साध संजम सुं तरें ॥ ३५ ॥ ते तुम याद करो क्युं नाहि, तख्या साध बहु संजम माहि। नरत सगर चारित्र ले तरा, मीच प्रत्येक वुद्ध जे खरा ॥ ३६ ॥ मृगा पुत्र प्रारू गज शुकुमाल, एसब सीके संजम पाल मे ताज कुन मेघ कुमार, धन्ना साखना अणगार ॥३७॥ एवं घणा साध जे नया चारित्र ले शिवपंथे गया । तुम क्यु कायर हो निरधार, श्म प्रतिबोध कत्यो जव नार ॥ ३०॥ नावदेव संजम थिर कियो, चारित्र गल देवगत लियो। नार नागिला पाली क्रिया, नपा अवतारी त्रिया
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