________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जम्बु चरित्र ।
३७ ॥ संजम ले चूको मत कौय, मानव जव फिर नाही होय । श्रापा समऊ क्रिया तप करें. सुद्ध चतना कारज सरें ॥ ४० ॥ (दोहा) लावदेव को जीव जो आऊ सागर सात । थित पाली चवियो जिहां ते सब कहुँ विख्यात ॥४१॥ महा विदेह जु क्षेत्र है सोने अति विस्तार । वीत सोक पुर अति जला बिचरे बहु अणगार ॥४२॥ पदम रथ तिहां राजवी करें राज अनिराम । पटराणी सोने नली बनमाला ते नाम ॥४३॥ बनमाला प्रसव्यो हि पुत्र एक सुकमाल । शिवकुमार नामे हुई यात रसाला ॥४४॥ स्त्री परणी तव पांचसें सुद हिल आवास । इकदिन वेग गोखड़े जोवे नगर जिल्लाल ॥ ४५ ॥ ( चौपाइ) तिन अवसर
नराय, धर्मघोष साधू सुखदाय। बिचरें मोजके पास, उर्बल देह दीण है मास॥ ४६ का बन्यो अलिराय, श्रावी बांधो सीस
यो हो कर जोड़, एता कष्ट करो र ॥ ४ ॥ मुनि बोलें तव बचन प्रमान करो निमित्त धर्मको जान । कुमर कहें मुऊ धर्म बताव, मै निकरों धर्म सुन जीव ॥ ४ ॥ साधू
For Private and Personal Use Only