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Acila
परदेशी राजाकी चौपाइ।
बीजा उपवास एकासणा, देशनोकारसी श्रादोजी इणपरि विचरे चित बिनावतो, सरधा संबेग जादो जी॥ चि०६ ॥ गुण कविस करे चित दीपतो, तेहना जिन्न जिन्न नामोजी। एह कथाने परंपरा कह्या, सुनज्यो धारि बिबेको जी ॥ चि० ॥ पहिलो गुणतो क्षु पनो नही, धरमोप मरणनो धारो जी। जो गुण रूप श्रावक तणो, प्रकति सरम तीजे सारो जी ॥ चि ॥ करतुत कारी जस या लोकमे, चउथो सबनुं प्यारो जी। कूड़ कपट परनाम न पांचने, मरपै पापथी न्यारो जी चिए ॥ सातमे केहने उग बञ्चे नही, बाठमे दाक्षन्य कयालो जी। नवमे सजावंत होश धरमे करै, दोहला दया संजालो जी ॥ चि० १०॥ हुवै मध्यस्थ राग द्वेष पातला, गुण ग्यारमो बै एक जी। नली सोमदृष्टि होई बारमे. गुणनो राग सनेहो जी॥ चि० ११॥ धरम कथा दृष्टांत गुण चौदमे, कहेज रूडै जावो जी। जैन तनो पष मिलतो पनरमे, श्रवर पुन जानन चावो जी॥ चि०१॥ बड़ा जिम किरिया करै सतरमे, आनंद बिम कामदेवो जी। बिनय करै गुर मायितनो,
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